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						 सुकेती जीवाश्म उद्यान
 -राजेन्द्र 
						तिवारी
 
 'सुकेती 
						जीवाश्म (फॉसिल) उद्यान' शिवालिक पर्वत शृंखला में स्थित 
						एशिया का एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ पर मेरुदंडधारी 
						प्राणियों के जीवाश्मों का संग्रहालय उसी स्थान पर बनाया 
						गया है जहाँ पर ये जीवाशम मूलरूप से 
						पाए गए थे। इसलिए यह स्थान 
						विश्व के भू-वैज्ञानिकों के लिए किसी तीर्थस्थल से कम नहीं 
						है। यह उद्यान उत्तरी भारत के हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की 
						सीमा पर कालाअंब से मात्र पाँच किलोमीटर तथा जिला सिरमौर 
						मुख्यालय नाहन से मात्र २२ किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
 भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (जियोलाजिकल सर्वे आफ 
						इंडिया) के भू-वैज्ञानिकों को अध्ययन के दौरान मेरूदंडधारी 
						जीवाश्वमों का एक उत्कृष्ट एवं विशाल भंडार मारकंडा नदी के 
						आसपास शिवालिक पर्वत शृंखला के बीच मिला। भू-वैज्ञानिकों 
						के लिए यह एक अभूतपूर्व उपलब्धि रही क्योंकि प्रागैतिहासिक 
						जीवन के स्थलों के परिरक्षण, जीवाश्मों के 
						अध्ययन एवं उस समय के 
						पर्यावरण के विकास, इन सब के सम्मिलित रूप से वैज्ञानिक, 
						शैक्षिक तथा मनोरंजन के रूप में प्रयोग की दिशा में यह एक 
						महत्वपूर्ण कदम है। यह विश्व में अपनी तरह का तीसरा और 
						एशिया में पहला मेरुदंडधारी जीवाश्म उद्यान है। अन्य 
						प्रागैतिहासिक जानवरों के जीवाश्म कनाडा के 'कैलगरी पार्क 
						' और अमेरिका के 
						जेनसन नगर में 'डायनासोर नेशनल मोन्यूमेंट्स' में रखे गए 
						हैं।
 
 हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ मिल कर जी एस आई ने सुकेती 
						गाँव के पास लगभग सौ एकड़ जमीन में इस सुंदर उद्यान को 
						विकसित किया है। इस परिकल्पना का सूत्रपात जी एस आई के उप 
						महानिदेशक - उत्तर क्षेत्र के श्री एम के चौधरी ने 
						१९६९ में किया और इस परियोजना को प्रदेश सरकार के साथ 
						मिलकर १९७३ में जनता को समर्पित किया गया।
 
 सुकेती जीवाश्म 
						उद्यान मेरूदंडधारी जीवन के विकास की वह 
						गाथा है जो शिवालिक युग के दौरान घटी और उसके प्रमाण 
						जीवाश्म के रूप में आज भी पत्थरों में दिखाई देते है। 
						शिवालिक युग में मेरूदंडधारी जीवों का विकास हुआ और दो 
						करोड़ पचास लाख वर्ष पूर्व के जीवन की ऐसी तस्वीर दिखाई 
						देती है जिसके बारे में केवल परिकल्पना की जा सकती है। उस 
						समय जब जीवन हिम युग से गुज़र रहा था शिवालिक के स्तनपायी 
						या तो नष्ट हो गए थे या दूसरे स्थानों पर चले गए। जो 
						मेरूदंडधारी जीव इस काल में जीवित नहीं रह सके उनके अवशेष 
						जीवाश्म के रूप में शिवालिक पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा 
						में पाए जाते हैं। ये जीवाश्म वर्तमान मेरूदंडधारी 
						प्राणियों के काफी लगभग हैं और इनसे वर्तमान जीवन के विकास
						की कहानी समझी जा 
						सकती है।
 
 हिमालय की तराई शिवालिक के नाम से जानी जाती है जिसका 
						विस्तार इंडस के नाम से ब्रह्मपुत्र तक माना जाता है और 
						इसका नामकरण भारत के हरिद्वार के पास शिवालिक हिल्स के नाम 
						पर पड़ा जहाँ से सबसे पहले शिवालिक सिस्टम के बारे में 
						वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त हुआ। यह पर्वत शृंखला बालू 
						पत्थर (सैंड स्टोन), चिकनी मिट्टी (क्ले) और अन्य जलोढ़ 
						निक्षेपों (एलूवियल डिपाज़िट) से बनी हुई है जो दो से ढाई 
						करोड़ वर्ष पूर्व तेज़ रफ्तार से बहने वाली नदियों व अन्य 
						कारणों से जमा होते रहे थे। इस युग में वायुमंडलीय 
						परिवर्तन बड़ी तेज़ी से हुआ जिसके कारण आर्द्रता बढ़ गई और 
						तापमान में बदलाव आया और परिणामस्वरूप मेरूदंडधारी जीवों 
						के साथ-साथ वनस्पतियों का भी खूब विकास हुआ।
 इन जीवों 
						में घोड़े (Equidae), कैटल्स (bovids), हाथी 
						(Proboscidea), सुअर (Suidae), जिराफ 
						(Pecora),  वनमानुष (Hominoidae),  
						हिप्पोपोटैमी ( Hippopotamidae), राईनोसोरस (Rhinocerotidae),  
						घड़ियाल (Crocodilia), 
						लैंड टारटायज (Chelonia), तथा नरवानर की प्रजातियाँ जिसमें 
						मनुष्य की आदि प्रजाति ड्रायोपिथैकस 
						(dryopithecus) और रैमापिथैकस(Ramapithecus) मानव प्रजाति 
						का सबसे पुरातन रूप है जिसके चेहरे व दाँत अधिक विकसित है। 
						ये संभवत: दो पैरों से चलने वाले और ग्रैमिनीवोरस (घास और 
						अन्न खाने वाले) होते होंगे। ऐसा माना गया है कि 
						रैमापिथैकस आगे जा कर 
						ऑस्ट्रालेपिथेकस (Australopithecus) के नाम से जाने गए, जो 
						मानव विकास का एक और चरण था।
 सुकेती जीवाश्म उद्यान को चरणबद्ध तरीके से विकसित किया गया 
						है। मूलभूत सुविधाओं के विकास के साथ-साथ इस क्षेत्र को 
						उसी तरह का बनाने की कोशिश की गई, जैसे में लाखों वर्ष 
						पूर्व ये जीवधारी विचरण करते थे। जन साधारण की जानकारी के 
						लिए उस युग के जीवों की वास्तविक आकार की फाइबर ग्लास की 
						मूर्तियाँ बना कर उन्हें प्राकृतिक परिवेश में स्थापित 
						किया गया है। प्रथम चरण में तीन प्रतिकृतियाँ सैबरे टूथ 
						टाइगर हिप्पोपोटैमस और जाइंट लैंड टारटायज की बनाई गईं 
						थीं। दूसरे चरण में जाइंट एलीफेंट, चार सींगों वाला जिराफ 
						और घड़ियाल की प्रतिकृतियाँ बनाईं गईं। इस क्षेत्र के 
						आस-पास मिलने वाले तमाम जीवाश्मों को यही पर बनाए गए एक 
						संग्रहालय में रखा गया है। आइए अब यह जानें कि यहाँ कौन 
						से प्रमुख पशु पाए जाते थे, जिनके जीवाश्म यहाँ सुरक्षित 
						हैं-
 
 भीमकाय हाथी
 प्लायेस्टोसीन युग १/४१ करोड़ से २ करोड़ वर्ष पूर्व) हाथी 
						की लगभग १५ प्रजातियाँ इस क्षेत्र में पाई जाती थीं जिसमें 
						से 'स्टैगडन गनेशा' नामक हाथी से मिलता जुलता एक प्राणी 
						सबसे अधिक विकसित था। इसकी सूँड लगभग १५ फुट लंबी थी। ये 
						प्रजातियाँ लगभग डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व नष्ट हो गई। लेकिन 
						इनमें से अफ्रीकन और एशियन हाथी ही शेष बचे हैं।
 
 नुकीले दाँतों वाले सिंह
 शेरों की इन प्रजातियों में दाँत बहुत नुकीले होते थे 
						जिससे वे अपना शिकार पकड़ कर मज़बूती से दबा लेते थे। ये 
						प्रजातियाँ लगभग दो करोड़ वर्ष पूर्व नष्ट हो गई।
 
 हिप्पोपोटामस
 हिप्पोपोटामस की प्रजातियों का आकार आज के जीवों जैसा ही 
						था लेकिन इनके सामने की ओर ६ दाँत होते थे, दिमाग छोटा व 
						जबड़ा बड़ा होता था और इनके पाँव सुअर की तरह होते थे ये 
						प्रजातियाँ लगभग ढाई करोड़ वर्ष पूर्व नष्ट हो गई।
 
 धरती पर रहने वाला महा-कच्छप
 ये प्रजातियाँ विश्व की सबसे बड़ी कछुआ जाति की थी जिनकी 
						लंबाई लगभग १० फुट थी। ये प्रजातियाँ ढाई करोड़ वर्ष 
						पूर्व 
						नष्ट हो गई।
 
 
  घड़ियाल घड़ियाल की ये प्रजातियाँ ऐसी थी जिनकी लंबी और पतली सूँड 
						होती थी इस सूंड़ में पच्चीस से तीस तक पतले नुकीले दाँत 
						होते थे।
 
 चार सींगों वाला जिराफ़
 जिराफ प्रजाति का यह जीव जिसके लगभग तीन फुट लंबी सींघे 
						थी, इनकी गर्दन छोटी होती थी लगभग छ: फुट ऊंचा था। ये 
						प्रजातियाँ लगभग डेढ़ करोड़ वर्ष पूर्व नष्ट हो गई।
 
 जीवाश्मों के चित्र खींचना वर्जित है इसलिए उनके चित्र 
						उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। यहाँ दिए गए चित्र जीवाश्म 
						उद्यान 
						में स्थित प्रागैतिहासिक पशुओं की फ़ाइबरग्लास से निर्मित 
						वास्तविक आकार की प्रतिकृतियों के हैं।
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