डा
.सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने
हिंदी के अपार विस्तार और सफल प्रचार
को लेकर विश्व परिधि में हिंदी की
उत्तरोत्तर प्रगति और विकास पर प्रसन्नता
व्यक्त करते हुए कहा कि अभिभावकों को
चाहिए कि वे अपने बच्चों की पसंद की
हिंदी पत्रिकायें लेकर दें। हिंदी में
बच्चों के लिए खेलकूद, ज्ञान
विज्ञान, कामिक, मनोरंजन और
धार्मिक साहित्य उपलब्ध हैं। शरद
आलोक ने नार्वे में हिंदी पत्रकारिता पर
प्रकाश डालते हुए कहा कि 1979 में नार्वे
से जब पहली हिंदी पत्रिका 'परिचय' का
प्रकाशन आरंभ हुआ तो वह हस्तलिखित
होती थी, यह सिलसिला 1982 तक चलता
रहा। 1982 के अंत में 'परिचय' टाइपराइटर
की मदद से लिखी जाने लगी। नार्वे
और बहुत से देशों में विपरीत
वातावरण में भी जिस तरह
हिंदीसेवियों ने हिंदी पत्रकारिता को
जीवित रखा और अपना तनमनधन
लगाया वह पत्रकारिता के इतिहास में
स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य
है।
'स्पाइलदर्पण'
पत्रिका का प्रकाशन 1988 में आरंभ हुआ
और वह आज भी छप रही है जिसमें
यूरोप में रहने वाले सर्वाधिक
प्रवासी लेखकों की प्रथम रचना
प्रकाशित की और जो एक मंच बन गया।
नार्वे से अनेक हिंदी पत्रिकायें निकली
परंतु दीर्घायु नहीं हो सकीं जिनमें
'सनातन मंच', 'पहचान', 'त्रिवेणी',
'हिंदी लेखन', 'भारत समाचार' का
नाम लिया जा सकता है। शरद आलोक
ने बताया कि वह उपरोक्त सभी पत्रिकाओं
से जुडे़ रहे। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड
में हिंदी पत्रकारिता में सबसे अहम
योगदान जगदीश मित्र कौशल द्वारा 35
वर्षों से संपादित साप्ताहिक 'अमरदीप'
और बी .बी .सी .हिंदी रेडियो का है।
कार्यक्रम
में ओमवीर उपाध्याय ने हिंदी के
आरंभिक इतिहास पर लेख पढ़ा। अन्य भाग
लेने वालो में जिन्होनें कवितायें
पढ़ी और विचार और नृत्य प्रस्तुत किए
उनमें रश्मी क्षत्री, दिव्या जैन,
शिवानी, अंजेलीना, अमीषा, अमित
जोशी, सोनिया कल्ला, अमीषा, कृति,
राज पाठक, पाल आउसलान्द होफते,
आयुष, अदिति, ऊला अनुपम, माया
भारती आदि थे। हिंदी दिवस का सफल
संचालन किया डा .मीना ग्रोवर ने।
समाचार:
माया भारती और चित्र: जितेंद्र कुमार
24 मार्च 2006
|