योद्धा गीतकार नचिकेता की षष्टिपूर्ति पर प्रकाशित ''पुन:''
के विशेषांक पर चर्चा संपन्न।
''पुन:'' (अंक- 17,नवंबर-2006)
दिनांक 04/02/ 2007 (रविवार) को शेफाली
अपार्टमेंट, पटना में अखिल भारतीय हिंदी प्रसार प्रतिष्ठान के तत्वावधान
में ख्यातिलब्ध आलोचक एवं चिंतक प्रो.रामबुझावन सिंह की अध्यक्षता में ''पुन:'' के
विशेषांक ''योद्धा गीतकार नचिकेता'' पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
''पुन:'' में प्रकाशित नचिकेता के 61 गीतों के बारे में प्रो० रामबुझावन सिंह ने
कहा कि नचिकेता हिंदी साहित्य के एक ऐसे गीतकार हैं जो हर पल गीत सोचते एवं जीते
हैं। उनके गीतों में आम आदमी के जीवन की धड़कन साफ़ सुनाई देती है। नचिकेता के बिना
''जनगीत'' की चर्चा पूरी नहीं हो सकती। संचालन करते हुए कथाकार एवं आलोचक डॉ.
सतीशराज पुष्करणा ने कहा कि नचिकेता के गीतों को पढ़ना वस्तुत: अपने समय के सच को
समझना है और सर्वहारा के जीवन को गहराई जानना-पहचानना है।
गोष्ठी का शुभारंभ राजकुमार प्रेमी के वाणी वंदना से प्रारंभ हुआ। गीतकार नचिकेता
को उनकी गीत-साधना के लिए अध्यक्ष द्वारा सम्मानित किया गया। आधार वक्तव्य प्रस्तुत
करते हुए आलोचक वंशीधर सिंह ने कहा कि नचिकेता के गीत संसार में विचरने से पूर्व
उनके व्यक्तित्व एवं विचारों से अवगत होना अनिवार्य है। वे जनवाद के पक्षधर होते
हुए भी किसी पार्टी विशेष का घोषणा-पत्र नहीं लिखते। वे साहित्य को साहित्य की तरह
लेते हैं। कथाकार नरेन ने कहा कि नचिकेता के गीत हमें जीवन का सही बोध कराते हैं।
इनके गीतों की ताक़त लोकभाषा मगही के ऐसे शब्द हैं जो हिंदी की थाती बनते जा रहे
हैं। आलोचक ब्रजेश पांडेय के अनुसार नचिकेता के गीत महज़ एक अर्थ लेकर नहीं चलते,
उन्हें पढ़ते जाइए, प्रत्येक बार आपको एक नया अर्थ संप्रेषित होता है, यही इनके
गीतों की सार्थकता है और विशेषता भी।
पुष्पा जमुआर ने अपने आलेख-पाठ में कहा कि नचिकेता
के गीतों में जिस शिद्दत के साथ सांप्रदायिकता की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है, अन्यत्र
देखने को नहीं मिलती है। वे वर्णवाद के पक्षधर नहीं उसके कट्टर विरोधी हें। यही
भावना उनके गीतों में प्रत्यक्ष होती है। कवयित्री यशोधरा राठौर ने कहा कि नचिकेता
जैसे गीतकार हमारे मध्य हैं, हमारे गर्व करने के लिए यही काफ़ी है। नचिकेता ने
गीतों पर जितना चिंतन किया या जितने गीत लिखे है, इतनी समृद्धि अन्यत्र दिखाई नहीं
देती। गीतकार विशुद्धानंद के अनुसार नचिकता के गीतों को वर्ग अथवा वाद में बाँट कर
देखना इनकी रचनाओं के प्रति अन्याय होगा। उन्होंने समयानुकूल भिन्न-भिन्न शिल्प में
मात्र गीत लिखे अपितु सार्थक प्रयोग भी किए हैं। उन्होंने भजन, बाइसकोप, प्रेम
इत्यादि शिल्प को भी अपनाया किंतु उनके तेवर अथवा विचारधारा में कहीं से कोई भी
अंतर नहीं आया। ''पुन:'' के संपादक कृष्णानंद कृष्ण ने कहा कि नचिकेता के गीतों की
अनुभूति की संरचनाओं में आने वाले बदलावों को ही नहीं महसूस किया जाता अपितु पूरी
गीत विधा की अपूर्व प्रभविष्णु क्षमता और अभिव्यक्ति
का भी जायज़ा लिया जा सकता है। 'विचार दुष्टि' के संपादक सिद्धेश्वर ने कहा कि
नचिकेता के गीत मन बहलाने के साधन नहीं हैं बल्कि ये निश्चित दिशा की ओर विचार करने
हेतु उकसाते हैं। इसके अतिरिक्त बाबूलाल मधुकर, हृदयेश्वर, मृत्युंजय मिश्र
'करुणेश', नरेंद्र प्रसाद 'नवीन', घमंडी राम, वीरेंद्र कुमार भारद्वाज, योगेंद्र
प्रसाद मिश्र आदि ने अपने विचार अभिव्यक्त किए।
अपने गीतों पर अभिव्यक्त विचारों का सम्मान करते
हुए नचिकेता ने कहा कि किसी भी रचना के मुख्यत: दो अंग होते हैं। एक स्वरूप और
दूसरा अंतर्वस्तु। मैंने अपने गीतों में अपेक्षाकृत अंतर्वस्तु पर अधिक ध्यान दिया
है। यही कारण है कि यदा-कदा कहीं-कहीं छंद भंग होता है तो मैं इसकी परवाह नहीं
करता। मैंने यथा-संभव अपने गीतों में प्रत्येक शब्द का उपयोग पूरी सावधानी एवं
ज़िम्मेवारी से किया है। अंत में हिंदी-भोजपुरी के आलोचक नागेंद्र प्रसाद सिंह ने
धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता का निर्वाह करते हुए कहा कि नचिकेता के गीत अकस्मात
नहीं चले आए, वस्तुत: ये समय की माँग हैं। इसीलिए उनके रचनाकाल से उस काल की स्थिति
के संदर्भ में उनकी रचनाओं को समझने में सहूलियत होती है। 'अखिल भारतीय हिंदी
प्रसार प्रतिष्ठान' के आयोजकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस संस्था द्वारा
प्रत्येक माह पुस्तक विशेष पर अथवा किसी पत्रिका के विशेषांक पर चर्चा आयोजित कर
साहित्य में सार्थक कार्य कर रही है।
प्रतिभा राज
बिहार सेवक प्रेस,महेंद्रू, पटना-800 006 (बिहार)
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