हर नदी गंगा है
- रामेश्वर मिश्र पंकज
गंगा,
यमुना, सरस्वती, सिंधु, नर्मदा,
कृष्णा, गोदावरी, ताप्ती और कावेरी तो
परम पवित्र हैं ही और उनकी पवित्रता
पर बहुत लिखा-कहा गया है। किंतु साथ
ही, भारतीय दृष्टि में यह भी बराबर
स्पष्ट रहा है कि हमारी दृष्टि, बोध,
भावना और कर्म ही इस पवित्रता को
बनाये रख सकते हैं। फलत: यह बोध भी
सदा जागृत रहा है कि हर नदी अपने-अपने
क्षेत्र के लिए गंगा ही है। जैसे हर
स्त्री जगतजननी का अंश है, हर कुमारी
कन्या त्रिपुरबाला दुर्गा का अंश है
उसी तरह प्रत्येक नदी गंगा है। जिसकी
हर नदी के प्रति पवित्र भावना नहीं,
उसकी गंगा के प्रति वास्तविक पवित्र
भावना संभव नहीं।
प्रत्येक परम्परानिष्ठ भारतीय अपनी
नदियों को माँ ही मानता रहा है, और
मानता है। गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र
-सिंधु और सप्तसिंधु, कश्मीर आदि की
तरह विंध्य, विदर्भ, महाराष्ट्र,
गुजरात, कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु आदि
सभी क्षत्रों में नदियों के प्रति यही
भाव है। गोदावरी और नर्मदा का
माहात्म्य गंगा की ही तरह है। विदिशा,
पूर्णा, तापी या ताप्ती, पयस्विनी,
मन्दाकिनी, चित्रकूटा, श्रृपा,
निर्विन्ध्या जैसी मध्य भारत-विन्ध्य
-विदर्भ की नदियाँ सपूजित हैं
अमरकंटक, त्रिपुरी, माहिष्मती, ओंकार-
मान्धाता, अंकलेश्वर भृगुतीर्थ,
जामदग्न्य तीर्थ, कबीरबड़, भृगुकच्छ
या भरूकच्छ जैसे तीर्थ और मंडला,
होशंगाबाद जैसे शहर नर्मदा तट पर हैं।
क्षिप्रा तट पर महाकाल की नगरी
उज्जयिनी है। उत्तरापथ और दक्षिणापथ
की सीमारेखा है भगवती नर्मदा। इसीलिए
इस पवित्र कुमारी की परिक्रमा या
परिकम्मा का बहुत महत्व शास्त्रों में
विस्तार से प्रतिपादित है। विभिन्न
शिला- लेखों में भी नर्मदा का सादर
उल्लेख है। मन्दाकिनी के तट पर परम
पवित्र चित्रकूट धाम है। चित्रकूट और
मन्दाकिनी दोनों ऋक्षपर्वत से भी
निकली हैं। विन्ध्य से निकली महानदी
का एक नाम चित्रोपला या चित्रोत्पला
भी है। जैन- गंगा (वेणा) का भी महत्व
ब्रह्मांड, मत्स्य आदि पुराणों में
वर्णित है।
गंगा-गोदावरी की तरह ही कृष्णा,
कृष्ण-वेणा, वेण्या, तुंगा,
तुंगभद्रा, ताम्रपर्णी, फेना, पम्मा,
प्रवरा पापघ्नी, चित्रावती और कावेरी
भी परम पवित्र, शास्त्र सुपूजित हैं।
सह्याद्रि पर्वत से निकली हुई ये पाँच
नदियाँ पंचगंगा कही गयी हैं- कृष्णा,
वेणी, कुकुदमती (कोयना), सावित्री और
गायत्री। कृष्णा महाराष्ट्र, कर्नाटक
और आंध्र की नदी है। महाबलेश्वर,
श्रीपर्वत, वाई, विजयवाड़ा सांगली,
सतारा (माहुली) जैसे प्रसिद्ध स्थल
कृष्णातट पर हैं। पवित्र भीमा नदी
(भीमरथी) की पुराणों में प्रचुर
प्रशस्ति है। इसके निकास-स्थल पर
भीमशंकर हैं, जो बारह ज्योतिर्लिंगों
में से एक हैं। पवित्र पंढरपुर इसी
भीमरथी के तट पर है। गुजरात की
साभ्रमती (साबरमती) नदी की भी पुराणों
में महिमा गायी गयी है।
पद्मपुराण के अनुसार इसकी सात धाराएँ
हैं- साभ्रमती, सेटीका, बकुला,
हिरण्मयी, हस्ति- मती (हाथीमती),
वेत्रवती (वात्रक) एवं भद्रमुखी। इस
पुराण के चालीस अध्यायों में साभ्रमती
के उपतीर्थों का विस्तार से वर्णन है।
प्रत्येक महत्वपूर्ण नदी की तरह
हजारों ऋषि-मुनि यहाँ भी तपस्या कर
चुके हैं। आधुनिक काल में महात्मा
गाँधी की भी यह तपस्थली रही है।
अग्नितीर्थ, कर्दनाल, कापोतक तीर्थ,
काश्यप तीर्थ, धवलेश्वर, निम्बार्क
तीर्थ, चन्द्रेश्वर, आदित्य तीर्थ,
पालेश्वर, ब्रह्मवल्ली तीर्थ,
रूद्रमहालय तीर्थ आदि साभ्रमती के
तटवर्ती प्रमुख तीर्थ हैं। पवित्र
ज्योतिर्लिंग प्रभास तीर्थ उस स्थल पर
है जहाँ सरस्वती समुद्र में मिली।
द्वारकापुरी गोमती के तट पर और
समुद्रतटवर्ती है। पहले वह कुशस्थली
नाम से विख्यात थी। उत्तराध्ययन सूत्र
आदि जैन ग्रंथों में तथा बौद्ध जातकों
में भी द्वारका एवं रैव तक (गिरनार)
का उल्लेख है।
महानदी, सुवर्णरेखा, वैतरणी, कपिशा और
विरजा उड़ीसा की प्रसिद्ध नदियाँ हैं।
वैतरणी तट पर विरज तीर्थ है। नदियों
की ही तरह समुद्र भी हमारे यहाँ
पूज्य-पवित्र रहा है। पवित्र
पुरूषोत्तम क्षेत्र जगन्नाथ धाम,
द्वारका धाम एवं रामेश्वर धाम
प्रख्यात हैं। पुरूषोत्तम तीर्थ
जगन्नाथ को धर्मशास्त्रों में महान
मोक्ष-तीर्थ कहा है। यहाँ का
महाप्रसाद अत्यंत पवित्र माना जाता
है।
पवित्र गोदावरी या गोमती के तट पर
पंचवटी, नासिक, जनस्थान, प्रवरा-
संगम, वंजरा-संगम, गोवर्धनतीर्थ,
आत्मतीर्थ, आत्रेयतीर्थ,
आपस्तम्बतीर्थ, इंद्र - तीर्थ,
इलातीर्थ, ऋणमोचनतीर्थ, कपिलतीर्थ,
कोटितीर्थ गोविंदतीर्थ, चक्षुस्तीर्थ,
छिन्नपापक्षेत्र, नन्दीतट, नागतीर्थ,
नीलगंगा, पुरूरवस्तीर्थ, प्रतिष्ठान
या पैठन, पैशाचतीर्थ, पौलस्त्यतीर्थ,
फेना-संगम, बार्हस्पत्यतीर्थ,
मन्युतीर्थ, मातृतीर्थ यमतीर्थ,
श्वेततीर्थ, सिद्धतीर्थ आदि हैं।
गोदावरी जहाँ समुद्र में सात मुखों से
मिलती है, वहाँ सप्तगोदावर क्षेत्र
हैं। ये सातों प्रवाह सात ऋषियों के
नाम पर प्रसिद्ध हैं।
इसी तरह जहाँ से गोदावरी निकलती है,
वहाँ पवित्र त्र्यम्बकेश्वर धाम है।
भद्राचलम और राजमहेंद्री भी गोदावरी
तट पर ही हैं। कावेरी भी महाभारत एवं
पुराणों में सादर वर्णित है। इसे भी
गोदावरी की तरह दक्षिणी-गंगा कहा गया
है।
तुंगा
और भद्रा कूडली के पास मिलकर
तुंगभद्रा होती है। तुंगा के तट पर
प्रसिद्ध शृंगेरिमठ है। महान विजयनगर
राज्य चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में
तुंगभद्रा के ही तट पर उभरा-फैला और
सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी के
पूर्वार्द्ध तक कायम रहा। तुंगभद्रा
तट पर ही पुराण- प्रशंसित पवित्र
हरिहर क्षेत्र है। अलमपुर (रायचूर
जिला) में तुंगभद्रा कृष्णा से मिलती
है। एक अन्य पुराण-पूजित नदी वेगवती
है, जिसके दक्षिणी तट पर मदुरा स्थित
है। मदुरा पाण्ड्यों की राजधानी रही
है। यह विद्या, कला और धर्म का एक
महान केंद्र थी। यानी अर्थतीर्थ,
कामतीर्थ और धर्मतीर्थ तीनों थी। इसी
तरह महान पल्लव राज्य भी पेन्नार नदी
के तट पर फैला था जो उत्तर में उड़ीसा
तक विस्तृत था। प्रसिद्ध कांची तीर्थ
पल्लवों की राजधानी था। इतिहास साक्षी
है कि इन सभी तीर्थों को ,पवित्र
नदियों को सदा स्वच्छ, सुदर,
प्रवहमान, प्राणवान एवं धर्ममय रखा
जाता रहा है। नदी-तटों पर युद्ध भी
हुए, लाशें भी बहीं, पर उस पवित्र
जीवन-दृष्टि द्वारा संरक्षित-पोषित
प्रवाह में वे आकस्मिक अपशेष जलचर-
जीवों का आहार बन जाते थे और प्रवाह
अबाधित रहता था।
१ मई २०२३ |