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साहित्य समाचार

यॉर्क विश्वविद्यालय में हिन्दी कथागोष्ठी

भारतीय भाषा संगम ने एक नई शुरूआत करते हुए कथा (यू .के .) के महासचिव और जाने माने कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा को यार्क विश्वविद्यालय में आमंत्रित कर एक कथागोष्ठी और कहानी कार्यशाला का मिलाजुला कार्यक्रम आयोजित किया।  

कार्यक्रम की शुरूआत में भारतीय भाषा संगम के अध्यक्ष एवं यॉर्क विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा- महेन्द्र वर्मा ने उपस्थित श्रोताओं को सूचना दी कि भारतीय भाषा संगम की स्थापना सन् 1973 मे की गई थी।

चित्र में : बैठे हुए बाएं सेः गैबरियल, इमा, एमी, रशेल और सरोज 
खड़े हुए बाएं सेः डा महेन्द्र वर्मा, चित्रा कुमार, उषा वर्मा, नैना शर्मा, तेजेन्द्र शर्मा, डा कृष्ण कुमार और संकल्प

उस समय इस का नाम रखा गया था हिन्दी परिषद। इस प्रकार इस संस्था को युनाइटेड किंगडम में हिन्दी की गतिविधियों से जुड़े हुए तीस वर्ष पूरे हो चुके हैं। हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1999 में अन्य हिन्दी संस्थाओं के साथ मिल कर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया। जुलाई 2001 में अमरीका की प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती सुषम बेदी के कहानी अवसान पर आधारित एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था।

तेजेन्द्र शर्मा का परिचय देते हुए डा- महेन्द्र वर्मा ने बताया कि तेजेन्द्र शर्मा के चार कहानी संग्रह काला सागर, ढिबरी टाईट, देह की कीमत एवं हाल ही में प्रकाशित यह क्या हो गया! प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें भारत में समय समय पर कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। दूरदर्शन के लिए शांति सीरियल का लेखन उनकी एक और उपलब्धि है। आपकी कहानियों का अंग्रेजी सहित कई अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। तेजेन्द्र की कहानियों में लगता है एक अनुभवी व्यक्ति अपने ईद­गिर्द के जीवन को जी कर तथा औरों की जिन्दगी को परख कर एक बड़े जीवट का कथा वाचक बन कर हमारे सामने उभरता है। उनकी कहानियों में आध्यात्मिक, बौद्धिक, भौतिक एवं व्यावहारिक गुत्थियों का परिचय पात्रों द्वारा पाठकों तक बड़ी ख़ूबी से पहुंचाया जाता है। आप ने इन कहानियों में सभी अनुभूतियों के स्पर्श करते हुए एक मौलिक रचनात्मकता का बख़ूबी निर्वाह किया है। इनमें शिल्प की एक विशेष बारीकी नजर आती है। पंजाबी और हिन्दी मातृभाषी होने के कारण तेजेन्द्र का भाषा पर एक विशिष्ट अधिकार है। आप एक सफल कवि भी हैं। तेजेन्द्र शर्मा कथा (यू .के .) के महासचिव भी हैं जो कि अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान कार्यक्रमों का आयोजन करती है।

तेजेन्द्र शर्मा की कहानी और उनके सुनाने के अन्दाज ने श्रोतओं को मंत्रमुग्ध सा कर दिया। कहानी सुनने के बाद अधिकतर श्रोता अभिभूत से दिखे। वहीं बहुत से श्रोताओं एवं विद्यार्थियों ने कुछ तीखे प्रश्न भी पूछे। प्रश्न कहानी के विषय में भी थे और कहानी विधा पर भी। तेजेन्द्र शर्मा ने अपने उतरों में कहा कि हम कहानी में जल्दी से लेखक को ढूंढना शुरू कर देते हैं। घटना और कहानी में बहुत अंतर होता है। पुलिस में लिखवाई गई एफ़-आई-आर- भी एक तरह की कहानी है। लेकिन जब लेखक किसी घटना में अपना उद्देश्य एवं कल्पना के रंग भरता है तभी एक घटना कहानी बनती है। ई-एम-फ़ार्स्टर और टी-एस-ईलियट के माध्यम से भी तेजेन्द्र ने अपनी बात को स्पष्ट किया। तेजेन्द्र शर्मा ने हर कहानीकार को सलाह दी कि वह डा- गौतम सचदेव की कहानी पर लिखी पुस्तक प्रेमचंद ­ कहानी शिल्प अवश्य पढ़े। कहानी क्या है, इस पुस्तक से बख़ूबी पता चलता है। तेजेन्द्र शर्मा ने शिल्प, शीर्षक, चरित्रों, सच्ची घटना, संवेदना, कहानी का चर्म बिन्दु, कहानी की अब तक की यात्रा, बाह्य कहानी और भीतरी कहानी, बिम्बों और प्रतीकों के इस्तेमाल पर अपने विचार श्रोताओं के सामने रखे।

गीतांजलि बहुभाषी समाज, बरमिंघम के डा- कृष्ण कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा, "अपराध बोध का प्रेत कहानी विधा के सभी मानदंडों पर खरी उतरती है। कहानी का विषय, भाषा, शैली, कल्पनाशीलता, सभी में तेजेन्द्र सफल रहे हैं। नरेन का अपराध बोध हम महसूस कर सकते हैं।"

अंत में भारतीय भाषा संगम की उषा वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। गोष्ठी में अन्य लोगों के अतिरिक्त बरमिंघम से डा- कृष्ण कुमार, चि त्रा कुमार, स्वर्ण तलवार, रमा जोशी, एवं चंचल जैन, विद्यार्थियों में एमा, रेचल, एमी, मुदित एवं रमेश, लंदन से कथा (यू . के .) की उपाध्यक्षा नैना शर्मा, सरोज शर्मा, एवं दामिनी शाह, लीड्स से उषा सतवंत, साथ ही मीरा प्रसाद, मंजुला प्रसाद, उपेन्द्र, गीतिका, दिव्या, डा- राजेन्द्र प्रसाद एवं डा- अर्जुन प्रसाद उपस्थित थे।

— नैना शर्मा

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