दिल
विल प्यार व्यार एक हलकी फुलकी प्रेमकहानी हैं। नम्रता
शिरोडकर और आर माधवन, संजय सूरी और सोनाली कुलकर्णी,
जिम्मी शेरगील और रिशिता भट, राकेश बापट और भावना पनी,
इन चार जोड़ियों की प्यार भरी दास्तान में जवानी के प्यार को
संगीत और रंगोंसे सजाया गया है। प्रसिद्ध संगीतकार
आरडीबर्मन को श्रद्धांजलि के रूप में उनके स्वरबद्ध किये हुये
चौदह गाने इस फिल्म में दुबारा फिल्माये गयें हैं।
अनन्त महादेवन पर्दे के आगे और पीछे
के जाने माने कलाकार हैं। उन्होंने इस फिल्म में सुरभरे
संगीत से सपने, आशा और प्यार की तीन कहानियों को खूबसूरती
से सजाया है। यह तीनों
कहानियां किसी भी मुश्किल के बिना निर्णायक दौर में पहुंच
जाती हैं। संगीत के आधार पर दिग्दर्शक ने इन कहानियों को
जोड़ रखा है।
माधवन और नम्रता नये नये
शादीशुदा दम्पत्ति हैं। परन्तु उनकी हंसती खेलती जिन्दगी में
जल्दी ही दोनों के आत्मसम्मान से टकराव शुरू हो जाता है।
नम्रता एक प्रसिद्ध गायिका हैं जहां माधवन अभी भी प्रसिद्धि पाने की
कोशिश में हैं। इसी आत्मसम्मान के कारण दोनों अलग हो
जाते हैं।
अच्छा पैसेवाला जिम्मी गोवा की एक
गरीब लड़की रिषिता के प्यार में फंस जाता है। उसे जिम्मी के
पैसों से कोई लेना देना नहीं है और वह चाहती है कि जिम्मी
खुद की मेहनत पर आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनने के बाद उसका हाथ
थामे।
संजय एक संगीत कंपनी में कार्यरत
है। उसकी पत्नी की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है।
बाद में वह सोनाली के पड़ोस में रहने जाता है जहां सोनाली
अपने अपाहिज भाई के साथ रहती है। धीरे धीरे दोनों में
दोस्ती हो जाती है। संजय सोनाली के भाई का इलाज कराता
है जिस कारण वह दोनों ओर करीब आते हैं और आगे की जिन्दगी
खुशी खुशी बसर करते हैं।
दिल विल प्यार व्यार में तीनों
कहानियों का आशावादी सुखद अन्त किया है। माधवन संगीत
प्रतियोगिता जीत कर बड़ा गायक बन जाता है और उसकी पत्नी से
उसकी सुलह हो जती है, जिम्मी भी अपने पैरों पर खड़ा हो कर कुछ
कमा कर दिखाने के लिये प्रतियोगिता में आता है और संजय अपनी
प्रेमिका का मन जीत कर सोनाली के भाई के इलाज के लिये
इस प्रतियोगिता को जीतना चाहता है। अंत में सभी दोस्त मिलते
हैं और सभी की इच्छाएं पूरी होती हैं। पुराने गीतों को इस्तेमाल
करने के बावजूद यह एक अनौखी फिल्म साबित हुयी
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हथियार
*
आका रघुभाई, नम्रता शिरोडकर, संजय दत्त,
शरद कपूर, शिल्पा शेट्टी |
हथियार
की कहानी मारधाड़ और हिंसा से युक्त 'वास्तव' की कहानी का
अगला चरण है। 'वास्तव' एक गैंगस्टर की कहानी है जिसका
नाम रघुनाथ नामदेव शिवलकर (आका रघुभाई)है। महेश
मांजरेकर द्वारा निर्देशित 'वास्तव' और 'हथियार' में संजय दत्त
ने प्रमुख भूमिका बखूबी निभायी है। 'वास्तव' कहानी के
अन्त में डॉन शिवलकर अपनी पत्नी सोनू (नम्रता शिरोडकर)
और बेटा रोहित (संजय दत्त) को
छोड़ कर स्वर्ग सिधार जाता है।
'हथियार' कहानी की शुरूआत में ही
रोहित को उसका विश्वासपात्र साथी पक्या (शरद कपूर) गोली
मारता हैं। उसे हॉस्पिटल में भरती किया जाता है जहां
ऑपरेशन करके उसके शरीर से गोली निकाली जाती है। रोहित के
आंखों के सामने उसके पिता रघु की मृत्यु के बाद का बीता हुआ
बचपन आ जाता है। उसे याद आता है कि सीधे और सरल
स्वभाव वाले उस जैसे कॉलेज में जानेवाले नौजवान को
परिस्थियों के दबाव के कारण जबरदस्ती अपराध की दुनिया में
जाना पड़ा था। उसे बचपन की पड़ोसी शिल्पा(शिल्पा शेट्टी) से
प्यार हो जाता है।
'हथियार' जैसी संवेदनशील फिल्म में शिल्पा शेट्टी का होना
सुखद आश्चर्य है। वे अभी तक बुद्धिप्रधान फिल्मों से दूर रही हैं।
हथियार में बहुत से पात्र और घटनाएं हैं जो सीधे नायक
रोहित से जुड़े हैं और कथा के विस्तार में सहायक होते हैं।
कहानी में कई रंग है और इसके द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की
गयी है कि जो बन्दूक के सहारे
जीते हैं वो बन्दूक से ही मरते हैं।
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वाह
तेरा क्या कहना *
गोविंदा, शम्मी कपूर, शक्ति कपूर, जंग बहादुर,
मोहनीश बहल,
प्रीति झंगवानी, कादरखान, आशीष विद्यार्थी, रवीना टंडन |
मनोज
अग्रवाल ने गोविंदा के साथ एकदम वैसी फिल्म बनायी है
जैसे गोविंदा की हमेशा बनती है। राज (गोविंदा)
अपनी दादाजी श्री कृष्ण ओबेराय (शम्मी कपूर) का प्यारा दुलारा
पोता है। श्री कृष्ण ओबेराय के और दो बेटे हैं (शक्ति
कपूर और राना जंग बहादुर) और राज के अलावा एक और पोता (मोहनीश
बहल) है। राज से दादाजी का लगाव बाकी किसी को फूटी
आंख नहीं सुहाता है क्योंकि राज ही दादाजी की सारी जायदाद का
अकेला हकदार है।
राज को मोना (प्रीती झंगवानी)
से प्यार हो जाता है। दोनों की शादी तय की जाती है।
तभी एक हादसे में राजू मानसिक संतुलन खो बैठता है।
और वह सातआठ सालके बच्चे जैसा बर्ताव करने लगता है।
अब दादाजी उसकी तरफ से और भी सावधान हो जाते हैं।
ज्यादा देखभाल करने के लिये वह मुरारी (कादरखान) को
नियुक्त करते हैं। इधर दादाजी के बाकी दो बेटे ओर दूसरा
पोता मिलकर एक साजिश करते हैं। साजिश में एक बुरे
व्यक्ति (आशीश विद्यार्थी) से सांठगांठ कर दादाजी की हत्या को
आत्महत्या में तब्दील कर दिया जाता है। राज इस हादसे से
पहले ही शिमला जा चुका होता है। उसे वहां भी खतरा होता
है जिसका राज को कोई अंदेशा नहीं होता। इसी समय मदद
के लिये बन्ने खां (दूसरा गोविंदा) और उसकी बेगम (रविना
टंडन) आ जाते हैं। मध्यांतर के बाद सारा भेद खुल जाता है
और पता चलता है कि बन्ने खां और उसकी बेगम पुलिस अधिकारी
हैं।
फिल्म की कहानी कोई खास नहीं
लेकिन गोविंदा और कादरखान की जोड़ी साथ हैं तो हंसी की
फुहार शुरू हो जाती है।
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दीवानगी *अजय
देवगन, उर्मिला मातोंडकर, अक्षय खन्ना |
अनीस
बज्मी ने एक अंग्रेजी फिल्म 'प्राइमल
फियर' की मूलकथा को लेकर थोड़े
बदलाव और विस्तार के साथ 'दीवानगी'
बनाई है।
तरंग भारद्वाज (अजय देवगन) एक शांत और सीधे स्वभाव का
संगीतकार है। सरगम (उर्मिला मातोंडकर) उसके यहां
संगीत सीखने आती है। सरगम एक मशहूर पॉप सिंगर बन
जाती है। संगीत सिखाते सिखाते तरंग सरगम से प्यार करने
लगता है। मन ही मन में उसे अपनी पत्नी समझने लगता
है लेकिन वह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि सरगम राज गोयल
(अक्षय खन्ना) से प्यार करती है। सरगम पर किसी की नज़र
भी पड़ी तो तरंग बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसी वजह से एक
बार वह एक हत्या भी कर देता है और बचाव के लिये मानसिक रूप
से विक्षिप्त होने का नाटक करता है। राज गोयल उसे बचा
भी लेता है लेकिन बाद में जब राज को जब उसकी चाल का पता
चलता है तो राज दुबारा उसे सजा दिलवाना चाहता है।
तिकोने प्यार की इस कहानी में
तरंग आवेश में आकर सरगम का प्यार पाना चाहता है और अपराध
का रास्ता भी चुन लेता है। इसी कारण उसकी हार हो जाती है।
अजय देवगन ने असली प्रेमी और बाद में मानसिक विक्षिप्त का
भी चरित्र खूब अच्छी तरह निभाया है। कहानी में उनका अभिनय
तीव्रता और आवेश के दृष्यों में सही उभरता है। राज
गोयल के किरदार में अक्षय खन्ना भी काफी जचे हैं। उर्मिला
मातोंडकर ने भी अपनी अदाकारी से सरगम को सही न्याय दिया है।
संगीत बहुत प्रभावशाली ना होने
के बावजूद भी मनोरंजक फिल्म बनाने में अनीस बज्मी काफी हद
तक सफल रहे हैं।
दीपिका जोशी
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