लोकल
ट्रेन में बम धमाकों से हर तरफ अफ़रातफ़री का
माहौल था। टेलीफोनमोबाइलों ने काम करना
बंद कर दिया था। रात के साढ़े नौ बजे मुझे हास्य
कवि प्रकाश पपलू का फोन आया 'कहां हो, तुरंत
मीरा रोड के पेट्रोल पंप पर मिलो। भायंदर अस्पताल
चलना है। श्याम ज्वालामुखी नहीं रहे।' यह खबर
सुनकर एकदम सन्न रह गया।
पपलू के साथ भायंदर
सरकारी अस्पताल पहुंचा। दर्जनभर लाशों में एक
कोने पर श्याम ज्वालामुखी का क्षतविक्षत शव पड़ा
था। वही श्याम ज्वालामुखी जो अपने चुटीले
व्यंग्य और सामयिक टिप्पणियों से पिछले 20
सालों से काव्य मंचों पर हंसाते रहे, आज पूरी
कवि बिरादरी को रूलाकर चले गए।
मौत ज्वालामुखी को
खींचकर चर्चगेट ले गई थी। शाम करीब साढ़े चार
बजे जब मैंने उन्हें फोन किया तब वो बांद्रा
स्टेशन पर थे। उनसे कहा, मीरा रोड रवाना हो
जाओ अभी ट्रेन खाली मिलेगी तो उन्होंने कहा,
'मैं इतना मूर्ख नहीं हूं जितना दिखता हूं। मैं
खिड़की की सीट पर बैठकर रिटर्न आऊंगा।' टीवी
चैनलों और दोस्तों के मार्फत जब उनकी मौत की
ख़बर फैली तो हर कोई अवाक और सदमे में था।
मीरा रोड की गोल्डन वेस्ट सोसाइटी शोकाकुल थी।
बुधवार की सुबह उनके घर दोस्तों और उनके
प्रशंसकों की आंखों में आंसू थे। श्याम
ज्वालामुखी 15 साल पहले भीलवाड़ा से मुंबई आए
थे। शुरू में उन्होंने भायंदर में होम्योपैथिक
क्लीनिक खोला। उनकी काव्य प्रतिभा को पहचानकर हास्य
कवि रामरिख मनहर ने उन्हें कवि सम्मेलनों में
बुलाना शुरू किया और उसके बाद उन्होंने पीछे
मुड़कर नहीं देखा।
ज्वालामुखी के
दाहसंस्कार में दिल्ली से आए कवि सुरेंद्र शर्मा ने
कहा, 'काव्य मंचों का तो बड़ा ही नुकसान हुआ है।
मेरा व्यक्तिगत नुकसान बहुत हुआ है। उसकी भरपाई
नहीं हो पाएगी। मेरे हर कार्यक्रम में श्याम
ज्वालामुखी होते थे। कार्यक्रम की शुरूआत उन्हीं से
कराता था क्योंकि उन्हें जब काव्यपाठ के लिए खड़ा कर
देता था तो श्रोताओं को वो एकएक लाइन की
चुटीली टिप्पणियों से बांध देते थे। सामयिक
टिप्पणियों में उनका कोई सानी नहीं था। उनका
यह अच्छा समय आया था। लोकप्रिय कवियों में
उनका शुमार था। उनका असमय चले जाना हमेशा
सालता रहेगा।' श्याम ज्वालामुखी की शवयात्रा में
सामाजिक शख्सियतें, राजनेता और पत्रकार शामिल
हुए।
श्याम ज्वालामुखी कवि
सम्मेलनों में भारतीय एकता पर एक चारलाइन
चुटकी हमेशा सुनाया करते थे जिस पर श्रोता
ज़ोरदार ठहाका लगाते थे
चार अमरीकी साथसाथ चल देते
जिधर डालर का पेड़ खड़ा हो
चार अंग्रेज़ साथसाथ चल देते
राष्ट्र पर यदि संकट कोई बड़ा हो
पर चार हिंदुस्तानी एक साथ एक दिशा में तभी चलते
हैं
जब चार कंधों पर पांचवां पड़ा हो।
अपनी शव यात्रा में
दोस्तों के कंधे पर पड़े ज्वालामुखी को देखकर ऐसा
लग रहा था, जैसे लोगों के चेहरे पर हमेशा
मुस्कान बिखेरने वाला यह आदमी अपना चेहरा
ढंकेढंके उनपर भी व्यंग्य कर रहा हो।
पूरन पंकज
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बहुत
सरल बहुत निश्छल और आपादमस्तक इंसानियत के
संस्कारों से सराबोर थे श्याम ज्वालामुखी।
आठवें दशक की शरूआत में उनसे भीलवाड़ा में
मुलाकात हुई थी, श्री युगल किशोर सरोलिया जी
के सौजन्य से। पहली झलक में ही जो व्यक्ति मन
को मोह लेता है ऐसे थे श्याम। नाम का भी असर
व्यक्तित्व पर कुछ न कुछ तो आता है उनकी श्याम
काया और कृष्ण जैसी भोलेपन में छिपी हुई
चंचलता। श्याम कम बोलते थे लेकिन जब बोलते
थे तो सार गर्भित और वक्रोक्ति से भरपूर। उनकी
छोटीछोटी टिप्पणियां आज भी लोग यात्रा के बाद
उदधृत करते पाए जाते हैं। वे लगभग बीस साल
पहले मुंबई आ गए और धीरे धीरे मुंबई व
आसपास के कवि संमेलनों की ज़रूरत बन गए।
कवि
सम्मेलन का कवि बहुत यात्राएं करता है। बालकवि
बैरागी प्रायः कहा करते थे कि मंच का कवि अंतिम
कवि के काव्यपाठ के पहले पहुंच अवश्य जाता है। किसी
भी साधन या माध्यम का प्रयोग करे, आंधी हो
या पाला हो तूफ़ान हो या ज्वाला, कोई उसे रोक
नहीं सकता। और मंच के कवियों को यह वरदान
प्राप्त है कि वे किसी दुर्घटना के शिकार नहीं होंगे।
वैरागी जी की यह सदाशयतापूर्ण भविष्यवाणी
लगभग बीस पच्चीस वर्ष मैंने भी महसूस की।
लेकिन दो अवसरों पर यह भविष्यवाणी टूटी।
पहली
जब वेद प्रकाश सुमन जी का एक ट्रक दुर्घटना में
निधन हुआ। रात में जब कोई साधन नहीं मिला
तो वेदप्रकाश जी ट्रक में ही अपने घर लौट रहे थे।
मैने तत्काल वैरागी जी को फोन किया ग़लत हो
गई आपकी भविष्यवाणी। और इस बार जब श्याम
ज्वालामुखी बम हादसों के शिकार हुए तो आदरणीय
वैरागी जी का फोन आया तुम कहो इससे पहले
मैं ही कह देता हूं अशोक, एक बार फिर ग़लत हुई
मेरी भविष्यवाणी। दरअसल यह दुर्घटना कोई
प्राकृतिक और सहज दुर्घटना नहीं है। आतंकवाद की
बलि चढ़ गया हमारा प्यारा कवि श्याम। पूरे कुनबे
को नुक्सान हुआ है। मैने कहा एक बार फिर से कर
दीजिए न ऐसी भविष्यवाणी बीस बाइस साल तक तो
चलती है। वे बोले अभी सदमे से निकला नहीं हूं
अशोक। इस समय कोई भी कामना करना इसके सिवा
कि हम श्याम के लिए श्रद्धांजलियां संजोएं उचित
नहीं है। हम मिल कर प्रार्थना करें कि सरल मन से
सरल ढंग से सरल बात कहने वाले उस कवि की
आत्मा को शांति मिले। एक मौन हम दोनों के
बीच रहा और बिना अभिवादन का आदान प्रदान किए
हमने फोन रख दिया।
कवि
मित्रों के साथ खूब यात्राएं की हैं आवश्यक नहीं है
कि जिनके साथ यात्राएं हों वे सभी व्यक्तित्व आपके
मनोनुकूल हों। लेकिन कुछ ऐसे सहृदय मित्र हैं
जिनके साथ पता चले कि यात्रा करनी है तो मन अंदर
से प्रसन्न हो जाता है। यात्राओं में बहुत सारे
कवियों के लिए कविसम्मेलन, आयोजक,
परिश्रमिक, गलेबाज़ी जैसे विषयों के अलावा
कुछ नहीं होता। या फिर सफर में ताश की गड्डियां
निकल आती हैं। मुझे वे भी नहीं रूचतीं और न
कवि सम्मेलन परक बातचीत।
श्याम
ऐसे बिलकुल नहीं थे। न तो वे ताश खेलते थे
और न शिकायत धर्मी थे 'गॉसिप' में मज़ा
नहीं आता था कोई किसी की निंदा या स्तुति करे तो
छोटी सी एक टिप्पणी ज़रूर कर देते थे बहस को शुरू
नहीं करते थे बहस को एक हास्यात्मक विराम देते थे।
ऐसे ठहाकों का फुलस्टॉप लगाते थे कि उसके बाद
नया विषय ही प्रारंभ करना पड़ता था।
एक
यात्रा में बात चल रही थी मंचीय कविता की
लेखन प्रक्रिया पर, मैंने श्याम से कहा,
'डियर श्याम, सरल लिखना सरल नहीं है।'
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तो
श्याम ने जवाब दिया कि भाई साहब, कठिन
लिखना भी कठिन नहीं है। कितनी पते की बात
थी! जितना छद्म लेखन होता है शब्दाडंबरों
के साथ वह उच्च स्तरीय साहित्य के नाम पर
अपना कॉलर ऊंचा किए रहता है। लेकिन हास्य
कवि की सरल सहज उक्तियां क्यों कि इतनी
सरल होती हैं और इतनी अपनी लगती हैं कि
उससे समान स्तर पर बतियाने का मन तो
करता है पर ऊंचे स्थान पर बैठाने की ज़रूरत
महसूस नहीं होती। कोई भी सच्चा हास्यकार
ऊंचे आसन की कामना नहीं करता।
श्याम
का लेखन ज्वालामुखी उपनाम के साथ वीर रस की
कविताओं व राष्ट्रवादी स्वर की कविताओं के साथ
हुआ था। एक समय था राजस्थान से जो भी कवि
आता था उसे वीर रस लिखना ही होता था,
हल्दीघाटी, राणाप्रताप और राजस्थान की
गौरवगाथाओं के कारण। श्री विश्वनाथ विमलेश
ने अपनी हास्य कविताओं से इस परिपाटी को अलग
दिशा दी थी। अन्यथा राजस्थान माने, भले ही
डिंगल पिंगल में न हो लेकिन, वीर रस की
कविता। ज्वालामुखी ने अपना उपनाम तो बनाए रखा
लेकिन नाम को सार्थक बनाए रखने वाली कविताएं
लिखना बंद कर दिया। वे हास्य लिखने लगे।
ज्वालामुखी से निकलता है लावा लेकिन श्याम के
मुख से तो लव प्रधान वाणी निकलती थी। शुरूआत
में वे लंबीलंबी कविताएं लिखते थे। किसी एक
विषय को लेकर अतिरंजना उनके हास्य का गुण था।
सन 90 के आसपास मैने दूरदर्शन के लिए एक
आयोजन किया था भीगा भीगा कवि सम्मेलन।
उसमें प्रयोग यह था कि कवि भी स्वीमिंगपूल के
जल में बैठे थे और श्रोता भी। पानी के बीचो
बीच एक मंच बनाया गया था जिसमें बैठने पर
नाभि तक पानी का आनंद रहता था। श्याम ने एक
दिलचस्प कविता सुनाई थी। वे किसी कन्या के देखने
और स्वंयं को दिखाने गए। कन्या जब कक्ष में आई
उसका बड़ा मज़ेदार वर्णन एक लंबी विशेषण
माला के साथ श्याम करते हैं। नाम बताया गया था
मुन्नी। उसके लिए विशेषण देखिए गजदंती, जूडो
प्रवीणा, विकट नितंबा मुन्नी आई। और भी
विशेषण हैं जो मुझे अभी याद नहीं आ रहे
लेकिन स्थितियों की विसंगतियों को श्याम
मुस्कान से ठहाकों तक की यात्रा देते थे।
बंबई
पहुंचने के बाद उन्होंने अपने लेखन का
तरीका बदला। वे एल पी एम और सी पी एम का
गणित समझ गए। एल पी एम का मतलब लाफ्टर
पर मिनट हो तो एल पी एम मतलब लिफाफा पर
मिली मीटर मोटा होता है। उनकी राह चलते
बोली गई उक्तियों को जब लोगों ने
इस्तेमाल करना शुरू किया होगा तो उनके
ज़हन में विचार आया होगा कि मैं स्वयं
ही क्यों न बोलूं। अपनी इन छोटी छोटी
उक्तियों का वे मंच पर ऐसा गुलदस्ता
बनाते थे जो लंबी कविताओं से भी
ज्यादा बड़ा हो जाता था और हर मिनट ठहाका
देने के कारण श्रोताओं को रोचक लगता था।
प्रस्तुति के मामले में यह अच्छी बात थी
लेकिन धीर– धीरे हम उनकी लंबी
कविताओं से वंचित होते गए, क्यों कि
लंबी कविताओं में जल्दी जल्दी हंसी नहीं
आती है उसमें कथा को सुनना पड़ता
है।
अब
श्याम का लेखन सहज नहीं रहा बल्कि सहज
स्थितियों पर सरल टिप्पिणियों वाला हो
गया। इन टिप्पणियों में भी एक बात थी कि
उपभोक्तावाद और विज्ञापन संस्कृति पर वे
गहरी नज़र रखते थे। 'आयोडेक्स मलिए काम
पर चलिए' वे अपनी तुतलाती सी ज़बान
में कहते थे कि आयोडेक्स मलने से ही अगर
काम पर चला जा सकता है तो बेरोज़ग़ारी
दूर करने का इससे बेहतर तरीक़ा नहीं है। 'इस
सीमेंट में जान है', श्याम कहेंगे तो फिर
इसके दो चम्मच मरते आदमी के मुंह में
क्यों नहीं डाल देते। 'बजट से कपड़े साफ
हो जाते हैं ' श्याम की टिप्पणी होगी
बजट से कपड़े क्या मेरा पूरा घर साफ हो
गया।
उनकी
एक छोटी सी कविता है जिसे लोग लतीफा
बना कर भी सुनाते हैं।
चार अमरीकन चलते एक दिशा में जब डॉलर
का पेड़ लगा हो
चार भारतीय चलते एक दिशा में जब
पांचवां कंधे पर पड़ा हो।
जिन
चार लोगों ने श्याम को कंधा दिया वे
इस आकस्मिक दुर्घटना के विषय में बम
हादसों से पहले तक सोंच भी नहीं सकते
थे। हास्य कवि की कारूणिक संवेदना से उनके
कंधे कांपे होंगे। आतंकवाद के विरूद्ध उनकी
इड़ापिंगलासुषुम्ना में आक्रोश तैर
गया होगा। कहते हैं कवि सृष्टा होता है,
दृष्टा होता है, आगे तक देख पाता है। एक सप्ताह
पहले ही उन्होंने टेलीविज़न के 'वाह वाह'
कार्यक्रम के लिए जो रिकार्डिंग कराई थी
उसमें रेलयात्रा की विषम स्थितियों पर
उनकी थीं। कविता में वे कहते हैं कि अभी
मैं मरूंगा नहीं क्यों कि रेलयात्रा सबसे
सुरक्षित है। बस से जाओ खड्ड में गिर
सकती है। कोई और वाहन लो उसकी और
परेशानियां हैं। ग़लती से कभी
मुगलसराय की ट्रेन पटना पहुंच सकती है
लेकिन कंधार तो नहीं चली जाएगी।
हां
ट्रेन कंधार नहीं ले जा सकती लेकिन श्याम
तुम्हें कंधों तक तो ले ही गई। इस सच्चे
शालीन हास्य कवि को श्रद्धांजलि कवि समाज
इसी प्रकार दे सकता है कि साहित्य की पटरियों
को हास्य के पहिए लगा कर किसी भी प्रकार के
वैमनस्य को जन्म देने वाली भावनाओं
के विरूद्ध कविताएं रची जाएं। |