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संस्कृति

हमारी सांस्कृतिक धरोहर

मल्लखंभ
डॉ. आशीष मेहता


मल्लखंभ कम समय, कम स्थान तथा अत्यंत कम खर्च में शरीर को अत्यधिक व्यायाम एवं पुष्टता देने वाला आनन्ददायी खेल है। विश्व के अन्य सभी खेल जहाँ जमीन पर खेले जाते हैं, वहीं मल्लखंभ जमीन से ८.३० से ९.०० फीट की ऊँचाई पर एक लकड़ी के खंभे पर खेला जाता है। इससे शरीर के समस्त अंगों का विकास होता है और किसी भी खेल की मूलभूत आवश्यकताएँ आसानी से पूरी की जा सकती है। मल्लखंभ पर व्यायाम से शरीर इतना सुसंगठित एवं लचीला हो जाता है कि यदि कोई खिलाडी नियमित इसकी साधना करे, तो वह किसी भी खेल में तेजी से श्रेष्ठता अर्जित कर सकता है। जीवन के लिए आवश्यक शारीरिक बल, सहनशक्ति, गति, धैर्य, फुर्ती, लचीलापन तथा साहस आदि सभी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियाँ मल्लखंभ पर तेजी से विकसित की जा सकती है।

मल्लखंभ क्या है-
मल्लखंभ सागवान या कालिये की लकड़ी का बना होता है, इसका आकार खंभे जैसा गोलाई में रहता है जो धरती के अन्दर करीब ८० से ९० से.मी. तक गड़ा रहता है तथा लगभग २६० से २८० से.मी. धरती से ऊपर की ओर रहता है। मल्लखंभ का निचला भाग मोटा रहता है तथा ऊपर की ओर क्रमशः पतला होता जाता है। सबसे ऊपरी भाग जिसे शीर्ष कहते है वृत्ताकार होता है। उससे ठीक नीचे लगभग १८ से २० से.मी. का भाग मल्लखंभ की शेष मोटाई से काफी पतला होता है, जिसे गर्दन कहते है। इस खेल में खंभ पर विभिन्न योगासन, जिमनास्टिक तथा एक्रोबेटिक व्यायाम किए जाते है जिसका दृश्य खंभ के साथ मल्ल अर्थात कुश्ती जैसा हो जाता है। अत: इसे मल्लखंभ कहते हैं। मल्लखंभ रस्सी पर भी किया जाता है जिसे रस्सा मल्लखंभ कहते हैं। इसमें सभी व्यायाम छत से लटकती एक रस्सी के ऊपर किए जाते हैं।

इतिहास
मल्लखंभ के सबसे प्राचीन प्रमाण द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय के मिलते है किन्तु आधुनिक भारत में मल्लखंभ के प्रादुर्भाव की एक अलौकिक घटना है। कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम के आश्रय में पले दो मल्ल अली एवं गुलाब ने पूना आकर पेशवा दरबार में अपनी जोड़ की कुश्ती के लिए ललकारा। प्रतिदिन एक बकरा और सवा सेर घी खाने वाले दोनों पहलवान अत्यंत बलशाली थे। राजाश्रय में उनकी जोड़ के पहलवान उस समय नहीं थे इस बात से अवगत श्री बालभट्ट दादा देवधर ने चुनौती स्वीकार कर ली। छ: माह बाद का समय निर्धारित किया गया। सर्वप्रथम दादा देवधर ने नासिक के पास सप्तशृंगी देवी का २१ दिन का अनुष्ठान किया। देवी मां ने प्रसन्न होकर वर दिया कि साक्षात हनुमानजी प्रकट होकर तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे। वैसा ही हुआ। शक्ति एवम् बुद्धि के आराध्य देव हनुमानजी ने दर्शन दिये और विषाल गोल लकड़ी पर मल्लविद्या में सहायक अनेक आसन एवं उड़िया (एक प्रकार के व्यायाम) करके दिखाए। दादा देवधर ने उन उड़ियों का लकड़ी के खंभे पर कठोर अभ्यास कर अपनी देह को वज्र सा बनाकर, उन दोनो पहलवानों को परास्त कर दिया। इस प्रकार हनुमानजी इस शास्त्र के प्रथम गुरु एवं उनके द्वारा प्रशिक्षित श्री बालभट्ट दादा देवधर मल्लखंभ शास्त्र के आद्य प्रवर्तक बने। कालांतर में उन्होनें संपूर्ण देश में मल्लखंभ का प्रचार-प्रसार किया। उनके सुयोग्य शिष्य ग्वालियर निवासी श्री दामोदर गुरु मोधे अर्थात श्री अच्युतानंद स्वामी महाराज ने समस्त देश में भ्रमण कर जगह-जगह अखाड़ों की स्थापना कर, उनमें पराम्परागत खेल मल्लखंभ की शुरूआत की।

विकास और लोकप्रियता
मल्लखंभ का प्रयोग प्रारंभ में केवल कुश्ती के पूरक व्यायाम के रुप में किया जाता था किन्तु बाद में मल्लखंभ भी स्वतंत्र खेल के रुप में विकसित हुआ और देश विदेश में लोकप्रियता की ऊँचाइयों को छूने लगा। मलखंभ की लोकप्रियता को देखते हुए प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता एवं निर्माता निर्देशक श्री कमल हसन मल्लखंभ पर केन्द्रित एक फिल्म का निर्माण करने जा रहे है। इंग्लैण्ड के ख्यात नाटक निर्देशक टीम सपल ने शेक्सपियर के नाटक-''मिड समर नाइट ड्रीम'' में रस्से पर मल्लखंभ की विलक्षण प्रस्तुति दी है। इसी प्रकार मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा संचालित थियेटर आर्ट के दो वर्षीय स्नातकोत्तर पाठयक्रम में मल्लखंभ का प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया है। मल्लखंभ के क्षेत्र में राष्ट्रीय मानचित्र पर उज्जैन के योगदान की एक लम्बी सूची है। राष्ट्रीय स्तर पर मल्लखंभ के प्रमुख केन्द्रों में उज्जैन का अति विशिष्ट स्थान है अभी तक म.प्र. सरकार द्वारा मल्लखंभ में 7 खिलाडियों को विक्रम पुरस्कार, दो खिलाडियों को एकलव्य पुरस्कार तथा एक प्रशिक्षक को विश्वामित्र पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है। यह गौरव का विषय है कि ये समस्त पुरस्कार प्राप्त खिलाडी उज्जैन जिले के ही है।

प्रतियोगिताएँ
भारत में प्रत्येक वर्ष विभिन्न राज्यों में मल्लखंभ की राज्य स्पर्धाएँ आयोजित होतीं हैं। भारतीय मल्लखंभ महासंघ द्वारा भारत के विभिन्न प्रान्तों में अब तक २7 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा चुका है। भारतीय विश्वविद्यालय संघ द्वारा १९६८-६९ से लगातार अखिल भारतीय अन्तर्विश्वविद्यालयीन मल्लखंभ स्पर्धा का आयोजन किया जा रहा है। भारत में स्थित प्रमुख मल्लखंभ केन्द्रों, स्थानीय निकाय तथा राज्य सरकार द्वारा भिन्न-भिन्न अवसरों पर अखिल भारतीय आमंत्रित मल्लखंभ स्पर्धा का आयोजन भी होता है। गत वर्ष से स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा प्रारम्भ अखिल भारतीय शालेय मल्लखंभ प्रतियोगिता का आयोजन निश्चय ही नन्ही प्रतिभाओं को उभारने में कारगर सिद्ध होगा। भारतीय ओलम्पिक संघ द्वारा १९९4 में मल्लखंभ को मान्य खेलों की सूची में भी सम्मिलित किया गया है। मल्लखंभ में विभिन्न व्यायामों को तीन भागों- सामान्य, कठिन तथा अतिकठिन में विभाजित किया गया है। इसकी राष्ट्रीय प्रतियोगिताओ में खिलाड़ियों को भारतीय मल्लखंभ महासंघ की तकनीकी समीति के मानकों को ध्यान में रखकर चुस्ती-फुर्ती, साहस, एकाग्रता एवं उत्कृष्ठता के साथ ९० सैकेंड में अपना सर्वशर्ष्ष्ठ प्रदर्शन देना होता है। राष्ट्रीय स्पर्धाओं में मल्लखंभ तीन प्रकार से खेला जाता है- स्थाई मल्लखंभ लटकता मल्लखंभ और रस्सी पर मल्लखंभ। पुरुष खिलाड़ियों द्वारा मल्लखंभ की तीनों विधाओं पर प्रदर्शन किया जाता है, वहीं महिला खिलाड़ियों द्वारा केवल रस्सी पर मल्लखंभ प्रदर्शन किया जाता है। पुरुष एवं महिला खिलाड़ियों द्वारा विभिन्न आयु समूहों में स्पर्धाएँ आयोजित की जाती हैं।


लाभ
मलखंभ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इससे व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी अत्यधिक सषक्त हो जाती है। मल्लखंभ से शरीर सुडौल, सुसंगठित, बलवान एवं तेजस्वी बनता है तथा मन में धैर्य, साहस एवं आत्मनिर्भरता का भी पूर्ण विकास होता है। इस प्रकार यह व्यायाम हमें शारीरिक व मानसिक दोनो प्रकार से पुष्ट करता है। मल्लखंभ का नियमित अभ्यास करनेवाले को बीमारी की संभावना भी नगण्य हो जाती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। यह कहावत यहाँ चरित्रार्थ होती है। मल्लखंभ से मनुष्य का दीर्घकालीन शारीरिक व मानसिक गठन होता है।

५ अप्रैल २०१०

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