सोनिया
का संकोच
दिनेश चैमोला 'शैलेश' की
कहानी
एक लड़की थी-
सोनिया। वह बहुत कम बोलती थी, लड़ाई-झगड़ा तो रही दूर की बात,
वह अपनी कक्षा में अध्यापक से भी कोई प्रश्न नहीं करती। इसीलिए
सभी उसे संकोची लड़की के नाम से जानते। वैसे तो उसकी कक्षा में
अन्य संकोची लड़कियाँ भी थीं, लेकिन बिल्कुल शांत रहने के कारण
संकोची कहते ही जिसकी तसवीर उभरती वह सोनिया ही थी। उसके
माता-पिता भी उसके इस स्वभाव से चिंतित रहते।
सोनिया के पिता सरकारी अधिकार थे। उनका सिर्फ दफ्तर में ही
नहीं, समाज में भी दबदबा था। वह सोनिया के स्वभाव को लेकर
चिंतित तो थे, लेकिन वह सोचते कि शायद यह उसका पैतृक गुण हो।
क्योंकि वह खुद भी शुरू में बहुत संकोची थे, और बाद में ही
मुखर हो सके थे।
जब छटी कक्षा तक संकोच ने सोनिया का पीछा नहीं छोड़ा तो उसकी
माँ की चिंता बढ़ गई। क्योंकि लोग सोनिया को सीधी-सादी लड़की
कहतें, तो माँ समझ जातीं कि वे उसे दब्बू व मूर्ख कहना चाहते
हैं। एक दिन काजल की माँ ने व्यंग्य भरे लहजे में सोनिया की
माँ से कहा, 'सोनिया की मम्मी, इस बात को गंभीरता से लो। लड़की
का संकोची होना अच्छी बात नहीं है। आज की दुनिया तो ऐसी भोली
लड़की की चैन से नहीं जीने देती। आप इसे किसी मनोचिकित्सक को
दिखाएँ। जिनके घर में विचार-विमर्श, लिखने-पढ़ने का माहौल न
हो, उनके बच्चे ऐसे हों तो कोई बात नहीं, लेकिन आपके घर में ।'
'नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बच्चों का अपना-अपना स्वभाव
होता हैं। आगे चलकर यह भी तेज हो जाएगी।' कहकर सोनिया की माँ
ने काजल की माँ को टालना चाहा। उन्हें काजल की माँ की बात
अच्छी नहीं लगी थी।
सोनिया अपनी कक्षा में बोलने में जितनी संकोची थी, उतनी ही
पढ़ाई-लिखाई में होशियार थी। यह बात उसके घर वालों के साथ-साथ
अध्यापकों को भी पता थी। कक्षा की अधिकांश लड़कियों का ध्यान
पढ़ने में कम, दूसरी बातों में अधिक रहता। कक्षा में भी वे
पढ़ाई की कम और इधर-उधर की बातें ज्यादा करतीं। वे अपने
अध्यापक-अध्यापिकाओं की नकल उतारती रहतीं। इन्हीं लड़कियों में
से नीरू, सीमा और पर्णिका सोनिया की सहेलियाँ बन गई।
अध्यापक जब ब्लैक बोर्ड पर सवाल लिखने खड़े होते तो सीमा व
नीरू अपने-अपने बस्तों से कागज की लंबी पूँछ निकालने लग जातीं।
जब बच्चे अध्यापक के प्रश्न का उत्तर देने खड़े होते तो उनके
पीछे कागज की पूँछ देखकर पूरी कक्षा में ठहाका लगता। सोनिया को
यह बुरा तो लगता, लेकिन अपने संकोची स्वभाव के कारण उनकी
शिकायत नहीं कर पाती थी। वैसे वो अध्यापक भी सोनिया की इन
सहेलियों को मुँह नहीं लगना चाहते थे। वे जब-तब अध्यापकों को
भी भला-बुरा कहने में न हिचकिचाती थीं। इसलिए कोई भी अध्यापक
उनसे कुछ भी न पूछता था। इससे निर्भय होकर उनकी शरारतें और भी
बढ़ गई थीं।
एक दिन सोनिया की माँ को कहीं नीरू और पर्णिका मिल गई। वे
दोनों लगीं सोनिया की बुराई करने लगीं, 'आंटी, सोनिया बिल्कुल
भी नहीं पढ़ती। जब सर उससे कुछ पूछते हैं तो वह जवाब भी नहीं
देती। बस रोने बैठ जाती है। वह स्कूल का काम भी पूरा नहीं
करतीं, टेस्ट में उसका 'सी' आता है। डर के मारे वह ठीक से चल
भी नहीं पाती। वह इतना धीरे चलती हैं कि चलने में भी संकोच
लगता है। वह बहुत डरपोक हैं, आंटी।'
सोनिया की माँ ने उसके पिता से उसकी सहेलियों की बात बताई।
सोनिया भी वहीं थीं, लेकिन उसने कोई प्रतिवाद नहीं किया। पिता
ने जब सोनिया की रिपोर्ट-बुक देखी तो उसे किसी भी विषय में
'सी' ग्रेड नहीं मिला था। वह हर विषय में अच्छे नंबर लाई थी।
आखिरकार सोनिया के पिता ने सोनिया को अपने पास बुलाया और कहा,
'देखो बेटी, तुम पढ़ने में तेज हो, तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा
है, तुम किसी से कम नहीं हो, फिर तुम इन लड़कियों की बकवास
बातों का प्रतिरोध क्यों नहीं करती हो? इनके सामने चुप मत रहो,
इन्हें समझाओ कि वे गलत कर रही हैं, अगर नहीं मानती तो इनसे
किनारा कर लो।
सबसे अच्छी मित्र तो किताबें ही होती हैं, जो आगे बढ़ने का
रास्ता दिखाती हैं। जबकि तुम्हारी ऐसी सहेलियाँ कभी नहीं
चाहेंगी कि तुम अपना नाम रोशन करो। डरती तुम नहीं, डरती तो वे
हैं। उन्हें इस बात का डर है कि तुम्हारे अगर अच्छे नंबर आएँगे
तो उनकी पोल खुलेगी। तुम्हें किस बात का डर? न तो तुमने कोई
चोरी की है, न किसी से उधार लिया है। तुम क्यों डरोगी? बस
तुम्हें मुखर होना है, अपनी इन सहेलियों से पढ़ाई का कोई न कोई
प्रश्न करती रहोगी तो वे या तो पढ़ने में रूचि लेंगी या फिर
खुद तुमसे दूर हो जाएँगी। कोई गलत बात कहता है तो तर्कों का
सहारा लो। तुम्हारे पास ज्ञान का भंडार है, फिर संकोच कैसा?'
पिता की बात का सोनिया पर गहरा असर हुआ था। वह बोली, 'पापा, आप
यह समझिए कि मेरे डर और संकोच का यह आखिरी दिन हैं। अब अगर कोई
मेरे बारे में ऐसी बात करेगा तो मैं उसे देख लूँगी।
पढ़ाई-लिखाई में मैं उन लड़कियों से ज्यादा तेज हूँ, मुझे उनसे
ज्यादा बोलना आता है। एक दिन मैं आपको कुछ बनकर दिखाऊँगी।'
सोनिया के चेहरे से आत्मविश्वास फूट रहा था। सोनिया की माँ ने
उसे सीने से लगा लिया।
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