चम्बा में मंदिरों की
बहुतायत होने के कारण इसे 'मंदिरों की नगरी' भी
कहा जाता है। चम्बा में लगभग 75 मंदिर हैं और
इनके बारे में अलगअलग किंवदंतियां हैं।
इनमें से कई मंदिर शिखर शैली के हैं और कई
पर्वतीय शैली के। शिल्प व वास्तुकला की दृष्टि से ये
मंदिर अद्वितीय हैं।
लक्ष्मीनारायण मंदिर समूह तो
चम्बा को सर्वप्रसिद्ध देवस्थल है। इस मंदिर समूह
में महाकाली, हनुमान, नंदीगण के
मंदिर के साथसाथ विष्णु व शिव के तीनतीन मंदिर
हैं। सिद्ध चर्पटनाथ की समाधि भी यहीं है। मंदिर
में अवस्थित लक्ष्मीनारायण की बैकुंठ मूर्ति कश्मीरी
व गुप्तकालीन निर्माण कला का अनूठा संगम है। इस
मूर्ति के चार मुख व चार हाथ हैं। मूर्ति की
पृष्ठभूमि में तोरण है, जिस पर 10 अवतारों की
लीला चित्रित है।
चम्बा कलानगरी भी
कहलाती है। यहां भूरिसिंह नाम का संग्रहालय है
जहां चम्बा घाटी की हर कला सुशोभित है। भारत के 5
प्राचीन प्रमुख संग्रहालयों में से एक माने
जाने वाला यह संग्रहालय शहर के ऐतिहासिक
चौगान में स्थित है और विश्व भर के पर्यटकों,
शोधार्थियों व कलाप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र
है। इस संग्रहालय में 5 हज़ार से अधिक ऐसी
दुर्लभ कलाकृतियां हैं जो इस तथ्य की साक्षी हैं कि
उस समय चम्बा की कला अपने स्वर्णिम युग में
थी। इन कलाकृतियों में भितिचित्र भी हैं और
मूर्तियां भी, पांडूलिपियां भी हैं और विभिन्न
धातुओं से निर्मित वस्तुएं भी। यही नहीं,
प्राचीन सिक्के और आभूषण भी बड़ी संभाल के
साथ यहां रखे गए है। विश्व प्रसिद्ध 'चम्बा रूमाल'
भी यहां शीशे के बक्सों में देखा जा सकता है।
संग्रहालय में रखी गई मूर्तियां उन्नत शिल्प कला
का बेजोड़ उदाहरण हैं। इनमें से एक मूर्ति
भगवान वासुदेव की हैं (चित्र बायीं ओर)। यह मूर्ति इस संग्रहालय
की सुरक्षित प्रस्तर प्रतिभाओं में से सब से छोटी
है।
चम्बा की कलात्मक
धरोहर में यहां की पनघट शिलाओं को भी शामिल
किया जा सकता है। ये शिलाएं चम्बा जनपद के
ग्रामीण आंचलों में बनी बावड़ियों और
नौणा जैसे प्राकृतिक जल स्त्रोतों के किनारे आज
भी प्रतिष्ठित देखी जा सकती हैं। घाटियों में घूमता
कोई घुमक्कड़ जब अपनी प्यास बुझाने इन जल
स्त्रोतों के पास पहुंचता है तो वहां रखी पनघट
शिलाओं
के कलात्मक शिल्प और इन पर खुदी आकृतियों को देखकर
दंग रह जाता है। ये शिलाएं चम्बा की गौरवपूर्ण
संस्कृति व इतिहास का आइना भी हैं। खुले आकाश तले
प्रतिष्ठित होने के बाबजूद ये अपना मौलिक स्वरूप
बरकरार रखे हुए हैं। कुछ विशिष्ट शिलाएं तो
भूरिसिंह संग्रहालय में भी प्रदर्शित की गई हैं।
चम्बा के अखंड चंडी
महल और रंग महल भी देखने योग्य हैं। अखंड चंडी
महल तो एक ऐतिहासिक स्मारक होने के साथसाथ
अनूठे वास्तु स्थापत्य और चित्रकला के लिए देशभर
में मशहूर हैं। इस महल में घूमते हुए सैलानी
रजबाड़ाशाही के युग में लौट जाता है और चम्बा
के राजाओं की कलात्मक अभिरूचियां और राजसी
ठाठबाठ उसके निगाहों के आगे तैरने लगते हैं।
चम्बा के ऐतिहासिक चौगान से साफ़ दिखने वाला
यह महल इतिहास के कई थपेड़ों का मूक साक्षी है।
रजवाड़ाशाही के दौर में राजा आतेजाते रहे और
इस महल के निर्माण व विस्तार का काम चलता रहा।
नगर के उतरी भाग
में किलानुमा दिखने वाला रंगमहल भी चम्बा की
कलात्मक व ऐतिहासिक धरोहर है। अखंड चंडी महल का
निर्माण तो बाद में हुआ, पहले रंग महल ही
चम्बा के राजाओं का आवास हुआ करता था। इस
रंगमहल की नींव 1755 में तत्कालीन चम्बा नरेश
उमेद सिंह ने रखी थी। उमेद सिंह ने 1748 से 1764
तक चम्बा राज्य पर शासन किया। उसकी इच्छा थी कि यह
भवन इतना विशाल व आलीशान बने कि पड़ोसी
रियासतों के राजा भी इसकी खूबसूरती से ईष्या
करें लेकिन उमेद सिंह के जीवन काल में यह भवन
पूरा नहीं हो पाया। इसका बाकी निर्माण कार्य उसके
पुत्र राजा राजसिंह ने पूरा करके अपने पिता का स्वप्न
साकार किया। यह महल अनूठी कलात्मक धरोहर भी
बने, इस उद्देश्य से इसके भीतर पहाड़ी शैली के
अनूठे चित्र बनाए गए।
चम्बा की सांस्कृतिक
धरोहर में यहां के मेलों को भी शामिल किया
जा सकता है। वैसे तो इस जनपद में बहुत से
मेलों का आयोजन होता है लेकिन मिंजर मेला
और मणीमहेश मेला, दो ऐसे आयोजन हैं
जिन्होंने देशव्यापी ख्याति अर्जित की है। चम्बा
मिंजर मेला जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता
है वहीं मणीमहेश मेला को राज्य स्तरीय दर्जा
हासिल है। मिंजर मेला उन दिनों लगता है जब
सावन की हल्कीहल्की फुहारों से लोग भीग रहे
होते हैं। इसे सावन की फुहारों में लगने वाला
मेला भी कहा जाता है। इस मेले में आयोजित
लोकनृत्यों में तो समूची चम्बा घाटी की संस्कृति
देखने को मिलती है।(चित्र में मिंजर मेले का एक
दृश्य)
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