जलेबी की विदेश
यात्रा
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मधु सोसि
बात बहुत पुरानी है १९९९ में
अपने धेवते वरुण को देखने की ज़बरदस्त इच्छा के चलते मेरा
आस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा जाना हुआ। बिटिया अकसर अपनी
मिठाइयों को याद करती थी। जलेबी उसकी बड़ी पसंदीदा मिठाई थी।
आस्ट्रेलिया में दूध की बनी वस्तुओं, बीज व कच्ची लकड़ी ले
जाने पर सख़्त मनाही थी पर मैं ठहरी ममतामयी माँ! इतनी दूर
जाऊँ और बेटी के लिए जलेबी न ले जाऊँ? जलेबी में बर्फ़ी की तरह
मावा नहीं होता। बम्बई के मशहूर तिवारी जी की आधा किलो जलेबी
पैक करवा ही लीं, सोचा निकल गई तो बिटिया खा लेगी नहीं, तो,
ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा ? फेंक देंगे!
सबके मना करने के बाद मुझे जिद चढ़ गई और चल पड़ी। जिस बात का
डर था वो ही हुआ। सिडनी एयर पोर्ट पर लैंड करते ही हिदायतें
आने लगीं कि यदि आपके पास वर्जित वस्तुएँ हैं तो अलग लाइन में
खड़े हो जाएँ। मैं अपना बैग लेकर लाइन में खड़ी हो गई।
आस्ट्रेलियाई अंग्रेज़ी पकड़ने में मुश्किल पड़ती है। सबसे
पहले उसने मिठाई वाला डिब्बा देखा। मैंने भोली भाली सूरत बना
कर, ममता भरी मुस्कान चेहरे पर पोत कर कहा, “अपने ग्रैंडसन को
मिलने आई हूँ। बिटिया की पसंदीदा जलेबी भारत से लाई हूँ।”
वह डिब्बा हाथ में ले कर उलट पुलट करने लगी। आस्ट्रेलियाई लोग
ग्रैंडकिड्स की तरफ सोफ्ट कार्नर रखते हैं, जल्दी पिघल जाते
हैं। यही सोच कर मैंने तुरुप का इक्का फेंका था
चैक करने वाले दो व्यक्ति थे। एक युवक, एक युवती! युवती ने
कहा, ”की, की?“ मैंने चाबी का गुच्छा उसे पकड़ा दिया, पर उसने
फिर से कहा, “की, की, की।” चाभियाँ दे दी फिर भी, “ की, की,
की“ की रट लगा रखी थी।
मेरी समझ नहीं आ रहा था उसे क्या चाहिए? मैंने फिर आग्रह करने
का और समझाने का प्रयत्न करना चाहा। तब तक उसने डिब्बे पर लिखे
शब्दों को मुझसे पढ़वाया। डिब्बे पर लिखा था- “मेड़ इन पयोर
घी!” वो मेरा ध्यान “घी“ शब्द पर आकर्षित कर रही थी। उनके देश
में दूध से बनी चीजों को लाने पर पाबंदी है और “घी“ क्योंकि
दूध से बनत है उसपर पाबंदी थी। वो घी, घी, घी कह रही थी मैं
उसे “की“ यानि चाभियाँ पकड़ा रही थी! अच्छा ख़ासा कौमेडी सर्कस
बन गया था।
आज तक यह घटना याद आती है और याद करके हम सब खूब हँसते है। पर
हॉ, उसने मुझे जलेबी ले जाने की इजाज़त दे दी थी। घर आ कर
मैंने बेटी की डाँट खाई और उसने जलेबी।
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