चित्र
में बाएं से दाएं : महेन्द्र कुमार शर्मा, शरद तैलंग,
चांद शेरी, वीरेन्द्र विद्यार्थी, आर.सी.शर्मा ’आरसी’,
गुलशन मदान, रमेश चन्द्र गुप्त, एन.के.शर्मा, तथा शकूर
अनवर
कोटा : कैथल
(हरियाणा) से पधारे सुपरिचित साहित्यकार गुलशन मदान के
सम्मान में कोटा में शरद तैलंग के निवास पर एक ग़ज़ल
गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें कोटा के अनेक
ग़ज़लकारों ने अपनी ग़ज़लें प्रस्तुत कीं। गोष्ठी की
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रमेश चन्द्र गुप्त
ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके गोष्ठी
की शुरुआत की। श्री गुलशन मदान के ४ ग़ज़ल संग्रह, एक
उपन्यास तथा बाल गीतों का संग्रह प्रकाशित हो चुके है।
गोष्ठी में गुलशन मदान के अतिरिक्त शायर शकूर अनवर,
चाँद शेरी, महेन्द्र कुमार शर्मा, नरेन्द्र कुमार
शर्मा, वीरेन्द्र विद्यार्थी, शरद तैलंग, आर.सी.शर्मा
'आरसी', रमेश चन्द्र गुप्त ने अपनी श्रेष्ठ ग़ज़लों की
प्रस्तुति दी। इस अवसर पर कोटा के ग़ज़लकारों की ओर से
गुलशन मदान का शॉल ओढ़ा कर तथा स्मृति चिन्ह दे कर
सम्मानित किया गया।
संलग्न : फोटो १ में
बाएँ से दाएँ : महेन्द्र कुमार शर्मा, शरद तैलंग, चांद
शेरी, वीरेन्द्र विद्यार्थी, आर.सी.शर्मा 'आरसी',
गुलशन मदान, रमेश चन्द्र गुप्त, एन.के.शर्मा, तथा शकूर
अनवर: फोटो २ में गुलशन मदान का सम्मान करते हुए
आर.सी.शर्मा तथा रमेश चन्द्र गुप्त
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नॉर्वे में १९४० से १९४५
तक जर्मनी के नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा।
नॉर्वे की जनता का सांस लेना दूभर हो गया था। इन
वर्षों में एक शान्तिप्रिय देश नॉर्वे बर्बरता का
शिकार हो गया था। ८ मई १९४५ को नॉर्वे पुन: हिटलर के
शासन से मुक्त हो गया। ८ मई को नॉर्वे की जनता ने आज़ादी
दिवस मनाया। आज जब मैंने ओस्लो
नगर में बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आईं।
उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दे। युवाओं
का कहना था कि उन्हें इस गुलामी का अहसास नहीं है
क्योंकि वे तब पैदा नहीं हुए थे। इसलिए युवाओं
का इस दिवस से कोई सरोकार नहीं है। एक बुजुर्ग का कहना
था कि वह क्या जाने आज़ादी
जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरे मन में कविता के भाव
प्रगट होने लगे, ''न ही होली
के रंग, दीवाली के धमाके, आई
थी आज़ादी खूब धूम मचा
के।''
इस अवसर पर स्तोवनर,
ओस्लो में शाम को गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसका संचालन
किया राज कुमार भट्टी ने। जिसमें मेरा एकल काव्यपाठ
हुआ। मुझे बरबस भारत की याद आ गई।
भारत में आज भी बहुतों को दो वक्त का भोजन भी नसीब
नहीं होता। मैंने सड़क पर
घूमकर काम करने वाले बच्चों के लिए ८ मोतीझील, ऐशबाग
रोड पर एक स्कूल खोला था जो किसी कारण चल नहीं सका था।
अब फिर आशा जागी है। पुराने अधूरे
कार्य पुन: पूरे करने की ललक मुझे अपनी मातृभूमि
की ओर पुकार रही है। इस गोष्ठी में अपने छिपे विचारों
को व्यक्त कर रहा था। मेरा मानना है कि शिक्षा प्राप्त
करने के बाद बच्चे बड़े होकर आत्मनिर्भर हो जाएँगे।
भारतीय राजदूत महेश सचदेव को
०३ मई ओस्लो के एक रेस्टोरेंट
में नार्वे में विदाई दी और उनके सम्मान में कुछ शब्द
कहे, कविताएँ पढ़ीं और गीत गाए।
--शरद आलोक
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