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फुलवारी


बेंजी का बड़ा दिन
- नीलिमा सिन्हा
 

बड़े दिन की पूर्व संध्या थी। गलियाँ और बाजार परियों की नगरी जैसे सजे हुए थे। बाजार में सब दुकानों पर लाल, नीली, हरी, पीली बत्तियाँ तारों की तरह टिमटिमा रही थीं। सभी दुकानें जगमगा रही थीं। उनमें सजाया हुआ बड़े दिन का सामान मन को लुभा रहा था।

वहाँ तीन दुकानें ऐसी थीं जो क्रिस्मस पेड़ बेच रहीं थीं। छोटे, बड़े सभी तरह के पेड़ थे। उनमें कुछ असली थे, कुछ बनावटी भी थे। ये पेड़ बड़े आकर्षक ढँग से सजे हुए थे। सब चाँदी और सोने के रिबनों, रंगीन चमकदार गेंदों से सजे झिलमिला रहे थे।

बेंजी एक दुकान के बाहर खड़ा होकर एक पेड़ को देखने लगा। उसने सोचा, 'काश! किसी तरह मुझे यह पेड़ मिल जाये। सैमी और रूथ पेड़ पाकर कितनी खुश होंगी। फिर उनका यह सबसे बेहतर क्रिस्मस होगा।' उसे ध्यान आया उस पेड़ का जो उसने सबसे बड़ी दुकान में देखा था। 'मुझे वही खरीदना है' यह सोचकर वह अन्दर गया। उसने मालिक से उस पेड़ की ओर इशारा करते हुए दाम पूछे। दुकान के मालिक मोटे और गंजे मि. अब्राहम ने पहले ऊपर से नीचे तक बेंजी को देखा। फिर बेंजी की कमीज के दाई ओर पर बने छेद को एकटक देखने लगा। उस पर पड़ती दुकानदार की नजर बेंजी से छिपी नहीं रही। उसने अपने दोनों हाथ कुछ इस मुद्रा में उठाए कि दाएँ हाथ के नीचे वह छेद दब गया। 'वैसे भी।' उसने सोचा, "मेरे पास पूरे अठ्ठाईस रूपये हैं। इससे क्या फर्क पड़ता है कि मेरी
कमीज में एक छेद है'।

"यह पैंतीस रूपये का है। क्या तुम खरीदना चाहते हो?" दुकानदार के मुँह से यह बात सुनकर बेंजी का सारा विश्वास छिन्न-भिन्न हो गया। उसे यह अहसास हो गया था जो पेड़ उसे इतना पसन्द आया है उसे वह खरीद नहीं सकता है। ये अठ्ठाईस रूपये जो उसने पूरे सप्ताह नुक्कड़ के ढाबे पर कठिन परिश्रम करके कमाए थे वे काफी नहीं थे।

उसने घंटो तक सैंकड़ो ग्राहकों को भाग-भाग कर भोजन परोसा था। वह अपनी छोटी बहनों सैमी और रूथ के लिए पेड़ खरीदना चाहता था। वह तो समझ रहा था कि पेड़ पच्चीस रूपये में ही आ जाएगा। बाकी तीन रूपये उसे और सजाने में काम आएँगे।

"क्या कह रहे हैं, मि. अब्राहम, पिछली बार तो यह केवल पच्चीस रूपये का ही था," बेंजी ने झिझकते हुए कहा।

"जरूर था। पिछले साल पच्चीस रूपये का ही था। पर तुम्हें मालूम है न तब से अब तक महँगाई कितनी बढ़ गई है। मेरी दुकान में कोई भी पेड़ पैंतीस रूपये से कम नहीं हैं।" मि.
अब्राहम से कहा और पूछा, "जल्दी बोलो, तुम्हें लेना है या नहीं?"

दुकानदार की बात सुनकर बेंजी का चेहरा शर्म से लाल हो गया। ' कितना कठोर आदमी है' सोचते हुए वह खिन्न मन से बाहर निकल आया। अपनी परेशानी में दरवाजे के पास रखी रेत की बालटी से भी टकराते-टकराते बचा। जब दुकान में लोग उसके सारे पेड़ खरीद रहे हैं तो ऐसे में दुकानदार भला उसकी क्या परवाह करेगा। दुकान में भीड़ थी। मा
ता-पिता और बच्चे आपस में चिल्लाकर बात कर रहे थे कि उन्हें कौन-सा पेड़ पसन्द है।

"अब मैं कहाँ से बाकी के सात रूपये लाऊँ" बेंजी ने सोचा। उसे दुख यह था कि इस बार उसके छोटे से घर में कोई पेड़ नहीं होगा। उसे अपनी बहनों का विचार भी परेशान कर रहा था। उसने उन्हें अब की बार बड़े दिन का पेड़ लाने और उसे खूब सजाने के लिए, पूर्ण विश्वास के साथ, सामान लाने का वायदा किया था। यदि वह पेड़ नहीं ले गया तो उनके मन पर क्या बीतेगी। बल्कि उसने तो अपने मित्रों को भी आज रात खाने पर आने का निमंत्रण दिया था। पेड़ के बिना वह क्या मुँह लेकर घर जाएगा, और क्या
अपने मित्रों को दिखाएगा।

शहर के दूसरे छोर पर बेंजी का छोटा-सा दो कमरों का घर था। वहाँ ऐसी दुकानों और सजावट कहाँ थी। बेंजी उदास मन लिए जेब में हाथ डाले जूते से पत्थरों को ठोकर मरता हुआ इधर से उधर घूमने लगा। बाज़ार के एक सिरे पर एक आधी बनी हुई इमारत खड़ी थी। शाम होने के कारण वहाँ बहुत वीरानी छाई हुई थी। बेंजी थोड़ी देर के लिए एक रेत के टीले पर जा बैठा। ठंड के मारे वह काँप रहा था। फिर उठकर बाजार में आ गया। सोचा, दुबारा पूछे। हो सकता है उन्होंने दाम गलत बता दिये हों। पर तभी दिमाग ने झटका दिया कि नहीं। वास्तव में सबसे छोटे पेड़ का मूल्य पैंतीस रूपये ही था।


'बस सात ही रूपये तो कम थे। मैंने क्यों नहीं पिछले हफ्ते और सात रूपये कमा लिये? और दो-चार दिन ढाबे में ज्यादा काम कर लेता तो कमा ही लेता। इसी तरह अपने ऊपर झल्लाते, पैर पटकते, उसने फिर अपने आपको उसी दुकान के सामने खड़े पाया। उसने खिड़की में से देखा, वह पेड़ अभी तक वहीं खड़ा था।


अचानक, उसने मिस्टर अब्राहम को दुकान से बाहर आते हुए देखा। वह अपने दोनों हाथ खुशी से मल रहे थे और काफी सन्तुष्ट लग रहे थे। वह दुकान के बाहर खड़े होकर लोगों को आते-जाते हुए देखने लगे।

जैसे ही बेंजी ने उधर देखा, दुकान के ऊपर लगा बड़ा निऑन साईन बोर्ड जो हरे और लाल रंग में टिमटिमा, टिमटिमा कर कह रहा था 'पेड़ बिक्री के लिए' वह धीरे-धीरे नीचे सरक रहा है। बेंजी ने आव देखा न ताव, उछल कर मिस्टर अब्राहम को धक्का दिया और उन्हें पीछे की ओर धकेल दिया। इस गुत्थम-गुत्था में दोनों जमीन पर लोटपोट हो गए। तभी वह बोर्ड धड़ाम से गिरा और टुकड़े-टुकड़े हो बिखर गया।

"क्या हुआ क्या ? दुकानदार एकदम घबरा गया था।

"ओह," बेंजी चिल्लाया, "तारों में से चिन्गारी निकल रही है।" जैसे ही वह कूदा तार एक गत्ते के
डिब्बे से छू गये जो वहीं पड़े थे और तुरंत ही आग भड़क उठी। "ओह, ओह, आग! आग," सहमे से मि. अब्राहम चिल्लाये। वह अभी तक जमीन पर बैठे थे।

'आग' शब्द सुनते ही कुछ ही क्षणों में भीड़ एकत्रित हो गई। बेंजी एक झटके से उठा। उसे दुकान के पास रखी रेत की बालटी का ध्यान आया। वही बालटी जिससे वह पहले भी टकराया था। उसने बालटी की रेत आग पर फेंकनी शुरू कर दी और लोगों ने भी ऐसी ही बालटियाँ उठा लीं। कई लोग चिल्ला भी रहे थे कि "आग बुझाने वालों को बुलाओ।" इतनी भागदौड़ और गड़बड़ी के बाद खतरा टल गया। लोग उत्तेजित होकर बात कर रहे थे। किसी की आवाज सुनाई पड़ी, "यह वही लड़का है जिसने मिस्टर अब्राहम की जान बचाई। कितना चतुर है यह।" इशारा बेंजी की ओर था।

"और आग बुझाने में भी इसने कितनी फुर्ती से काम लिया, " किसी दूसरे ने कहा।

सारी बात सुन समझ कर मिस्टर अब्राहम भी मन ही मन बेंजी का गुणगान कर रहे थे।


भारी मन से उन्होंने बेंजी का कंधा दबा दिया। बोले, "मैं तुम्हारा किस तरह से धन्यवाद करूँ। तुमने आज मेरी जान बचाई है।"

"नहीं, नहीं, ऐसा न कहिए मिस्टर अब्राहम, आप सुरक्षित है यही मेरे लिए बहुत खुशी की बात है।" वह कुछ-कुछ शर्मिन्दा महसूस कर रहा था। "अब मुझे घर जाने की अनुमति दे," वह मुड़ने ही लगा था कि मि. अब्राहम ने शांत स्वर में कहा, "मुझे याद है, तुम कुछ घंटे पहले यहाँ आये थे।" जो पेड़ बेंजी लेना चाहता था उसी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने पूछा, "तुम यही पेड़ लेना चाहते थे न?" बेंजी चुप था। "मैं तुम्हें यह पेड़ उपहार स्वरूप देना चाहता हूँ। देखो इसे स्वीकार कर लो। इससे मुझे बहुत खुशी
होगी।"

बेंजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। अपने शरीर पर उसने दो-तीन जगह चिकोटी काट कर देखा कि वह सपना तो नहीं देख रहा था। उसकी आँखों में चमक आ गई। "धन्यवाद सर, पर आप को यह पैसे अवश्य लेने पड़ेंगे और बाकी पैसे मैं कुछ ही दिनों मे लौटा दूँगा।"

"नहीं, नहीं पैसे की बात करके तुम मुझे शर्मिन्दा मत करो, "मि. अब्राहम ने कहा। "मैं तुम्हें
इसे उपहार के रूप में देना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ मेरी जान बचाने के बदले यह कुछ भी नहीं है, पर क्योंकि तुम्हें यह पसन्द आया था इसीलिए, " कहते-कहते वह रूक गए।

"ओह धन्यवाद सर, मेरी छोटी बहनें बहुत खुश होंगी। मैंने उनको आज रात पेड़ लाकर देने का वायदा किया था।"

"
तब तो तुम्हें अवश्य ही उन्हें निराश नहीं करना चाहिए, "मि. अब्राहम ने मुस्कराते हुए कहा। "एक मिनट रूको," कहते हुए वह अपनी दुकान के पीछे बने एक छोटे से कमरे में गायब हो गये। अगले ही क्षण वह अपने हाथ में एक गत्ते का डिब्बा लेकर वापस आये। "इसे भी पेड़ के साथ ले जाओ, इसमें कुछ सजावट का सामान है। और मेरी गाड़ी तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ आयेगी। नहीं तो फिर कोई समस्या आ खड़ी होगी।"

बेंजी जब घर पहुँचा तो उसे लगा जो गली अभी कुछ घंटों पहले तक ठंडी व वीरान लग रही थी अब खुशियों से भर गई है। उसे लगा कि हरी और लाल बत्तियाँ उसके हृदय को छू रही हैं। पेड़ उतारने के बाद, बेंजी ने ड्राइवर को एक पल के लिए रूकने को कहा, "मैं मि. अब्राहम के लिए कुछ भेजना चाहता हूँ।" घर के अन्दर तेजी से जा कर बेंजी ने एक कागज पर कुछ लिखा और एक लिफाफे में डालकर उसे बंद कर दिया और मि. अब्राहम को देने के लिए ड्राइवर को दे दिया। फिर सुख की सांस ली।

उस रात जब अमर और राहुल चले गये, और उसकी दोनों बहनें शाम के उत्साह से भरी सो गई, तब बेंजी उस पेड़ को देखने लगा जिसका प्रकाश पूरे कमरे में फैल रहा था। इतनी सारी सजावट थी, सुनहरी और चांदी के रंग के काँच के गोले, लाल, नीली, हरी और पीली बत्तियाँ, रंग-बिरंगे रिबन। पर सबसे अच्छा तो उसे चमकीला सितारा लगा था जो उन्हें उस गत्ते के डिब्बे में मिला था। जब भी वह झिलमिलाता था तो लगता कह रहा हो, "मैं यहाँ खुश हूँ।"

जब मि. अब्राहम ने वह लिफाफा खोला तो उन्हें उसमें कुछ रूपये और एक पुर्जा मिला। "कृपया यह अठ्ठाईस रूपये स्वीकार कीजियेगा। पिछले साल पेड़ की यही कीमत थी। मैंने ज्यादा काम नहीं किया था, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। क्रिस्मस की बधाई।

१ दिसंबर २००१

  
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