उष्ण कटिबंधीय
फल बेल के वृक्ष हिमालय की तराई, मध्य एवं दक्षिण
भारत बिहार, तथा बंगाल में घने जंगलों में अधिकता
से पाए जाते हैं। चूर्ण आदि औषधीय
प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए
अधपक्का फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया
जाता है।
गर्मी एवं पेट के
रोगों से मुक्ति प्रदान करने वाला, संस्कृत में 'बिल्व'
और हिन्दी में 'बेल' नाम से प्रसिद्ध यह फल
महाराष्ट्र और बंगाल में 'बेल', कोंकण में 'लोहगासी',
गुजरात में 'बीली', पंजाब में 'वेल' और 'सीफल' संथाल
में 'सिंजो', कठियावाड़ में 'थिलकथ' नाम से जाना
जाता है। इसके गीले गूदे को 'बिल्वपेशिका' या 'बिल्वकर्कटी'
तथा सूखे गूदे 'बेल सोंठ' या 'बेल गिरी' कहा जाता
है।
बेल का वृक्ष १५ से
३० फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच
पत्रयुक्त होती है। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को
मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते
गिरने पर मई में पुष्प लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष
मार्च-मई तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और
चिकना फलकवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर
सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले
रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है जो खाने और
शर्बत बनाने के काम आता है। 'जंगली बेल' के वृक्ष
में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।
बेल के फलों में 'बिल्वीन'
नाम या 'मार्मेसोलिन' नामक तत्व एक प्रधान सक्रिय
घटक होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में लबाब, पेक्टिन,
शर्करा, कषायिन एवं उत्पत तेल पाए जाते हैं। ताज़े
पत्तों से प्राप्त पीताभ-हरे रंग का उत्पत तेल स्वाद
में तीखा और सुगन्धित होता है। इसका कच्चा फल
उद्दीपक-पाचक ग्राही, रक्त स्तंभक- पक्का फल कषाण,
मधुर और मृदु रेचक तथा पत्तों का रस घाव ठीक करने,
वेदना दूर करने, ज्वर नष्ट करने, जुकाम और श्वास रोग
मिटाने तथा मूत्र में शर्करा कम करने वाला होता है।
इसकी छाल और जड़ घाव, कफ, ज्वर, गर्भाशय का घाव,
नाड़ी अनियमितता, हृदयरोग आदि दूर करने में सहायक
होती है।
बिल्वादि चूर्ण,
बिल्व तेल, बिल्वादि घृत, बृहद गंगाधर चूर्ण, बिल्व
पंचक क्वाथ आदि औषधियों में प्रयुक्त होने वाले बेल
के फलों का अधिक सेवन अर्श (बवासीर) के रोगियों के
लिए अहितकर होता है। इसके अतिरिक्त गूदे में बीज
दोहरी झिल्ली के बीच होते हैं, जिसमें लेसदार द्रव
होता है। इसे झिल्ली और बीजों सहित न निकालने पर मुख
में छाले होने की संभावना रहती है। जठराग्नि मन्द हो
जाने पर भूख मर जाती है। खाया-पिया हजम नहीं होता।
ऐसे में बेल के पके गूदे में, पचास ग्राम पानी में
फूली इमली और पचास ग्राम दही में थोड़ा बूरा मिला
मिक्सी में घोंट लें। यह पेय स्वादिष्ट, पचने में
आसान, भूख बढ़ाने वाला, चुस्ती देने वाला शर्बत है।
कुछ दिन नियमित लें।
इसके कुछ घरेलू
इलाज निम्न लिखित हैं किन्तु इनका सेवन करने से पहले
आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना उचित है।
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अजीर्ण में बेल की
पत्तियों के दस ग्राम रस में, एक-एक ग्राम काली
मिर्च और सेंधानमक मिलाकर पिलाने से आराम मिल सकता
है।
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अतिसार के पतले
दस्तों में ठंडे पानी से लिया ५-१० ग्राम बिल्व
चूर्ण आराम पहुँचाता है। कच्चे बेल की कचरियों को
धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ़ छाँट
ले आएँ। इन्हें बारीक पीस कपड़ाछान करके शीशी में भर
लें। यही बिल्व चूर्ण है। छोटे बच्चों के दाँत
निकलते समय दस्तों में भी यह चुटकी भर चटा दें।
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आँखें दुखने पर
पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो
बूँद आँखों में टपकाएँ। दुखती आँखों की पीड़ा, चुभन,
शूल ठीक होकर, नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
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जल जाने पर बिल्व
चूर्ण, गरम किए तेल को ठंडा करके पेस्ट बना लें। जले
अंग पर लेप करने से फौरन आराम आएगा। चूर्ण न होने पर
बेल का पक्का गूदा साफ़ करके भी लेपा जा सकता है।
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पाचन तंत्र में
खराबी के कारण आंव आने लगती है, जो कुछ ही समय में
रोगी को दुर्बल-असक्त बना देती है। ऐसे में बेलगिरी
और आम की गुठली की गिरी बराबर मात्रा में कूट-छान
लें। आधा ग्राम चूर्ण सुबह चावल की माड के साथ सेवन
करें। आधा ग्राम यह चूर्ण पहले दिन दो-दो घंटे बाद
चार बार, दूसरे दिन सुबह-दोपहर और तीसरे दिन सिर्फ़
सुबह लें। आंव बन्द हो जाने पर चूर्ण न लें।
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कब्ज से पेट-सीने
में जलन रहने पर पचास ग्रामा गूदे में, पच्चीस ग्राम
पिसी हुई मिश्री और ढ़ाई सौ ग्राम जल मिलाकर शर्बत
बना लें। रोज़ पीने से कब्ज़ नष्ट होकर, चेहरे पर ओज
आएगा।
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छाती में जमे कफ से
तेज़ खाँसी उठती है। रोगी रातभर सो नहीं पाता। इसमें
सौ ग्राम बेल गूदा आधा किलो पानी में हल्की आँच में
पकायें। तीन सौ ग्राम रह जाने पर उतार कर छान लें।
एक किलो मिश्री की एक तार चासनी बनाकर इसमें मिलाएँ।
एक रती भर केसर और थोड़ी जावित्री डालकर इसे सुगंधित
और पुष्टिकर बना लें। गुनगुना घूँट-घूँट कर पिएँ।
सर्दियों में इस्तेमाल करने से कफ इकठ्ठा नहीं होगा।
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दमा में कफ निकालने
के लिए बेल की पत्तियों का काढ़ा दस-दस ग्राम
सुबह-शाम शहद मिला कर पिएँ। अथवा पाँच ग्राम रस में
पाँच ग्राम सरसों का शुद्ध तेल मिला कर पिलाएँ।
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पचास ग्राम सूखे
बेल पत्तों का चूर्ण, तीन ग्राम मात्रा में एक चम्मच
शहद के साथ सुबह-शाम देने अथवा पक्के गूदे में थोड़ी
मलाई मिलाकर खाने से मूत्र और वीर्य दोष नष्ट होते
हैं।
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ल्युकोरिया में
बेलगिरी रसौत और नागकेसर समान मात्रा में कूट-पीस कर
कपड़े से छान लें पाँच ग्राम चूर्ण, चावल के मांड के
साथ दिन में दो या तीन बार दें।
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पीलिया में बेल की
कोंपलों का पचास ग्राम रस, एक ग्राम पिसी काली मिर्च
मिलाकर सुबह-शाम पिलाएँ। शरीर में सूजन भी हो तो
पत्र रस तेल की तरह मलिए।
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सौ ग्राम पानी में
थोड़ा गूदा उबालें, ठंडा होने पर कुल्ले करने से
मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
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रक्त शुद्धि के लिए
बेलवृक्ष की पचास ग्राम जड़, बीस ग्राम गोखरू के साथ
पीस-छान लें। सुबह एक छोटा चम्मच चूर्ण आधा कप खौलते
पानी में घोंलें। मिश्री या शहद मिला कर गरमा-गरम
घूँट भरें। कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।
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सिर दर्द में बेल
पत्र के रस से भीगी पट्टी माथे पर रखें। पुराना सर
दर्द होने पर ग्यारह पत्तों का रस निकाल कर पी जाएँ।
गर्मियों में इसमें थोड़ा पानी मिला ले। कितना ही
पुराना सर दर्द ठीक हो जाएगा।
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मोच अथवा अन्दरूनी
चोट में बेल पत्रों को पीस कर थोड़े गुड़ में पकाइए।
इसे थोड़ा गर्म पुल्टिस बन पीडित अंग पर बाँध दें।
दिन में तीन-चार बार पुल्टिस बदलने पर आराम आ जाएगा।
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दीपिका जोशी
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