एक साल के लम्बे
अंतराल के बाद प्रीति जिंटा ने 'दिल है तुम्हारा' के साथ फिर से
कैमरे का सामना किया है। इस त्रिकोणात्मक प्रेम कथा में वे शालू का प्रमुख
किरदार निभा रही हैं। हसीन चुलबुली शालू, अपनी विनम्र
व शांत स्वभाव वाली बहन निम्मी से बिलकुल अलग बिंदास और
मस्त कलंदर है।
यह कहानी है विधवा सरिता जी और उनकी दो प्यारी बेटियों
निम्मी और शालू की। सरिता जी हर तरह से सक्षम हैं यानी उनके
पास पैसा, प्रभाव और राजनीतिक पहुंच सबकुछ है। वे अपनी
बेटियों से प्यार करती है पर उनका झुकाव निम्मी की ओर अधिक है।
शालू इसे गहराई से महसूस करती है और अपनी मां के प्यार के लिये तरसती रहती है
और स्वयं को उसका
हकदार मानती हैं। शालू दिल की दुनिया में खुशनसीब है।
देव और समीर नाम के दो सुंदर और शालीन युवकों का प्रेम,
दोस्ती और सहानुभूति उसके साथ है।
देव (अर्जुन रामपाल)
हावर्ड युनिवर्सिटी से डिग्री लेकर शालू के गांव में अपने उस कारोबार
को बंद करने के लिये आया है जो अनेक लोगों की आजीविका
का साधन है लेकिन शालू से मिलने के बाद सबकुछ बदल
जाता है। आगे की फिल्म शालू, निम्मी, देव और समीर के प्रेम का चौकोन के रूप में उभरती
हैं। देव
अपने दिल की बात खुल कर कहने में विश्वास रखता है पर समीर
अंतर्मुखी है और अपनी भावनाओं को केवल कला में व्यक्त कर सकता
है। फिल्म के अंत तक वह अपनी बात शालू से कहने में सफल हो
जाता है पर शालू अपनी
मां के प्यार को तरसती ही रहती है।
शालू को मां के प्यार को पाने
का अवसर तब मिलता है जब उसकी मां का राजनैतिक
करियर देव की फॅक्ट्री बंद होने से खतरे में आता है। शालू देव से
बिनती करती है कि वह फॅक्ट्री बंद ना करें।
प्रीति ज़िंता ने प्यार की
चाहत रखनेवाली बेटी का रोल खूबसूरती से निभाया है।
वहीं पर जानी मानी रेखा ने भी कहीं कसर नहीं छोड़ी है।
महिमा चौधरी, अर्जुन रामपाल और जिमी शेरगील ने अच्छा
अभिनय किया है। कुन्दन शाह ने एक बार फिर दिल को छू लेने
वाली कहानी दी है। इन्सान की भावनाओं का अच्छा चित्रण
दर्शकों की आंखें नम कर देता है।
दीपिका जोशी
|
रोड
*
विवेक ओबेराय, अंतरा माली, मनोज बाजपेयी |
भारत के
सफल
नौजवान निर्माता निर्देशकों में सर्वाधिक लोकप्रिय माने
जाने वाले राम गोपाल
वर्मा की एक फिल्म 'कम्पनी' नाम से एप्रिल में प्रदर्शित हुई थी जो इस साल की
कामयाब फिल्म साबित हुयी। यह फिल्म अंतर्राष्ट्रीय अपराध पर आधारित
थी। रोड इसी श्रृंखला की दूसरी फिल्म है 'रोड' के निर्माता रामगोपाल वर्मा हैं लेकिन
इसका निर्देशन रजत मुखर्जी ने किया है।।
सांचे में ढले सौन्दर्य
से फिल्म के नायक विवेक ओबेराय और नायिका अंतरा माली एक
दूसरे से प्रेम करते हैं और विवाह करने के लिये घर से भाग
जाते हैं। इस दौरान रेगिस्तान
में अपनी नयी कार से गुजरते हुए वे एक असहाय मोटरसाइकिल
वाले को अपनी कार में लिफ्ट देते हैं। थोडी ही देर में उन्हें
अपनी बहुत बड़ी गलती का अहसास हो जाता है।
इडा ल्यूपिनो की 1953 में प्रदर्शित 'द
हिचहायकर' से लेकर जॉन दल की 2001 में प्रदर्शित 'जॉय राइड'
तक 50 सालों की रहस्य फिल्मों के मेलमिलाप से बनी इस फिल्म के
अंत का पता लगाना काफी आसान है। बाबू एक हत्यारा साबित होता है
और हर हिन्दी फिल्म की तरह आधे दर्जन गानों के साथ फिल्म अपना
सफर पूरा करती है जिसमें से एक गाना हत्यारे बाबू के ऊपर भी
फिल्माया गया है।
लक्ष्मी की भूमिका में अंतरा माली
हाल्टर और छोटे टाप के साथ यह साबित करने में सफल हुयी हैं कि
नाभि प्रदर्शन पर ब्रिटनी स्पियर्स का एकाधिकार नहीं है। ओबेरॉय ने
रंगबिरंगे कपड़ों के साथ खूंटीदार दाढ़ी रखी हैं जिसे देखकर कभी टॉम क्रूस
और कभी इरिक इस्ट्राडा की याद आ जाती है।
'रोड' रामगोपाल वर्मा
के सहयोगी रजत मुखर्जी ने डायरेक्ट की है, लेकिन अभिनय की
बात करें तो फिल्म
मनोज बाजपेयी की ही है। उन्होंने बाबू की भूमिका को इस
तरह जिया है कि बाबू दर्शकों की सारी सहानुभूति बटोर लेता है।
कहानी का धीरेधीरे विकास होता है और अंत तक
पहुंचतेपहुंचते लक्ष्मी को लगने लगता है कि जो कुछ इस
छोटी जात के बाबू में हैं वह उसके धनवान प्रेमी में नहीं।
दीपिका जोशी
|
शक्ति *
संजय कपूर, करिश्मा कपूर, नाना पाटेकर, दीप्ति नवल,
शाहरूख खान
|
कैनेडा में
प्रवासी शेखर (संजय कपूर) का एक और प्रवासी भारती
नंदनी (करिश्मा) को प्रेम होता है। वे विवाह करते हैं और एक
बेटे के मातापिता बन जाते हैं।जब उन्हें सूचना मिलती हैं कि
भारत में उनके माता पिता (दीप्ति
नवल और नाना पाटेकर) मुश्किल में हैं तो वे भारत वापिस आ
जाते हैं।
परिवार के साथ रहते हुए नंदिनी को
पता चलता है कि संजय का पिता गुण्डा है
और वह उसके बेटे राजा को बिगाड़ने पर तुला है। नाना पाटेकर
गांव का मुखिया है और उसे 4000 लोगों का समर्थन प्राप्त है।
वह राजा को बम
बनाना सिखाने की कोशिश करता है और अपने जैसा बनाना चाहता
है।
नन्दिनी उसी वक्त गांव
छोड़ना चाहती है। पर उससे पहले ही नाना के दुश्मन शेखर का
खून कर देते हैं। नन्दिनी अपने बच्चे को कनाडा वापस ले
जाना चाहती है। पर नाना के आदमी उसका पीछा करते हैं।
तभी बड़े नाटकीय अंदाज से शाहरूख खान उसकी सहायता करने आ जाता
है।
शक्ति करिश्मा कपूर के
जबरदस्त अभिनय और नाना पाटेकर की जानदार प्रदर्शन से एक अच्छीनायिका प्रधान फिल्म
साबित हो सकती थी, पर अच्छी पटकथा के
अभाव में यह फिल्म उतनी ज़ोरदार नहीं बन पाई।
करिश्मा कपूर युवती और
मां की भूमिका में प्रभावित करती हैं। नाना
पाटेकर दृश्यों में जमते हैं और प्रभावशाली लगे हैं। इन
दोनों के अभिनय के सिवा फिल्म में देखने लायक और कुछ नहीं
है।
रजनी चोपड़ा
|
गुनाह *दीनू
मोरिया, विपासा बासु, आशुतोष राणा |
गुनाह
एक अपराध फिल्म है। बिपाशा बासु ईमानदार पुलिस अफसर प्रभा
नारायण की सशक्त भूमिका में हैं। प्रभा नारायण भ्रष्टाचार के
खिलाफ है और समाज से भ्रष्टाचार को हटाने का
बीड़ा उठाती हैं। यही काम करते हुए वह आदित्य जो एक
मुज़रिम है, का पीछा करती है। आदित्य आम नायकों के समान
एक छत से दूसरी छत पर भागता है। उसका पीछा करते हुए प्रभा गिर
जाती है। पर नायक सहृदय है। यह जानते हुए भी कि
प्रभा को बचाना कानून के शिकंजे में आना है नायक उसे बचा
लेता है और गिरफ्तार हो जाता है।
प्रभा समझने में असफल
है कि एक खूनी ने उसे क्यों बचाया! वह तहकीकात शुरू करती है
तो पता चलता है कि आदित्य एक भला आदमी है। वह फायरआफिसर था जिसका काम लोगों
को बचाना था! हालात का शिकार हो कर वह खून करने पर
मज़बूर हो गया था। उसकी कहानी जानकर प्रभा को आदित्य से
प्रभावित हो जाती है। दोनों में प्रेम हो जाता है और
नायिका उसे समाज में फिर से प्रतिष्ठा दिलाने का
प्रण लेती है।
डायरेक्टर
अमोल शेटगे ने मराठी फिल्म 'अबोली' बनाई थी। उस फिल्म
को पुरस्कार भी मिला था। हिन्दी में उनकी यह पहली फिल्म है
और उनका यह प्रयास सराहनीय रहा है। विपाशा बसु भावुक और
संवेदनात्मक दृश्यों में पहले से अधिक स्वाभाविक लगी हैं।
दीनू मोरिया के साथ उनकी जोड़ी अच्छी लगती है। गीतों का
फिल्मांकन कहानी से सामंजस्य नही बैठा पाया है लेकिन कव्वाली
बहुत दिनों के बाद देखने सुनने को मिली है जो सुखद लगती
है।
रजनी चोपड़ा
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