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कर्ज
निर्देशक
: हैरी बवेजा
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संगीत : संजीव दर्शन
*सनी
देओल, सुनील शेट्टी, शिल्पा शेट्टी, अशुतोष राणा, सयाजी शिंदे, जॉनी
लीवर
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सूरज (सनी देओल)
को अपनी मां से नफरत के सिवा कुछ नहीं मिला क्यों कि वह
बलात्कार के फलस्वरूप पैदा हुआ था। मां (किरन खेर) को उसके चेहरे
में बलात्कारी का चेहरा नज़र आता रहा। एक दिन वह उसे गाड़ी के
पीछे दौड़ता हुआ छोड़ कर, छोटे बेटे के साथ चली जाती है। सूरज
को एक निःसंतान दंपत्ति अपनाते हैं। जब सूरज को अपने छोड़े
जाने का कारण पता चलता है तो वह किसी बोझ से कम नहीं होता।
सूरज शराबी हो जाता है।
इसके बाद अनजाने में दोनो
भाइयों के मिलने और प्रेम के एक त्रिकोण के दृश्य भी फिल्म मे
हैं।
एक दिन सूरज अपनी मां को
उच्चवर्गीय लोगों की भीड़ में देखता है और हैरान रह जाता है
जब वह सुनता है कि उसकी मां अपने एक ही बेटा 'सूरज' के बारे
में बताती फिरती है। वह तो अपने बचपन से ही लावारिस
जैसे और बेघर होकर ही पला बढ़ा है। वह पास में ही रखे
पियानो के साथ गाना गाने लगता है। गाने में वह अपने
बचपन और और मां के बारे में सब कुछ खुलेआम बता देता है।
अनीस बज्मी की कहानी थोड़ी फीकी लगती है और तर्क बेजान व
अर्थहीन। बवेजा का निर्देशन कहानी को
रोमांचक बनाने में नाकायाब साबित हुआ है। टीनू वर्मा
की मारधाड़ आम हिन्दी फिल्मों जैसी ही है। सनी और सुनील
के एक्शन विशेषताओं का सही उपयोग नहीं हुआ है लेकिन सनी देओल और शिल्पा
शेट्टी का अभिनय अच्छा है। सुनील शेट्टी भी काफी अच्छी छाप छोड़
गये हैं। फिल्म
का संगीत साधारण है। सहकलाकार के रूप में किरण खेर और अशुतोष राणा का
भी अभिनय अरोचक लगता है।
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साथिया
निर्देशक
: शाद अली । संगीत
:
ए आर रहमान
*विवेक
ओबेराय, रानी मुखर्जी, तनुजा, शरद सक्सेना, सतीश
शाह,
स्वरूप सम्पत, टीनू आनन्द
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शाद अली की फिल्म 'साथिया'
मणि रत्नम, यश चोपड़ा, एआररहमान और गुलज़ार जैसे
दिग्गजों का संयुक्त प्रयास है। यह फिल्म तमिल
फिल्म 'अलैपयूथे' का हिन्दी रूपांतर हैं। दोनों, तमिल और
हिन्दी फिल्म की तुलना को टाला नहीं जा सकता।
एआररहमान के संगीत ने सभी का मन जीत लिया है।
उन्होंने कहीं कहीं मूल तमिल संगीत को बरकरार रखा है।
शाहरूख खान के साथ यश राज ने सफल
फिल्में बनायी हैं। मणि रत्नम भी ' दिल से' फिल्म में
शाहरूख के अभिनय से खुश थे, इसलिये शाहरूख खान को लेकर
उन्होंने 'साथिया' में विवेक आबेराय और रानी मुखर्जी के
साथ तिकोनी प्रेम कहानी प्रस्तुत की है। शाहरूख खान के आगमन
पर कहानी का पूरा रूख बदल जाता है। तनूजा ने भी 'साथिया'
से फिल्मों में दुबारा प्रवेश किया है।
शर्मिली ओर सीधी सुहानी शर्मा(रानी
मुखर्जी) मुम्बई में एक डॉक्टर है। रोज जब वह ट्रेन में
चढ़ती है तो आदित्य सेगल (विवेक ऑबेराय) को देखकर उसका
माथा ठनक जाता है। सब विद्यार्थियों की तरह ही वह भी
सोचती है कि प्यार करना ऐसे ही खाली बैठे लोगों का काम है।
लेकिन उसका यह गुस्सा आदित्य के सामने ज्यादा दिन नहीं टिक पाता,
पहले प्यार और शादी के बाद दोनों भाग जाते हैं। दोनों
फिल्मों में सुहानी और आदित्य का प्रेम कैसे फलता फूलता है यह
एक गीत में बहुत खूबसूरती से पेश किया गया है।
नवम्बर महीने में एक दुःखद घटना
हो जाती है और सुहानी और आदित्य बिछड़ जाते हैं। यह
घटना उनके जीवन में एक कांटा बन कर रह जाती है। आदित्य
बिखर सा जाता है और उसे समझ में नहीं आता कि कहां जायें।
सुहानी के बारे में किससे पूछें क्योंकि उसके बारे में कोई भी
नहीं जानता है। उसके जीवन का अंधियारा और गहराता नज़र
आता है। वह अपनी 'साथिया' की खोज में निकल पड़ता है।
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मसीहा
निर्देशक
: पार्थो घोष । संगीत
: आनंद
राज आनंद
*सुनील
शेट्टी, इंदर कुमार और नम्रता शिरोडकर, मुकेश ऋषि
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आज तक हॉलीवूड से प्रेरणा लेकर
काफी फिल्में बनीं हैं। काफी हद तक दर्शकों को निराशा भी
मिली है। 'मसीहा' भी ऐसी ही एक हॉलीवूड की फिल्म पर
आधारित है। लेकिन खास नयापन इस फिल्म में भी नहीं देखा
गया। सुनील शेट्टी ने इस फिल्म में साबित कर दिया है कि
वह मारधाड़ के अलावा ऐसे संवेदनात्मक अभिनय भी कर सकते है।
फिल्म के शिर्षक के मुताबिक सुनील
शेट्टी 'मसीहा' बनकर सभी की बिना कोयी उम्मीद रखे मदद करता है।
अपने हाथ में सारे कायदे कानून लेकर खुद ही न्याय करता है।
यकीन आने पर कि जिसे न्याय दिया है वह सही है, आगे बढ़ता है
न्याय से वंचित बैठे लोगों को न्याय दिलाने।
'मसीहा' पार्थो घोष की पहली
पुरस्कारित फिल्में जैसे '100 डेज', 'अग्निसाक्षी' और
'गुलामएमुस्तफा' से मेल नहीं खाती है। प्रवीण शाह को
यकीन था कि यह फिल्म दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच लाने
में कामयाब हो जायेगी। काफी सराहानीय साबित हुयी भी
है।
दीपिका जोशी
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