हैदराबाद,
बुधवार, १२ नवंबर २००८, भारतीय जीवन मूल्यों के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार प्रसार के
लिए समर्पित सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था "विश्वम्भरा" का छठा
वार्षिकोत्सव और स्थापना-दिवस व्याख्यान को आन्ध्र प्रदेश हिन्दी अकादमी के
गगनविहार, नामपल्ली, हैदराबाद स्थित सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की
अध्यक्षता दैनिक समाचारपत्र 'स्वतन्त्रवार्ता' के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने की
तथा संस्था के मानद मुख्य संरक्षक ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध
साहित्यकार पद्मभूषण डॉ. सी. नारायण रेड्डी विशेषरूप से उपस्थित रहे। अंग्रेजी व
विदेशीभाषा विश्वविद्यालय के रूसी भाषा विभाग के आचार्य प्रोफ़ेसर जगदीश प्रसाद
डिमरी ने "संस्कृति और संस्कृत" विषय पर "विश्वम्भरा स्थापनादिवस व्याख्यान" दिया।
डॉ. जगदीश प्रसाद डिमरी भारतीय व रूसी भाषाविज्ञान के मर्मज्ञ विद्वान हैं।
उन्होंने १९७३ में मॉस्को से पीएच.डी. की तथा केन्द्रीय अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा
संस्थान, हैदराबाद में विभिन्न शैक्षणिक एवं प्रशासनिक पदों पर नियुक्त रहे। प्रो.
डिमरी इस समय भारत में रूसी के वरिष्ठतम प्रोफ़ेसर हैं तथा २००५ में केन्द्रीय
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा संस्थान, हैदराबाद के कुलपति भी रह चुके हैं। उन्हें
पाणिनि के व्याकरण, पतंजलि के महाभाष्य, भारतीय काव्यशास्त्र और सौन्दर्यशास्त्र
तथा सांस्कृतिक भाषा शिक्षण के पाठ्यक्रम आरम्भ करने का भी श्रेय प्राप्त है।
अतिथियों के मंचासीन होने के उपरान्त 'विश्वम्भरा' के वार्षिकोत्सव का श्रीगणेश दीप
प्रज्वलन के साथहुआ। प्रख्यात पर्यावरणविद् तथा उस्मानिया विश्वविद्यालय के पूर्व
हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. किशोरी लाल व्यास ने मंगलाचरण किया तथा सुषमा बैद ने
सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। संस्था की ओर से अतिथियों का चंदन, हल्दी और कुंकुम के
तिलक, अक्षत, अंगवस्त्र और श्रीफल द्वारा पारंपरिक ढंग से स्वागत किया गया।
संस्था की संस्थापक-महासचिव डॉ. कविता वाचक्नवी ने 'विश्वम्भरा' के उद्देश्यों व
गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि २००२ में गठित यह संस्था जनसंचार के सभी
पारम्परिक व आधुनिक माध्यमों का प्रयोग करके सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति
द्वारा प्रतिष्ठित जीवनमूल्यों का प्रचार-प्रसार करने के लिए संकल्पबद्ध है।
विश्वम्भरा ने नई पीढ़ी को लक्षित करके प्राईवेट और पब्लिक स्कूलों में भारतीय
जीवनमूल्यों और शारीरिक, आत्मिक व सामाजिक उन्नति से सम्बन्धित पाठ्यक्रमों,
व्याख्यानों तथा कार्यशालाओं का आयोजन किया है । भाषा और संस्कृति के अन्योन्याश्रय
सम्बन्ध में विश्वास करने के कारण "विश्वम्भरा" हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के
प्रचार-प्रसार में भी संलग्न है तथा इसके लिए इंटरनेट के माध्यम का भी उपयोग कर रही
है।
मुख्य वक्ता प्रो. जगदीश प्रसाद डिमरी ने सभा को "संस्कृति और संस्कृत" विषय पर
सम्बोधित करते हुए कहा कि, ''संस्कृति समस्त मानवता को विशेषता और भूषण प्रदान करती
है । वह जनसमुदाय के उन उच्च विचारों और आदर्शो का समन्वित रूप होती है जिनसे
संपन्न होने पर किसी व्यक्ति अथवा समाज को सुसंस्कृत माना जाता है। सदाचार और
सद्बुद्धि से लेकर समस्त प्रकार के आचार-व्यवहार और नैतिक विचार संस्कृति में
समाविष्ट होते हैं।''
प्रो. डिमरी का सारस्वत अभिनंदन करते हुए उन्हें संस्था का रजत स्मृतिचिह्न भेंट
किया गया। संस्था के मानद मुख्य संरक्षक डॉ. सी.नारायण रेड्डी ने विश्वम्भरा' की
गतिविधियों पर प्रसन्नता प्रकट की और आशा व्यक्त की कि भविष्य में भारतीय संस्कृति
और भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में यह संस्था और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
उन्होंने ध्यान दिलाया कि संस्कृति हमारे `होने' का पर्याय है तथा सभ्यता हमारी
`भौतिक उपलब्धियों' का द्योतन कराती है। उनके अनुसार संस्कृति का क्षेत्र अत्यन्त
विशाल है जिसके अन्तर्गत समस्त कलाओं से लेकर आचार-व्यवहार तक सब कुछ समा जाता है।
पर्यावरणविद् कथाकार एवं कवि प्रोफ़ेसर किशोरीलाल व्यास ने संस्कृति के संरक्षण और
विकास पर बल देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति जिन अनेक कारणों से आज सारे विश्व के
लिए प्रासंगिक है उनमें से एक हमारी पर्यावरण सम्बन्धी चेतना है क्योंकि हम प्रकृति
से प्रतियोगिता नहीं मानते और न ही उसे जीतने में विश्वास रखते हैं, बल्कि हमारा
विश्वास 'जियो और जीने दो' की नीति में है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए 'स्वतंत्रवार्ता' के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने
की संस्था के उत्स से ही अपना मार्गदर्शन देते आ रहे "विश्वम्भरा" के संवीक्षक
वरिष्ठ कवि-समीक्षक ( तेवरी काव्यान्दोलन के प्रणेता) दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार
सभा के विश्वविद्यालय खंड ( स्नातकोत्तर और शोधसंस्थान) के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर ऋषभदेव
शर्मा ने अपनी अत्यंत चिन्तनधर्मी व सहज शैली में कार्यक्रम का संचालन किया और
'निर्दोष सोशल सर्विसेज़' के अध्यक्ष डॉ. रामकुमार तिवारी ने संस्था को शुभकामनाएँ
देते हुए सभासदों व सहयोगियों का "विश्वम्भरा" की ओर से आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर चंद्रमौलेश्वर प्रसाद (कोषाध्यक्ष), द्वारका प्रसाद मायछ ( संरक्षक),
गुरुदयाल अग्रवाल, श्रीनिवास सोमानी, वीरप्रकाश लाहोटी सावन, वेणुगोपाल भट्टड़ (ख्यातकवि),
भँवरलाल उपाध्याय, रामजी सिंह उदयन( सम्पादक - डेली हिन्दी मिलाप), एफ.एम. सलीम
(पत्रकार), के. प्रवीण, शिवकुमार राजौरिया, के. दास, कैलाशवती, आर. सुरेंद्र,
श्रद्धा तिवारी, के. रवि, आनंद लालाजी, पी.आर. घनाते (सं.- मिलिन्द), पवित्रा
अग्रवाल ( कथाकार), लक्ष्मीनारायण अग्रवाल ( कवि कथाकर), रूबी मिश्र, अभिषेक दाधीच,
आशादेवी सोमानी(सम्पादक- अहल्या), तुलजाप्रसाद विमल, जी. परमेश्वर, डॉ. अनुपमा, डॉ.
बी. सत्यनारायण( अकादमी के शोध सहायक), डॉ. बी.बालाजी, डॉ.प्रभाकरत्रिपाठी
(अध्यक्ष-हिन्दीविभाग, हि.महावि.), डॉ.रेखा शर्मा (अध्यक्ष, हिं. विभाग
विवेकवर्धिनी ), डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. टी. मोहन सिंह(पूर्व प्राचार्य व अध्यक्ष
हि.वि. उस्मानिया वि.वि.), डॉ. जे.वी.कुलकर्णी, शेखर, रामकृष्णा आदि ने अपनी सक्रिय
भागीदारी से चर्चा-परिचर्चा और समारोह को जीवंत बनाया।
- डॉ. कविता वाचक्नवी
महासचिव, "विश्वम्भरा" |