बंटी
की आइसक्रीम
- अंजलि राजगुरू
बंटी आज जब
स्कूल से आया तो फिर उसने घर पर ताला देखा। घर की सीढ़ियों पर
वह अपना बैग रख कर बैठ गया। उसे भूख लगी थी और वह थका हुआ भी
था। वह सोचने लगा, काश मेरी माँ भी राजू की माँ की तरह ही घर
पर ही होती।
मैं स्कूल से आता तो मुझे स्कूल के हाल-चाल पूछती, मेरे लिये
गरम-गरम खाना बनाती और मुझे प्यार से खिलाती। सचमुच कितना
खुशनसीब है राजू! इन्ही विचारों में खोए बंटी की न जाने कब आँख
लग गयी। वह वहीं बैठे-बैठे ऊँघने लगा। कुछ देर में माँ दफ्तर
से आई और बोली, ``बंटी, उठो बेटे, चलो अंदर चलो''। बंटी उकताए
हुए स्वर में बोला, ``ओफ-ओ माँ, तुमने कितनी देर लगा दी, मैं
कब से तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा हूँ। तुम्हे मालूम है, मुझे
कितनी ज़ोरों की भूख लगी है। मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे
हैं''।
माँ बंटी को पुचकारते हुए बोली, ``देखो, मैं अभी तुम्हारी
थकावट दूर करती हूँ। खाना गरम कर के अभी परोसती हूँ''। ऐसा
कहते हुए माँ ने ताला खोला, जल्दी से अपना पर्स सोफे पर फेंकत
हुए माँ किचन में जा घुसी। ``बंटी, जल्दी से कपड़े बदलो, दो
मिनट में खाना आ रहा है''। बंटी सोफे पर फिर से ऊँघने लगा। माँ
ने आ कर बंटी को उठाया और उसे बाथरूम में धकेला।
बंटी ने हाथ- मुँह धोए और खाने की मेज़ पर जा बैठा। खाना
खाते-खाते बंटी कुछ सोचने लगा। उसे वे दिन याद आने लगे जब पापा
भी थे। घर खुशियों का फव्वारा बना रहता था। पापा की हँसी, पापा
के चुटकुले सारे घर को रंगीन बना देते थे। पापा प्यार से उसे
मिठ्ठू बुलाते थे। बंटी की कोई भी परेशानी होती, पापा के पास
सब के हल होते, मानो परेशानियाँ पापा के सामने जाने से डरती
हों। कितने बहादुर थे पापा। एक बार उसे याद है जब पापा दफ्तर
से आईस्क्रीम ले कर आए थे। तीनों की अलग-अलग फ्लेवर वाली
आईस्क्रीम! घर तक आते-आते आईस्क्रीम पिघल चुकी थी और माँ ने
कहा था, ``तुम भी बस...! क्या इतनी गर्मी में आईस्क्रीम यूँ ही
जमी रहेगी''? और पापा ने तीनों आईस्क्रीमों को मिला कर नए
फ्लेवर वाला मिल्क-शेक बनाया था।
अचानक माँ का कोमल हाथ उसके बालों को सहलाने लगा। वह मानो नींद
से जाग उठा हो। माँ ने कहा, ``क्या बात है? आज तुम बड़े
गुम-सुम से दिखाई दे रहे हो। कहीं आज फिर से तो अजय से झगड़ा
नहीं हुआ, या फिर तुम्हारी टीम क्रिकेट के मैच में हार गई''?
बंटी ने कहा, ``माँ, पता नहीं क्यों आज मुझे पापा की बड़ी याद
आ रही है। पापा को भगवान ने अपने पास क्यों बुला लिया''?
इतना सुनते ही माँ ने जोर से बंटी को गले से लगा लिया और उसकी
आँखें आसुँओं से लबा-लब भर गइंर्। माँ की सिसकियाँ बंद होने का
नाम ही नहीं ले रही थीं। यह देख कर बंटी का उदास मन कुछ और
उदास हो गया। उसे लगा जैसे इसी क्षण वह बहुत बड़ा हो गया है और
माँ का उत्तरदायित्व उसी के कन्धे पर आ गिरा है। उसने ठान लिया
कि वह अपने आसुँओं से माँ को कमज़ोर नहीं होने देगा। कितनी
मेहनती है माँ! घर का, बाहर का सारा काम कर के वह उसे हमेशा
खुश रखने की कोशिश करती है। अब वह कभी नहीं रोयेगा। वह पापा की
तरह बनेगा, हमेशा खुशियाँ बाँटने वाला और तकलीफों पर पाँव रख
कर आगे बढ़ने वाला। वह माँ को बहुत सुख देगा। उसे हमेशा खुश
रखेगा। इतना सोचते-सोचते वह जल्दी-जल्दी खाना खाने लगा।
अगले दिन उठ कर बंटी ने अपनी गुल्लक से पाँच रूपये का नोट
निकाला। माँ से छिपाकर, जेब में डालते हुए वह स्कूल की ओर चल
पड़ा। ये पैसे वह ऐरो-मॉडलिंग के लिये बचा रहा था। उसे नये-नये
छोटे-छोटे लड़ाकू विमान बनाने का बहुत शौक था। पर आज यह पैसे
किसी और मकसद के लिये थे। स्कूल से आ कर वह माँ से बोला, ``माँ
देखो तो मैं तुम्हारे लिये क्या लाया हूँ! ये रही तुम्हारी
फ्रूट एैंड नट आईस्क्रीम और मेरी चॉकलेट आईस्क्रीम। लिफाफा आगे
बढ़ाया तो देखा, दोनो आईस्क्रीमें घुल कर एक हो गई थीं। माँ ने
कहा, ``तुम भी बस... क्या इतनी गर्मी में... ''। और बंटी ने
वाक्य पूरा करते हुए कहा, ``आईस्क्रीम यूँ ही जमी रहेगी''? और
दोनों ज़ोर से खिलखिलाकर हँस दिये। |