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दृष्टिकोण

 

नया साल
मूल्यांकन व नियोजन का अवसर

- डॉ.सन्तोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी


कोई व्यक्ति किसी भी काल गणना को क्यों न मानता हो किन्तु इतना अवश्य है कि हम नवीन वर्ष के प्रारम्भ होने पर आपस में शुभ कामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं, वास्तव में इन शुभ कामनाओं का कोई प्रभाव उस समय तक नहीं होगा जब तक हम गत वर्ष में की गई त्रुटियों को सुधारने व नव वर्ष में योजनाबद्ध ढंग से समय का सदुपयोग करने का संकल्प नहीं लेते और उसका क्रियान्वयन नहीं करते। यह तो मूल्यांकन व नियोजन के आधार पर ही संभव है। अतः मेरी तरफ से सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएँ हैं। साथ ही इन शुभकामनओं की सफलता के लिए आप से अपेक्षा है कि आप निम्नलिखित बातों को अपनी योजना के निमार्ण व क्रियान्वयन में ही नहीं, हर पल ध्यान रखें। ताकि आपको नव वर्ष शुभ हो सके:-

  • गत वर्ष का मूल्यांकन अवश्य करें, वास्तव में आप समय का कितना सही उपयोग कर पाए? कहीं न कहीं छिद्र रह ही जाते हैं। अतः क्या करना था और क्या करने में सफल हुए? क्या खोया? क्या पाया? आपने अपने जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष कहीं खो तो नहीं दिया? जी हाँ, जो समय का सदुपयोग नहीं करते, उनका समय खोता ही है। अतः गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन करें, आपने अपने लिए, परिवार के लिए, गाँव, प्रदेश, राष्ट्र व समाज के लिए, राष्ट्रीय संस्कृति व जीवन मूल्यों के लिए किस प्रकार जिया है? कहाँ-कहाँ त्रुटियाँ हुई हैं? आकलन, विचार, चिन्तन व मनन के पश्चात नव वर्ष के लिए योजना बनाएँ कि क्या करना है? कितना करना है? किसको करना है? कहाँ करना है? कैसे करना है? वास्तव में हम जो कर्म कर लें वही हमारा सही समय है। गीता का सन्देश सदैव याद रखे- ‘कर्मण्येवाधिकारेस्तु मा फलेषु कदाचन्’ अतः निर्लिप्त भाव से कर्म करें।
     

  • वैयक्तिक, पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों को समझें, मनन करें व सन्तुलन बनाने का प्रयत्न करें। सभी कर्तव्यों को सन्तुलन के साथ निर्वाह करने में ही हमारी सफलता है, किन्तु यदि ऐसा अवसर हो कि हमें कई कर्तव्यों में से एक का चुनाव करना हो तो अधिमान देते समय सदैव याद रखें-
    "त्यजेद् एकम् कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलम् त्यजेद्।
    ग्रामं जनपद्स्यार्थे, आत्मार्थे पृथ्वी त्यजेद।।"
    अर्थात कुल के हित के लिए एक के हित का त्याग करें, ग्राम के हित के लिए कुल के हित का त्याग करें, जनपद के हित के लिए ग्राम के हित का त्याग करें, प्रदेश के हित के लिए जनपद के हित का त्याग करें; राष्ट्र के हित के लिए प्रदेश के हित का त्याग करें, पृथ्वी के हित के लिए राष्ट्र के हित का त्याग करें तथा संपूर्ण आत्माओं अर्थात प्राणी मात्र का हित होता हो तो पृथ्वी का त्याग करने के लिए भी प्रस्तुत रहें। अपने कर्तव्यों के निर्धारण में इस श्लोक से मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे तो कभी भी किसी का अहित नहीं होगा क्योंकि "हाथी के पाँव में सबका पाँव"।
     

  • स्मरण रखें उत्तरदायित्वों के निर्वाह के लिए आपका स्वस्थ रहना आवश्यक है। अतः अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते समय अपने प्रति कर्तव्यों का भी ध्यान रखें। भौतिक भोग-विलास की सुविधाओं के उपभोग से कमजोर न पड़ें, साथ ही जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं का समय से पूरा होना भी आवश्यक है, ताकि सामाजिक, राष्ट्रीय व पारिवारिक उत्तरदायित्वों का पूर्ण समर्पण भाव से निर्वाह किया जा सके। बीमार व कमजोर शरीर व मन लेकर आप किसी भी उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं कर सकते। परिवार, देश व समाज के लिए अपना शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास करने के प्रयत्न आजीवन करते रहें।
     

  • सत्य और स्पष्टता आपको विश्वासपात्र बनाते हैं। विश्वास और आस्था के बिना किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल सकती। यह दोनों खरीदे नहीं जा सकते और न ही बदले में प्राप्त हो सकते हैं। आस्था और विश्वास को विरासत या आशीर्वाद से प्राप्त करना ही संभव नहीं है। जबकि विश्वास और आस्था जीवन की सबसे बड़ी पूँजी हैं। अतः विश्वासपात्र बनें ताकि शत्रु भी आपकी बात पर भरोसा कर सकें। साथ ही सावधान भी रहें वर्तमान समय में आँख बन्द करके किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता; अविश्वास करके किसी का सहयोग प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः किसी पर अविश्वास भी प्रकट न करें। शक करना व जिज्ञासा रखना सच्चाई जानने के आदर्श तरीके हैं। पूरी जाँच-पड़ताल करके प्रमाणित हो जाने के बाद ही किसी पर भरोसा करें। सदैव याद रखें-
    विश्वास किसी पर नहीं है करना, अविश्वास से भी है डरना।
    कोई कितना भी अपना हो सोच समझ कर निर्णय करना।।
     

  • याद रखें "सत्य हारता हुआ प्रतीत होता है किन्तु कभी हारता नहीं।" अल्पकाल में भले ही असत्य, भ्रष्टाचार, छल-कपट व फरेब आकर्षक लगते हाँ किन्तु सत्य के आगे इन्हें पराजय ही हाथ लगती है। अतः जोखिम उठाकर भी सदैव सत्य का साथ दें। सत्य का साथ छोड़ना ही आपकी पराजय का प्रमाण होता है। यदि आप सही है और आपमें साहस है तो कभी भी सत्य का साथ नहीं छोड़ेंगे। सत्य ही आपकी विश्वसनीयता का आधार होगा। सत्य की परिभाषा में न उलझें, अपनी सुविधा के लिए सत्य को जटिल न बनायें। अपनी आत्मा की आवाज सुनें और सत्य पथ पर निरंतर प्रगतिशील रहें। सत्य को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए तो साधनारत रहना है।
     

  • धन से भौतिक भोग-विलास की सामग्री भले ही खरीदी जा सके किन्तु सुख और शान्ति नहीं खरीदी जा सकती। सुख और शान्ति अमूल्य निधि हैं जिन्हें सत्य, कर्तव्यपरायणता व आस्था से ही पाया जा सकता है। धन जीवन के लिए आवश्यक अवश्य है किन्तु धन ही सब-कुछ नहीं। आखिर आपको धन किसलिए चाहिए। अपने व अपने परिवार के जीवनयापन के लिए ही न, इसलिए सदैव याद रखें- "धन आपके लिए है, आप धन के लिए नहीं। किसी भी कीमत पर धन कमाना बहुत मँहगा सौदा है।" आत्मसम्मान व परिवार की गुणवत्ता को दाँव पर न लगायें। आपका जीवन अमूल्य है, इसे धन से नहीं तौला जा सकता और आपका परिवार ऐसे धन का आप क्या करेंगे जो आपके परिवार को ही बिखरा दे या आप को आपके परिवार से दूर कर दे या आपकी व आपके परिवार की शान्ति भंग कर दे। अतः धन को निश्चित ही महत्व दें। वह महत्वपूर्ण है किन्तु उससे भी महत्वपूर्ण चीजें भी हैं और उनका ध्यान उससे अधिक रखें। धन जीवन का लक्ष्य नहीं, यश प्राप्ति भी महानता नहीं; कर्तव्यपालन के आगे सभी कुछ तुच्छ है-
    अधम मरत फँस धनहि में,मध्यम धन और मान।
    ऊँचे केवल मान में, फँसते नहीं महान।।
     

  • योजना, क्रियान्वयन व मूल्यांकन प्रबन्ध प्रक्रिया के अनिवार्य घटक हैं जो सार्थक जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। प्रातःकाल दिनभर की योजना बना लें, दिन में क्रियान्वयन करें तथा रात्रि को सोने से पूर्व मूल्यांकन अवश्य करें कि आज के दिन का कितना सदुपयोग हुआ। नियमित डायरी लेखन की आदत सोने में सुहागा सिद्ध होगी। डायरी वह उपकरण है, जो साधारण मानव को असाधारण महामानव में परिवर्तित कर सकती है। नये वर्ष के अवसर पर डायरी का प्रयोग करना प्रारंभ कर सकें तो अत्यन्त उपयोगी निर्णय सिद्ध हो सकता है।
     

  • चिन्तन करें, चिन्ता नहीं; विवेकपूर्ण निर्णय लें, उतावलेपन में नहीं; आवश्यकतानुसार क्रोध का प्रदर्शन करें किन्तु क्रोध आपकी बुद्धि पर हावी नहीं होना चाहिए। किसी विद्वान का कथन है, ‘क्रोध हर कोई कर सकता है, किंतु आवश्यकतानुसार कब? किसपर? कितनी मात्रा में? किस प्रकार से? क्रोध करना है। इसका निर्धारण करके क्रोध करना सबके बस की बात नहीं।’ शिष्टता व शालीनता का मतलब यह नहीं कि प्रत्येक उल्टी-सीधी बात को स्वीकार कर लिया जाय। शिष्टता, शालीनता, विनम्रता व दृढ़ता के साथ विरोध व्यक्त करना आपकी कार्यकुशलता व विश्वसनीयता को कई गुना बढ़ा सकता है। माता-पिता, अपने से बड़े लोगों के प्रति सम्मान का भाव ही नहीं, उनके प्रति कर्तव्यों का भी पालन करना है किन्तु इन कर्तव्यों में अनुचित आज्ञाओं का पालन सम्मिलित नहीं है। अपने नेताओं व अधिकारियों के लिए अपेक्षित सम्मान का भाव तो रखें किन्तु आँख बन्द करके उनके आदेशों का पालन करना देश व समाज के अहित में भी हो सकता है। अतः देशहित में अनुशासन की जंजीरों में बँधकर रहना भी उचित नहीं है। प्रत्येक कार्य आपके अपने विवेकपूर्ण निर्णय के अनुसरण में होना चाहिए।
     

  • आशा है आप उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार कर अपने विवेक का प्रयोग करते हुए सामाजिक, राष्टीय, पारिवारिक व वैयक्तिक उत्तरदायित्वों में सन्तुलन बनाते हुए, नव वर्ष में अपने समय का सदुपयोग करने में सफल होंगे। यही नहीं अपने समय के सदुपयोग के द्वारा न केवल स्वयं अपने नव वर्ष को शुभ बनायेंगे बल्कि अपने अन्य भाइयों को भी प्रेरित करने में सफल होंगे। इसी विश्वास के साथ आपको, आपके परिवार को अपनी इस भारत भूमि सहित समस्त विश्व समुदाय को मेरी ओर से नव वर्ष की कोटि-कोटि शुभकामनाएँ

५ जनवरी २०१५

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