पर्यटन |
अनोखा आकर्षण
आम्बेर |
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आम्बेर का किला अपने शीश महल
के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और
छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ
मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को
प्रकाश से जगमग कर देता है। सुख महल व किले के बाहर झील
बाग का स्थापत्य अपूर्व है। भक्ति और इतिहास के पावन संगम के रूप में स्थित आमेर नगरी अपने विशाल प्रासादों व उन पर की गई स्थापत्य कला की आकर्षक पच्चीकारी के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पत्थर के मेहराबों की काट-छाँट देखते ही बनती है। यहाँ का विशेष आकर्षण है डोली महल, जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें प्राचीन काल में राजपूती महिलाएँ आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ राजे-महाराजे अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे। कहते हैं महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब राजा मान सिंह युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था। यह कहावत भी प्रसिद्ध है कि अकबर और मानसिंह के बीच एक गुप्त समझौता यह था कि किसी भी युद्ध से विजयी होने पर वहाँ से प्राप्त सम्पत्ति में से भूमि और हीरे-जवाहरात बादशाह अकबर के हिस्से में आएगी तथा शेष अन्य खजाना और मुद्राएँ राजा मान सिंह की सम्मति होगी। इस प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त करके ही राजा मान सिंह ने समृद्धशाली जयपुर राज्य का संचलन किया था। आमेर के महलों के पीछे दिखाई देता है नाहरगढ़ का ऐतिहासिक किला, जहाँ अरबों रुपए की सम्पत्ति ज़मीन में गड़ी होने की संभावना और आशंका व्यक्त की जाती है। |