मूली कृषक सभ्यता के
सबसे प्राचीन आविष्कारों में से एक है। ३००० वर्षो से
भी पहले के चीनी इतिहास में इसका उल्लेख मिलता है।
अत्यंत प्राचीन चीन और यूनानी व्यंजनों में इसका
प्रयोग होता था और इसे भूख बढ़ाने वाली समझा जाता था।
यूरोप के अनेक देशों में भोजन से पहले इसको परोसने
परंपरा का उल्लेख मिलता है। मूली शब्द संस्कृत के
'मूल' शब्द से बना है। आयुर्वेद में इसे मूलक नाम से,
स्वास्थ्य का मूल (अत्यंत महत्वपूर्ण) बताया गया है।
आजकल हम लोग
अस्पतालों तथा अंग्रेज़ी दवाइयों की दुनिया में इतने
खो गए कि उन्हें अपने आसपास उपलब्ध होने वाली, उन
शाक-सब्ज़ियों की तरफ़ ध्यान देने का समय ही नहीं
मिलता, जो बिना किसी हानि के हमारी अनेक बीमारियों को
निर्मूल करने में सक्षम हैं। प्रकृति हमारे लिए शीत
ऋतु में इस प्रकार की शाक-सब्ज़ियाँ उदारतापूर्वक
उत्पन्न करती है। इन्हीं में से एक है 'मूली'।
मूली में प्रोटीन,
कैल्शियम, गन्धक, आयोडीन तथा लौह तत्व पर्याप्त मात्रा
में उपलब्ध होते हैं। इसमें सोडियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन
तथा मैग्नीशियम भी होता है। मूली में विटामिन 'ए' भी
होता है। विटामिन 'बी' और 'सी' भी इससे प्राप्त होते
हैं। जिसे हम मूली के रूप में जानते हैं, वह धरती के
नीचे पौधे की जड होती हैं। धरती के ऊपर रहने वाले
पत्ते से भी अधिक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।
सामान्यत: हम मूली को खाकर उसके पत्तों को फेंक देते
हैं। यह गलत आदत हैं। मूली के साथ ही उसके पत्तों का
सेवन भी किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मूली के पौधे में
आने वाली फलियाँ 'मोगर' भी समान रूप से उपयोगी और
स्वास्थ्यवर्धक है। सामान्यत: लोग मोटी मूली पसन्द
करते हैं। कारण उसका अधिक स्वादिष्ट होना है, मगर
स्वास्थ्य तथा उपचार की दृष्टि से छोटी, पतली और चरपरी
मूली ही उपयोगी है। ऐसी मूली त्रिदोष (वात, पित्त और
कफ) नाशक है। इसके विपरीत मोटी और पकी मूली त्रिदोष
कारक मानी जाती है।
१०० ग्राम मूली में
अनुमानित निम्न तत्व हैं : प्रोटीन - ०.७ ग्राम, वसा -
०.१ ग्राम, कार्बोहाइड्रेट - ३.४ ग्राम, कैल्शियम - ३५
मि.ग्रा., फॉस्फोरस - २२ मि.ग्रा, लोह तत्व - ०.४
मि.ग्रा., केरोटीन- ३ मा.ग्रा., थायेसिन - ०.०६
मि.ग्रा., रिवोफ्लेविन - ०.०२ मि.ग्रा., नियासिन - ०.५
मि.ग्रा., विटामिन सी - १५ मि.ग्रा.।
अनेक छोटी बड़ी
व्याधियाँ मूली से ठीक की जा सकती हैं। मूली का रंग
सफेद है, लेकिन यह शरीर को लालिमा प्रदान करती है।
भोजन के साथ या भोजन के बाद मूली खाना विशेष रूप से
लाभदायक है। मूली और इसके पत्ते भोजन को ठीक प्रकार से
पचाने में सहायता करते हैं। वैसे तो मूली के पराठें,
रायता, तरकारी, आचार तथा भुजिया जैसे अनेक स्वादिष्ट
व्यंजन बनते हैं,मगर सबसे अधिक लाभकारी होती है कच्ची
मूली। भोजन के साथ प्रतिदिन एक मूली खा लेने से
व्यक्ति अनेक बीमारियों से मुक्त रह सकता है।
मूली, शरीर से विषैली
गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन
प्रदान करती है। मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है
तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति
की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती है। मूली खाने से
पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते
हैं।
यह उच्च रक्तचाप को
नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त
करती है। इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों
में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत
लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का रस विशेष रूप
से उपयोगी होता है।
मोटापा अनेक
बीमारियाँ की जड़ है। मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत
लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस
मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और
शरीर सुडौल बन जाता है। पानी में मूली का रस मिलाकर
सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। विटामिन 'ए' पर्याप्त
मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में
भी सहायक होता है तथा शरीर के जोड़ों की जकड़न को दूर
करता है।
मूली सौन्दर्यवर्धक
भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है, खुश्की
दूर होती है, रक्त शुद्ध होता है और चेहरे की झाइयाँ,
कील-मुहाँसे आदि साफ़ होते हैं। सर्दी-जुकाम तथा
कफ-खाँसी में मूली के बीज का चूर्ण विशेष लाभदायक होता
है। मूली के बीजों को उसके पत्तों के रस के साथ पीसकर
लेप किया जाए तो अनेक चर्म रोगों से मुक्ति मिल सकती
है। मूली के रस में तिल्ली का तेल मिलाकर और उसे हल्का
गर्म करके कान में डालने से कर्णनाद, कान का दर्द तथा
कान की खुजली ठीक होते हैं। मूली के पत्ते चबाने से
हिचकी बन्द हो जाती है।
मूली से अनेक रोगों
में भी लाभ मिलता है, एक सप्ताह तक कांजी में डाले
रखने तथा उसके बाद उसके सेवन से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक
होती है और बवासीर का रोग नष्ट हो जाता है। हल्दी के
साथ मूली खाने से भी बवासीर में लाभ होता है।
मूली के पत्तों के
चार तोला रस में तीन माशा अजमोद का चूर्ण और चार रत्ती
जोखार मिलाकर दिन में दो बार एक सप्ताह तक नियमित रूप
से लेने पर गुर्दे की पथरी गल जाती है। एक कप मूली के
रस में एक चम्मच अदरक का और एक चम्मच नींबू का रस
मिलाकर नियमित सेवन से भूख बढ़ती है और पेट संबंधी सभी
रोग नष्ट हो जाते हैं।
मूली के रस में समान
मात्रा में अनार का रस मिलाकर पीने से रक्त में
हीमोग्लोबिन बढ़ता है और रक्ताल्पता का रोग दूर होता
है। सूखी मूली का काढ़ा बनाकर, उसमें जीरा और नमक
डालकर पीने से खाँसी और दमा में राहत मिलती है। |