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 प्रकृति और पर्यावरण

 

बाँस की कहानी
- अर्बुदा ओहरी


बाँस, ग्रामिनीई कुल की एक घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। इसकी अनेक जातियाँ होती हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा और डेंड्रोकेलैमस आदि हैं। बैंब्यूसा बैंबू का लैटिन नाम है। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, उत्तरी आस्ट्रेलिया, भारत, हिमालय की तराई, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस में प्रकृति को संरक्षित करने का अद्भुत गुण है।

बाँस का उत्पादन-

चीन के बाद भारत बाँस की अनुवांशिक संसाधनों में १३६ प्रजातियों के साथ दूसरे स्थान पर है जिसमें से ५८ प्रजातियाँ उत्तरी पूर्वी भारत में पाई जाती हैं। भारत मे बाँस के जंगलों का कुल क्षेत्रफल ११.४ मिलियन हेक्टेयर है जो कुल जंगलों के क्षेत्रफल का १३ प्रतिशत है। भारत में बाँस का अनुमानित वार्षिक उत्पादन १.३५ करोड़ टन है। देश का उत्तरपूर्वी क्षेत्र बाँस के उत्पादन में काफी समृद्ध है। यहाँ देश का ६५ प्रतिशत एवं विश्व का २० प्रतिशत बाँस का यहीं उगता है।

आर्थिक महत्व-

एक अनुमान के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में बाँस का योगदान १२ अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है जिसमें विकासशील देश अग्रणी हैं। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका मनुष्य के जीवन में आर्थिक और सांकृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, दैनिक जीवन के अनेक उपकरण इससे बनते हैं। बाँस की खपच्चियों से तरह तरह की चटाइयाँ, कुर्सी, मेज, चारपाई एवं अन्य वस्तुएँ बनती हैं। इसकी पतली चपटी बेंत से कुर्सियाँ आदि बुनी जाती हैं। मछली पकड़ने का काँटा, डलिया आदि बाँस से ही बनाए जाते हैं। कच्चे मकानों तथा पुल बनाने में इसका उपयोग होता है। इससे तरह तरह के बाजे, जैसे बाँसुरी, वॉयलिन, नागा लोगों का ज्यूर्स हार्प, मलाया का ऑकलाँग तथा छत्तीसगढ़ का बाँस वाद्य बनाया जाता है। एशिया में इसकी लकड़ी बहुत उपयोगी मानी जाती है और छोटी छोटी घरेलू वस्तुओं से लेकर मकान बनाने तक के काम आती है।

भोजन का स्रोत-

यह भोजन का भी स्रोत है। बाँस का प्ररोह (नया उगा पौधा) खाया जाता और इसका अचार तथा मुरब्बा भी बनता है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। इसके अतिरिक्त बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। बाँस का एक हेक्टेयर रोपित क्षेत्र प्रति वर्ष वातावरण से १७ टन कार्बन अवशोषित कर सकता है। बाँस अन्य तीव्र गति से बढ़ने वाले पेड़ों की तुलना में वातावरण से कई गुना ज्यादा कार्बन भी संरक्षित करता है।

बाँस की खेती-

बाँस की खेती आर्थिक दृष्टि से उपयोगी मानी जाती है और यह अनेक परिवारों का जीवन स्रोत है। एक बार बाँस खेत में लगा दिये जाएँ तो ५ साल बाद वे उपज देने लगते हैं। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियों का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाले पौधों में से एक है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, गाँठदरा, प्रायः खोखला और अनेक शाखाओं वाला होता है। तने की निचली गाँठों से जड़ें निकलती हैं, जो रेशेदार होती हैं। इसकी पत्तियाँ लंबी और अंत में नुकीली होती हैं। बाँस की प्राकृतिक सुदंरता के कारण इसकी माँग सौदर्य एवं डिजाइन की दुनिया में तेजी से बढ़ रही है।

बाँस के फूल एवं फल-

बाँस का जीवन १ से ५० वर्ष तक होता है, जब तक कि फूल नहीं खिलते। फूल बहुत ही छोटे, रंगहीन, बिना डंठल के, छोटे छोटे गुच्छों में पाए जाते हैं। साधारणत: बाँस तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और दुर्भिक्ष पड़ता है। शुष्क एवं गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं। फूल खिलने पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं। बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं। ऐसे कुछ बाँस नीलगिरि की पहाड़ियों पर मिलते हैं। भारत में अधिकांश बाँस सामुहिक तथा सामयिक रूप से फूलते हैं। इसके बाद ही बाँस का जीवन समाप्त हो जाता है। सूखे तने गिरकर रास्ता बंद कर देते हैं। अगले वर्ष वर्षा के बाद बीजों से नई कलमें फूट पड़ती हैं और जंगल फिर हरा हो जाता है। यदि फूल खिलने का समय ज्ञात हो, तो काट छाँटकर खिलना रोका जा सकता है। प्रत्येक बाँस में ४ से २० सेर तक जौ या चावल के समान फल लगते हैं।

बाँस के कागज-

कागज बनाने के लिए बाँस उपयोगी साधन है, जिससे बहुत ही कम देखभाल के साथ-साथ बहुत अधिक मात्रा में कागज बनाया जा सकता है। इस क्रिया में बहुत सी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। फिर भी बाँस का कागज बनाना चीन एवं भारत का प्राचीन उद्योग है। चीन में बाँस के छोटे बड़े सभी भागों से कागज बनाया जाता है। इसके लिए पत्तियों को छाँटकर, तने को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर, पानी से भरे पोखरों में चूने के संग तीन चार माह सड़ाया जाता है, जिसके बाद उसे बड़ी बड़ी घूमती हुई ओखलियों में गूँधकर, साफ किया जाता है। इस लुग्दी को आवश्यकतानुसार रसायनक डालकर सफेद या रंगीन बना लेते हैं और फिर गरम तवों पर दबाते तथा सुखाते हैं।

वंशलोचन-

विशेषत: बैंब्यूसा अरन्डिनेसी के पर्व में पाई जानेवाली, यह पथरीली वस्तु सफेद या हलके नीले रंग की होती है। इसे तबाशीर भी कहते हैं। यूनानी ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। भारतवासी प्राचीन काल से दवा की तरह इसका उपयोग करते रहे हैं। यह ठंडा तथा बलवर्धक होता है। वायुदोष तथा दिल एवं फेफड़े की तरह तरह की बीमारियों में इसका प्रयोग होता है। बुखार में इससे प्यास दूर होती है। बाँस की नई शाखाओं में रस एकत्रित होने पर वंशलोचन बनता है और तब इससे सुगंध निकलती है। वंशलोचन से एक चूर्ण भी बनता है, जो मंदाग्नि के लिए विशेष उपयोगी है। इसमें ८ भाग वंशलोचन, १० भाग पीपर, १० भाग रूमी मस्तगी तथा १२ भाग छोटी इलायची रहती है। चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर खाने और दूध पीने से बहुत शीघ्र स्वास्थ्यलाभ होता है।

फेंगशुई में बाँस-

फेंगशुई में बाँस का बहुत अधिक महत्व है। इसे घरों के लिये सौभाग्य सूचक माना गया है। ऐसी अवधारणा है कि यह परिवार में ज्ञान और उससे उत्पन्न शांति लेकर आता है। यह हमें सिखाता है कि हमें बाँस की तरह विनम्र, लचीला, और साफ अंतःकरण वाला होना चाहिये ताकि कुंडलिनी का संचरण मुक्त भाव से हो सके और हमारी आत्मा शुद्ध रहे। अगर बगीचे में बाँस के पेड़ हों तो इसकी पत्तियों से गुजरती हुई हवा बहुत शुभ ध्वनियों का प्रभाव उत्पन्न करती है। अगर बाँस को उगाया न जा सके तो एक छोटा सा बाँस का पौधा लाकर कमरे में रखना चाहिये और इसकी देखभाल करनी चाहिये। इसकी देखभाल आसान है क्योंकि यह थोड़े से पानी से ही अपना भोजन ग्रहण कर लेता है। हर फूल की दुकान में मिलने वाले बाँस के छोटे गमले में फेंगशुई के लकड़ी, पृथ्वी, जल, अग्नी और धातु तत्व समाए होते हैं। बाँस का पौधा स्वयं लकड़ी तत्व है, कुछ पत्थर जो बाँस के पौधे वाले पानी में पड़े होते हैं वे पृथ्वी तत्व हैं। जिस पानी में इसे रखा जाता है वह जल तत्व है, जिस लाल रिबन से सौभाग्य के प्रतीक बाँसों को बाँधा जाता है वह अग्नितत्व का प्रतीक है और काँच का बर्तन जिसमें इसे रखा जाता है धातु तत्व का प्रतीक है।

१८ मई २०१५

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