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					1रोबॉट्स और अंतरिक्ष की खोज
 —डा.गुरुदयाल प्रदीप
 
 श्रमिक... मजदूर...चेक भाषा के रोबॉट शब्द का यही तो अर्थ 
					है। १९२१ में कैरेल कैपेक द्वारा सृजित कहानी और नाटक 'रोजम्स 
					युनिवर्सल रोबॉट्स' से प्रचलित इस शब्द से भला आज कौन नहीं 
					परिचित है? रोबॉट का नाम लेते ही हमारे मन में एक ऐसे यंत्र–मानव 
					की कल्पना उभरती है जिसके पास असीमित कार्य–क्षमता हो, शक्ति 
					हो और साथ में बुद्धिमान भी हो लेकिन हमारी आज्ञा का उल्लंघन न 
					करे। दूसरे शब्दों में कहें तो हम चाहते हैं कि ये रोबॉट्स 
					हमारे सारे कार्य करें लेकिन रहें हमारे ग़ुलाम।
 हज़ारों किस्से–कहानियों एवं फ़िल्मों के पात्र रहे इन रोबॉट्स 
					को इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, कंप्यूटर, यांत्रिक... 
					विज्ञान की सभी विधाओं में किए जा रहे अनुसंधानों का उपयोग कर 
					साकार रूप देने में हमारे वैज्ञानिक दशकों से प्रयासरत हैं। 
					हालांकि अभी तक अपनी परिकल्पनानुसार संपूर्ण 'यंत्र–मानव' के 
					सृजन में पूरी सफलता तो नहीं मिली है, लेकिन इन प्रयासों के 
					फलस्वरूप ऐसे यंत्रों के विकास में हम अवश्य सफल हुए हैं जिनकी 
					सहायता से न केवल हमारी कार्य–क्षमता कई गुना बढ़ गई है, बल्कि 
					उन कार्यों को भी किया जा सकता है जिन्हें पहले दुश्कर माना 
					जाता था। इन यंत्रों में हम मानवों की तरह नए कार्य सीखने की 
					क्षमता तो नहीं है लेकिन जिस कार्य के लिए इन्हें बनाया जाता 
					है उसे ये बड़े ही सटीक ढँग से करते हैं।
 
 आज ये रोबॉट्स विभिन्न औद्योगिक इकाइयों, विशेषकर ऑटोमोबाइल 
					कारखानों की असेंब्ली लाइन पर बैठ कर वेल्डिंग, पेंटिग, 
					निरीक्षण जैसे कार्यों को बखूबी अंज़ाम देते हैं। जापान ऐसे 
					रोबॉट्स के निर्माण एवं उपयोग में अग्रणी है। अब तो ये रोबोट्स 
					हमारे जीवन के लगभग हर पहलू से धीरे–धीरे जुड़ते जा रहे हैं। 
					चिकित्सा के क्षेत्र में दुश्कर सर्जरी, माइनिंग, सेना में 
					मानवरहित ऑपरेशन, विषम परिस्थितियों वाले स्थानों की जाँच–पड़ताल, 
					कंप्यूटर एडेड डिज़ाइनिंग तथा मैन्युफैक्चरिंग (छअड्रछअं) या 
					फिर अंतरिक्ष की खोज ही क्यों न हो... सभी क्षेत्रों में 
					रोबॉट्स हमारा हाथ बँटाते नजर आ रहे हैं। नए आविष्कारों तथा 
					उन्नत टेक्नॉलॉजी के बल, भविष्य में इनके विकसित रूप हर 
					क्षेत्र में हमारी कार्य क्षमता में कई गुना वृद्धि तो करेंगे 
					ही साथ ही एक संपूर्ण यंत्र–मानव के विकास में भी हम सफल होंगे।
 
 इन्हीं रोबॉट्स की एक कड़ी हैं– अंतरिक्ष यान 'स्पिरिट तथा 
					अपॉरच्युनिटी' जैसी रोवर बग्गियाँ। धरती से हज़ारों–लाखों मील 
					दूर एक साल से भी अधिक समय से मार्स की सतह की जाँच–पड़ताल में 
					लगी इन बग्गियों की क्षमता एवं सफलता ने सारी दुनिया को 
					विस्मित कर रखा है। नासा और उससे जुड़ी तमाम संस्थाओं ने इन 
					बग्गियों के रूप में अंतरिक्ष की खोज की दिशा में एक नया 
					अध्याय लिखा है।
 
 सबसे पहले तो आइए देखें कि निकट भविष्य में नासा की क्या योजना 
					है। संभवतः २००९ तक अगला मानव–रहित यान मंगल पर भेजने की योजना 
					बनाए हुए नासा के वैज्ञानिक स्पिरिट एवं अपॉरच्युनिटी जैसे 
					रोबॉट्स के अगले संस्करण के विकास में जी–जान से जुटे हुए हैं। 
					इन नए रोबॉट्स की न केवल कार्यक्षमता कई गुना अधिक होगी, बल्कि 
					ये कई गुना तेज रफ़्तार से काम करेंगे। साथ ही इनमें सोचने समझने 
					की क्षमता भी होगी।
 
 नासा के माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया अवस्थित 'एम्स रिसर्च 
					सेंटर' में 'जेट प्रोपॅल्शन लैब' के सहयोग से हाल ही में 
					विकसित आठ पैरों वाले रोबॉट 'स्कॉर्पियन' की विशेषता यह है कि 
					यह खड़ी पहाडियों पर भी आसानी से चढ़ सकता है तथा उबड़–खाबड़ 
					दुर्गम मैदानों को भी बिना परेशानी के पार कर सकता है। स्पिरिट 
					एवं अपॉरच्युनिटी जैसे पहिएदार रोबोट्स के लिए यह एक दुष्कर 
					कार्य था। दूसरी ओर स्पिरिट तथा अपॉरच्युनिटी जैसे रोवर्स 
					रोबॉट्स से मिलते–जुलते परंतु तेज रफ़्तार और थोड़ा–बहुत सोच–समझ 
					कर काम करने वाले रोबॉट 'के ९' के विकास में भी सफलता मिली है।
 
 'के–९' रोबॉट्स स्पिरिट तथा अपॉरच्युनिटी की तुलना में दस गुना 
					तेज हैं। मार्स पर किसी चट्टान की फोटो लेने में जहाँ स्पिरिट 
					तथा अपॉरच्युनिटी को तीन दिन लगते है, (एक दिन निर्दिष्ट 
					चट्टान तक पहुँचने में, दूसरा दिन अपनी रोबॉटिक भुजा को पत्थर 
					की ओर घुमाने में, तो तीसरा दिन अपने कैमरे को सही स्थिति में 
					ला कर उस चट्टान की सूक्ष्म फोटोग्राफी करने में) वहीं 'के–९' 
					मात्र दो घंटे में चार फोटो ले सकता है। यही नहीं, 'सॉफ्टवेयर 
					टेक्नॉलॉजी' के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों तथा विकास का 
					भरपूर लाभ इन 'के–९' सरीखे रोबॉट्स को भी मिला है। इन परिष्कृत 
					सॉफ्टवेयर तकनीकियों के बल ये रोबॉट्स हम मनुष्यों की तरह 
					परिस्थिति को सही ढँग से समझ–बूझ सकते हैं तथा दिए गए 
					निर्देशानुसार न केवल कार्य को कर सकते हैं, बल्कि परिस्थिति 
					के अनुसार उसमें परिवर्तन भी कर सकते हैं।
 
 जहाँ स्पिरिट एवं अपॉरच्युनिटी को प्रत्येक कदम के लिए 
					प्रोग्राम करना पड़ा था (यहाँ तक कि किस कदम के लिए किस हिस्से 
					को कितने डिग्री तक घूमना है) तथा इस प्रोग्राम में किसी भी 
					प्रकार का फेर–बदल कर पाना इनके बूते की बात नहीं थी, वहीं 
					'के–९' को मात्र यह निर्देश देना पर्याप्त है कि 'चट्टान तक 
					जाओ'। अब यह 'के–९' का काम है कि यह स्वयं तय करे कि वहाँ आस–पास 
					कोई चट्टान है या नहीं। यदि है, तो वहाँ तक कैसे पहुँचा जा सकता 
					है और उस पर किस प्रकार चढ़ा जा सकता है। यही नहीं, यदि वहाँ तक 
					पहुँचना तथा उस पर चढ़ना असंभव है तो यह रोबॉट केंद्र को इस बारे 
					में अपनी राय भी प्रेषित कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो 
					इसे कुछ सीमा तक कृत्रिम बुद्धि से लैस किया गया है, जिसके बल 
					यह परिस्थति के अनुसार स्वयं सोच–समझ भी सकता है तथा उचित 
					निर्णय भी ले सकता है।
 
 भविष्य में ऐसे रोबॉट्स का उपयोग केवल सर्वेक्षण तथा अंतरिक्ष 
					की खोज–बीन तक ही सीमित नहीं रहेगा। इनके उपयोग की असीमित 
					संभावनाएँ हैं। स्वनियंत्रित वाहनों से लेकर विध्वंसक हथियारों 
					से लैस कर देने पर बिना अपना एक भी आदमी खोए हुए दुश्मन के 
					ठिकानों पर भारी तबाही मचा कर युद्ध जिताने में इनका कोई सानी 
					नहीं होगा। तो ये रही बग्गी सरीखे इन रोबॉट्स से जुड़ी संभावनाओं 
					तथा इनकी उपयोगिता की झलक। लेकिन क्या यही इति है?
 
 मनुष्य की इच्छाओं तथा उसे पाने के प्रयासों की कोई सीमा नहीं 
					होती। जब उसे कहीं पर खड़े होने की जगह मिल जाती है तो वह बैठने 
					के फिराक में प्रयासरत हो जाता है और जब बैठने की जगह मिल जाती 
					है तो वह लेटने भर की जगह तलाशने लगता है। २००९ के मार्स मिशन 
					में इन बग्गियों के उपयोग का इरादा किए हुए नासा के वैज्ञानिक 
					न केवल इन्हें और भी क्षमतावान बनाने के प्रयास में लगे हुए 
					हैं बल्कि अगले तीन दशकों की योजना पर कार्य कर रहे हैं। नासा 
					के वैज्ञानिक २०३४–३५ तक अंतरिक्ष अभियान में प्रयुक्त होने 
					वाले ऐसे रोबॉटिक यानों के विकास में लगे हुए हैं जिनकी 
					चमत्कृत करने वाली क्षमताओं की तो आज हम मात्र कल्पना ही कर 
					सकते हैं।
 
 आवश्यकतानुसार ये यान अपने आकार–प्रकार में परिवर्तन कर सकने 
					की क्षमता से युक्त होंगे। किसी ग्रह के वायुमंडल से होते हुए 
					उसकी धरती पर उतरने के लिए अपने चारों ओर 'एअरोडायनॅमिक शील्ड' 
					का निर्माण कर सकते हैं, तो वहाँ की धरती के विषम एवं दुर्गम 
					ऊबड़–खाबड़ रास्तों पर चलने के लिए सर्पाकार रूप ले सकते हैं और 
					आवश्यकता पड़ने पर सूचना संप्रेषित करने के लिए एंटिना का रूप... 
					आदि। यही नहीं तरह–तरह की ग्रहों की विषम परिस्थितियों का सामना 
					करने के फलस्वरूप होने वाली टूट–फूट की स्वतः मरम्मत करने की 
					क्षमता से भी ये युक्त होंगे। कैसे होगा यह सब संभव? नासा के 
					वैज्ञानिक किस प्रकार इस असंभव को संभव बनाने की दिशा में 
					प्रयासरत हैं, आइए इसकी खोज–बीन की जाए।
 
 'टेटवाकर' करेंगे यह सब संभव। क्या हैं ये टेटवाकर्स? 'टेटवाकर', 
					'टेट्राहेड्रल वाकर' का संक्षिप्त नाम है। तो अब ये 'टेट्राहेड्रल 
					वाकर' क्या हैं? टेट्रा यानि चार, हेड्रल यानि फलक और वाकर यानि 
					चलने वाला अर्थात ये एक प्रकार के प्रायोगिक रोबॉट्स है, जिनका 
					आकार एक चार फलकों वाले पिरामिड के ढाँचे के समान है तथा इसका 
					हर फलक एक त्रिभुज के आकार का है। इन टेट्राहेड्रल पिरामिड के 
					आकार वाले रोबॉट्स के हर कोने (जिन्हें 'नॉट' यानि 'गाँठ' की 
					संज्ञा दी गई है) पर विद्युत–मोटर लगाई गई है। इन गाँठों को 
					जोड़ कर चार फलकों वाले पिरामिड के ढाँचे का रूप देने वाली धातु– 
					निर्मित तीलियाँ अर्थात 'स्ट्रट्स' कैमरे के ट्राइपॉड की टाँगों 
					की तरह छोटी या बड़ी की जा सकती हैं। इन स्ट्रट्स को छोटा–बड़ा 
					करने का कार्य 'नॉट्स' पर लगे मोटर्स द्वारा किया जाता है। ये 
					मोटर्स इन तीलियों को विभिन्न अक्षों पर घुमा भी सकते हैं और 
					स्वयं भी अपने अक्ष पर घूम सकते हैं। इन मोटर्स को एक 
					सुनिश्चित कंप्यूटर प्रोग्राम के अनुसार सुनियोजित ढँग तथा 
					संयोजित रूप से किसी एक फलक की तीलियों को छोटा या बड़ा कर पूरे 
					टेट्राहेड्रल रोबॉट के गुरुत्व केंद्र का स्थान परिवर्तित किया 
					जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया के फलस्वरूप न केवल ये रोबॉट्स 
					स्वयं पलट सकते हैं, बल्कि एक निश्चित दिशा में गतिवान भी हो 
					सकते हैं।
 
 बस, इतनी सी बात? यह तो बच्चों का खिलौना हुआ। न, न, इन्हें आप 
					साधारण खिलौना समझने की भूल न करें। जब नासा के मेरीलैंड, 
					ग्रीनबेल्ट अवस्थित गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर द्वारा निर्मित 
					इस स्वचालित एवं स्वतः आकार–प्रकार में परिवर्तन करने की क्षमता 
					से युक्त 'टेटवाकर' रोबॉट ने वहाँ की प्रयोगशाला के फ़र्श को 
					अपने से चल कर पार किया तो इसके निर्माण से जुड़े वैज्ञानिकों 
					के चेहरे पर वही भाव था जो एक शिशु के माता–पिता के चेहरे पर 
					तब देखने को मिलता है, जब उनका शिशु पहली बार चलना प्रारंभ करता 
					है – थोड़ा गर्व, थोड़ा संतोष और थोड़ा संरक्षात्मक भय। जनवरी 
					२००५ में इसके एक नमूने को एँटार्कटिका के मैक्मर्डो स्टेशन पर 
					भेजा गया ताकि वहाँ कमो–बेश मार्स जैसी कठोर परिस्थितियों में 
					इसका परीक्षण किया जा सके। यहाँ किए गए परीक्षण इनकी बनावट में 
					कुछ सुधार के सुझाव दे रहे हैं जो इनकी कार्यक्षमता को बढा. 
					सकते हैं, यथा– यदि 'नॉट्स' पर लगे मोटर्स को 'स्ट्रट्स' के 
					मध्य में लगाया जाए तो न केवल इन 'नॉट्स' की डिज़ाइन सरल हो 
					जाएगी बल्कि ये और भी विश्वसनीय ढँग से काम कर सकेंगे।
 
 ये रोबॉट्स नासा के 'गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर' एवं हैंपटन 
					अवस्थित 'लैंग्ले रिसर्च सेंटर' के सहयोग में चल रही 'ऐंट्स' 
					जैसी महत्वाकांक्षी परियोजना का सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण 
					कदम है। 'ऐंट्स' यानि चींटी नहीं अपितु 'ऑटोनॉमस नैनो 
					टेक्नॉलॉजी स्वामर्स'। इस परियोजना का लक्ष्य अगले ३०–३५ साल 
					में ऐसे 'रोबॉटिक अंतरिक्षयान' निर्मित करने का है, जो 
					आवश्यकतानुसार अपना आकार–प्रकार तो परिवर्तित कर ही सकें साथ 
					ही टूट–फूट की मरम्मत भी स्वयं ही कर लें। ऐसे यानों के स्वरूप 
					एवं क्षमता के बारे में पहले भी चर्चा की जा चुकी है, लेकिन इस 
					परिकल्पना को वास्तविकता का जामा पहनाने में अभी बहुत से पापड़ 
					बेलने हैं।
 
 वास्तव में अपने वर्तमान स्वरूप में ये 'टेटवाकर रोबॉट्स' कुछ 
					ज्यादा काम के नहीं हैं। पहली आवश्यकता तो इन्हें सूक्ष्म आकार 
					में लाना है। इसके लिए वैज्ञानिक यह अपेक्षा करते हैं कि निकट 
					भविष्य में इसमें प्रयुक्त विद्युत–मोटर्स को माइक्रो– एवं नैनो 
					एलेक्ट्रो सिस्टम तथा इनके 'स्ट्रट्स' को बहुत ही पतले 'धातुई 
					टेप' अथवा 'कार्बन नैनो ट्यूब्स' द्वारा प्रतिस्थापित किया जा 
					सकेगा। चूँकि इन 'टेप्स' या 'नैनो–ट्यूब्स' को इस सीमा तक 
					सिकोड़ा जा सकता है कि उनके दोनों सिरे एक दूसरे से लगभग मिल 
					जाएँ। अतः इन टेटवाकर्स में 'नैनौ एलेक्ट्रो सिस्टम' तथा 'टेप' 
					अथवा 'कार्बन–नैनो–ट्यूब्स' को प्रयुक्त कर न केवल हल्का तथा 
					सूक्ष्म बनाया जा सकता है अपितु इन्हें इस सीमा तक छोटा किया 
					जा सकता है, जहाँ इसके सभी नॉट्स एक दूसरे से जुड़ जाएँ। साथ ही 
					इनके नॉट्स को इस प्रकार डिज़ाइन किया जा सकता है कि आवश्यकता 
					पड़ने पर एक 'स्ट्रट' से अलग हो कर अपने ही अथवा किसी अन्य पड़ोसी 
					रोबॉट के 'स्ट्रट्स' से जुड़ सकें।
 
 इस प्रकार के सूक्ष्म, हल्के एवं न्यूनतम स्थान घेरने वाले 
					टेटवाकर्स को हजारों–लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या (((स्द्धारम्स्हृ))) 
					में रॉकेट में पैक कर अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। निर्दिष्ट 
					स्थान अथवा ग्रह पर पहुँच कर ये टेटवाकर्स पूर्व प्रोग्रामिंग 
					के अनुसार वहाँ की परिस्थिति या फिर आवश्यकतानुसार स्वतः 
					अंतरिक्ष यान का आकार गहण कर लेंगे। यही नहीं, परिस्थिति–अनुसार 
					ये समय–समय पर उसमें परिवर्तन करने तथा टूट–फूट की मरम्मत करने 
					की क्षमता से भी युक्त होंगे। जहाँ भी इस प्रकार से निर्मित 
					यान में टूट–फूट हुई उस जगह को दूसरे टेटवाकर्स फ़ौरन भर देंगे 
					तथा वहाँ उपस्थित अन्य सुरक्षित टेटवाकर्स के 'स्ट्रट्स' से 
					जुड़ कर पहले जैसी संरचना का निर्माण फिर से कर देंगे। यह कुछ–कुछ 
					वैसे ही है जैसा कि हमारे शरीर में हुई टूट–फूट को नई कोशिकाओं 
					द्वारा फिर से नया बना दिया जाता है।
 
 आज–कल कृत्रिम बुद्धि के विकास के क्षेत्र में गहन अनुसंधान–कार्य 
					चल रहा हैं ताकि टेटवाकर जैसे रोबॉट्स के एक बडे. समूह को 
					सामूहिक रूप से सोचने–समझने एवं निर्णय लेने की क्षमता से 
					युक्त किया जा सके। इस प्रकार की क्षमता से युक्त समूह के सभी 
					रोबॉट्स एक 'संपूर्ण स्वायत्त–इकाई' की तरह काम कर सकेंगे। साथ 
					ही ऐसी नई विधा के विकास का भी प्रयास किया जा रहा है, जिसके 
					द्वारा इनके द्वारा संपन्न छोटे–बड़े सभी कार्यों को इनकी 
					कृत्रिम बुद्धि की उच्च–स्तरीय निर्णायक क्षमता द्वारा 
					नियंत्रित किया जा सके ताकि किसी प्रकार के त्रुटि की संभावना 
					कम से कम रहे।
 
 संभावनाएँ ही भविष्य में सच में बदलती हैं, शर्त यह है कि हम 
					पूरी तन्मयता से सही दिशा में प्रयास करते रहें और अपना 
					विश्वास बनाए रखें। हमें पूरा भरोसा है कि हमारे वैज्ञानिक एक 
					न एक दिन न केवल अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे, बल्कि इससे भी 
					उन्नत प्रकार के रोबॉट्स के विकास में सफल होंगे जो केवल 
					अंतरिक्ष की खोज में ही नहीं, अपितु मानवता की भलाई में तरह–तरह 
					से उपयोगी सिद्ध होंगे।
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