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कोटा में वसुदेव' का लोकार्पण

श्रीकृष्‍ण जन्माष्‍टमी के पावन अवसर पर डॉ. कोहली के नवीन उपन्यास 'वसुदेव' का विमोचन 4 सितंबर 2007 को शंखनाद एवं पुष्‍प-वर्षा के साथ एक भव्य समारोह में किया गया, जिसमें कोटा नगर के सभी प्रमुख साहित्यकार, कवि एवं सैंकड़ों श्रोता उपस्थित थे। 'इनसाइट संस्थान', 'पुरी पीठ के शंकराचार्य द्वारा स्थापित अ.भा.पीठ परिषद' की राजस्थान शाखा, 'अखिल भारतीय साहित्य परिषद' की कोटा शाखा, 'भारतेंदु समिति', 'संस्कार भारती', 'स्वरांजलि संस्थान' इत्यादि द्वारा डॉ.कोहली का नागरिक अभिनंदन किया गया।

कोटा के ''बिनानी सभागार'' में आयोजित इस कार्यक्रम में नगर के साहित्यकारों एवं प्रबुद्ध नागरिकों ने भारी संख्‍या में उपस्थित होकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया। प्रांरभ में 'इनसाइट' के निदेशक श्री. शिशिर मित्‍तल ने डॉ. नरेंद्र कोहली तथा उनकी धर्मपत्नी डॉ. मधुरिमा कोहली का स्वागत किया। उन्होंने अतिथियों का परिचय देते हुए कहा कि वे डॉ. कोहली की तुलना केवल रूस के लेव तोलस्तोय से ही कर सकते हैं। हिंदी साहित्य में उनका योगदान अद्भुत एवं अप्रतिम है। उनके द्वारा लिखी गई वृहद उपन्यास शृंखलाएँ हिंदी साहित्य की एक नवीन विधा हैं, जो संस्कृत साहित्य के महाकाव्य के समकक्ष हैं। प्रेमचंद के बाद पहली बार हिंदी साहित्य में किसी ऐसी प्रतिभा का उदय हुआ है जिसने साहित्य में एक नवीन युग का प्रारंभ किया है।

प्रख्यात कवि श्री बशीर अहमद 'मयूख' समारोह के मुख्य अतिथि थे। लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. शांतिलाल भारद्वाज तथा डॉ. दयाकृष्‍ण 'विजय' विशिष्‍ट अतिथि थे। श्री मयूख द्वारा डॉ. कोहली के उपन्यास 'वसुदेव' का विमोचन किया गया।

पत्र वाचन की शृंखला में प्रथम पत्र डॉ. (श्रीमती) प्रेम जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्‍होंने कृष्‍ण-बलराम के निर्माण में यशोदा एवं रोहिणी की भूमिका एवं 'वसुदेव' के अन्य नारी पात्रों का समग्र विवेचन प्रस्‍तुत किया। श्रीयुत श्रीनंदन चतुर्वेदी ने कहा कि 'वसुदेव' लेखक की उपन्यास-कला तथा चिंतन शैली का सहारा पाकर एक स्‍पृहणीय व्यक्तित्व के रूप में उभर कर आए हैं। वे भारतीयता के आख्याता हैं तथा कष्‍ट सहने में चट्टान के समान वज्र-कठोर हैं। वे गंभीर हैं, वीर हैं, शस्त्र तथा शास्त्र के ज्ञाता हैं। नीतिनिपुण हैं और समायानुकूल आचरण करने वाले हैं। विषम से विषम परिस्थिति भी उन्हें तोड़ नहीं पाती। वे आस्तिक हैं तथा प्रभु की सामर्थ्य में उनका अटूट विश्‍वास है। स्वभाव से धैर्यवान होने के साथ-साथ वे उद्घत है। क्षत्रियोचित स्वाभिमान उनमें कूट-कूट कर भरा है। शास्‍त्रीय दृष्टि से वे धीरोदात्त नायक हैं उन्होंने कहा कि वसुदेव नीतिनिपूण हैं तथा व्यवहारिक हैं। तत्कालिक संकट से मुक्ति पाने के लिए दिए गए वचन की पालना करना वे आवश्‍यक नहीं समझते इसीलिए अपने पुत्रों को कंस से बचाने की योजना बनाते हैं तथा सातवें तथा आठवें पुत्रों की रक्षा करने में सफल रहते हैं। उन्होंने कहा कि वसुदेव का व्यक्तित्व श्रद्धास्पद है। वे विकट योद्धा हैं तथा मथुरा के समाज में उनके प्रति अटूट श्रद्धा है।

श्री. अरविंद सोरल ने अपने पत्र में एक सामान्य से अधिक जागरूक पाठक की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि 'वसुदेव' लेखक के आक्रोश की पटकथा है। उन्होंने कहा कि भारत पर विदेशी आक्रमण स्थायी हो चुका है। हमारी संस्कृति आक्रांत है। बहुमत ने इस आक्रमण के सामने घुटने टेक दिए हैं। आत्म-कृतघ्‍नतावाद का दर्शन विकसित किया जा चुका है। किंतु नरेंद्र कोहली उन लोगों में से हैं, जो इस आक्रमण के समझ, घुटने टेकने से इंकार करते हैं। वे इस आक्रमण के विरुद्ध युद्ध की प्रेरणा के लिए 'वसुदेव' में उस चरित्र को खोज लेते हैं जो नेतृत्व के लिए आदर्श है। उन्होंने कहा कि यह उपन्यास एक और नागयज्ञ का मंगलाचरण है तथा समस्त भारतवासियों को इसमें आहुति देने का खुला निमंत्रण भी इसी में है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग कंस के युग का ही अनुवाद है। इस युग में भी वसुदेव अनिवार्य हैं। जो कृष्‍ण को अपने रक्त में धारण कर सकें। तभी अधर्म का नाश और धर्म की रक्षा संभव है। इसी हेतु वसुदेव की रचना अत्‍यंत प्रासंगिक है।

डॉ. नरेंद्र कोहली ने अपने उद्बोधन में स्पष्‍ट किया कि 'वसुदेव' उपन्यास में उन्होंने कंस के शिक्षा मंत्री का नाम जानबूझ कर अर्जुन सिंह दिया है क्योंकि कंस राज में ही यह संभव हो सकता है कि योग का विरोध हो और कामसूत्र को पाठ्यक्रम में शामिल करने की योजना बने। उन्होंने कहा कि 'वसुदेव' मनुष्‍य की सतत जिजीविषा की कथा है। जूझते रहने की इच्छा की तथा क्रांति में अपने हर संभव योगदान की कथा है। इसी हेतु इस उपन्यास का एक पात्र वीरभद्र एक स्थान पर कहता है, ''यदि हो सके तो घास बन कर उग आ, यमुना में जल बनकर बह जा।''

डॉ. कोहली ने कहा कि कृष्‍ण निश्चित ही अवतार थे। कोई भी अवतार बिना पूर्व घोषणा के नहीं आता। कृष्‍ण के आने की घोषणा नारद द्वारा कंस के समक्ष इसी हेतु कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि जब अवतार आता है तो उसके पार्षद भी साथ आते हैं। उन्होंने कहा कि कृष्‍ण की समस्त लीलाओं के प्रतीकात्मक अर्थ हैं। चाहे वह चीरहरण की लीला हो या कालियमर्दन हो अथवा रासलीला हो।

आयोजन के मुख्य अतिथि श्री बशीर अहमद मयूख ने कहा कि भारत की संस्कृति उत्सवधर्मा है तथा कृष्‍ण का जीवन एक उत्‍सव है। डॉ. भारद्वाज तथा दयाकृष्‍ण 'विजय' ने 'वसुदेव' उपन्यास को कालजयी असाधारण महाकाव्यात्मक उपन्यास बताया। कार्यक्रम का अत्यंत रुचिकर एवं सफल संचालन 'हाड़ौती' के कवि श्री रामेश्‍वर शर्मा ('रामू भैया') ने किया।

डॉ. नरेंद्र कोहली कोटा प्रवास के उपलक्ष्‍य में 'इनसाइट' संस्थान द्वारा कोटा नगर के सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में डॉ. कोहली के उपन्यास 'वसुदेव' पर आधारित निबंध प्रतियोगिता भी आयोजित की, जिसमें छात्रों ने बड़े उत्साह से भाग लिया। कई विद्यालयों में 'वसुदेव' के अनेक अंशों का वाचन भी किया गया, जिससे अधिकाधिक संख्या में छात्र एवं अध्यापक उसका लाभ उठा सकें। विजेताओं को डॉ.कोहली के ही हाथों पुरस्कार दिलवाए गए।

-अरविंद सोरल, कोटा
24 अक्तूबर 2007

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