तेजेन्द्र शर्मा के ऑडियो
बुक का विमोचन करते श्री मदन लाल खण्डेलवाल। साथ में बाएँ से (अगली पंक्ति में)
कैलाश बुधवार, रवि शर्मा, मदन लाल खण्डेलवाल, ज़कीया ज़ुबैरी, सलीम ज़ुबैरी, राकेश
दूबे। (पिछली पंक्ति में) – कौसर काज़मी, तेजेन्द्र शर्मा, डा. निखिल कौशिक।
"तेजेन्द्र शर्मा ने मित्रता निभाने की कोई सीमाएँ
नहीं बना रखीं। किसी की भी सहायता करते समय वे कोई हद मुक़र्रर नहीं करते। उनके
द्वारा रचे साहित्य की सबसे बड़ी ख़ूबी यही है कि उसके विषय यहाँ ब्रिटेन की ज़मीन
से जुड़े हैं। उनकी कहानियाँ, कविताएँ, ग़ज़लें ब्रिटेन की ज़िन्दगी से हमारा परिचय
करवाती हैं।" यह उदगार व्यक्त किए भारतीय उच्चायोग की मन्त्री – संस्कृति एवं नेहरू
केन्द्र की निदेशिका श्रीमती मोनिका मोहता ने। अवसर था एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स
द्वारा आयोजित कार्यक्रम सृजनात्मकता के तीन दशक जिसमें कथाकार, कवि एवं ग़ज़लकार
तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई।
मोनिका मोहता ने तेजेन्द्र शर्मा को नेहरू केन्द्र का मित्र और उनके अपने परिवार का
सदस्य बताते हुए अपने कवि पति मधुप मोहता द्वारा विशेष तौर पर तेजेन्द्र के
व्यक्तित्व पर लिखी गईं चार पंक्तियों के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा का परिचय कुछ
यों दिया – इक दिया तूफ़ान में जलता रहा / इक शजर सेहरा में भी खिलता रहा / वो
कहानी की रवानी है ग़ज़ल की गूँज भी / इक कलम का कारवाँ, चलता रहा।
कार्यक्रम अपने घोषित समय पर शुरू हो गया तो खचाखच
भरे हॉल के दर्शकों को हैरानी हुई। वे सोचने लगे कि अब कार्यक्रम समाप्त भी समय पर
ही हो जाएगा। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। प्रत्येक वक्ता ने अपने निर्धारित समय से बहुत
अधिक समय लिया और जम कर तेजेन्द्र के व्यक्तित्व को श्रोताओं के साथ बाँटा।
कार्यक्रम की शुरुआत में एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स की अध्यक्षा काउंसलर ज़कीया
ज़ुबैरी ने सभी गण्यमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि उनकी संस्था कथा
यू.के. के साथ मिल कर हिन्दी और उर्दू के बीच की दूरियाँ पाटने के प्रयास कर रही
है। वे साहित्य एवं संस्कृति के माध्यम से दो मुल्कों के नागरिकों के दिलों की
दूरियों को दूर करने में विश्वास करती हैं। तेजेन्द्र शर्मा को एक चलती फिरती
संस्था का नाम देते हुए उन्होंने तेजेन्द्र की दूसरों की सहायता करने की प्रकृति की
सराहना की। तेजेन्द्र की कहानियाँ उन्हें आधुनिक कहानी का सर्वोत्तम उदाहरण लगती
हैं।
वेल्स के डॉ. निखिल कौशिक ने तेजेन्द्र की ग़ज़ल
ये घर तुम्हारा है.... (गायिका – मीतल पटेल, संगीत – अर्पण) और साथ ही तेजेन्द्र का
एक साक्षात्कार भी पर्दे पर दिखाया। बाद में अपने पॉवर-पाइण्ट प्रेज़ेन्टेशन के
माध्यम से डॉ. कौशिक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि तेजेन्द्र परिवार के मूल्यों के
प्रति कटिबद्ध हैं। वे अपने रिश्ते पूरी शिद्दत से निभाते हैं और फिर वसुदैव
कुटुम्बकम के आधार पर अपने परिवार का विस्तार भी करते हैं। उन जैसे कई मित्र
तेजेन्द्र के विस्तृत परिवार का हिस्सा हैं।
बी.बी.सी हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने तेजेन्द्र पर अपनी
बात कुछ यों कही, "तेजेन्द्र की जिस ख़ूबी का मैं सबसे ज़्यादा क़ायल हूँ, वो यह कि
वह वन-मैन एन्टरप्राइस हैं। जो भी किया है अकेले दम, सिंगल-हैण्डिड। उनके पीछे कोई
गॉडफ़ादर, कोई प्रोमोटर नहीं, कोई गुट नहीं जिसका उन्हें सहारा हो। जब इस मुल्क में
आए थे, तो किसी को नहीं जानते थे। सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं था। मगर आज
अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान की जो धूम हैं, उसके नाते जो भी लेखक या
संपादक भारत से लन्दन आता है, उनसे मिलना चाहता है।
भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी
श्री राकेश दुबे ने तेजेन्द्र शर्मा के साथ अपनी निजी मित्रता की बात करते हुए अपनी
विशिष्ट शैली में कहा, ''काला सागर'' की गहराई से शुरू किया जो कहानी लेखन का सफ़र
तो फिर रुके नहीं, अपनी लेखनी की ''ढिबरी टाइट'' करते हुए लिखते रहे, नौकरी भी
करते रहे, घर भी चलाते रहे । साहित्य साधना में ऐसे जुटे कि अपनी ''देह की
कीमत'' न जानी। फिर मुम्बई के ''ईंटों के जंगल'' से निकलकर महारानी
विक्टोरिया के देश में आ बसे। बीबीसी पर उनकी धमक सुनाई पड़ी; जीवन की गाड़ी भी
धीरे धीरे पटरी पर दौड़ने लगी। लेकिन वे शान्त कहाँ बैठने वाले थे; कहने लगे
लोगों से कि अपने ''पासपोर्ट का रंग'' न देखो, जहाँ रह रहे हो वहाँ की बात सुनो,
समझो, कहो क्योंकि ''ये घर तुम्हारा है''। तेजेन्द्र जी की नज़र भविष्य पर
है, कदम ज़मीन पर और सोच गंगा जमुनी संस्कृति की पोषक। वे यह दुआ करते रहे हैं
कि उनकी रचनाओं के संदेश की ''बेघर आँखें'' हर रचनाकार की आँखें बन जाएँ और
परस्पर मेल मिलाप की भावना से हम साथ-साथ आगे बढ़ें।"
बी.बी.सी. रेडियो हिन्दी की वर्तमान अध्यक्षा डॉ.
अचला शर्मा ने चुटकी लेते हुए कहा कि तेजेन्द्र की अच्छाइयों के बारे में इतना कुछ
कहा जा चुका है कि वे तेजेन्द्र की किसी कमज़ोरी की तरफ़ इशारा करना चाहेंगी।
उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उनके
पत्रकार रूप की चर्चा की। तेजेन्द्र शर्मा के नवीनतम कहानी संग्रह 'बेघर आँखें' का
ज़िक्र करते हुए अचला जी का कहना था कि तेजेन्द्र अब एक सधे हुए कथाकार हैं। क़ब्र
का मुनाफ़ा, एक बार फिर होली, मुझे मार डाल बेटा, कोख का किराया, पाप की सज़ा आदि
कहानियों में वे ब्रिटेन के भारतीय, पाकिस्तानी एव गोरे चरित्रों का बख़ूबी चित्रण
करते हैं। तेजेन्द्र एक सशक्त कहानीकार, नाटककार, अभिनेता और पत्रकार होने के
साथ-साथ एक सफल आयोजक भी हैं जो अपने व्यक्तित्व की सहजता के कारण सभी को अपने साथ
ले कर चलने की क्षमता रखते हैं।
उर्दू के मूर्धन्य विद्वान प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल
ने तेजेन्द्र के कहानीकार रूप की बहुत गहराई से पड़ताल की, वह (तेजेन्द्र) आपको
दुःखों की दुनिया की सैर करवाता है। सैर, जो दिल्ली के फूल वालों की सैर नहीं है
बल्कि एक सफ़र है जहाँ रास्ते के हर दरीचे (खिड़की) में सलीबें गड़ी हुई हैं,
पत्थरों पर चलना पड़ता है और राह में कोई कहकशां (आकाश गंगा) नहीं है।"...
''तेजेन्द्र एक पैदायशी कहानी बाज़ है। बड़े रिसान से बात कहना और किरदारों की सोच
के धारे के साथ बहना और पढ़ने वालों को बहा ले जाना उसका कमाल है।''
सनराईज़ रेडियो के महानायक रवि शर्मा ने अपने
विशिष्ट अंदाज़ में तेजेन्द्र को एक दाई की संज्ञा दे डाली। उनका कहना था कि
तेजेन्द्र स्वयं तो लिखते ही हैं बल्कि जो लोग बिल्कुल भी नहीं लिखते, उन्हें लिखने
को प्रेरित भी करते हैं। उन्हें दूसरे का लिखा देख प्रसन्नता महसूस होती है, जलन
नहीं।
मशहूर पत्रकार, मंच कलाकार एवं निर्देशक परवेज़
आलम ने तेजेन्द्र शर्मा की कहानी कैंसर का ड्रामाई अन्दाज़ में पाठ कर श्रोताओं से
वाहवाही लूटी। सोनी टेलिविज़न से जुड़ी यासमीन क़ुरैशी ने कार्यक्रम का दक्ष संचालन
किया।
तेजेन्द्र शर्मा की ऑडियो बुक (यानि की बोलने वाली किताब) सी.डी. का विमोचन ८१
वर्षीय नेत्रहीन हिन्दी प्रेमी श्री मदन लाल खण्डेलवाल ने किया। उनका कहना था कि
एम.पी. ३ तरीके से रिकॉर्ड की गई इन कहानियों को स्वर देने वाले कलाकारों ने
कहानियों को जीवन्त बना दिया है। उन्होंने ज़कीया ज़ुबैरी जी को धन्यवाद दिया कि उन
जैसे लोगों के लिए कम से कम लन्दन के हिन्दी जगत में किसी ने सोचा तो। उन्होंने
कहानियों को ब्रेल पद्धति में प्रकाशित करवाने का सुझाव भी दिया।
कार्यक्रम में शिरक़त कर रहीं हुमा प्राइस ने
टिप्पणी की, ''जब वक्ताओं ने तेजेन्द्र के विषय में बात करनी शुरू की तो यह साफ़
ज़ाहिर होता जा रहा था कि इस इन्सान को बहुत लोग प्यार करते हैं – पुरुष, महिलाएँ,
हिन्दू, मुसलमान, भारतीय, पाकिस्तानी, सभी। कुछ ही समय में वातावरण में फैल गई
उष्मा से यह ज़ाहिर होता था कि लोग अपनी भाषाई और धार्मिक भिन्नताओं से कहीं ऊपर उठ
कर इस एक व्यक्ति की उपलब्धियों के गीत गा रहे हैं। उनके आपसी मतभेद उन्हें
तेजेन्द्र और ज़कीया पर अपना प्यार उंडेलने से नहीं रोक पाए।
तेजेन्द्र की कुछ ग़ज़लों को बहुत सुरीली और
क्लासिकल बन्दिशों में प्रस्तुत किया श्री सुभाष आनन्द (एम.बी.ई) हवा में आज जो
उनसे थी मुलाक़ात हुई / तपते सहरा में जैसे प्यार की बरसात हुई (राग केदार), शमील
चौहान (उपाध्यक्ष – एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स) - घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया है
एवं बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे... सुरेन्द्र कुमार ने। सुरेन्द्र
कुमार ने एक सरप्राइज़ आइटम के तौर पर ज़कीया ज़ुबैरी का लिखा एक पुरबिया गीत (जाए
बसे परदेस हो सइयाँ, दिल को लागा रोग) भी प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने बहुत
सराहा।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्री माधव
चन्द्रा (मंत्री - भारतीय उच्चायोग), श्री मधुप मोहता (काउंसलर– भारतीय उच्चायोग),
डॉ. कृष्ण कुमार, सोहन राही, रिफ़त शमीम, हुमा प्राईस, जगदीश मित्तर कौशल, कृष्ण
भाटिया, सफ़िया सिद्दीक़ी, बानो अरशद, आसिफ़ जीलानी, मोहसिना जीलानी, डॉ. नज़रुल
इस्लाम बोस, अशफ़ाक अहमद, राज चोपड़ा, मन्जी पटेल वेखारिया, तनवीर अख़तर, कौसर
काज़मी, इन्द्र स्याल, स्वर्ण तलवार, अनुराधा शर्मा, वेद मोहला, भारत से पधारे डॉ.
जे.सी. बत्तरा, और पाकिस्तान से आए सरायकी भाषा के विद्वान जनाब ताज मुहम्मद लंगा
एवं सलीम अहमद ज़ुबैरी उपस्थित थे।
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९ जून २००८ की शाम तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
अभिशप्त का मंचन लन्दन के नेहरू केन्द्र में आयोजित किया गया। कहानी को अपने अभिनय
से सँवारा कृष्णकान्त टण्डन (महेश), हिना (अंजु) बख़्शी एवं इनायत पटेल (मनोज) ने
जबकि निर्देशन स्वयं तेजेन्द्र शर्मा का था। पार्श्व में इस्तेमाल किए गए संवादों
को आवाज़ दी बी.बी.सी. की ममता गुप्ता एवं निष्ठा चुघ ने। उपस्थित श्रोताओं में
श्रीमती मोनिका मोहता (निदेशक – नेहरू केन्द्र), काउन्सलर, ज़कीया ज़ुबैरी, कैलाश
बुधवार, रिफ़त शमीम, इन्दर स्याल, सोहन राही, भानु भाई पण्डया, अतुल मोडा, निशि
सिंह, दिव्या माथुर, सुरेन्द्र कुमार, किरण पुरोहित, सुरिन्दर मथारु, आशिक़ हुसैन
आदि शामिल थे।
अभिशप्त कहानी है एक ऐसे नवयुवक महेश की जो अपने
परिवार का जीवन स्तर ऊँचा उठाने की फ़िराक़ में अपनी प्रेमिका नेहा को पीछे छोड़
लंदन चला आता है। यहाँ उसे उसकी दूर की बहन और जीजा पूरी तरह उसका फ़ायदा उठाते
हैं और दुकान का नौकर बना कर रखते हैं। अपने जीवन से असंतुष्ट महेश अपने से तीन
वर्ष बड़ी अंजु से विवाह कर लेता है। हिन्दी मीडियम से बी. कॉम महेश ब्रिटेन में लोडर का काम करने को मजबूर हो जाता है। उसकी पत्नी उसे घर के काम की मशीन बना देती
है जिसका काम पैसा कमाना और अपनी पत्नी को शारीरिक सुख देना मात्र है।
महेश के मित्र मनोज की व्यथा दूसरी है। वह अपनी
पत्नी का तीसरा पति है। उसे यही ख़्याल खाए जा रहा है। जब वह महेश को कहता है कि वह
महेश से अधिक दुःखी है, तो महेश कह उठता है, "दोस्त चाहे कोई पाँचवीं मन्ज़िल से
नीचे गिरे या सातवीं से, चोट एक-सी ही लगती है।" कहानी के अन्त में मनोज फिर कहता
है, ''महेश तुम वापस भारत नहीं जाओगे। हाँ तुम रोज़ाना गिलास में शराब डालोगे उसमें
सोडा और सोडे के बुलबुलों पर बैठकर तुम हर शाम भारत चले जाओगे। लेकिन सुबह होने तक
यह बुलबुले शांत हो जाएँगे और तुम उठ कर, मुँह हाथ धोकर, ठंडा नाश्ता खाकर वापस
काम पर चल दोगे। तुम यहीं रहोगे और एक दिन मर भी जाओगे। तुम्हारी वापसी संभव नहीं।
तुम यह जीवन जीने के लिये अभिशप्त हो।" कहानी के संवाद बहुत ही चुस्त और रोचक थे।
कलाकारों में तीनों अभिनेताओं ने उत्कृष्ठ अभिनय
का प्रदर्शन किया और चरित्रों की मानसिकता को बख़ूबी जीवित कर दिखाया। ममता गुप्ता
ने पार्श्व में मां के संवादों में जान डाल दी। कुल मिला कर कथा यू.के. और नेहरू
केन्द्र ने एक सार्थक शाम अपने श्रोताओं के नाम कर दी। |