यूके में विराट कवि सम्मेलन
गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी यूके की प्रमुख हिंदी सेवी संस्था यूके हिंदी समिति लंदन ने अपनी सहयोगी संस्थानों 'गीतांजलि बहुभाषीय समुदाय' बरमिंघम ' हिंदी
भाषा समिति' मैनचेस्टर तथा 'भारतीय भाषा संगम' यॉर्क के साथ हिंदी दिवस के उपलक्ष में समारोहों का आयोजन किया।
23 अगस्त से 26 अगस्त 2002 तक आयोजित इन हिंदी के कार्यक्रमों में कवि सम्मेलन पर्व हिंदी सेवियों का सम्मान जैसे कार्यक्रम शामिल थे। यूके के विभिन्न
नगरों के कवियों एवं साहित्यकरों के अतिरिक्त, हास्य रस की श्रीमती सरोजनी प्रीतम एवं श्री सुनील जोगी, वीर रस के कवि श्री राजेश चेतन, श्री गजेन्द्र सोलंकी, सुश्री
सुमन दुबे एवं श्रीमती मधु चतुर्वेदी ने इन आयोजनों में अपनी उपस्थिति से भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व किया।
इस वर्ष यूके हिन्दी समिति की ओर से ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री रॉनिन सेन ने डॉ गौतम सचदेव को ' हिंदी सेवा सम्मान' एवं श्री रवि शर्मा को 'संस्कृति सेवा
सम्मान' से अलंकृत किया तथा भारतीय उच्चायोग के हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी श्री अनिल शर्मा की प्रशस्ति कर उनका सम्मान किया। यह सम्मान कैनरा बैंक
लंदन के सौजन्य से दिए गए।
लंदन में समारोह 23 अगस्त 2002 को कैमकस क्लीनिक के सौजन्य से यूके हिंदी समिति के बैनर तले लंदन के भारतीय विद्याभवन के श्रोताओं से खचाखच भरे
सभागार में आयोजित किया गया। लंदन के विराट कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री रॉनिन सेन एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता की
बीबीसी हिंदी सेवा के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने।
उषा राजे ने कवियों को मंच पर विधिपूर्वक आमंत्रित किया। भारतीयता का उद्घोष करती हुई राजस्थानी परिधान में नन्हीं बालिकाओं ने तिलक लगा कर अतिथियों
का स्वागत किया। श्रीमती दिव्या माथुर ने कवियों के स्वागत में एक रचना प्रस्तुत की। भारतीय विद्या भवन के संस्थापक श्री मधुर कृष्णमूर्ति ने दीप प्रज्वलित
किया तथा डॉ सुमन दूबे ने वंदना कर माँ सरस्वती आह्वाहन किया।
यूके हिंदी समिति के अध्यक्ष श्री पद्मेश गुप्त ने घोषणा की कि प्रकाशन के लिए इस वर्ष बाथ के युवा कवि श्री मोहन राणा की पाँडुलिपि का चयन किया गया है
तथा उनके कविता संग्रह 'इस छोर से' का प्रकाशन भारत का वाणी प्रकाशन करेगा।
कवि सम्मेलन के संचालक सुनील जोगी ने जहाँ श्रोताओं को पूरे चार घण्टे तक अपने हास्य से बाँधे रखा वहीं राजेश चेतन की आतंकवाद पर कविता के उपरान्त
तालियों की तुमुलनाद में भारत माता की जय के नारे से परिसर
गूँज उठा। सुमन दूबे के गीत एवं गजेन्द्र सोलंकी की रचना 'जाग भारत जाग रे' एवं हिंदी वंदना ने
कार्यक्रम में धूम मचा दी। जहाँ एक ओर सरोजनी प्रीतम की हँसिकाएं श्रोताओं को हँसाती रहीं वहीं दूसरी ओर अनिल शर्मा के बाल मजदूर पर मार्मिक गीत से
महिलाओं की आँखें भर आईं। नार्वे से पधारे सुरेश शुक्ल, यूके की श्रीमती उषा राजे सक्सेना, डॉ गौतम सचदेव, सोहन राही, श्री अरूण अस्थाना, श्री तेजेन्द्र
शर्मा, श्री दिवाकर सुकुल, श्रीमती शैल अग्रवाल, श्रीमती स्नेहलता वर्मा ने कवितापाठ किया जिसे श्रोताओं ने पूरे मन से सुना और सराहा।
कार्यक्रम में लंदन से प्रकाशित होने वाली 'पुरवाई' पत्रिका के पाँच वर्ष पूरे होने पर सुरेश शुक्ल एवं राजेश चेतन जी ने 'पुरवाई' के संपादक श्री पद्मेश गुप्त के
सम्मान में रचनायें पढ़ीं। श्रीमती युट्टा आस्टिन, कल्पना अग्रवाल एवं दीप्ति शर्मा ने सम्मानित साहित्यकारों के सम्मान में अभिनंदन पत्र प्रस्तुत किया।
लंदन के कार्यक्रम में केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ सत्येन्द्र श्रीवास्तव, बीबीसी हिंदी सेवा की अध्यक्षा श्रीमती अचला शर्मा एवं परवेज जी,
बीबीसी उर्दु सेवा के श्री यावर अब्बास, श्रीमती रमा पांडे, कैनरा बँक के श्री सुशील गुप्त, श्री चमन लाल चमन, श्री नरेश भारती, श्रीमती वीरेन्द्र संधु, श्री
पीसीनारंग, श्री राजेन्द्र चोपड़ा, श्री ऋषि अग्रवाल, श्री रमेश मुरादाबादी, श्रीमती नैना शर्मा, डॉ केकेश्रीवास्तव, श्रीमती कृष्णा पांडे, श्री एवं श्रीमती सर्वेश सांग, श्री
मयूर, सुश्री तितिक्षा शाह, श्रीमती अनुराधा शर्मा, श्री वेद मोहला, श्री मेसी जी जैसे अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
उक्त सभी आयोजनों की पृष्ठभूमि चार संस्थानों ने मिल कर एक साथ की थी जिसके संयोजक श्री पद्मेश गुप्त, अध्यक्ष यूके हिंदी समिति के व्यक्तिगत प्रयासों और
संबंधों के आधार पर भारत के कवियों की उपस्थिति हो सकी। लंदन के श्री केबीएलसक्सेना, सुश्री मीनू कत्यार, यार्क के श्री महेन्द्र वर्मा एवं उषा वर्मा, मैनचेस्टर
के श्री अंजनी कुमार एवं श्यामा कुमार तथा बर्मिंघम के श्री कृष्ण कुमार एवं चित्रा कुमार वे नाम हैं जिन्होंने यूके की इन साहित्यिक संस्थानों के द्वारा सब भारतीय
भाषाओं को जोड़ रखा है तथा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तार पर अधिष्ठित कराने की दिशा में व्यापक एवं सार्थक प्रयास भी कर रही हैं। हिंदी की इस निष्ठा से उसका
भविष्य निश्चित रूप से स्वर्णिम दिखाई पड़ता है।
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