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                            श्रीरामचरित मानस के 
                            किष्किंधा कांड में तुलसी दास जी ने लिखा है- 'वर्षा 
                            काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए।।'' श्रीरामचंद्र 
                            जी अनुज लक्ष्मण से कहते हैं कि वर्षा काल में आकाश 
                            में छाए बादल गरजते हुए बहुत ही सुहावने लगते हैं। वे 
                            आगे कहते हैं कि हे लक्ष्मण! देखो मोरां के झुंड 
                            बादलों को देखकर नाच रहे हैं- 'लछिमन देखु मोर गन नाचत 
                            बारिद पेखि।' 
							
                            कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में अकरस जोताई कर वर्षा का 
                            इंतज़ार कर रहे किसान का मन पानी बरसने से मोर की तरह 
                            नाच उठता है। प्रसन्न मन से वह खेती-किसानी में जुट 
                            जाता है। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री 
                            पंडित मुकुटधर पाण्डेय अपनी रचना ''वर्षा बहार'' में 
                            वर्षा के आगमन का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। 
                            देखिये उनकी रचना की एक बानगी :- 
                            वर्षा बहार सबके, मन 
                            को लुभा रही है 
                            नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है 
                            बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं 
                            पानी बरस रहा है, झरने भी बह रहे हैं 
                            करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे 
                            मेंढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे 
                            इस भाँति है, अनोखी वर्षा बहार भू पर 
                            सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके उपर। 
                            वर्षा ऋतु के आने से 
                            चारों ओर हरियाली छा जाती है। गाय, बैल और अन्य जानवर 
                            हरी घास खाकर तंदुरूस्त हो जाते हैं। मेंढक भी 
                            टर्र-टर्र की आवाज़ करके अपनी खुशी व्यक्त करने लगता 
                            है। किसान अपने नांगर लेकर खेत की ओर चल पड़ता है। 
                            छत्तीसगढ़ में नगरिहा किसान किसी देवता से कम नहीं 
                            होता। उन्हीं के परिश्रम से अनाज की पैदावार होती है 
                            जो हमारे पेट की भूख को शांत करती है। कवि की एक बानगी 
                            देखिये :- 
                            बरसे बरसे रे बियासी के बादर 
                            छड़बड़ बइला छड़बड़ नांगर 
                            छड़बड़ खेत जोतइया के जांगर 
                            नगरिहा नइ उपजय तोर बिन धान। 
                            गर्मी की तपन और पेट 
                            की भूख से परेशान छत्तीसगढ़ के किसान मज़दूरी करने 
                            अन्यत्र चले जाते हैं। लेकिन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ 
                            वे भी अपने गाँव वापस लौटने लगते हैं। ऐसे किसानों को 
                            कवि श्री रामफल तिवारी समझा देते हैं कि सब मिल जुलकर 
                            खेती करें और सोना जैसे अनमोल धान उपजाएँ जिससे उन्हें 
                            गाँव छोड़कर अन्यत्र मज़दूरी करने जाना न पड़े। देखिये 
                            कवि की एक बानगी :- 
                            एती ओती कहूँ कती झिन 
                            जावा किसान रे 
                            छत्तिसगढ़ के भुंइयाँ हर हमरे भगवान रे 
                            छत्तिसगढ़ ल कइथे संगी 'धान के कटोरा' 
                            जउने मिले खावा पिया ज़्यादा कि थोड़ा 
                            इल्ली दिल्ली कलकत्ता के मोह ला अब छोड़ा 
                            खा लेवा नून बासी आमा के अथान रे 
                            रांपा कुदारी संगी गैंती ला धर लावा 
                            गांसा-पखार मोही सब खेतन के बनावा 
                            अपन अपन खेत ला सब्बो जुर मिल के बनावा 
                            भर देवा छत्तीसगढ़ म सोना कस धान रे। 
                            छत्तीसगढ़ के लोक 
                            जीवन में गीत का बहुत चलन है। हर पल उनके गीत में मन 
                            की अभिव्यक्ति होती है। गाँव के चौपाल में आल्हा के 
                            गीत गाए जाते हैं, तो खेत खलिहान में ददरिया। ददरिया 
                            भावपूर्ण और मनोहारी होता है। इसमें प्राय: शृंगार रस 
                            का पुट होता है :- 
                            खाये ला पान रचाये 
                            मुँह लाल 
                            झन मया ला बढ़ाबे, हो जाही जीवन के काल। 
                            प्रेयसी अपने प्रेमी 
                            से कहती है कि जैसे पान खाने से मुँह तो लाल हो जाता 
                            है पर पान की जान चली जाती है। उसी प्रकार हे प्रियतम 
                            यदि तू प्रीत बढ़ाएगा तो यही प्रीति मेरे प्राण जान का 
                            कारण बन जाएगी। 
                            सावन में नव ब्याहता 
                            बहुएँ अपने मायके चली जाती हैं। वहाँ पिया मिलन की आस 
                            उन्हें ब्याकुल कर देती है। सखी सहेली और भौजाई के 
                            छेड़ने पर उनके मन की ब्यथा इस तरह फुट पड़ती है :- 
                            सावन महिना बिहरिन 
                            रोवे 
                            जेकर सैंया गए हे परदेस 
                            अभी कहूँ बालम घर में रइतिस 
                            तब सावन के करतेंव सिंगार। 
                            पंडित मुकुटधर 
                            पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ी मेघदूत में भी बिरही की ब्यथा 
                            को लिखा है :- 
                            जे बादर ल देख काम 
                            कौतुक हर मन में जागे। 
                            ओकर आगू केसनो कर के ठाढ़े रस में पागे।। 
                            बहुत बेर ले सोंचत रहिगे मगन भाव के होके। 
                            यक्षराज के अनुचर हर आँखी में आँसू रोके।। 
                            मेघ देख के सुखिया के मन घलो बदल जब जाथे। 
                            बिरही मन के का कहिना दुरिहा म जी अकुलाथे।। 
                             
                            लोक जीवन में कहावतों का अधिक महत्व होता है। 
                            छत्तीसगढ़ी कहावतों में कई पीढ़ियों के विश्वासों, 
                            अनुभवों, आचार-विचार की व्यवहारिक जानकारियों और 
                            परिणामों की अभिव्यक्ति होती है। ये कहावतें ग्रामीणों 
                            के ज्ञानकोष की भाँति उनके कृषि, वाणिज्य और व्यापार 
                            आदि में सहायक होते हैं। ऐसी कहावतों में या तो किसी 
                            कार्य को करने का शुभ समय होता है अथवा किसी अशुभ 
                            परिणाम का संकेत होता है। प्रकृति की विशेष अवस्था में 
                            क्या घटित होता है, इसकी भी सूचना होती है। कुछ बानगी 
                            पेश है :- 
                            १. चार दिन पानी  
                            त एक दिन धाम। 
                            २. धान के बदरा  
                            बड़े आदमी के लबरा। 
                            ३. बाढ़े पूत पिता के घर मा  
                            खेती उपजै अपने करमा। 
                            ४. खातू पड़े तो खेती  
                            नइ तो नदिया के रेती। 
                            छत्तीसगढ़ में वर्षा 
                            के आगमन के साथ त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है। 
                            आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को रजुतिया होता है। उड़ीसा के इस 
                            प्रमुख पर्व को छत्तीसगढ़ के गाँव और शहरों में बड़ी 
                            धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नई बहू और बेटी को 
                            लिवा लाने और बिदा करना शुभ माना है। ऐसी मान्यता है 
                            कि भगवान जगन्नाथ को शिवरीनारायण से ही पुरी ले जाया 
                            गया था और प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ 
                            शिवरीनारायण में विराजते हैं। सावन में नागपंचमी, 
                            रक्षा बंधन, भोजली, हरेली, भादो में श्रीकृष्ण 
                            जन्मोत्सव, बहुला चौथ, खम्हरछट, तीजा, पोरा और गणेश 
                            पूजा प्रमुख होता है। रायगढ़ में जन्माष्टमी के अवसर 
                            पर मेला लगता है। इसी प्रकार प्राचीन काल से ही रायगढ़ 
                            में गणेश चतुर्थी से गणेश मेला का आयोजन होता रहा है। 
                            आज इसे चक्रधर समारोह के रूप में मनाया जाता है और इस 
                            अवसर पर नृत्य और संगीत का समागम होता है। चांपा में 
                            भी अनंत चौदस को गणेश उत्सव होता है। किसानों का 
                            प्रमुख त्योहार हरेली है। इस दिन वह अपने कृषि उपकरणों 
                            की पूजा करके अन्न का बढ़िया उत्पादन होने की कामना 
                            करता है। राऊतों के द्वारा रसायन कल्प तैयार करके 
                            गायों को पिलाया जाता है, नीम पत्ती और दशमूल के पत्ती 
                            घरों में खोंसकर उनके स्वस्थ रहने की कामना की जाती 
                            है। इसी दिन बांस की गेड़ी बनाकर चढ़ते हैं और चौपालों 
                            में संध्या धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन 
                            तंत्र मंत्र की सिद्धि भी की जाती है। इन त्योहारों के 
                            साथ हमारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस भी 
                            छत्तीसगढ़ में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सभी 
                            त्योहारों का अपना महत्व होता है। 
                            नागपंचमी को नाग 
                            देवता की पूजा होती है। भाई-बहन के पवित्र बंधन का 
                            त्योहार है रक्षाबंधन। इसी प्रकार माताएँ खमरछट को 
                            अपने पुत्र की औ तीजा में महिलाएँ अपने पति के 
                            दीर्घायु होने की कामना निर्जला व्रत रखकर करती हैं। 
                            कुँवारी लड़किया प्रकृति देवी की आराधना करने भोजली 
                            त्योहार मनाती हैं। जिस प्रकार एक सप्ताह में भोजली 
                            खूब बढ़ जाती है उसी प्रकार हमारे खेतों में फसल दिन 
                            दूनी रात चौगुनी बढ़े-'देवी गंगा दंवी गंगा' की टेक 
                            मानो वह कल्याणमयी पुकार हो जो जन जन-गाँव गाँव को नित 
                            लहर तुरंग सं ओतप्रोत कर दे...सब ओर अच्छी वर्षा हो, 
                            अच्छा फसल हो और सब ओर खुशहाली ही खुशहाली हो- यही 
                            छत्तीसगढ़ के लोक जीवन का सत्य है। 
                            
                            २८ 
                            जुलाई २००८  |