1 दिसंबर
2007, हैदराबाद, भारतीय जीवन-मूल्यों के प्रचार-प्रसार की संस्था विश्वंभरा की
पाँचवीं वर्षगाँठ के अवसर पर यहाँ खैरताबाद स्थित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के
सम्मेलन-कक्ष में विश्वंभरा-स्थापना-दिवस-समारोह विख्यात कला-समीक्षक पद्मश्री
जगदीश मित्तल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर भारतीय मूल्य-चिंतन पर
पाँचवाँ विश्वंभरा स्थापना दिवस व्याख्यान देते हुए प्रसिद्ध भारतविद डॉ..सुनीति
शास्त्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति की मूल चिंता संस्कारशील मनुष्य का निर्माण व
मूल्याधारित समाज की स्थापना करना है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को सामूहिकता,
सौहार्द और त्याग जैसे मूल्यों से निर्मित संस्कृति की संज्ञा दी उन्होंने उपस्थित
बुद्धिजीवियों तथा साहित्य व संस्कृति प्रेमियों का आह्वान किया कि वे यदि आने वाली
पीढ़ियों को सचमुच सुंदर भविष्य देना चाहते हैं तो उसे मनुष्य बनने की शिक्षा दें -
ऐसा मनुष्य जो जड़वाद का विरोध कर सके और जिसमें देवत्व की संभावनाएँ निहित हों। विश्वंभरा
के मानद मुख्य संरक्षक पद्मभूषण डॉ. सी. नारायण रेड्डी ( ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त
भूतपूर्व राज्यसभा सदस्य ) ने संस्कृति और भाषा के परस्पर संबंध की चर्चा करते हुए
यह कहा कि मातृभाषाओं की उपेक्षा की प्रवृत्ति के कारण हिंदी सहित सभी भारतीय
भाषाओं के बोलने वालों की संख्या घटती जा रही है, जो बहुत ख़तरनाक संकेत है।
उन्होंने कहा कि संस्कृति और मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए हमें अपनी भाषाओं को
सुरक्षित और सुदृढ़ बनाने के लिए पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
समारोह के अध्यक्ष पद्मश्री जगदीश मित्तल ( कल्पना
के कला संपादक) ने विश्वंभरा स्थापनादिवस व्याख्यानमाला को अत्यंत व्यावहारिक
बताते हुए अपने संबोधन में कहा कि संस्कृति-संरक्षण के लिए अभी तक देशवासियों ने
आधुनिक संदर्भों में भारतीय भाषाओं और विशेष रूप से हिंदी की पूरी क्षमता का उपयोग
नहीं किया है। विशेष अतिथि प्रो. एम. वेंकटेश्वर ने अपने संबोधन में भारत में
जीवनमूल्य केंद्रित एक और नवजागरण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि ईमानदारी,
निष्ठा, आस्था, कर्तव्यबोध तथा शिष्टाचार जैसे मूल्यों की आज पुन: नए सिरे से
व्याख्या करने की आवश्यकता है ताकि अर्थकेंद्रित जड़वाद के आक्रमण का सामना किया जा
सके। दैनिक स्वतंत्रवार्ता के संपादक डॉ. राधेश्याम शुक्ल ने इस अवसर पर विशेष
अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा के माध्यम और संपर्क भाषा के
रूप में जब तक हिंदी पूरे भारत में व्यावहारिक रूप में स्थापित नहीं होगी, तब तक
संस्कृति और मूल्यों के प्रचार को पूरा नहीं माना जा सकता।
कार्यक्रम के अंत में संस्था की महासचिव डॉ. कविता
वाचक्नवी ने विश्वंभरा के उद्देश्यों व गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए छात्रों,
अध्यापकों, लेखकों, और भाषा-प्रेमियों के बीच किए गए संस्था के अब तक के रचनात्मक
कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि कंप्यूटर और इंटरनेट पर देवनागरी
के प्रयोग के संबंध में विकसित संसाधनों के पैकेज के प्रयोग के संबंध में किसी भी
प्रकार की सहायता का कोई भी लाभ उठा सकता है, संस्था अपनी सेवाएँ देने को सदैव
तत्पर है।
समारोह में बौद्धिक विमर्श के साथ-साथ सांस्कृतिक
कार्यक्रम भी संपन्न हुआ। गायक कलाकार पी. माधवी, बी. बालाजी, और यामिनीचरण ने
संस्कृत, तेलुगु और हिंदी भाषा के राष्ट्रीयता और संस्कृति विषयक गीतों की सस्वर
प्रस्तुति से समाँ बाँध दिया। सामूहिक दीपप्रज्वलन द्वारा उद्घाटन के अनंतर
चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ( कोषाध्यक्ष), डॉ. रामकुमार तिवारी (संरक्षक, निदेशक-
निर्दोष सोशलसर्विसेज सोसायटी, डेक्कन बैंक, निर्दोष इन्वेस्टमेंट्स) व गुरुदयाल
अग्रवाल ने अतिथियों को शाल पहना कर सम्मानित किया। कलाकारों का सम्मान डॉ. सी.
नारायण रेड्डी ने किया। मुख्य वक्ता डॉ. सुनीति शास्त्री को विश्वंभरा की ओर से
विशेष सम्मान के रूप में स्मृतिचिह्न भी भेंट किया गया।
इस अवसर पर डॉ. जे. वी. कुलकर्णी, डॉ. प्रभाकर
त्रिपाठी, डॉ. किशोरीलाल व्यास, डॉ. रेखा शर्मा, एफ. एम. सलीम, वसंतजीत हरचंद,
सत्यादेवी हरचंद, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, वीरप्रकाश लाहोटी सावन,
तेजराज जैन, सुषमा बैद, बलवीर सिंह, सुचित्रा चंद्र, चवाकुल नरसिंह मूर्ति, श्री
निवास सोमाणी, आशा देवी सोमाणी, के. नागेश्वर राव, श्रीनिवास, माधवीसुत आदि ने भी
विचार- विमर्श में सक्रिय भागीदारी की। डॉ. ऋषभदेव शर्मा ( प्रो. एवं अध्यक्ष, पी.
जी. एंड रिसर्च इन्स्टीट्यूट, विश्वविद्यालय विभाग, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा)
ने धन्यवाद ज्ञापित किया। मीडिया की ओर से आए ई-टी.वी ., डेली हिंदी मिलाप व स्वतंत्रवार्ता
के मीडियाकर्मियों के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
( डॉ. कविता वाचक्नवी, महासचिव- विश्वंभरा |