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अब हरे-भरे पेड़-पौधों से उत्पन्न होगी बिजली
- डॉ. गणेश कुमार
पाठक
यह बात सुनने में बड़ी ही
विचित्र लग रही है कि अब हरे-भरे पेड़-पौधों से बिजली कैसे
प्राप्त की जा सकती है। किंतु यह बात सच है और इसे सच कर
दिखाया है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिक डॉ.
शिव प्रसाद कोष्टा ने।
वैसे डॉ. कोष्टा ने पेड़-पौधों से बिजली प्राप्त करने की
संभावनाओं पर अपना प्रयोग एवं शोध सन १९८५ में ही प्रारंभ कर
दिया था। जब उन्होंने टेलिविजन एँटिना के रूप में पेड़-पौधें
का प्रयोग कर तहलका मचा दिया था। इस प्रयोग से डॉ. कोष्टा काफी
चर्चित हुए और संचार माध्यम के रूप में वनस्पतियों के प्रयोग
का एक नया विकल्प तैयार किया। अभी भी इस दिशा में उनके द्वारा
निरंतर खोज एवं परीक्षण चल रहा है।
डॉ. कोष्टा का कहना है कि प्रत्येक पेड़-पौधा एक छोटा-सा
विद्युत गृह है। उनके अनुसार पेड़-पौधों से पर्याप्त बिजली
प्राप्त की जा सकती है। सड़कों पर रोशनी हेतु सड़क पर ही लगाये
गये हरे-भरे पेड़-पौधे एक छोटा-सा विद्युत गृह हैं। उनके
अनुसार पेड़-पौधों से पर्याप्त बिजली प्राप्त की जा सकती है।
सड़कों पर रोशनी हेतु सड़क पर ही लगाये गये हरे-भरे पेड़-पौधों
से बिजली प्राप्त की जा सकती है। डॉ. कोष्ट का कहना है कि २१
वीं सदी में हमारी विद्युत आवश्यकता का एक प्रमुख स्रोत ये
हरे-भरे पेड़-पौधे भी होंगे।
डॉ. कोष्टा ने केवल हरे-भरे पेड़-पौधों से ही बिजली उत्पन्न
करने में सफलता प्राप्त नहीं की है, बल्कि उन्होंने सब्जियों
के पौधों से भी बिजली उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त कर ली
है। डॉ. कोष्टा ने जिन पेड़-पौधों से बिजली प्राप्त करने में
सफलता पायी है उनमें - केला, कैक्टस, गुलाब, अगिया घास, आक,
बैगन, आलू, मूली, प्याज, टमाटर, पपीता, हरी मिर्च, अमरूद आदि
वृक्ष एवं सब्जियों के पौधे हैं।
विद्युत-प्रवाह पत्तो में -
डॉ. कोष्टा ने पेड़-पौधों से विद्युत उत्पन्न करने की प्रेरणा
विख्यात वनस्पति शास्त्री वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस से
प्राप्त की। जगदीश चन्द्र बोस ने भी एक परीक्षण किया था,
जिसमें उन्होंने एक कांच के बर्तन में नमक का घोल भरकर एक
पत्ते के दो टुकड़े करके उसमें इलैक्ट्रोड की तरह खड़ा कर
दिया। पुन: एक सुनहरा तार लेकर उनमें जोड़कर एक संवेदनशील
गैलवानमीटर जोड़ दिया। ऐसा करने से मीटर की सुई में कोई हलचल
नहीं हुई। इसका मतलब यह था कि उसमें विद्युत प्रवाह नहीं हो
रहा था। लेकिन पत्तों के वे इलेक्ट्राड जब सूर्य के प्रकाश में
रखे गये तो मीटर की सुई में हलचल होने लगी अर्थात मीटर की सुई
विद्युत की प्रवाह की उपस्थिति को प्रकट करने लगी।
विभिन्न पौधों से प्राप्त विद्युत की मात्रा |
पेड़/पौधा/ सब्जी |
वोल्टेज वोल्ट |
प्रवाह
|
प्रयुक्त इलेक्ट्राड |
कैक्टस |
१.१८ |
०.२८ |
मैग्ने-सीसा |
केला |
१.१६ |
१.३० |
मैग्ने-सीसा |
अमरूद |
१.६० |
०.१८ |
तांबा-जस्ता |
आक |
०.७० |
०.१९ |
तांबा-जस्ता |
आलू |
०.६५ |
०.१७ |
तांबा-जस्ता |
बैंगन |
०.७० |
०.२० |
तांबा-जस्ता |
प्याज |
०.७० |
०.१८ |
तांबा-जस्ता |
हरी मिर्च |
०.६० |
०.१७ |
तांबा-जस्ता |
चुकंदर |
०.६५ |
०.२२ |
तांबा-जस्ता |
पपीता |
०.७० |
०.३१ |
तांबा-जस्ता |
मुनगा |
१.०५ |
०.५० |
मैग्ने-सीसा |
जगदीश चन्द्र बोस द्वारा किये गये उपरोक्त प्राथमिक
परीक्षण को आधार मानकर ही डॉ. कोष्टा ने अनेक प्रयोग किये।
पौधों में फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया के अंतर्गत पौधों की
जड़ें भूमि की निचली सतह से जो जल खींचती है वह वातावरण के
ताप पर ही अपने रासायनिक अवयवों अर्थात हायड्रोजन का संयोग
वातावरण में विद्यमान कार्बन-डाई-आक्साइड से होता है एवं
इससे तैयार होने वाला मिश्रण स्टार्च ही इन पौधों के लिए
भोजन एवं पोषण का काम करता है।
उपर्युक्त निष्कर्षों एवं जानकारियों के आधार पर व्यापक
प्रयोग करके डॉ. शिव प्रसाद कोष्टा ने प्रसिद्ध किया कि
पेड़-पौधों एवं वनस्पतियों से विद्युत प्राप्त करने के लिए
सौर बैटरियों की तरह ही बैटरियां तैयार की जा सकती है।
डॉ. कोष्टा के अनुसार विभिन्न पौधों से निम्नांकित रूप में
विद्युत की प्राप्ति होती है -
डॉ. कोष्टा द्वारा किये गये अथक प्रयासों एवं प्रयोगों से
यह तथ्य सामने आया कि पौधों के तनों एवं बाहरी छाल से बनने
वाले आयी नमी के छल्ले से विद्युत रासायनिक सेल हेतु
विद्युत अपघटक अर्थात इलेक्ट्रो लाइट का काम विधिवत लिया
जा सकता है और इस प्रकार हरे-भरे पेड़-पौधों के तने,
शाखाओं एवं पत्तों में छोटे से इलेक्ट्राड लगाकर विद्युत
की प्राप्ति की जा सकती है।
केले के पत्तों से बिजली
डॉ. कोष्टा द्वारा केले के पेड़ के तने एवं पत्तों पर
तांबा, जस्ता एवं मैग्नेशियम, सीसे के इलेक्ट्रोड का
प्रयोग किया गया और उनसे लगातार तीन घंटे तक एल.ई.डी.
(लाइट इमिटिंग डापोड) को जलाया गया। डॉ. कोष्टा ने इस
प्रयोग से यह भी निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्राड पत्ते या
तने में जितनी अधिक गहराई तक धंसे होंगे, विद्युत प्रवाह
भी उतना ही अधिक होगा।
एक अकेले वनस्पति कोष्ट या सेल से उत्पन्न होनेवाली
विद्युत धारा में कुछ माइकों एँपीयर्स से लेकर कुछ मिली
एँपीयर्स तक का शर्ट सर्किट करेंट होता है एवं उसका ओपल
सर्किट व्होल्टेज ०.५ वोल्ट से १.२ वोल्ट तक रहता है। अधिक
वोल्टेज या करेंट के लिए कोष्टों को समांतर क्रम में रखकर
संबद्ध किया जा सकता है।
डॉ. कोष्टा के अनुसार सबसे अधिक अच्छे एवं आशातीत
उत्साहवर्द्धक परिणाम कैक्टस प्रजाति के पौधों पर किये गये
प्रयोगों से मिला है। डॉ. कोष्टा ने नागफनी जाति के ३८ सेल
१९-१९ की समांतर कतारों में एवं पुन: माला अर्थात् सीरीज
के रूप में जोड़े। इसके प्राप्त हो रहा विद्युत प्रवाह
मल्टी मीटर की सुई के अनुसार २.२ वोल्ट एवं ३५ मिली एँपीयर
का था। इस प्रवाह से विद्युत का बल्ब (२ वोल्ट १४ मिली
एँपीयर के लिए निर्मित) भी जलता रहा। यही नहीं लाइट
एमिटिंग डापोड जलाया गया तो वह भी दो घंटे तक लगातार रोशनी
देता रहा। छोटी टार्च के बल्ब को जलाने के लिए १.८ वोल्ट
ऊर्जा वनस्पति से प्राप्त करने की सफलता प्राप्त हुई है।
प्रदूषणमुक्त बिजली
इस प्रकार डॉ. कोष्टा के प्रयोग से प्राप्त सफलता ने
विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में संभावनाओं का एक नया द्वार
खोल दिया। अब वह दिन दूर नहीं कि इन हरे-भरे पेड़-पौधों से
किसी भी मौसम में किसी भी समय बिजली उत्पन्न की जा सकती
है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पेड़-पौधों से प्राप्त यह
बिजली अत्यंत सहज एवं सर्व-सुलभ है तथा काफी सस्ती एवं
प्रदूषण मुक्त भी होगी।
डॉ. कोष्टा के पेड़-पौधों से प्राप्त होनेवाली बिजली के इस
प्रयोग से न केवल बिजली प्राप्त की जा सकेगी। बल्कि बिजली
प्राप्त करने के उद्देश्य से इन पेड़-पौधों को उगाने एवं
उनकी वृद्धि एवं विकास को बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान दिया
जाने लगेगा, जिससे पेड़-पौधों की संख्या में भी वृद्धि
होगी और अच्छे-अच्छे पेड़-पौधे तैयार होंगे।
पेड़-पौधों से विद्युत उत्पादन का एक अन्य लाभकारी पहलू यह
भी होगा कि इससे जमीन की निचली परत में विद्यमान नमी का भी
संकेत प्राप्त होता रहेगा।
पेड़-पौधों से प्राप्त बिजली का प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों
में किया जा सकेगा जैसे - घर के बाग एवं अहाते में लगाये
गये पेड़-पौधों से रोशनी एवं इंधन के लिए, घरेलू उपयोग
हेतु विद्युत की प्राप्ति खेतों की मेड़ों एवं किनारों पर
लगाये गये पेड़-पौधों से व्यापक रूप में कल-कारखानों हेतु
विद्युत प्राप्त की जा सकती है।
आवश्यकता इस बात की है कि पेड़-पौधों से विद्युत उत्पादान
करने हेतु व्यापक स्तर पर प्रयोग किये जाएँ एवं उसका
व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि ऊर्जा के इस
संकट के दौर में इस प्रदुषण मुक्तं, सर्वसुलभ, सहज उत्पादन
एवं सस्ते विद्युत का उत्पादन कर विद्युत संकट को दूर किया
जा सके। यही नहीं यदि इसका व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार
हुआ तो इसके प्रति आम जनता का भी झुकाव बढ़ेगा और व्यापक
स्तर पर प्रचार-प्रसार हुआ, तो इसके प्रति आम जनता का भी
झुकाव बढ़ेगा और व्यापक स्तर पर पेड़-पौधे लगाये जाएँगे
जिससे पुन: हमारी धरती हरी-भरी हो जाएगी और इस तरह हमारा
विद्युत संकट तो दूर होगा ही परिस्थितिकी तंत्र भी
सुव्यवस्थित रहेगा।
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