इंदिरा गोस्वामी को
भारतीय ज्ञानपीठ पुस्कार
मामोनी रायसम गोस्वामी नाम से लोकप्रिय
असमिया की अग्रणी लेखिका
इंदिरा गोस्वामी को वर्ष 2000 के ज्ञानपीठ पुरस्कार
से सम्मानित किया गया है। इस
पुरस्कार में एक प्रशस्तिपत्र, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और पांच लाख
रूपये की नकद धनराशि प्रदान की जाती है।
वीरेंद्रकुमार भट्टाचार्य (1979) के बाद इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से अलंकृत होने वाली वे असमिया भाषा की दूसरी साहित्यकार हैं। गुवाहाटी के निकट जन्मी इंदिरा
गोस्वामी फिलहाल दिल्ली विश्व विद्यालय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के विभाग में प्रोफेसर हैं।
' जिंदगी कोई सौदा नहीं '(असमिया नाम अधलिखा दस्तावेज) शीर्षक से हिंदी में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में लेखिका ने अपने जीवन के बारे में (1970 तक) अत्यंत
पारदर्शी वर्णन किया है।
इससे पहले उन्होंने सन् 1972 में 'चेनाबेर स्त्रोत' (चिनाव की धार) नामक
सशक्त उपन्यास लिखा। कुछ वर्षों पूर्व डॉ सांत्वना बारडोली की फिल्म
'अदज्य' ने जब कई राष्ट्रीय और आंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते तो इंदिरा गोस्वामी के नाम को देश
विदेश में जाना जाने लगा। यह फिल्म उनकी एक कहानी पर आधारित थी।
इंदिरा गोस्वामी मानवीय यातना और शोषण की पृष्ठभूमि में अद्भुत कथाएं बुनती हैं। कथा तथा उपन्यास साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने
'रामायण फ्रॉम गंगा टु ब्रहृमपुत्र' (1996) जैसे ग्रंथ पर भी काम किया है।
सन् 1988 में उन्हें असम साहित्य सभा अवार्ड तथा 1993 में कथा अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। सन्
1999 में अमेरिका के फ्लोरिडा इंटरनेशनल विश्वविद्यालय से तुलसीदास और उनके कार्य पर अंतरराष्ट्रीय तुलसी सम्मान प्रदान किया गया। इससे पहले सन् 1982
में इंदिरा गोस्वामी को उनके उपन्यास 'मामरे धरा तरोवल अरू दुखन' के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
अपने 45 वर्ष के साहित्यिक जीवन में
उन्होंने 25 उपन्यास और 600 से अधिक कहानियों की रचना की है।
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विजय तेंडुलकर को
चूड़ामणि पुरस्कार
बहुआयामी प्रतिभा के धनी लेखक विजय तेंदुलकर को इस वर्ष का प्रतिष्ठित कथा चूडामणि पुरस्कार प्रदान किया जायेगा। यह पुरस्कार उन्हें भारतीय साहित्य में
उनके बहुमूल्य योगदान के लिए दिया जा रहा है।
श्री तेंदुलकर को यह पुरस्कार तीन सितम्बर को राजधानी में एक समारोह के दौरान प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी प्रदान करेंगी। इस पुरस्कार के तहत प्रशस्ति
पत्र, 51000 रूपए नकद और लेखक की कृतियों का अंग्रेजी अनुवाद दिया जाता है। पुरस्कार समारोह में भी तेंदुलकर के नाटक 'सखाराम बापंडर' का मंचन भी
किया जाएगा।
तिहत्तर वर्षीय तेंदुलकर ने चार वर्ष की अवस्था में अपने पिता की सहायता से लेखन और रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। उनके पिता शौकिया लेखक, मंच
निर्देशक और अभिनेता थे। अपने लंबे कॅरियर में भी तेंदुलकर ने किताब की दुकान में काम किया, प्रिंटिंग प्रेस में प्रूफ पढ़े, और बाद में नवभारत, मराठा, और
लोकसेवा में पत्रकार के तौर पर कार्य किया। वह साहित्यिक पत्रिकाओं दीपावली और वसुधा के संपादक भी रहे। उनकी पहली लघु कथा 'आमच्यावर कोण प्रेम
करणार' वर्ष 1947 में प्रकाशित हुई। इसके बाद तेंदुलकर ने खुद को नाटककार के रूप में विकसित किया। आज 25 नाटक, 25 एकांकीका और 16 बाल
नाटक उनके हिस्से में आ चुके हैं। उनके कुछ चर्चित नाटकों में घासीराम कोतवाल,
सखाराम बाइंडर, कन्यादान, बेबी कमला और पंछी ऐसे होते हैं शामिल हैं।
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