बेचारी मैना सहम
गई। डरते हुए बोली, "अँधेरा हो गया है। आसमान मे बादल
छाए हुए है। किसी भी समय पानी बरस सकता है। मैं अपना
ठिकाना भूल गई हूँ। आज रात भर मुझे भी इस पेड़ की एक
डाल के एक कोने में रात बिता लेने दो।"
कौवे भला कब उसकी बात मानते। उन्होंने कहा, "यह नहीं
हो सकता। यह पेड़ हमारा है। तुम इस पेड़ नहीं बैठ सकती
हो। भागो यहाँ से।"
कौवों की बात सुनकर बड़े ही दीन स्वर में मैना बोली,
"पेड़ तो सभी भगवान के हैं। यदि बरसात होने लगी और ओले
पड़ने लगे, तो भगवान ही सबको बचा सकता है। मैं बहुत
छोटी हूँ। तुम लोगों की बहन हूँ। मेरे ऊपर दया करके
रात बिता लेने दो।"
मैना की बात सुनकर सभी कौवे हँसने लगे। फिर बोले, "हम
लोगों को तेरी जैसी बहन की कोई जरूरत नहीं है। तू
भगवान का नाम बहुत ले रही है, तो भगवान के सहारे यहाँ
से जाती क्यों नहीं? यदि तू यहाँ से नहीं जाएगी, तो हम
सब मिलकर तुझे मार भगाएँगे।" और सभी कौवे मैना को
मारने के लिए उसकी ओर दौड़ पड़े।
कौवों को काँव-काँव करते हुए अपनी ओर आते देखकर मैना
वहाँ से जान बचाकर भागी। वहाँ से थोड़ी दूर एक आम के
पेड़ पर अकेले ही रात बिताने के लिए मैना एक कोने में
छिपकर बैठ गई।
रात में तेज हवा चली। कुछ देर बाद बादल बरसने लगे और
इसके साथ ही बड़े-बड़े ओले भी पड़ने लगे। ओलों की मार
से बहुत से कौवे घायल होकर जमीन पर गिरने लगे। कुछ तो
मर भी गए।
मैना आम के जिस पेड़ पर बैठी थी, उस पेड़ की एक डाल
टूट गई। आम की वह डाल अन्दर से खोखली थी। डाल टूटने की
वजह से डाल के अन्दर के खाली स्थान में मैना छिप गई।
डाल में छिप जाने की वजह से मैना को न तो हवा लगी और न
ही ओले ही उसका कुछ बिगाड़ पाए। वह रात भर आराम से
बैठी रही।
सवेरा होने पर जब सूरज निकला, तो मैना उस खोह से निकली
और खुशी से गाती-नाचती हुई ईश्वर को प्रणाम किया। फिर
आकाश में उड़ चली। मैना को आराम से उड़ते हुए देखकर,
जमीन पर पड़े घायल कौवों ने कहा, "अरी मैना बहन, तुम
रात को कहाँ थीं? तुम्हें ओलों की मार से किसने
बचाया?"
मैना बोली, "मैं आम की डाली पर बैठी ईश्वर से
प्रार्थना कर रही थी कि हे ईश्वर! दुखी और असहाय लोगों
की रक्षा करना। उसने मेरी प्रार्थना सुन ली और उसी ने
मेरी भी रक्षा की।"
मैना फिर बोली, "हे कौवों सुनो, भगवान ने केवल मेरी
रक्षा ही नहीं की। वह तो जो भी उस पर विश्वास करता है
और उसकी प्रार्थना करता है, उसे याद करता है, तथा
भरोसा करता है, ईश्वर उसकी रक्षा अवश्य ही करता है और
कठिन समय में उसे बचाता भी है।"
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