हैदराबाद, १ नवंबर २००८ से ९
नवंबर २००८ तक दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, दक्षिण भारत हिंदी
प्रचार सभा द्वारा नौ दिवसीय पाठ्य सामग्री लेखन कार्यशाला
का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला का आयोजन जनसंचार और भाषा के परस्पर संबंध को
समझने-समझाने तथा आज की चुनौतियों का मुकाबला करने में
सक्षम पाठ्यक्रम की आवश्यकता और चुनौतियों को ध्यान में
रखते हुए, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय
विभाग, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान ने जनसंचार पर केंद्रित
नवीनतम पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर किया। दूरस्थ शिक्षा
माध्यम के इन पाठ्यक्रमों में जहाँ जनसंचार का स्नातकोत्तर
डिप्लोमा शामिल है, वहीं हिंदी भाषा शिक्षण में बहुसंचार
माध्यमों के व्यावहारिक प्रयोग से संबंधित भी एक
स्नातकोत्तर डिप्लोमा सम्मिलित है। यही नहीं विशेष रूप से
हिंदी पुस्तकालयों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए
पुस्तकालय विज्ञान का भी डिग्री पाठ्यक्रम आरंभ किया जा
रहा है।
कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए ‘स्वतंत्र वार्ता’ दैनिक के
संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने कहा कि जनसंचार हो या भाषा,
दोनों का लक्ष्य मनुष्य और समाज का विकास तथा अपनी परंपरा
की समृद्धि करना है। उन्होंने कहा कि मीडिया पीढ़ी को बनाने
और बिगाड़ने की ताकत रखता है इसलिए जागरण और वैज्ञानिक सोच
के प्रसार में समाचार पत्रों से लेकर चैनलों तक की भूमिका
असंदिग्ध है। डॉ.. शुक्ल ने अत्यंत वेदनापूर्वक यह बात कही
कि आज का हिंदी अखबार बहुत गैरजिम्मेदार हो गया है, उसे
व्यावसायिकता के साथ-साथ जन शिक्षा की अपनी जिम्मेदारी को
भी ध्यान में रखन होगा। उन्होंने मीडिया की भाषा में
अराजकता पर भी चिंता प्रकट की और कहा कि हमें ऐसे मीडिया
कर्मियों की आवश्यकता है जिनकी भाषाई क्षमता और अभिव्यक्ति
की दक्षता पाठक, श्रोता और दर्शक को हिंदी मीडिया की तरफ
आकृष्ट करे और हिंदी भाषा की समृद्धि में भी योगदान करे।
भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से आनेवाले मीडिया कर्मी इस
व्यवसाय की अन्य योग्यताओं से सज्जित होने के साथ-साथ यदि
सुथरी और प्रवाहपूर्ण हिंदी के प्रयोग में दक्ष नहीं
होंगे, तो हिंदी मीडिया प्रतिस्पर्धा की दौड़ में पीछे छूट
जाएगा। इसीलिए ऐसे व्यवहार केंद्रित पाठ्यक्रमों की
आवश्यकता है जो हिंदी के सटीक और प्रभावी प्रयोग में दक्ष
मीडिया कर्मी तैयार कर सकें। दक्षिण भारत में हिंदी के
माध्यम से रोजगार परक पाठ्यक्रमों को चलाने के दक्षिण भारत
हिंदी प्रचार सभा के अभियान में मीडिया केंद्रित ये
पाठ्यक्रम नए आयाम की वृद्धि करने वाले हैं।
आमतौर से यह शिकायत की जाती है कि भाषा का अध्ययन करने
वाले लोग घट रहे हैं, परंतु कुल सचिव प्रो. दिलीप सिंह ने
इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए यह
विस्मयकारी जानकारी दी कि दक्षिण भारत में हिंदी का उच्च
स्तरीय अध्ययन और शोध करनेवाले छात्रों की संख्या निरंतर
बढ़ रही है क्योंकि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में हिंदी
भाषा और साहित्य के पिटेपिटाए पाठ्यक्रमों से अलग
रोजगारपरक और प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रमों पर बल दिया जाता है।
प्रो. सिंह ने जोर देकर कहा कि हिंदी के पाठ्यक्रमों को
केवल साहित्य तक सीमित रखना हिंदी के हित में नहीं है
इसलिए सभी विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों में
रोजगारपरकता का समावेश करना ही होगा, जिसमें मल्टीमीडिया
की सामग्री के उपयोग पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इस
अवसर पर कवि और शिक्षाविद डॉ.. हीरालाल बाछोतिया,
उस्मानिया विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं
आर्ट्स कॉलेज के प्राचार्य प्रो. एम. वेंकटेश्वर तथा
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आन्ध्र के सचिव के. विजयन ने
भी महत्वपूर्ण विचार प्रकट किए।
नौ दिन की इस कार्यशाला में विभिन्न क्षेत्रों से आए
प्रतिभागियों में वाराणसी से डॉ. रामप्रवेश राय, डॉ.
प्रभाशंकर मिश्र, ग्वालियर से डॉ.. सत्यकेतु सांकृत,
एरणाकुलम (केरल) से डॉ. नारायण राजू, डॉ. पी. राधिका, डॉ.
सूर्यकांत त्रिपाठी, डॉ. बिष्णुराय, डॉ. मंजुनाथ, डॉ. आषा,
पी.वी. प्रियेष, चेन्नई से डॉ. निर्मला एस. मौर्य, डॉ.
सविता, डॉ . नज़ीम बेगम, डॉ . एन. लक्ष्मी, पी. श्रीनिवास
राव, सतीश कुमार श्रीवास्तव, धारवाड से डॉ . अमर ज्योति,
डॉ . सुनीता मंजनबैल, डॉ . जयलक्ष्मी,डॉ . रेशमा नदाफ,
एम.हंसी तथा हैदराबाद से डॉ . एम.वेंकटेश्वर राव, डॉ..
गरिमा श्रीवास्तव, डॉ.आलोक पांडेय, प्रो. वी. चंद्रशेखर
राव, डॉ. . वेंकटरमणा, प्रो. विश्वमोहन, प्रो. टी.वी.
कट्टिमणि, डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल, डॉ . मृत्युंजय सिंह,
डॉ. जी. नीरजा,डॉ. बलविंदर कौर, जी.आर. भगवंत गौडर और
कार्यशाला संयोजक डॉ. ऋषभदेव शर्मा सम्मिलित रहे।
इस नौ दिवसीय कार्यशाला का समापन समारोह 9 नवंबर, 2008 को
संपन्न हुआ। इस अवसर पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलपति तथा आंध्र प्रदेश
सरकार के सलाहकार सी.सी. रेड्डी ने उपस्थित होकर आयोजकों,
विशेषज्ञों और सामग्री लेखकों को इस उपलब्धिपूर्ण
कार्यशाला की सकुशल संपन्नता पर बधाई दी। साथ ही सी.सी.
रेड्डी ने संस्थान के कुलसचिव और भाषाविद् प्रो. दिलीप
सिंह की नवीनतम प्रकाशित कृति ‘भाषा, साहित्य और संस्कृति
शिक्षण’ का लोकार्पण किया गया।
नौ दिनों की इस कार्यशाला में लगभग 40 विशेषज्ञों और
सामग्रीलेखकों ने तीन अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए लगभग दो
सौ शिक्षण इकाइयों की रूपरेखा और शिक्षण बिंदुओं का
निर्धारण और लेखन कार्य किया। डॉ.. एम.वेंकटेश्वर
(हैदराबाद), डॉ. सुनीता मंजनबैल (धारवाड), डॉ. रामप्रवेश
राय (वाराणसी) और डॉ.. जी. नीरजा (हैदराबाद) ने कार्यशाला
के प्रतिभागियों की ओर से बोलते हुए इस प्रकार के
रोजगारपरक पाठ्यक्रमों की उपादेयता की चर्चा की और कहा कि
इस महत्वपूर्ण कार्य से जुड़ना निश्चय ही संतोष और गौरव का
विषय है।
ऋषभ देव शर्मा ,
आचार्य एवं अध्यक्ष ,
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार
सभा, हैदराबाद-500 004