भारतीय संस्कृति के आख्याता हजारी प्रसाद द्विवेदी
—डा .सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक"
हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म १९ अगस्त १९०७ को आरत
दुबे का छपरा ओझवलिया बलिया उत्तर प्रदेश भारत
में हुआ था। हजारी प्रसाद द्विवेदी को भारतीय संस्कृति
का आख्याता कहा जाता है। उन्होंने भारतीय साहित्य
संस्कृति परम्परा समाज धर्म मान्यताओं की
पुर्नव्याख्या की है। जिन विचारों से वह सहमत नहीं
होते थे वह असहमति व्यक्त करते थे। द्विवेदी जी
व्यंग्य करना द्विवेदी जी की विशेषता थी। व्यंग्य और
हास्य उनकी रचनाओं में जहाँ–तहाँ भरा पड़ा है। ठहाका
मारकर हँसना उनकी आदत थी। उनका मानना था कि मनुष्य को
स्वयं पर हँसना सीखना चाहिये। इससे कठिनाइयों पर विजय
पायी जा सकती है।
हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित और सर्वमान्य हस्ताक्षर
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य के गतिशील
परंमपरा में समीक्षा इतिहास निबन्ध उपन्यास कविता
के सृजन द्वारा नयी दिशा दी। १८ नवम्बर १९३० को
उन्होंने हिन्दी शिक्षक के रूप में शान्ति निकेतन में
कार्य आरम्भ किया और वह वहाँ १९५० तक रहे। १९५० में
वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में
प्रोफेसर और अध्यक्ष नियुक्त हुए। १९५७ में
राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किये गये। वह
अनेक संस्थानों से सम्बद्ध रहे। अन्तिम दिनों में वह
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष
रहे। उनका निधन १९ मई १९७९ को दिल्ली में हुआ।
पहली बार मैने उन्हें सन् १९७५ को उत्तर प्रदेश
हिन्दी संस्थान में सुना था। वहाँ ठाकुर प्रसाद सिंह
सहित नगर के अनेक विद्वान उपस्थित थे। हँसमुख स्वभाव
के हजारी प्रसाद जी बड़ी विनम्रता से मिले थे। आज वह
दुनिया में नहीं हैं पर उनकी अनेक रचनाएँ हमेशा उनका
स्मरण कराती रहेंगी। हजारी प्रसाद द्विवेदी की अनेकों
रचनाएँ उनके मरणोपरान्त प्रकाशित हुई और कुछ
अप्रकाशित हैं जिन्हें प्रकाशित किया जाना चाहिये।
मुझे यह जानकर बहुत हैरानी हुई थी कि राहुल सांकृतायन
जैसे महान लेखक की भी अनेक रचनाएँ अप्राप्य और
अप्रकाशित हैं।
द्विवेदीजी मनुष्य को सर्वोपरि मानते थे। उन्होंने
अपने निबन्ध ”मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य है” में
लिखा र्है ”समूचे जन समूह में भाषा और भाव की एकता
और सौहाद्र का होना अच्छा है। इसके लिए
तर्कशास्त्रियों की नहीं ऐसे सेवाभावी व्यक्तियों की
आवश्यकता है जो समस्त बाधाओं और विघ्नों को शिरसा
स्वीकार करके काम करने में जुट जाते हैं।”
हजारी प्रसाद द्विवेदी नयी पीढ़ी के लेखकों से सन्तुष्ट
हैं। वह लिखते हैं – ”मुझे इस बात की खुशी है कि नये
साहित्यकार मनुष्य के दुख के प्रति जागरुक है और इस
बात से व्याकुल है कि कहीं न कहीं कोई गल्ती अवश्य है
जो इसको दूर करने की हमारी सारी आकाक्षाओं के बावजूद
सारे प्रयत्नों को विफल बना रही है। बाधा मुख्य रूप से
हमारे सामाजिक संगठन में है और जिस व्यवस्था के ऊपर
इसको दूर करने की जिम्मेदारी है उस व्यवस्था के ढांचे
की संरचना मे है।”
हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। हिन्दी विश्व
की समृद्ध भाषा है जिसमें विश्व स्तर के साहित्कार
दिये हैं।
अनेक दिवंगत दिग्गज साहित्यकारों की रचनाएँ आज भी
हिन्दी पाठकों से वंचित हैं क्योंकि इनकी
बहुत सी रचनाएँ अप्रकाशित हैं तथा अनेकों रचनाएँ
अपने नये संस्करण की प्रतीक्षा कर रही हैं। इनके
प्रकाशन की दिशा में प्रयत्न किया जाना चाहिये। |