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दुबई में द्वितीय खाड़ी क्षेत्र हिंदी सम्मेलन संपन्न
निकट का विमोचन दुबई, 16-17-18 जनवरी 2007 को इंडियन हाई स्कूल स्थित शेख राशिद आँडिटोरियम में दूसरा खाड़ी क्षेत्र हिंदी सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में संयुक्त अरब इमारात और खाड़ी क्षेत्रों के हिंदी विद्वानों के अतिरिक्त भारत, रूस और यू.के. से पधारे लेखकों, पत्रकारों और कवियों ने भाग लेकर कार्यक्रम को न केवल विस्तृत फलक प्रदान किया बल्कि हिंदी की वर्तमान स्थिति के उन रूपों पर भी प्रकाश डाला जो यूरोप एवं विश्व के अनेक हिस्सों में आकार ले रहे हैं।

भारतीय दूतावास के संरक्षण में इस हिंदी सम्मेलन का आयोजन द इंडियन हाई स्कूल के सी. ई. ओ. श्री अशोक कुमार ने किया। मुख्य अतिथि थे भारत में 'हंस' पत्रिका के संपादक श्री राजेंद्र यादव। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती कांता भाटिया और कथाकार कृष्ण बिहारी ने किया।

श्री राजेंद्र यादव ने कहा कि ''साहित्य में उनकी बात प्रमुखता से उभरनी चाहिए जिन्हें सदियों से दबाया-कुचला गया है। औरत और दलित की कोई पहचान आज भी नहीं है, असंतोषजनक है और त्रासद है।''

उपन्यासकार श्री विभूति नारायण राय की राय भाषा के सरलीकरण के मामले में बहुत साफ़ थी, '' हिंदी भाषा को मुंबइय्या बना देना या उसी को पूरे देश की हिंदी समझना भारी भूल है भाषा का अपना संस्कार होता है और वह अपनी संजीवनी खुद पाती है इसमें दो राय नहीं कि फ़िल्मों ने हिंदी को घर-घर पहुँचाया है, फिर भी हम साहित्यकारों को यह ध्यान रखना होगा कि भाषा के परिष्कार को उसके अपने स्वरूप के साथ आगे बढाएँ न कि टपोरियों की भाषा को हिंदी बना दें।''

''प्रवासी संसार'' पत्रिका के संपादक श्री राकेश पांडे ने इसी विषय पर बोलते हुए कहा, ''भाषा को आज बाज़ार मिल गया है और वही भाषा इस माहौल में बचेगी जिसमें लचीलापन होगा।''

पत्रकार और विभिन्न पत्रिकाओं के स्तंभ लेखक श्री अजित राय ने कहा, '' दुनिया भर में हिंदी को एक अलग किस्म का विस्तार मिल रहा है यह विस्तार हिंदी के लिए सुखद है हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी की रोजी-रोटी खाने वाले ही इसके दुश्मन न बनें।''

मास्को से आए कवि जनविजय ने कहा, ''भारतीय साहित्यकार भारत से बाहर जिन देशों मे रहते हैं, उन्हें वहाँ की भाषा सीखनी चाहिए लेकिन प्रायःऐसा होता नहीं है और विदेशी साहित्य की जो मात्रा हिंदी में उपलब्ध होनी चाहिए वह नहीं है विदेशी साहित्य की प्रचुरता हिंदी को समृद्ध ही करेगी और तब इसी अनुपात में हिंदी साहित्य भी विदेशों में पहुँचेगा।''

लंदन से आईं श्रीमती जकिया जुबैरी ने भारतीय राजदूत श्री सी. एम. भंडारी को पहले तो इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि महामहिम ने दोनों दिन पूरे समय कार्यक्रम में उपस्थित रहकर ब्यूरोक्रेसी की कोई छाप नहीं दिखाई बल्कि एक सहज सामान्य साहित्य प्रेमी के रूप में इस कार्यक्रम को आयोजित करके अद्भुत लोकप्रियता पाई। उन्होंने आगे कहा, ''साहित्य की दुनिया में दो ज़बानों हिंदी और उर्दू को अब तो इस बात से तोबा कर लेनी चाहिए कि दोनों अलग हैं आपस की इस लौझड से दोनों का नुकसान हो रहा है।''

लंदन से ही आए कथाकार एवं पुरवाई पत्रिका के संपादक श्री तेजेंद्र शर्मा ने कहा भारत से बाहर रचे जा रहे हिंदी साहित्य को दोयम दर्जे का समझने की भूल करना या तो आलोचकों का अहम है या फिर उनका अज्ञान। प्रवासी रचनाकार का साहित्य और उसकी भाषा अपने परिवेश से प्रभावित होंगे और उसे हिंदी का अपभ्रंश मानना बेवकूफ़ी होगा। उन्होंने आगे कहा कि प्रवासी साहित्य की परिभाषा भी साफ़ होनी चाहिए। प्रत्येक देश में रचे जा रहे हिंदी साहित्य में उस देश के सरोकार दिखाई देना एक आवश्यक शर्त है। ''प्रवासी हिंदी साहित्य को बहुत दिनों तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता यूरोप में, ख़ासतौर पर लंदन में इन दिनों हिंदी में बहुत कुछ लिखा जा रहा है उसे चिह्नित किया जाना चाहिए।

भारत से पधारे श्री अंबिका सिंह ने वैज्ञानिक शब्दावली के हिंदीकरण में बरती जाने वाली असावधानियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि सरल और स्वाभाविक अनुवाद की ओर ध्यान देना आवश्यक है।

कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा अभिव्यक्ति एवं अनुभूति वेब पत्रिकाओं की संपादिका पूर्णिमा वर्मन द्वारा 'इंटरनेट और हिंदी' विषय पर दिखाई की गई पावर पॉइंट प्रस्तुति।

प्रतिबिंब थियेटर ग्रुप के स्थानीय कलाकारों ने प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब की नाटकीय प्रस्तुति कर श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार का दिल जीत लिया। इस प्रस्तुति के निर्देशक थे महबूब हसन रिज़वी, कलाकार थे मुहम्मद अली, प्रकाश सोनी और इंडियन स्कूल के छात्र।

इस अवसर पर भारत के राजदूत महामहिम श्री सी. एम. जी ने यू.ए.ई. से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका ''निकट'' का विमोचन भी किया।

24 फरवरी 2007

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