इसमें संदेह नहीं कि पिछले कुछ सालों में हिंदी और
अन्य भारतीय भाषाओं में नए-नए सॉफ्टवेयर आने से डिजिटल दीवार में कुछ दरार-सी पड़ी
हैं, लेकिन अंग्रेज़ी के वर्चस्व को कम करने में इससे कोई ख़ास मदद नहीं मिल पाई।
आज भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कंप्यूटर का काम वर्ड प्रोसेसिंग और डीटीपी
आदि प्रयोगों तक ही सीमित हैं। यह सही है कि कुछ कंपनियों ने अपने सॉफ्टवेयर में
कुछ अतिरिक्त सुविधाएँ दी हैं, जैसे प्रशासनिक और बैंकिंग शब्दावली आदि। इससे
सरकारी दफ़्तरों में राजभाषा नीति के तहत खानापूरी करने में अवश्य मदद मिली हैं।
जहाँ तक डीटीपी का संबंध हैं, हिंदी के प्रकाशक
धड़ल्ले से इनका प्रयोग करने लगे हैं, किंतु यह प्रयोग भी पाठ की प्रविष्टि तक ही
सीमित रहा है। इनमें स्पैल चेकर, ऑटो करेक्ट जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं हैं।
बहरहाल कुछ पोर्टल और वेबसाइट इन भाषाओं में ज़रूर दिखाई पड़ने लगी हैं। इनमें
प्रमुख हैं, वेबदुनिया, बीबीसी, आजतक, प्रभासाक्षी, अभिव्यक्ति अनुभूति-हिंदी.आर्ग
आदि। इसके अलावा कुछ राज्य सरकारों ने ई-प्रशासन जैसे जनोपयोगी कार्यों को ज्ञानदूत
आदि परियोजनाओं के माध्यम से हिंदी में संपन्न करने की पहल की है। इससे डिजिटल
दीवार में हल्की दरार पड़ने का आभास होने लगा है किंतु इससे भी कंप्यूटर की व्यापक
क्षमता का मुश्किल से दस प्रतिशत ही उपयोग किया जा सका है। इसका प्रमुख कारण यही
रहा है कि ये सभी सॉफ्टवेयर विभिन्न कंपनियों द्वारा केवल फॉन्ट के स्तर पर ही
विकसित किए गए थे। इनके माध्यम से सतही तौर पर ही हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में
कुछ हद तक काम किया जा सकता था।
किंतु कुछ वर्ष पूर्व
माइक्रोसाफ्ट प्रमुख बिल गेट्स ने अपनी भारत यात्रा के दौरान घोषणा की थी कि विंडोज
ऑपरेटिंग सिस्टम के नए संस्करण में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को ऑपरेटिंग सिस्टम
के मूल में समाहित किया जाएगा। आरंभ में विंडोज़ २००० के अंतर्गत ऑफिस २००० के दक्षिण-पूर्व एशिया
संस्करण में हिंदी और तमिल को समाहित किया गया और अब विंडोज एक्सपी के अंतर्गत कुछ
अन्य भारतीय भाषाओं को भी ऑपरेटिंग सिस्टम के मूल में समाहित कर लिया गया है। यही
कारण हैं कि हम आज ऑफिस एक्सपी के माध्यम से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में वह
सभी काम कर सकते हैं जो अब तक केवल अंग्रेज़ी और विश्व की कुछ अन्य विकसित भाषाओं
में होता था। इसका एक कारण यह भी रहा है कि ऑफिस एक्सपी विश्वव्यापी मानक यूनिकोड
पर आधारित हैं और इसके अंतर्गत ओपन टाइप फौन्ट का इस्तेमाल किया गया है। इसके
परिणाम स्वरूप आज हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ पूरी तरह से अंग्रेज़ी और विश्व की
अन्य विकसित भाषाओं के समकक्ष आ गई हैं। अब हम फ़ाइलों के नाम भी हिंदी में लिख
सकते हैं। यह विडंबना ही थी कि कंप्यूटर के क्षेत्र में विशेषज्ञता के बावजूद हम
सॉर्टिंग सुविधा के अभाव में कोश निर्माण का कार्य भी पुरानी कार्ड प्रणाली के
माध्यम से कर रहे थे।
आज हम वर्ड के अंतर्गत वाटरमार्क, वर्ड आर्ट,
टेबल, कॉलम, हेडर-फुटर और टैंपलेट जैसी आधुनिक सुविधाएँ भी सहजता से हिंदी में
प्राप्त कर सकते हैं। इंटरनेट और ई मेल के क्षेत्र में भी इससे व्यापक परिवर्तन आने
की संभावना हैं। इस समय जो भी पोर्टल और वेबसाइट हिंदी में हैं, उनमें अपवाद के रूप
में एकाध को छोड़कर सर्च या खोज की सुविधा किसी में नहीं हैं। इस सुविधा के अभाव
में पोर्टल या वेबसाइट बनाने का मूल प्रयोजन ही नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार आउटलुक
के माध्यम से हिंदी में ई मेल भी भेजा जा सकता है।
इससे यह स्पष्ट है कि नई कंप्यूटर तकनीक के आगमन
से अब भाषाओं और प्रयोगों की सभी दीवारें ढहने लगीं हैं। इस दीवार को पूरी तरह से
तोड़ने का काम बिल गेट्स की इस घोषणा से हो जाएगा कि इस वर्ष एमएस विंडोज़ और एमएस
ऑफिस के नवीनतम संस्करण में हिंदी को पूरी तरह से स्थानीय कर दिया जाएगा। इसका
परिणाम यह होगा कि अब यूज़र इंटरफेस के रूप में सभी प्रकार के मेन्यू, आदेश और
संदेश भी हिंदी में ही दिखाई पड़ने लगेंगे। इस हिंदीमय वातावरण के फलस्वरूप ई-शासन
जैसे कार्यों में भी गाँव-गाँव में पंचायत के स्तर पर हिंदी में कंप्यूटर का व्यापक
उपयोग किया जा सकेगा।
(आउटलुक साप्ताहिक से साभार)
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