इसके पीछे एक ही वजह रही कि वह
भी अपने आप में हर तरह से आज़ाद रही और मैं भी हर स्तर पर
आज़ाद रहा। चूँकि हम दोनों कभी पति-पत्नी की तरह नहीं रहे,
बल्कि दोस्त की तरह रहे, इसलिए हमारे बीच कभी किसी किस्म के
इगो का खामोश टकराव भी नहीं हुआ। न तो मैं उसका मालिक था और
न ही वह मेरी मालिक। वह अपना कमाती थी और अपनी मर्ज़ी से
खर्च करती थीं। मैं भी अपना कमाता था और अपनी मर्ज़ी से खर्च
करता था।
दरअसल,
दोस्ती या प्रेम एक अहसास का नाम है। यह अहसास मुझमें और
अमृता, दोनों में था, इसलिए हमारे बीच कभी यह लफ्ज़ भी नहीं
आया कि आय लव यू। न तो मैंने कभी अमृता से कहा कि मैं
तुम्हें प्यार करता हूँ और न ही अमृता ने कभी मुझसे। एक बार
एक सज्जन हमारे घर आए। वे हाथ की रेखाएँ देखकर भविष्य बताते
थे।
उन्होंने मेरा हाथ देखा और
कहा कि तुम्हारे पास पैसा कभी नहीं टिकेगा क्यों कि तुम्हारे
हाथ की रेखाएँ जगह-जगह टूटी-कटी हैं। उसने अमृता का हाथ
देखकर कहा कि तुमको ज़िंदगी में कभी पैसे की कमी नहीं रहेगी।
इस पर मैंने अमृता से उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि ऐसा
है, तो हम दोनों एक ही हाथ की रेखा से ही गुज़ारा कर लेंगे।
हम दोनों हमेशा दोस्त की तरह रहे।
एक ही घर में, एक ही छत के
नीचे रहे, फिर भी कभी एक कमरे में नहीं सोए क्यों कि मेरा और
उसका काम करने का वक्त हमेशा अलग रहता था। मैं रात बारह-एक
बजे तक काम करता और फिर सो जाता था। जबकि अमृता, बीमार पड़ने
और बिस्तर पकड़ने के पहले तक, रात को आठ-नौ बजे तक सो जाती
थी और देर रात एक-डेढ़ बजे उठकर अपना लिखने का काम शुरू करती
थी, जो सुबह तक चलता रहता था।
हम दोनों ने जब साथ रहना
शुरू किया, तब अमृता दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं। हालाँकि,
शुरुआती दौर में बच्चों ने हमारे साथ-साथ रहने को कबूल नहीं
किया। लेकिन उन्हें एतराज़ करने की गुंजाइश भी नहीं मिली।
क्यों कि न तो उन्होंने कभी हमें लड़ते-झगड़ते देखा था और न
ही हमारे बीच कभी किसी किस्म का टकराव या मनमुटाव पनपते हुए
महसूस किया था। धीरे-धीरे उन्होंने भी हमारा साथ रहना कबूल
कर लिया। अमृता और मैंने शुरू में ही तय कर लिया था कि हम
कोई बच्चा पैदा नहीं करेंगे क्यों कि उन्हें मिक्स अप होने
में मुश्किल होगी। कई लोग ऐसा मानते हैं कि अमृता का तलाक़
मेरे कारण हुआ, लेकिन यह सच नहीं है। उसकी शादी तो भारत के
बँटवारे के पहले ही हो गई थी। शादी के कुछ साल बाद ही उसे
महसूस होने लगा कि जिस शख्स के साथ उसकी शादी हुई है, उसके
साथ ज़िंदगी भर निभ नहीं सकेगी।
आख़िरकार उसने अपने पति का
घर छोड़ दिया, लेकिन तलाक़ नहीं हुआ था। तलाक़ तो हमारे
साथ-साथ रहना शुरू करने के कोई पंद्रह-सोलह साल बाद हुआ। जब
हमने साथ-साथ रहने का फ़ैसला किया, तो हम दोनों के परिवार
वालों को हैरत हुई और उन्होंने इस पर बड़ा एतराज़ भी किया।
उनके एतराज़ की वजह थी अमृता का उम्र में मुझसे सात-आठ साल
बड़ी होना और अमृता के दो बच्चे। चूँकि हम दोनों एक-दूसरे को
जान-समझ चुके थे और हमने पक्के तौर पर साथ रहने का फ़ैसला कर
लिया था, इसलिए किसी के एतराज़ का हमारे फ़ैसले पर कोई असर
नहीं हुआ। दोनों ने यह भी तय किया था कि शादी जैसे किसी
रस्मी बंधन में नहीं बँधेंगे। हमारे इस फ़ैसले का मेरे घर में
सिर्फ़ मेरी दीदी ने ही समर्थन किया और जो लोग एतराज़ कर रहे
थे, उनसे कहा कि ये कैसे खुश रहेंगे, इसका फ़ैसला जब खुद इन
दोनों ने कर लिया है, तो किसी और को एतराज़ क्यों करना
चाहिए!
अमृता के जीवन में एक छोटे
अरसे के लिए साहिर लुधियानवी भी आए, लेकिन वह एक तरफ़ा
मुहब्बत का मामला था। अमृता साहिर को चाहती थी, लेकिन साहिर
फक्कड़ मिज़ाज था। अगर साहिर चाहता, तो अमृता उसे ही मिलती,
लेकिन साहिर ने कभी इस बारे में संजीदगी दिखाई ही नहीं। एक
बार अमृता ने हँस कर मुझसे कहा था कि अगर मुझे साहिर मिल
जाता, तो फिर तू न मिल पाता।
इस पर मैंने कहा था कि मैं
तो तुझे मिलता ही मिलता, भले ही तुझे साहिर के घर नमाज़ अदा
करते हुए ढूँढ़ लेता। मैंने और अमृता ने 41 बरस तक साथ रहते
हुए एक-दूसरे की प्रेजेंस एंजॉय की। हम दोनों ने खूबसूरत
ज़िंदगी जी। दोनों में किसी को किसी से कोई शिकवा-शिकायत
नहीं रहीं। मेरा तो कभी ईश्वर या पुनर्जन्म में भरोसा नहीं
रहा, लेकिन अमृता का खूब रहा है और उसने मेरे लिए लिखी अपनी
आख़िरी कविता में कहा है, मैं तुम्हें फिर मिलूँगी। अमृता की
बात पर तो मैं भरोसा कर ही सकता हूँ। अमृता के लिए इमरोज़ की
कविता
घोसला घर
अब ये घोसला घर चालीस
साल का हो चुका है
तुम भी अब उड़ने की तैयारी में हो,
इस घोसला घर का तिनका-तिनका,
जैसे तुम्हारे आने पर सदा,
तुम्हारा स्वागत करता था,
वैसे ही इस उड़ान को,
इस जाने को भी,
इस घर का तिनका-तिनका
तुम्हें अलविदा कहेगा।
— इमरोज |