वेबदुनिया के साहित्य चैनल
का लोकार्पण
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इंदौर। वेबदुनिया डॉट कॉम के साहित्य चैनल के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित सभा में इंटरनेट और पत्रकारिता विषय पर कई जरूरी सवाल वक्ताओं ने
उठाए। लोकार्पण किया प्रख्यात आलोचक, वागर्थ पत्रिका के संपादक और भारतीय भाषा के निदेशक डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय ने। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में
कहा कि आज की चुनौतियों का सामना आधुनिक साधनों से ही करना होगा। |
फोटोःवेब
दुनिया के साहित्य चैनल के लोकार्पण के अवसर पर बाएं से
दाएं
प्रभु जोशी, रवीन्द्र शाह, अभिज्ञात, डा प्रभाकर
श्रोत्रिय एवं किशोर भुराड़िया |
इंटरनेट सबसे आधुनिक साधन है, इसलिए इसकी संभावनाओं पर गंभीरता से विचार की
आवश्यकता है। हमें अपने अस्तित्व को जीवित रखने की लड़ाई भाषा के माध्यम से लड़नी है। इंटरनेट पर भाषा को जीवित रखने, ज्ञान के विभिन्न पक्षों एवं अच्छे
साहित्य को आम पाठकों तक पहुंचाने का कार्य पानी को ऊपर चढ़ाने जैसा संघर्ष है, जो वेबदुनिया के माध्यम से हो रहा है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि
भाषाओं की प्रगति का प्रयास नहीं होगा तो भाषाओं का बोलियों में परिवर्तन हो जाएगा, यह एक वैश्विक समस्या है।
उन्होंने कहा कि हमें देखना यह होगा कि इंटरनेट पर भाषाई
सामराज्यवाद के खतरे से किस प्रकार बचा जाए। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर काफी कचरा भरा है,
और साहित्य में भी। उसमें से श्रेष्ठ सामग्री का चयन निश्चय ही कठिन कार्य है। इस साहित्य चैनल में सही सामग्री के चयन का विवेक दिखाई देता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुपरिचित कथाकार व चित्रकार प्रभु जोशी ने कहा कि समाजशास्त्र और दर्शन के बीच तकनीक अपना स्थान बनाती है। कोई भी
तकनीक समाज, शास्त्र और परंपरा तीनों के बीच पल्लवित होती है। इन तीनों से हटकर वह जीवित नहीं रह सकती। इंटरनेट पर अच्छा व बुरा, दोनों की आसानी
से उपलब्ध है, इसलिए इससे कई प्रकार के संकट खड़े हो गए है, जिनसे हमें जूझना होगा और समस्याओं का हल खोजना होगा। सबसे बड़ा संकट बच्चों के मामले
में हैं। इंटरनेट के माध्यम से बच्चों तक पहुंच रहा है, जो उन तक नहीं पहुंचना चाहिए। इंटरनेट पर किसी प्रकार की सेंसर संहिता लागू नहीं है। अश्लील सामग्री
के खिलाफ रोक लगाने के लिए अमेरिका के कोर्ट में अपील की गई, मगर वह यह ठुकरा दी गई। विभिन्न देशों की संस्कृति के हिसाब से इस पर अंकुश नहीं लगाया
जा सकता।
दूसरी ओर इसने दूरियां मिटाने का उल्लेखनीय कार्य किया है। मेरा बेटा विदेश में हैं पर वह वेबदुनिया पर इंदौर की खबरें पढ़कर महसूस करता है कि वह अपने
शहर में ही है। विसंगति की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि
यूरोप ने अपनी तकनीक को भाषा की सुविधानुसार विकसित किया है, जबकि हम तकनीक के
अनुसार अपनी भाषा को ढाल रहे हैं। कला और कलाकार के संदर्भ में श्रोताओं के एक प्रश्न का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कला वह नरभक्षी मादा है, जो
अपने ही जने को खा जाती है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार सत्ता और सत्य के संबंधों की विवेचना
करता है। धृतराष्ट्र सत्ता है और संजय सत्य। सत्य बिकता नहीं है। सत्ता बिकती है, इसलिए विश्व में सदैव अंधों का राज होता है, सत्य का नहीं।
वेबदुनिया के प्रधान संपादक रवींद्र शाह ने कहा कि इंटरनेट, खासतौर पर
हिन्दी में अभी आरंभिक प्रयोग की अवस्था से गुजर रहा है। इसके मीडिया का स्वरूप क्या हो इसके निर्धारण और मानक तैयार करने की दिशा में वेबदुनिया लगातार
प्रयासरत है, और वेबदुनिया ने ज्ञान, सूचना और संस्कृति आदि की विभिन्न शाखाओं की सामग्री देने का क्रम जारी रखा है। साहित्य चैनल भी इसी प्रयास की एक
कड़ी है। यह चैनल उन लोगों का मंच हैं, जो सबसे अधिक संवादशील और भाषा व मीडिया के प्रति सर्वाधिक चिन्तित और चौकन्ना रहता है। इससे इंटरनेट
मीडिया निश्चय ही लाभान्वित होगा। उन्होंने कहा कि इंटरनेट ने ज्ञान का सही माने में लोकतंत्रीकरण कर सूचना के एकाधिपत्य को समाप्त किया है। अब किसी
विशालकाय पुस्तकालय और संदर्भग्रंथों की आवश्यकता उतनी नहीं रह जाएगी, जितनी पहले थी। वह किसी एक विषय पर अनेक आलेख पलक झपकते ही सर्च
इंजन की सहायता से ढूंढ कर हाजिर कर देगा। दूसरे उस तरह की सेंसरशिप यहां नहीं है, जो अन्य माध्यमों में हैं, इसलिए विषय वस्तु के चयन की पूरी आजादी
और जिम्मेदारी भी नेट के उपयोगकर्ता को है।
उन्होंने कहा कि साहित्यिक पुस्तकों की प्रतियों की संख्या सीमित रहती है। वेबदुनिया के इस चैनल के माध्यम से
सुदूर देशों में रह रहे लोगों तक भी अच्छा साहित्य पहुंच रहा है। फिलहाल लगभग 30 पत्रिकाएं वेबदुनिया साहित्य चैनल पर उपलब्ध हैं। वेबदुनिया के प्रबंध
संपादक किशोर भुराड़िया ने कहा कि स्थानीय भाषा के अस्तित्व के संकट की आशंका निराधार है। भूमंडीकरण की आवश्यकताओं के मद्देनजर स्थानीय भाषा की
शक्ति को महसूस किया जा रहा है। अपने उत्पादों का बाज़ार चाहने वालों को अपने उपभोक्ता की भाषा का सहारा लेने की आवश्यकता महसूस हो रही है। उन्होंने
कहा कि किसी समय अंग्रेजी भाषा के साम्राज्यवाद का खतरा स्थानीय भाषाओं पर महसूस किया जा रहा था, अब उससे निजात मिलती दिखाई दे रही है। यह
अनुभव ने सीख दी है उपभोक्ता को अपनी भाषा सिखाकर अपने उत्पाद में दिलचस्पी पैदा करने की तुलना में उपभोक्ता की अपनी भाषा में उत्पाद की पैठ बनाई
जाए। वेबदुनिया को विश्व की बड़ी कंपनियों से भारतीय भाषाओं के संदर्भ में सहयोगिता के प्रस्ताव मिल रहे हैं, जो इसी आवश्यकता का
परिणाम है।
श्री भुराड़िया ने आशा व्यक्त की स्थानीय भाषाओं के मीडिया में विस्तार आने जा रहा है। उन्होंने कहा कि जल्द ही इंटरनेट माध्यम लोगों के घरों में प्रवेश करने की
तैयारी कर रहा है। वह इंटरनेट की टेलिफोन पर निर्भरता खत्म होने जा रही है वह केबल के माध्यम से टीवी की तरह सबको सहज सुलभ होने जा रहा है।
किशोर भुराड़िया ने कहा कि हमेशा उच्च तकनीक का उदय हिंसक प्रवृत्तियों के कारण हुआ है, पर उस तकनीक का इस्तेमाल मानवता के विकास में किया गया
है। इंटरनेट भी इसका अपवाद नहीं है। श्री भुराड़िया ने इस अवसर पर साहित्य चैनल के चयनीत वेबपृष्ठों की मुद्रित प्रति डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय को भेंट की, तथा
सभी के प्रति वेबदुनिया की ओर से आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन साहित्य चैनल के प्रभारी अभिज्ञात ने किया। अभिज्ञात ने कहा कि इंटरनेट पर
साहित्य को गंभीरता से स्थान दिया जा रहा है। हमें विश्वास है कि नेट पर लोग केवल हल्की फुल्की चीजों के लिए ही नहीं आते हैं। इस माध्यम को केवल
मनोरंजन चाहने वालों के हवाले नहीं किया जा सकता। कार्यक्रम में कई प्रमुख साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।
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