चित्र में-
सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर बाएँ से विश्वविद्यालय के
उपकुलपति भू इंद्रदत्त तिवारी, संसद सदस्य जगदंबी प्रसाद
यादव, त्रिनिडाड एवं टुबैगो के प्रधानमंत्री पैट्रिक मैनिंग,
प्रेम जनमेजय एवं डॉ. सिल्विया मूदी कुबलाल सिंह
वेस्ट इंडीज़
विश्वविद्यालय, हिंदी निधि और भारतीय उच्चायोग के तत्वावधान
में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में भाग लेने आए
सभी विद्वानों का मत था कि इस सम्मेलन से कैरेबियन क्षेत्र
में हिंदी के विकास को एक निश्चित दिशा मिलेगी।
उद्घाटन-सत्र - 17 मई
की शाम सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए त्रिनिडाड और टोबैगो के
प्रधानमंत्री पैट्रिक मैनिंग ने कहा कि उनकी सरकार आनेवाले
वर्षों में हिंदी भाषा की प्रगति की ओर विशेष ध्यान देगी।
उन्होंने कहा कि इस देश की जनसंख्या का बड़ा भाग भारतीय मूल
के निवासियों का है और त्रिनिडाड और टोबैगो में बोली जाने
वाली अन्य भाषाओं में हिंदी का अपना स्थान है। उन्होंने
चुटकी लेते हुए कहा कि हम राजनीतिज्ञ हिंदी शब्द नीमकहराम
(नमकहराम) का अक्सर प्रयोग करते ही हैं। अपने अंग्रेज़ी
उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने भौजी, दादी माँ, दोस्त आदि
शब्दों का प्रयोग करके अपने हिंदी प्रेम का परिचय दिया।
भारतीय प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष संसद सदस्य जगदंबी प्रसाद
यादव ने कहा, ''इस क्षेत्र के लोग भारतीय संवेदना से गहरे
रूप से जुड़े हुए हैं। हम आपके इस यज्ञ में अपना योगदान देने
आए हैं। आप लोगों ने तुलसी और कबीर जैसे संतों के माध्यम से
भारतीय संस्कृति की ज्योति को जलाए रखा है। आज ज़रूरत इस बात
की है कि हमें जो जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, वे सब हिंदी
के माध्यम से भी होनी चाहिए। हम भारत से आपके साथ सहयोग और
आपके प्रति प्रशंसा के भाव के साथ आए हैं।''
वेस्ट इंडिज विश्वविद्यालय
के उप कुलपति एवं सेंट अगस्टीन परिसर के प्रधानाचार्य भू
इंद्रदत्त तिवारी ने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए
कहा कि इस परिसर में अनेक भाषाओं के साथ-साथ हिंदी का अध्ययन
और अध्यापन होता है तथा विभिन्न भाषाओं के शिक्षण में सेंटर
फॉर लेंग्वेज लर्निंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि सम्मेलन से इस क्षेत्र में हिंदी
के लिए व्यूह रचना तैयार करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने
कहा कि लगभग सभी जगह भाषा अध्ययन के प्रति लोगों की रुचि कम
हो रही है। अतः हमें सभी भाषाओं के प्रति लोगों की रुचि
जाग्रत करनी है। इस देश में प्राथमिक एवं माध्यमिक
विद्यालयों में हिंदी का योजनाबद्ध शिक्षण आरंभ होगा तो
हिंदी अध्यापकों की माँग भी बढ़ेगी।
भारतीय उच्चायुक्त वीरेंद्र
गुप्ता ने देश विदेश से आए सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते
हुए कहा कि इस आयोजन में हमें सभी संस्थाओं के साथ-साथ
त्रिनिडाड और टोबैगो सरकार का अभूतपूर्व सहयोग मिला है और
प्रधानमंत्री की इस सम्मेलन में उपस्थिति इस बात का प्रमाण
है कि वर्तमान सरकार हिंदी के प्रचार प्रसार में अपने सहयोग
के लिए तत्पर हैं।
हिंदी के प्रति इस क्षेत्र
में अनन्य रुचि है तथा अपने मैंने अनेक कार्यक्रमों में देखा
है कि हिंदी को न समझते हुए भी सभी दर्शक उसका पूर्ण आनंद
उठाते हैं। हिंदी मात्र लोगों की अस्मिता का ही प्रतीक नहीं
है अपितु उससे आगे की बात है। हिंदी भाषा के प्रति लोगों की
रुचि को देखते हुए उच्चायोग ने कक्षाओं एवं केंद्रों की
संख्या बढ़ा दी है जहाँ केवल भारतीय मूल के ही नहीं, विभिन्न
समुदायों से आए लोग बहुत रुचि से हिंदी सीखते हैं। भारतीय
उच्चायुक्त ने इस क्षेत्र में हिंदी के प्रचार प्रसार में
जुड़ी हिंदी निधि जैसी संस्थाओं के साथ सनातन धर्म महासभा,
भारतीय विद्या भवन कबीर निधि, स्वाहा, आर्य प्रतिनिधि सभा,
हिंदू प्रचार केंद्र आदि का आभार व्यक्त किया तथा उच्चायोग
के संपूर्ण सहयोग का विश्वास दिलाया।
हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका
सीताराम ने प्रसन्नता व्यक्त की कि त्रिनिडाड में अब तक
आयोजित सभी हिंदी सम्मेलनों में हिंदी निधि की महत्वपूर्ण
भूमिका रही है। उन्होंने सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते
हुए कहा कि सम्मेलन का विषय अत्यंत ही विचारोत्तेजक और
अकादमिक है तथा विश्वास व्यक्त किया कि सम्मेलन के दौरान
विद्वान इस पर भरपूर चर्चा करेंगे। चंका सीताराम ने इच्छा
व्यक्त की कि सम्मेलन के बाद वेस्ट इंडीज़ विश्वविद्यालय ऐसा
पाठयक्रम तैयार कर पाएगा जिसमें अध्ययन के द्वारा इस क्षेत्र
को हिंदी के योग्यता प्राप्त अध्यापक मिल पाएँगे। हिंदी निधि
के प्रयास और सरकार के सहयोग से हम प्राथमिक और माध्यमिक
विद्यालयों में हिंदी के शिक्षण का कार्यक्रम प्रारंभ कर पाए
हैं।
इससे पूर्व सभी का स्वागत
करते हुए विश्वविद्यालय के मानविकी और शिक्षा संकाय के डीन
इयान रॉबर्टसन ने कहा कि हमारे संकाय का दायित्व बहुत गंभीर
और महत्वपूर्ण है। हमें उन दरवाज़ों को खोलना है जो हमारे
समाज के उन क्षेत्रों का परिचय कराएँ जिससे पता चले कि हम
कौन हैं और हमारे बनने में किन उपादानों का योगदान रहा है।
मुझे आशा है कि आपसी समझ और भाषाओं के प्रचार प्रसार में यह
सम्मेलन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
त्रिनिडाड और टुबैगो के
प्रसिद्ध सितार वादक मंगल पटेसर और तबला वादक डेक्स्टर
रघुननन की संगीतमय प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया।
महात्मा गांधी सांस्कृतिक सहयोग संस्थान के छात्रों द्वारा
प्रस्तुत नृत्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आकर्षण रहा।
कार्यक्रम के अध्यक्ष थे डॉ. सिल्विया मूदी कुबलाल सिंह और
डॉ. प्रेम जनमेजय।
इस अवसर पर त्रिनिडाड
टुबैगो के सैनेट की अध्यक्षा श्रीमती लिंडा बाबूलाल, सूचना
मंत्री डॉ. लैनी सेठ, राजदूत बी.के. अग्निहोत्री, भारतीय
प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों -- संसद सदस्य राजनाथ सूर्य,
विदेश मंत्रालय में सचिव, जे.सी. शर्मा, गोविंद मिश्र, हेमंत
दरबारी, विक्रम सिंह, उदय नारायण सिंह, एम.एल.गुप्ता,
उपमन्यु चटर्जी, सुनील कुमार श्रीवास्तव, वीरेंद्र कुमार
यादव के साथ-साथ देश विदेश से पधारे विद्वानों -- डॉ.
नरेंद्र कोहली, डॉ. कन्हैयालाल नंदन, प्रो. निर्मला जैन,
प्रो. सूरज भान, डॉ. कुमार महावीर, प्रो. हरिशंकर आदेश,
मारिया नैगेसी, डॉ. दिविक रमेश, डॉ. सूर्यबाला, प्रो. अशोक
चक्रधर, डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण, डॉ. रेशमी रामधनी, अनुराधा जोशी,
वसुदास, डॉ. पुष्पिता, तेजेंद्र शर्मा, अनिल शर्मा, डॉ.
मधुरिमा कोहली, गिरीश पंकज, डॉ. रवि प्रकाश आर्य, डॉ.
कृष्णदेयी रामप्रसाद, विनोद कुमार संदलेश, विष्णुदत्त सिंह,
ब्रिंसले समारूह कमला रामलखन, निजामुद्दीन कादिर -- ने अपनी
उपस्थिति से कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की। धन्यवाद ज्ञापन
बॉब गोपी ने प्रस्तुत किया।
अकादमिक
सत्र
16 मई को त्रिनिडाड और
टोबैगो की शिक्षा मंत्री माननीय हेजल मैनिंग ने पुस्तक
प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर भारत से विशेष रूप से
पधारे वाणी प्रकाशन के अरुण महेश्वरी तथा डायमंड पॉकेट बुक्स
के नरेंद्र कुमार वर्मा की उपस्थिति ने कार्यक्रम को सार्थक
स्वरूप प्रदान किया।
श्रीमती हेजल मैनिंग ने कहा
कि हिंदी विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोले जानी वाली भाषा है और
उसे अवश्य सीखना चाहिए। इस क्षेत्र में हिंदी गाने बहुत
प्रचलित है तथा उन्हें समझने के लिए भी इस भाषा को सीखना
आवश्यक है। तुलसीदास और कबीरदास के साहित्य ने इस क्षेत्र
में हिंदी भाषा को जीवित रखा है। हिंदी - प्रकाशकों की ओर से
नरेंद्र कुमार वर्मा ने कहा कि भाषा हमारी सभ्यता और
संस्कृति की विरासत होती है। हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने
के लिए लता मंगेशकर मुहम्मद रफी, हिंदी सिनेमा और अमिताभ
बच्चन को हमें धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि हिंदी को जीवित
रखने और उसे जनमानस की भाषा बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान
है।
विषय
प्रवर्तन
अकादमिक सत्र के आरंभ मे
अकादमिक समिति के अध्यक्ष डॉ. प्रेम जनमेजय ने विषय प्रवर्तन
करते हुए कहा, ''त्रिनिडाड में एक हिंदी अध्यापक के रूप में
मैंने सदा स्वयं को गौरवान्वित ही अनुभव किया है। भारत में
हिंदी के प्रति उदासीनता, हेयता, हीन भावना आदि के जो भाव
मिलते हैं वे त्रिनिडाड में नहीं हैं। यहाँ सरल हिंदी और
क्लिष्ट हिंदी का कोई सवाल नहीं उठाता है अपितु शुद्ध हिंदी
बोलने वाला प्रशंसा की दृष्टि से देखा जाता है। अधिकांश
कैरेबियन देशों में हिंदी का व्यावहारिक पक्ष ही सामान्यतया
देखने को मिलता है। यहाँ हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है
अपितु अपनी अस्मिता की पहचान है, अपनी जड़ों से जुड़ने की
लालसा है। हिंदी भाषा के प्रति अनन्य भूख हैं त्रिनिडाड और
टोबैगो में, महासभा के अनेक विद्यालयों, भारतीय विद्या भवन,
स्वाहा, हिंदी निधि, आर्य प्रतिनिधि सभा, भारतीय उच्चायोग,
महात्मा गांधी सांस्कृतिक संस्थान, गांधी सेवा संघ, सौ से
अधिक मंदिरों आदि में हिंदी की कक्षाओं के आयोजन के अतिरिक्त
वेस्ट इंडीज़ विश्वविद्यालय के लिबरल आर्टस विभाग और सेंटर
ऑफ़ लेंग्वेज लर्निंग में हिंदी भाषा का नियमित शिक्षण इस
अनन्य भूख का ही परिणाम है। इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति,
संगीत आदि के प्रति विशेष लगाव भी हिंदी के प्रचार-प्रसार
में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हिंदी फ़िल्मी गीतों,
भजनों, ग़ज़लों आदि को बिना अर्थ समझे तन्मयता से गाने वाले
अधिकांश गायकों के चेहरे से आप पढ़ नहीं पाएँगे कि वह इसके
अर्थ को नहीं जानते। पाँच एफ. एम. स्टेशनों से गूँजने वाले
हिंदी गीत हर हिंदी जानने वाले विदेशी को भ्रमित कर देते हैं
कि त्रिनिडाड वासी हिंदी समझते हैं और बोलते हैं।
त्रिनिडाड
में त्रिदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का सफल
आयोजन(2)
इस क्षेत्र में हिंदी के
प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका
तुलसी साहित्य ने निभाई हैं। तुलसी के रामचरितमानस को
कैरेबियन देशों में हिंदी की निरंतर प्रज्वलित मशाल कहें तो
अत्युक्ति न होगी। हिंदी के प्रति भूख के कारण हिंदी
अध्यापकों की पर्याप्त माँग हैं। परंतु यह माँग
हिंदी-अध्यापन को दिशाहीन भी कर रही है। मात्र दो-तीन वर्ष
तक हिंदी का अध्ययन करने वाला विद्यार्थी हिंदी का अध्यापक
बन जाता है और बिना किसी उचित प्रशिक्षण के पढ़ाना आरंभ कर
देता है। अधिकांश हिंदी अध्यापक बिना किसी नियमित पाठयक्रम
तथा पाठ्य पुस्तक के पढ़ा रहे हैं। उच्चारण पर ध्यान नहीं
दिया जाता है। अतः इस क्षेत्र के हिंदी अध्यापकों के लिए
समुचित प्रशिक्षण के साथ-साथ नियमित पाठयक्रम की अत्यधिक
आवश्यकता है।
इस क्षेत्र में पिछले
पंद्रह वर्षों से हिंदी का आरंभिक स्तर पर पठन पाठन चल रहा
है। यहाँ तक कि विश्वविद्यालय में भी हिंदी का प्रारंभिक
स्तर पर ही शिक्षण चल रहा है। यही कारण है कि अधिकांश शिक्षण
केंद्रों से हिंदी की आरंभिक नि:शुल्क शिक्षा की सुविधा
उपलब्ध होने के कारण विश्वविद्यालय में हिंदी के छात्र नहीं
हैं। तुलसी और कबीर के इस देश में विश्वविद्यालय को हिंदी
साहित्य का पाठयक्रम आरंभ करने तथा उच्च शिक्षा की दिशा में
कदम उठाने के लिए सोचना होगा। विश्वविद्यालय को इसे स्नातक
पाठयक्रम का हिस्सा बनाना होगा। इस क्षेत्र में हिंदी की भूख
को रचनात्मक दिशा देनी होगी।
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