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बवासीर
एक ऐसा रोग है जो मानव के अतिरिक्त दूसरे प्राणियों में नहीं पाया गया है।
यह उन सूजी हुई नसों के कारण होता है जो मलाशय के दीवारों से जुड़ी है या मलाशय द्वार के बाहरी हिस्से में है।
खुजली जलन और रक्तस्राव इसके प्रारंभिक लक्षण हैं। बवासीर के अनेक
अवस्थाएं हैं जो पीड़ा की तीव्रता पर आधारित है।
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पहलीअवस्था का बवासीर अधिक सामान्य है तथा बहुत कम
लोगों को इसके होने का पता होता है कि वे इससे ग्रस्त है। यह मलाशय के अन्दर के हिस्से में होता
है और कभी कदा दर्द व मल के साथ बहुत हल्का रक्त दिखाई देता है।
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दूसरीअवस्था के बवासीर में मटर के आकार का सूजा हुआ दाना मलाशय द्वार के बाहरी हिस्से पर
मलत्याग के समय महसूस किया जा सकता है। मलत्याग के बाद यह वापस अपनी जगह पर चला जाता है।
इसके साथ ही जलन, रक्तस्राव और दर्द की शिकायत हो सकती है।
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तीसरीअवस्था में बवासीर एक
सूजी हुई नसों के समूह में दिखाई देता है जिसके कारण बैठने में
तकलीफ दर्द की बहुलता, पीड़ा व जलन लगातार बनी रहती है।
बवासीर के पैदा होने का मुख्य कारण मलाशय द्वार या मलाशय की दीवार पर लगातार दबाव बनना है।
साधारणतः इसकी वजह कब्ज़, अधिक वजन उठाना व भोजन में रेशे
वाले पदार्थो की कमी होती है। लीवर की खराबी, भोजन की ऐलैर्जी भी इसको बढ़ाने में सहयोग देते
हैं। गर्भवती स्त्रियों में नसों पर गर्भ का दबाव पड़ने के कारण भी बवासीर
के लक्षण पाए जा सकते हैं। यह भी देखा गया है कि जो लोग लीवर, हृदय व कन्जसटिव बीमारी से ग्रस्त है उनमें बवासीर होने की संभावना अधिक होती है।
प्राकृतिक रूप से बवासीर रोकने के लिये निम्नलिखित उपाय करने चाहिये :
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8 गिलास जल प्रतिदिन पीना चाहिये।
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कब्ज़ को रोकना चाहिए और इसके लिये छिलके वाला गेहूं,
रेशेयुक्त सब्जियां जैसे पालक, फल आदि अधिक प्रयोग करना चाहिये।
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नियमित व्यायाम करना
चाहिये।
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वजन का कम करना चाहिये।
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मलत्याग की इच्छा को दबाना
नहीं चाहिये।
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अधिक समय तक शौचालय में नहीं बैठना चाहिए
न ही बहाँ अखबार पत्रिका आदि पढ़नी चाहिए।
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गर्म पानी से नहाना अच्छा है।
यदि किसी प्रकार का फायदा न दिखाई दे, डाक्टर की सलाह लें। अधिक तीव्रता में, सर्जरी अंदरूनी व बाहरी बवासीर के लिए एक अच्छा साधन है।
इसके अतिरिक्त बिजली, लेजर ताप व ठंड या इन्फरा रेड द्वारा बवासीर को नष्ट किया जाता हैै।
रत्न चिकित्सा द्वारा इसे बिना औषधि के ठीक किया जा सकता है। बवासीर में रत्न चिकित्सा की पद्धति नयी नहीं है।
और आज विज्ञान की व्यापकता के कारण इस पद्धति की सुलभता और व्यापकता भी बढ़ी है।
वैज्ञानिक तौर पर रत्न रंगीन धारा को एकाग्र करते हैं और अपनी विभिन्न तरंगों से मानव
संरचना पर अनेक प्रकार का प्रभाव डालते हैं। अगर केन्द्रों का समन्वय न हो
तथा कुछ में रंगीन उर्जा की कमी या अधिकता हो तो यह स्थिति अनेक रोगों को जन्म देती है। रंगों की तरंगों
की इस उर्जा को रत्नों द्वारा को संतुलित किया जा सकता है और रोग को कम या समाप्त किया जा सकता है।
रोग से निदान पाने के लिये, ग्रहों की रंगीन उर्जा के सिद्धांत को समक्षना तथा विश्लेषण करना अति आवश्यक है जिससे मूल कारणें का पता चल के और
आवश्यकतानुसार रत्नों का चयन किया जा सके। बवासीर होने के कारणों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस रोग के कारक शनि मंगल व शुक्र ग्रह है। इनके रत्न क्रमशः नीलम/नीले रंग का रत्न्न, मूंगा और
हीरा/जरकन आदि है। लेकिन इनको कुशल चिकित्सक की सलाह से धारण किया
जाना चाहिये।
इस दिशा में अनेक प्रयोगों द्वारा निष्कर्ष निकलता है कि रत्न चिकित्सा
में उपचार का समय भिन्नभिन्न हो जाता है जो बवासीर की किस्म व
अवस्था पर निर्भर करता है। मलाशय द्वार पर मटर के आकार वाला बवासीर अगर पुराना नहीं हैं तो 1015
दिनों में ठीक हो जाता है। कुछ दशाओं में जहाँ अधिक खून का रसाव था ग्रहों के धातु का भी प्रयोग किया गया और दोनों के संयोग ने एक
संयुक्त प्रभाव के कारण तुरन्त खून के रिसाव को रोक दिया।
इस अध्ययन ने बवासीर उपचार हेतु एक नयी दिशा दी है जो
हानिकारक नहीं है और बवासीर पीड़ितों के लिये एक नई आशा दिला सकता है। |