फुलवारी

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तरणताल

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गर्मियों का मौसम लौटकर आ गया है। अब हम शाम को तैरने जाएँगे। जिस ताल में हम तैरने जाते हैं उसे तरणताल कहते हैं। ताल के भीतर पानी भरा होता है और बाहर बैठने के लिये कुर्सियाँ होती हैं।

छोटे बच्चों के लिये अलग ताल है और बड़ों के लिये अलग। छोटे बच्चों वाला ताल इतना छोटा है कि मैं आराम से उसमें खड़ी हो जाती हूँ। उसमें सब छोटे बच्चे मजे से खेलते हैं, लेकिन तैरना सीखने के लिये बड़े ताल में जाना पड़ता है। बड़ा ताल छोटे ताल से जुड़ा हुआ है। बड़े ताल में हम अकेले नहीं जाते। माँ या पापू के साथ जाना होता है। उनके साथ ही रहना होता है।

पिछले साल मीतू ने तैरना सीख लिया था। इस साल मैं भी तैरना सीखूँगी। फिर मैं भी अपना चित्र यहाँ लगाऊँगी जैसे ऊपर मीतू का है।

- पूर्णिमा वर्मन

८ अप्रैल २०१३  

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