असाध्य रोगों में उपचार
वी के जैन
प्राकृतिक साधनों में एक रत्न रंग चिकित्सा पुरातन
पद्धति है अतः अनन्त समय से प्रचलन में है। पर इसका विकास कई
दशकों के बाद पुनः प्रकाश में आया है और दिन प्रतिदिन इसकी
मान्यता एवं विश्वास बढ़ता जा रहा है। यह पद्धति किसी भी रूप
में हानिकारक नहीं है क्योंकि खाने पीने वाली किसी भी जड़ी
बूटी रसायन उत्पादन औषधि के रूप में शरीर के अंदर नहीं जाती
है। रत्नों की अति अधिक मूल्य व कम मात्रा में उपलब्धि के कारण
जनसामान्य में यह लोकप्रिय नहीं हो सकी फिर भी इसकी सफलता से
इन्कार नहीं किया जा सकता।
रत्न चिकित्सा रंगीन उर्जा तरंगों पर आधारित है। दूसरे शब्दों
में इसे रंग चिकित्सा भी कह सकते हैं। आज के विज्ञानानुसार
रंगीन उर्जा का प्रभाव मानव की शारीरिक क्रिया से है, अनेक
प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है कि नीले व लाल रंग
की उर्जा अनेक बिमारियों के लिये उपयोगी है। आश्चर्य जनक
प्रमारण है लगभग २००० वर्ष पूर्व अनेक देशों में रंगीन उर्जा
कक्ष प्रचलन में थे जहाँ विभिन्न व्याधियों से ग्रस्त लोग
निदान पाने के लिये रंगीन उर्जा कक्षों में बैठ कर उपचार किया
करते थे। इसके प्रभाव के मुख्य कारण क्या है यह आज भी शोध विषय
है पर इतना तो सिद्ध हो चुका है कि इस चिकित्सा के परिणाम
अत्यंत सफल रहे हैं।
सफेद रंग या सूरज के प्रकाश में सात रंग होते हैं और ये रंग
लाल, पीला, हरा, नीला, जामनी, इन्डिगो और नारंगी है। इन रंगों
की तरंगों की लम्बाई (तरंग दैर्घ्य) अलग अलग होने के कारण ये
मानव की संरचना पर अलग–अलग प्रकार का प्रभाव डालती हैं। रंगों
के विभिन्न प्रभाव को शरीर पर इस प्रकार अनुभव किया गया है —
लाल रंग – इसका प्रभाव उतेजना, विश्वास, स्वास्थ्यवर्धक, खून
के प्रवाह को बढ़ाना जिससे एनेमिया का कम होना है। विटामिन
बी–१२ प्रदान करना है तथा आलस्य दूर करता है।
पीला रंग – इच्छा शक्ति को बढ़ाता है, लीवर, त्वचा रोग,
गुर्दे, दिमाग, नर्वस सिस्टम को एवं विटामिन ए को नियंत्रित
करता है।
हरा रंग – चुस्ती, तंदुरूस्ती, शान्ति, प्रसन्नता पर प्रभाव
डालता है, पित को भी नियंत्रित करता है।
नीला रंग – इसका स्वभाव ठंडा है तथा सम्बन्ध आत्मिक विचारों से
है जो कि अनन्त क्रिया है। यह शरीर के जहर का बुरा असर तथा
दर्द आदि को नियंत्रित करता है। यह मानव के ज्ञान व विज्ञान की
धारा से जोड़ता है।
नारंगी रंग – यह वैराग्य विरक्ति का प्रतीक है। लाल व पीले रंग
का मिश्रण है अतएव इसमें दोनों के गुणों का समावेश है। यह
डिप्रेशन एवं अकेलेपन को दूर करने में सहायक होता है। जीवन में
उर्जा संचार करता है।
जामनी रंग – आकर्षण, रहस्य, अपनत्व का प्रतीक है। लाल नीले रंग
का सम्मिश्रण है, लाल रंग के गुणों में चुस्ती स्फूर्ति व
इच्छा शक्ति मिलती है तथा नीले रंग से शांति आत्मीयता एवं चित
शान्त रहता है। यह विटामिन–डी भी प्रदान करता है।
इन्डिगो रंग – सच्चाई सज्जनता व एकता का प्रतीक है। पेट की
शिकायत, माइग्रेन, आँख, नाक, व पित ग्रंथियों को नियंत्रित
रखता है। यह विटामिन के प्रदान करता है।
सफेद रंग – सभी रंगों का संयुक्त मिश्रण है। शान्ति का प्रतीक
है, यह दुर्घटना से बचाता है एवं कल्याणकारी है। मानसिक
उद्वेगों व रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। चित शान्त व उतम
विचारों को प्रदान करता है।
रंगों का मानव जीवन में क्या श्रेय है सही आधार का पता नहीं
है। फिर भी इस प्रक्रिया समझने के लिये यह जानना आवश्यक है कि
रंगों के क्या स्त्रोत है, कहाँ से पैदा होता है? जैसा कि
विदित है कि सफेद या सूरज का प्रकाश प्रिज़म की मदद से देखा
जाये तो इसमें से सात रंग निकलते हैं। इससे प्रतीत होता है
सूरज के प्रकाश में सात रंगों का सम्मिश्रण है जिनकी विभिन्न
तरंग दैर्घ्य होते है। परन्तु पुरानी मान्यता के अनुसार सूरज
से लाल किरणों का प्रकाश बनता है। यदि इस विचार धारा पर ध्यान
दें तो यह सोचना आवश्यक होगा, अन्य रंगों का स्त्रोत फिर क्या
है?
यह तो सर्वविदित है कि सात ग्रह एक सौर मंडल का निर्माण करते
हैं जिसकी ज्योतिष शास्त्र में भी चर्चा होती है। ये ग्रह
क्रमशः सूर्य, चन्द्रमा, बृहस्पति, बुध, शुक्र, शनि एवं
मंगल है तथा दो अन्य ग्रह राहु व केतु के नाम से माने गये
है। राहु–केतु की अपनी उर्जा नहीं होती न ही तरंग। इनका
कार्य अन्य ग्रह की तरंगों की शक्तियों को रक्षण करना है
जिनके फलस्वरूप समस्याओं का संयोग बनता है।
सूर्य – लाल व गर्म किरणें प्रदान करता है, चन्द्रमा– सफेद
व ठंडी किरणें प्रदान करता है। बृहस्पति – पीली किरणें,
बुध–हरी, शनि–नीली इत्यादि इसी प्रकार अन्य ग्रहों की
किरणें सौर मंडल में फैलती है तथा हमारे पृथ्वी के धरातल
पर आती है और सब उर्जा किरणें मिलकर सफेद प्रकाश में
प्रवर्तित होती है जिसको हम सब देखते हैं।
मानव जन्म के समय प्रत्येक ग्रह भिन्न–भिन्न स्थान व दिशा
पर होते हैं। मनुष्य के शरीर में भी सात ग्रह केन्द्र होते
हैं। इनके परस्पर संयोग व संतुलन से मानव जीवन का संचालन
होता है। इन केन्द्रों की प्रक्रिया को आकाश के ग्रहों
द्वारा जाना जा सकता है तथा हर एक का नक्शा (जन्मकुंडली)
तैयार किया जा सकता हैं। इस नक्शों से विभिन्न घटनाओं व
रोगों का विश्लेषण पहले से किया जा सकता हैं। शरीर के
विभिन्न अंगों में इन केन्द्रों के लिये अंगुलियों एन्टिना
का कार्य करती है और विभिन्न उर्जा किरणों को प्राप्त करती
है।
शनि सभी केन्द्रों को जोड़ने के लिये सेतु का कार्य करता है।
इसलिये शनि सबसे शक्तिशाली एवं प्रभावशाली ग्रह है और मानव
संरचना में मुख्य भूमिका निभाता है। शनि नीले रंग की
किरणों का कारक है अताः मानव जीवन नीली किरणें विशिष्ट
प्रभाव रखती है। इसकी कमी या अधिकता मनुष्य के लिये कई
असाध्य रोगों का कारण बन सकती है।.
मनुष्य के जीवन घटनाओं का अच्छी–बुरी का सम्बन्ध शरीर के
केन्द्रों से प्रभावित है। यदि शरीर में केन्द्रों का पूरक
समन्वय हो मानव अशुभ घटनाओं व बिमारियों का निर्विघ्न
निर्धारण हो सकता है। इसलिये केन्द्रों का समन्वय होना
आवश्यक है। जिन ग्रह का आपस में तारतम्य न हो; समन्वय न
हो, वो स्थिति समस्याओं को जन्म देती है तथा रंगों तरंगों
को अप्राकृतिक रूप में संयोग कर छुटकारा पा सकते हैं
इसलिये इसका निदान रत्नों से सम्भव है।
शरीर में किसी एक विशेष रंग की किरणों की आवश्यकता के लिये
रत्न का प्रयोग किया जाता है ये किरणें हमें अपने रंगों को
प्रस्फुटित करने वाले विशेष रत्न को धारण करने से प्राप्त
होती है। इस पृथ्वी पर अनेक प्रकार के रत्न विद्यमान है और
आजकल अप्राकृतिक रत्न भी बनने लगे हैं। ये सब तरह के रत्न
अच्छी उर्जा देने में सक्षम है तथा इनके द्वारा ग्रहों की
उर्जा इकठ्ठा करी जा सकती है।
आवश्यकतानुसार इन उर्जा को शरीर के विभिन्न अंगों व
अंगुलियों के माध्यम से शरीर में प्रवाहित किया जा सकता
है। यह बात देने योग्य है कि अंगुलियाँ ही किरणों को
आत्मसात करने का सबसे प्रबल और अच्छा माध्यम है। प्रत्येक
अंगुली किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है और
उन्हीं के अनुसार रत्न धारण करने का विधान हैं। कभी कभी
किसी रंग की ऊर्जा को कम करने की भी आवश्यकता होती है इसके
लिये विपरीत रंगों की ऊर्जा देने वाले रत्नों को भी
ऊगलियों में धारण किया जाता है।
इस सबके सामंजस्य को देख कर रत्नों का चयन करना कठिन कार्य
है और इसके लिये ग्रहों का ज्ञान और केन्द्रों की उर्जा को
जानना आवश्यक है। अनेक बीमारियां या समस्यायें एक से अधिक
ग्रह और एक से अधिक ऊर्जा केन्द्रों के सुस्त होने या इनके
अधिक सक्रिय होने से होती हैं। इन सबके समन्वय के लिये,
नकारात्मक व सकारात्मक उर्जा का उपयोग विभिन्न रंगीन
किरणों द्वारा करने के लिये एक से अधिक रत्नों का प्रयोग
भी किया जाता है। इस पद्धति को रत्न चिकित्सा कहते हैं।
रत्न हमारे मित्र हैं, इनको धारण करना साधारणतयः हानिकारक
नहीं है इनकी क्रिया औषधि के भाँति होती है जिससे कोई हानि
या विपरीत प्रभाव नहीं है। कुछ लोग इनका उपयोग करने से
घबराते हैं, इसका कारण कुछ भ्रान्तियाँ भी हैं।
रत्न चिकित्सा का आधार वैज्ञानिक व सैद्धान्तिक है तथा यह
मानव के असाध्य रोगों व समस्याओं को सुलझाने में सहयोग
प्रदान करती है। सिरदर्द, गुर्दे की पथरी, हृदय, दमा,
टयूमर, रक्तचाप, रीढ़ व कमर दर्द, पेट सम्बन्धी रोग,
गठिया, अंगूठे के दर्द, बवासीर, इपीलिप्सी, यौन एवं
बुढ़ापे के रोग आदि अनेक बिमारियों का उपचार किया जा सकता
है।
रत्न चिकित्सा का आधार रंगीन किरणें है ये अच्छी किस्म के
अप्राकृतिक रत्नों से भी प्राप्त की जा सकती हैं। ये रत्न
सस्ते होते हैं इसलिये उपचार भी सस्ता पड़ता है। इसके
अतिरिक्त विभिन्न धातुएँ भी ग्रहों की किरणों पर प्रभाव
डालती है। आगे के अंकों में क्रमशः कुछ असाध्य रोगों का
विवरण व उनके निर्वारण के बारे में चर्चा करेंगे। |