सदाबहार की बहार
(टीम
अभिव्यक्ति)
मडागास्कर मूल की यह फूलदार
झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है, इसका पता इसी बात से चल
जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया
है- उड़िया में अपंस्कांति, तमिल में सदाकाडु मल्लिकइ,
तेलुगु में बिल्लागैन्नेस्र्, पंजाबी में रतनजोत, बांग्ला
में नयनतारा या गुलफिरंगी, मराठी में सदाफूली और मलयालम में
उषामालारि। इसके श्वेत तथा बैंगनी आभावाले छोटे गुच्छों से
सजे सुंदर लघुवृक्ष भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते
हुए सालों साल बारहों महीने (सदाबहार) देखे जा सकते हैं।
इसके अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं
और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि
झाड़ियों को काटने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती।
वैसे तो यह झाड़ी इतनी जानदार
है कि बिना देखभाल के भी फलती-फूलती रहती है, किंतु रेशेदार
दुमुट मिट्टी में थोड़ी-सी कंपोस्ट खाद मिलने पर आकर्षक
फूलों से लदी-फदी सदाबहार का सौंदर्य किसी के भी हृदय को
प्रफुल्लित कर सकता है। इसके फल बहुत से बीजों से भरे हुए
गोलाकार होते हैं। इसकी पत्तियों, जड़ तथा डंठलों से
निकलनेवाला दूध विषैला होता है।
पौधों के सामने भी समस्याएँ
होती हैं। पेड़-पौधे चाहते हैं कि उनके फल तो जानवर खाएँ,
ताकि उनके बीज दूर-दूर तक जा सकें, किंतु यथासंभव उनकी
पत्तियाँ तथा जड़ न खाएँ। इसलिए अनेक वृक्षों के फल तो खाद्य
होते हैं, किंतु पत्तियाँ, जड़ आदि कड़वे या ज़हरीले।
सदाबहार ने इस समस्या का समाधान अपने फलों को खाद्य बनाकर
तथा पत्तियों व जड़ों को कडुवा तथा विषाक्त बनाकर किया है।
ऐसे विशेष गुण पौधों में विशेष क्षारीय (एल्कैलायड) रसायनों
द्वारा आते हैं।
क्षारों की दुनिया भी बड़ी
अजीब है और वैज्ञानिक इनका अध्ययन कर रहे हैं। पेड़-पौधों
में पाए जानेवाले क्षारों में अनेक विचित्र गुण होते हैं,
कुछ विषैले होते हैं, तो कुछ अफीम सरीखे नशीले, कुछ
हृद-शामक, हृद-उत्तेजक, श्वास उत्तेजक, रुधिर-वाहिका संकुचक,
स्थानीय संवेदनाहारक, पेशी विश्रांतक और कुछ 'साइकेडैलिक'
होते हैं। मज़े की बात यह है कि जो क्षारीय रसायन सामान्य
मात्रा में विष, नशा या साइकेडैलिक-भ्रम पैदा करते हैं, वे
ही अल्पमात्रा में दवा का काम करते हैं।
सर्पगंधा में रक्तचाप-शमन
गुण होता है, जिसके कारण विश्व में इसकी माँग बढ़ी और भारत
ने इसका इतना निर्यात किया इसके लुप्त होने का ख़तरा पैदा हो
गया, इसलिए इसका निर्यात बंद करना पड़ा। निर्यात बंद
हो जाने पर विकसित देशों में अन्य पौधों में रक्तचाप शमन की
खोज बढ़ाई, और पता चला कि 'सदाबहार' झाड़ी में यह क्षार
अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप भारत चीन और
अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है।
अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के
संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक
बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया
है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार
ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है।
जब शोध हुआ तो 'सदाबहार' के
अनेक गुणों का पता चला - सदाबहार पौधा बारूद - जैसे विस्फोटक
पदार्थों को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी
वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, वरन व्यवहार में
विस्फोटक-भंडारों वाली लाखों एकड़ ज़मीन को सुरक्षित एवं
उपयोगी बना रहा है। भारत में ही 'केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध
पौधा संस्थान' द्वारा की गई खोजों से पता चला है कि
'सदाबहार' की पत्तियों में 'विनिकरस्टीन' नामक क्षारीय
पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर
(ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा
संजीवनी बूटी का काम कर रहा है।
बगीचों की बात करें तो
१९८०
तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन
चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी-
गुलाबी। १९८८ में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर (बैंगनी आभा
वाला गुलाबी जिसके बीच की आँख गहरी गुलाबी थी) और पिपरमिंट
कूलर (सफेद पंखुरियाँ, लाल आँख) विकसित किए गए।
१९९१ में रॉन पार्कर की
कुछ नई प्रजातियाँ बाज़ार में आईं। इनमें से प्रिटी इन
व्हाइट और पैरासॉल को आल अमेरिका सेलेक्शन पुरस्कार मिला।
इन्हें पैन अमेरिका सीड कंपनी द्वारा उगाया और बेचा गया। इसी
वर्ष कैलिफोर्निया में वॉलर जेनेटिक्स ने पार्कर ब्रीडिंग
प्रोगराम की ट्रॉपिकाना शृंखला को बाज़ार में उतारा। इन सदाबहार
प्रजातियों के फूलों में नए रंग तो थे ही, आकार भी बड़ा था
और पंखुरियाँ एक दूसरे पर चढ़ी हुई थीं। १९९३ में पार्कर
जर्मप्लाज्म ने पैसिफ़का नाम से कुछ नए रंग प्रस्तुत किए।
जिसमें पहली बार सदाबहार को लाल रंग दिया गया। इसके बाद तो
सदाबहार के रंगों की झड़ी लग गई और आज बाज़ार में लगभग हर
रंग के सदाबहार पौधों की भरमार है।
यह फूल सुंदर तो है ही
आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके
गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन
ब्यूरो ने सन २००२ को इयर आफ़ विंका के लिए चुना। विंका या
विंकारोज़ा सदाबहार का अंग्रेज़ी नाम है। |