उन दिनों प्रसिद्ध
उपन्यास-लेखक मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर में अध्यापक थे।
उन्होंने अपने यहाँ गाय पाल रखी थी। एक दिन चरते-चरते उनकी
गाय वहाँ के अंग्रेज़ जिलाधीश के आवास के बाहरवाले उद्यान
में घुस गई। अभी वह गाय वहाँ जाकर खड़ी ही हुई थी कि वह
अंग्रेज़ बंदूक लेकर बाहर आ गया और उसने ग़ुस्से से आग बबूला
होकर बंदूक में गोली भर ली।
उसी समय अपनी गाय को खोजते हुए प्रेमचंद वहाँ पहुँच गए।
अंग्रेज़ ने कहा कि 'यह गाय
अब तुम यहाँ से ले नहीं जा सकते। तुम्हारी इतनी हिम्मत कि
तुमने अपने जानवर को मेरे उद्यान में घुसा दिया। मैं इसे अभी
गोली मार देता हूँ, तभी तुम काले लोगों को यह बात समझ में
आएगी कि हम यहाँ हुकूमत कर रहे हैं।' और उसने भरी बंदूक गाय
की ओर तान दी।
प्रेमचंद ने नरमी से उसे
समझाने की कोशिश की, 'महोदय! इस बार गाय पर मेहरबानी करें।
दूसरे दिन से इधर नहीं आएगी। मुझे ले जाने दें साहब। यह
ग़लती से यहाँ आई।' फिर भी अंग्रेज़ झल्लाकर यही कहता रहा,
'तुम काला आदमी ईडियट हो - हम गाय को गोली मारेगा।' और उसने
बंदूक से गाय को निशान बनाना चाहा।
प्रेमचंद झट से गाय और
अंग्रेज़ जिलाधीश के बीच में आ खड़े हुए और ग़ुस्से से बोले,
'तो फिर चला गोली। देखूँ तुझमें कितनी हिम्मत है। ले। पहले
मुझे गोली मार।' फिर तो अंग्रेज़ की हेकड़ी हिरन हो गई। वह
बंदूक की नली नीची कर कहता हुआ अपने बंगले में घुस गया। |