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स्टारटॉक - आइए हिन्दी बोलें!

अमेरिकी स्कूलों और विश्वविद्यालयों में इस वर्ष की गर्मी की छुट्टियाँ इस अर्थ में विशिष्ट और व्यस्तता भरी हैं कि इस समय छात्रों और भावी हिन्दी शिक्षकों के लिए स्टारटॉक के माध्यम से हिन्दी सीखने-सिखाने की नि:शुल्क कार्यशाला चल रही है। अमेरिका के पाँच शहरों - सैन डियागो, लास एन्जेल्स, ब्लूमिंगटन, फ़ोर्ट वर्थ और केन्ट के स्कूल/युनिवर्सिटी में छात्रों के लिए हिन्दी प्रशिक्षण कार्यक्रम जून से अगस्त के दौरान चलेंगे और भावी शिक्षक तैयार करने का दायित्व फ़ोर्ट वर्थ, वाशिंगटन डी सी, सियाटल, न्यूजर्सी और न्यूयार्क के स्कूलों/विश्वविद्यालयों ने उठाया है। अमेरिकन काउन्सिल फ़ॉर टीचिंग आफ़ फ़ारेन लैंगवेज (ACTFL) ने इस कार्यक्रम के लिए अपेक्षित धनराशि की व्यवस्था की है। मार्था अबॉट के कुशल नेतृत्व में इस संस्था से जुड़े विभिन्न अधिकारी और अमेरिकी विश्वविद्यालयों/स्कूलों में हिन्दी पढ़ा रहे प्राचार्य/शिक्षक इस कार्यशाला को सफ़ल बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

यह कार्यशाला पिछले वर्ष शुरू हुई। तब इसमें चीनी, फ़ारसी, अरबी और उर्दू को शामिल किया गया था। पहली बार उसमें हिन्दी जोड़ी गई है। इस कार्यशाला का पहला उद्देश्य अमेरिका के स्कूलों में हिन्दी का पठन-पाठन हाई स्कूल स्तर से शुरू करना है ताकि वे विश्वविद्यालय स्तर तक हिन्दी पढ़ें और इस भाषा को पूर्णरूपेण आत्मसात कर सकें। भविष्य में भारत और अमेरिका के बीच होने वाले व्यापार आदि में सेतु का काम कर सकें। हिन्दी और चीनी - दोनों ही भाषाओं के शिक्षण का उद्देश्य इन देशों में व्यापार का विस्तार है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि चीन की सरकार ने इस सूचना का तत्काल स्वागत किया और अपनी ओर से मात्र शिक्षण सम्बन्धी जानकारियाँ एवं पुस्तकें आदि ही उपलब्ध नहीं कराईं वरन अमेरिका सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई धनराशि में अपनी ओर से भी काफ़ी योगदान दिया। परिणामत: अमेरिका के कई हाई स्कूलों में चीनी भाषा की पढ़ाई शुरू हो चुकी है।

टेक्सास के फ़ोर्टवर्थ(डलास) शहर में एच ई बी आइ एस डी स्कूल में, जहाँ मैं व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित थी, हिन्दी कार्यशाला ९ जून से २० जून तक थी। यह कार्यशाला पूर्णत: नि:शुल्क थी। बच्चों एवं शिक्षकों के लिए समानान्तर सत्र चल रहे थे। बच्चों के लिए इन सत्रों का संचालन भवानी पारपिया कर रही थीं। बच्चों के लिए दो सत्र थे जिनमें क्रमश: सत्रह और अठारह छात्र-छात्राएँ थे। इन कक्षाओं में शिक्षण का भार अंजली देसाई एवं शहनाज के कंधों पर था। भावी शिक्षकों के सत्र में मात्र सात लोग थे जबकि बीस सीटें थीं। इस सम्बन्ध में पूछने पर यह मालूम हुआ कि वे अधिक प्रचार नहीं करना चाहते थे क्योंकि केवल बीस सीटें थीं किन्तु इस बार के प्रयोग से सबक लेकर वे अगली बार इस सन्दर्भ में ज़रूरी विज्ञापन करना चाहेंगे। प्रतिभागियों ने उन्हें भारतीय समुदाय द्वारा प्रकाशित अखबारों के नाम भी बताए एवं अपने स्तर पर उपलब्ध माध्यमों से इस सूचना को प्रचारित करने का आश्वासन दिया।

भाषाई झगड़े लगाने वालों के लिए यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि इन सात प्रतिभागियों में गुजराती, पंजाबी, मराठी, बिहारी, सिन्धी और एक अमेरिकी छात्र था। इन सबने हिन्दी में विशेष योग्यता हासिल की हुई थी और इन सबों ने युनिवर्सिटी आव टेक्सास, आस्टिन से आए हिन्दी के प्रोफ़ेसर वान ओल्फ़ेन हरमन एवं परीक्षक के रूप में उनकी सहयोगी डॉ. मिमी मेट के समक्ष सफ़लतापूर्वक हिन्दी शिक्षण का प्रदर्शन किया एवं योग्यता प्रमाण पत्र प्राप्त किए। इस कार्यशाला का सबसे उज्जवल पक्ष यह था कि यह अत्यंत मनोरंजक थी और किसी भी क्षण प्रतिभागियों को बोझिलता का अनुभव नहीं हुआ। पेन्सिलवानिया युनिवर्सिटी से आई प्रो. विजय गम्भीर की भाषा विज्ञान से सम्बन्धित कक्षाएँ प्रतिभागियों को बहुत अच्छी लगीं। सुश्री कैरी हैरिंगटन और ग्रेटा लंगार्ड ने स्कूली शिक्षण के मूलभूत तत्व समझाए।

कार्यशाला का मूल उद्देश्य यह सिखाना था कि किसी भी भाषा को उस भाषा से पूर्णत: अनभिज्ञ व्यक्ति को आसानी से कैसे सिखाया जाय। इस सन्दर्भ में सुश्री शैली ब्राउन की स्पैनिश भाषा सिखाने की कक्षाएँ सबसे सुन्दर उदाहरण रहीं। बाद में तमाम प्रतिभागियों ने उनकी शैली का अनुकरण करते हुए उन्हें हिन्दी सिखाई। कार्यशाला के अन्तिम दिन तक इस कार्यशाला की अन्य शिक्षिकाएँ, कैरी हैरिंगटन, ग्रेटा लंगार्ड तथा परीक्षक के रूप में उपस्थित डॉ. मिमी मेट ने भी हिन्दी के कुछ शब्द ही नहीं वरन पूरे-पूरे कई वाक्य, शुद्ध उच्चारण के साथ सीख लिए थे।

हिन्दी के प्रति अपनी भारत सरकार की उदासीनता और उपेक्षा जगजाहिर है। विदेश मंत्रालय में बैठे अधिकारियों को यदि भारत की छवि एवं आर्थिक विकास की कोई चिन्ता होती तो उन्होंने कम से कम इस संदर्भ में लिखे गए पत्रों का जवाब देने का कष्ट उठाया होता। अमेरिका सरकार ने पहल कर अपनी ओर से जो धनराशि दी उससे यह कार्यक्रम शुरू तो हो गया है, किन्तु एक ओर जहाँ मुक्त कंठ से चीन सरकार की प्रशंसा करते अधिकारी नज़र आए वहीं इस कार्यशाला के दौरान हिन्दी शिक्षण के प्रति भारत सरकार की उदासीनता चर्चा का विषय रही। फ़ोर्ट्वर्थ एच ई बी, आइ एस डी के सुपरिंटेंडेंट डॉ. जीन बुइन्गर का कहना था कि प्रोत्साहन या धनराशि की बात तो छोड़ दें ,आज तक इस सन्दर्भ में भेजे गए पत्रों का कोई उत्तर तक नहीं आया। इसी सन्दर्भ में किसी की टिप्पणी थी "कल को हम भारत को हिन्दी एक्स्पोर्ट करेंगे।"

यों तो अपेक्षित प्रचार के अभाव में इस वर्ष अधिकांश अमेरिकी भारतीय समुदाय भी इस सम्बन्ध में हो रही गहमागहमी से अनभिज्ञ ही रहा किन्तु हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि यदि भारत सरकार की नींद टूटी और विदेश मंत्रालय ने इस कार्यशाला को प्रोत्साहित करने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिका के अधिकांश स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई शुरू हो जाएगी। जिस तरह अमेरिकी चीनी समुदाय अपनी अगली पीढ़ी को अपनी भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है उससे अमेरिकी भारतीय समुदाय यदि सबक ले और हिन्दी पठन-पाठन में दिलचस्पी दिखाए, अपने बच्चों के स्कूलों में हिन्दी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे तो भारत की संस्कृति की मशाल का वह सिरा जो अमेरिका में जल रहा है, फिर से योग्य हाथों में आ जाएगा और अन्दर-बाहर के तमाम खतरों का सामना कर लेगा।

स्टार टॉक कार्यक्रमों की जानकारी इस वेब साइट पर उपलब्ध है :http://www.startalk.umd.edu

अमेरिकन काउन्सिल फॉर स्टडी आफ फ़ारेन लैन्गवेज जिसने इस वर्ष ये कार्यक्रम आयोजित किए, के बारे में अधिक जानकारी यहाँ उपलब्ध है :www.actfl.org/


अमेरिका में हिन्दी महोत्सव की धूम न्यू जर्सी (यू. एस. ए.)

हिन्दी यू.एस.ए. द्वारा अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के सोमरसेट नगर में फ्रेंक्लिन हाई स्कूल के सभागार में दो दिवसीय सप्तम हिन्दी महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। आयोजन के पहले दिन लगभग ६५० बालकों ने हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं में विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। १२०० क्षमता का फ्रेंक्लिन हाई स्कूल का सभागार जन समुदाय से भरा हुआ था। नृत्य, संगीत, अंताक्षरी, कविता पाठ, वाक्य में प्रयोग, हनुमान चालीसा तथा रामायण चोपाई गायन इस प्रकार की अन्य-अन्य प्रतियोगिताएँ देखकर दर्शक दाँतों तले उंगली दबाने को विवश थे। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के अलावा अमेरिका के अन्य प्रांतों तथा कनाडा में भी हिन्दी के लगभग २५ विद्यालय चला रही है। इन विद्यालयों में लगभग १२०० बालक – बालिकाएँ साप्ताहिक कक्षा में आकर हिन्दी सीखते हैं और वर्ष में एक बार आयोजित हिन्दी महोत्सव में आकर अपनी प्रतिभा का मंचन करते हैं। इन कक्षाओं की एक और विशेषता का उल्लेख करना ज़रूरी है कि इन कक्षाओं में दक्षिण भारतीय राज्यों के बालक-बालिका भी उत्साह से भाग लेते हैं। अभी तक संपन्न ६ हिन्दी महोत्सवों में भारत से बाबा रामदेव, श्रीमती किरण बेदी, श्री वेद प्रताप वैदिक, साध्वी ऋतम्भरा, श्री नितिश भारद्वाज और लाफ्टर चैम्पियन राजू श्रीवास्तव अतिथि के रूप में आ चुके हैं। इसी प्रकार भारत के हिन्दी लोकप्रिय कवि श्री अशोक चक्रधर, हुल्लड़ मुरादाबादी, माणिक वर्मा, ओम व्यास, गजेन्द्र सोलंकी काव्य पाठ कर चुके हैं।

लगभग ७ वर्ष पूर्व एक युवा दम्पति देवेन्द्र- रचिता सिंह द्वारा आरंभ किया गया यह हिन्दी अभियान एक आन्दोलन का रूप लेता जा रहा है। हिन्दी महोत्सव में इस जन आन्दोलन का भव्य रूप का दर्शन किया जा सकता है। हिन्दी साहित्य के लगभग १५ स्टॉल लगाए गए थे। भारतीय व्यंजन उपलब्ध थे तथा दर्शक भी भारतीय वेशभूषा में समारोह में उपस्थित हुए थे। कुल मिलाकर एक रंग बिरंगे मेले का रूप इस हिन्दी के उत्सव ने ले लिया था। जितने लोग सभागार में उपस्थित थे उतने ही लोग बाहर मेले का आनन्द ले रहे थे।

मेले का दूसरा दिन विजेता बालकों को प्रवासी उद्योगपति श्री ब्रह्मरत्तन अग्रवाल और पूर्व एम्बेसेडर एट-लार्ज श्री भीष्म अग्निहोत्री द्वारा पुरस्कार वितरण से आरंभ हुआ। इस अनुष्ठान में लगभग १२० से अधिक हिन्दी के अध्यापक-अध्यापिकाएँ जुड़े हैं। इन सब का सम्मान किया गया। प्रसन्नता की बात है कि इन में से बहुत से अध्यापक-अध्यापिकाएँ दक्षिण भारतीय राज्यों से भी आते हैं। हिन्दी यू.एस.ए. संस्था की एक और विशेषता का उल्लेख करना ज़रूरी है कि इस संस्था में कोई पद नहीं है, सभी स्वयंसेवक के रूप में ही कार्य करते हैं। लगभग ५० स्वयंसेवक दिन-रात मेहनत कर के इस आयोजन को सफल करते हैं। स्वयंसेवकों की मेहनत का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब सम्मान हेतु उनका नाम मंच से पुकारा गया, तो व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण, कोई भी स्वयंसेवक मंच पर उपस्थित ना हो पाया। इस अवसर पर श्री भूपेन्द्र मौर्य द्वारा सम्पादित 'कर्मभूमि' नामक त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण भी किया गया। हिन्दी यू. एस. ए. की यह ई-पत्रिका हिन्दी जगत में लोकप्रिय होती जा रही है।

इसके बाद आरंभ हुआ भारत से पधारे कवि श्री ओमप्रकाश आदित्य, राजेश चेतन, और बाबा सत्यनारायण मौर्य द्वारा कवि सम्मेलन। राजेश चेतन के संचालन में लगभग ४ घण्टे तक यह कवि सम्मेलन चला। आदित्य जी की हास्य कविताओं को सुनकर सभागार ठहाकों से गूँज रहा था। हास्य के छन्द, बालक और परीक्षा तथा नोट देवता की आरती सुनाकर, आदित्य जी ने जनता को लोट-पोट कर दिया। हास्य व्यंग के साथ, ओज कविता के तेवर रखने वाले राजेश चेतन ने अपने लगभग १ घंटे के काव्य पाठ में 'राम बना रोम' तथा 'भारत और आतंकवाद' जैसी कविताएँ सुनाकर, जनता की खूब वाह-वाह लूटी। विश्व प्रसिद्ध कवि कलाकर बाबा सत्यनारायण मौर्य ने हिन्दी महोत्सव की गरिमा अनुसार सबसे पहले राजेश चेतन की वनवासी राम कविता के साथ भगवान राम का चित्र बनाया। विश्व में सर्वाधिक तेज़ गति से चित्र बनाने के लिए प्रसिद्ध बाबा ने अपनी कविताओं के साथ-साथ चित्रकारी की भी गहरी छाप जनता पर छोड़ी। समस्त जनता ने खड़े होकर, बाबा मौर्य का आरती में सहयोग किया तथा हिन्दी को एक जन-आन्दोलन बनाने के संकल्प के साथ सातवाँ हिन्दी महोत्सव समपन्न हुआ। इस आयोजन में प्रूडेंशल बीमा कम्पनी के श्री जय पुरोहित, महावीर चुड़ासमा, और श्री सतीष करनधिकर का आर्थिक सहयोग रहा, उनके प्रति भी संस्था आभार प्रकट करती है।

३० जून २००८

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