केदारनाथ का मार्ग सौंदर्य की
दृष्टि से जितना अप्रतिम है, चढ़ाई की दृष्टि से उतना ही
बीहड़। सौंदर्य सदा काँटों के बीच ही सुरक्षित रहता है।
मार्ग बीहड़ है तो चोट भी बहुत लगती है। वह स्वयं अपनी चोटें
देखकर चकित हुआ है। कैसे पैदा होता है अमिट साहस और विश्वास,
यह वह उस दिन जान सका जब उसने एक वृद्धा को देखा। एक चट्टान
पर से लुढ़क जाने के कारण काफ़ी चोटें आई थीं। पैदल चलना
असंभव था।
उनके साथ कई आदमी थे, सहारा
दिया। उनके ज़ख़्म साफ़ किए, दवा लगाई, खाने की दवा दी और
उसके बाद उन्हें एक कंडी पर बैठाया। पट्टियाँ बँधी थीं।
पीड़ा कभी-कभार कसक उठती थी, पर वह सदा की तरह शांत और
हँसमुख बनी रही। सबसे उसी तरह प्यार से बातें करती रहीं।
अपने साथियों के साथ वह भी
उनके पास गया। शिष्टाचारवश बड़ी विनम्रता से उसने कहा,
"माताजी, आपको तो बहुत चोट लगी है, फिर भी आप. . ."
बात काटकर वे प्यार से
बोलीं, "बेटे! तीर्थों में चोट सही जाती है, कही नहीं जाती।" |