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पर्यटन

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महाबलीपुरम की ओर
-ज्योति खरे


महाबलीपुरम् देश का एक प्रमुख बंदरगाह है। यह तमिलनाडु प्रदेश की राजधानी मद्रास से लगभग साठ किलोमीटर दूर दक्षिण में बंगाल की खाड़ी पर स्थित है। सात पैगोडाओं का शहर महाबलीपुरम् आज मामाल्लीपुरम् नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान ने नामकरण के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने वामनावतार धारण कर जिस असुर पर विजय प्राप्त की थी, उसी महाबली दानव के नाम पर इस जगह का नामकरण हुआ है। वैसे, एक किवदंती और भी प्रचलित है कि सातवीं शताब्दी में पल्लवराजा नरसिंह वर्मन महा-मल्ल थे, बलशाली थे और उन्हीं के नाम पर इसका नाम महामल्लपुरम् और अपभ्रंश होते-होते आज मामाल्लीपुरम् अथवा महाबलीपुरम् हो गया।

विश्व प्रसिद्ध महाबलीपुरम् का निकटतम रेलवे स्टेशन चेंगलपट्ट है, जो महाबलीपुरम से तीस किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। यह रेलवे स्टेशन दक्षिण रेलवे की मद्रास-त्रिची लाइन पर पड़ता है। यह काँचीपुरम और आरकोनम नगरों को भी जोड़ता है। चैंगलपट्ट से महाबलीपुरम तक का सफर बस या टैक्सी द्वारा तय किया जा सकता है। महाबलीपुरम मद्रास तथा दक्षिण भारत के अन्य नगरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। महाबलीपुरम का निकटतम हवाई अड्डा ‘मीनामवक्कम’ है, जो मद्रास से लगभग उन्नचास किलोमीटर दूर है।

महाबलीपुरम आज एक छोटी-सी जगह है। कभी यहाँ पल्लवों का बंदरगाह था। ईसा पूर्व से ही ग्रीक नाविक अपने पोत यहाँ खड़े करते थे। आसपास के स्थलों से प्राप्त असंख्य रोमन सिक्के इसके अंतराष्ट्रीय व्यापार केंद्र होने का संकेत देते हैं। महाबलीपुरम् के मंदिरों और मूतियों की कला भारत की प्राचीन कलाप्रियता की परिचायक है। आज यह स्थल कलाप्रेमियों, इतिहासकारों एवं पुरातत्व के पारखियों का तीर्थ-स्थल बन गया है। वैसे यह शिला-शिल्प के लिए भी संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है।

सात पैगोडाओं का केंद्र

महाबलीपुरम् पर्यटकों के लिए सात पैगोडाओं के नाम से आकर्षण का केंद्र रहा, हालाँकि आज केवल एक पैगोडा ही बचा है। शेष छह पैगोडाओं को समुद्र ने अपने आँचल में समेट लिया है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवासकाल में कुछ समय तक महाबलीपुरम में अज्ञातवास किया था। यहाँ एक ही चट्टान को काटकर बनाये गये मंदिर पाँच पांडवों के नाम से जाने जाते हैं जैसे-युधिष्ठिर रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, नकुल और सहदेव रथ। सबसे छोटा रथ द्रोपदी के नाम का है, जिसके अंदर द्रोपदी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। हालाँकि कुछ लोगों का कहना है कि यह दुर्गाजी की मूर्ति है। इनके अतिरिक्त इंद्र, शिव, दुर्गा के वाहन- हाथी, सिंह और नंदी रथ के पाश्चात्य प्रदेश में हैं। अर्जुन रथ बौद्ध विहार शैली में निर्मित है। इस रथ के पीछे की दीवार में इंद्र की प्रतिमा उत्कीर्ण की गयी है। तीसरा रथ, जिसे भीमरथ के नाम से जाना जाता है शिलाखंड की कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। इस वृहत्तम ४८ गुणा २५ फीट के रथ की ऊँचाई २६ फीट है। अंत में युधिष्ठिर रथ, जो देखने में अर्जुन रथ जैसा ही है, दर्शनीय है। द्वितीय पंक्ति में अर्जुन रथ के समीप ही बौद्ध चैत्य के आकार में नकुल व सहदेव रथ हैं। इन रथों के समूह का नाम पंच रथ है, लेकिन इनकी कुल संख्या आठ है।

नौ गुफा मंदिर

महाबलीपुरम में पहाड़ को काटकर नौ गुफा मंदिर भी बनाये गये हैं, जिनकी शिल्पकला बहुत ही आकर्षक है। एक विशाल शिलाखंड को काटकर मत्स्याकार में निर्मित अर्जुन की तपस्या करते हुए प्रतिमा उस काल की कलात्मकता, सूक्ष्मकारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है। यहीं गंगा का मर्त्य लोक में आगमन, पंचतंत्र की कथाएँ भी भित्ति-चित्रों में सजीव हो उठी हैं। श्री कृष्ण मंदिर के ऊपरी स्तंभ पर ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका पर धारण किये हुए कृष्ण का अंकन है जो बड़ा ही सुंदर लगता है। अन्य स्तंभों पर बराह का मोहक अंकन है। इसी प्रकार दूसरे स्तंभों पर अंकित महिषासुर-मर्दिनी की प्रस्तर मूर्ति शिल्पकला की दृष्टि से उत्कृष्ट है। देवताओं की असीम शक्ति का परिचायक है। श्री कृष्ण की माखन चोरी का प्रतीक जो एक बैलेन्सिंग रॉक पर निर्मित है। गणेश मंदिर भी एक शिलाखंड को काटकर तैयार किया गया है, यहाँ वर्तमान में पूजा-अर्चना होती है।

महाबलीपुरम के चित्रखंडों पर अंकित प्रतिमाएँ बौद्ध शैली की हैं। इनमें गंगावतरण का दृश्य एवं अनंतनाग पर सोये विष्णु विशेष रूप में सुंदर हैं। उन पर अंकित प्रतिमाओं को देखने से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक प्राणी तपस्या में लीन है। तपस्या में लीन सपरिवार गजराज का दृश्य तो बड़ा ही मार्मिक है। शिशु हाथियों के चित्र भी बहुत ही आकर्षक हैं। इसी प्रकार इन चट्टानों पर बंदरों की सजीव प्रतिमाएँ भी अद्वितीय हैं।

समुद्र तट पर स्थित ‘शोर टेंपल’ जो पिरामिड शैली में निर्मित है, का निर्माण सातवीं शताब्दी के अंतिम राजा सिंह के युग में द्रविणीय रीति के अनुसार निर्मित हुआ है। पल्लव राजाओं की कलात्मक कीर्तियों का यह अंतिम पड़ाव है। मंदिर में शिव व विष्णु की प्रतिमा के पीछे शक्तिरूपेण दुर्गाजी की भी मूर्ति है। पहाड़ों की खुदाई कर बनायी गयी सांडों की कतार भास्कर्य कला के अतुलनीय साक्ष्य के रूप में विद्यमान है। यह मंदिर धर्मराज युधिष्ठिर के रथ के समान ही बना है।

पत्थर को तराशती छेनी की आवाज से जगने वाल यह स्थल अब भी अपनी प्रस्तर प्रतिमा की विरासत को जिंदा रखे हुए है। पर्यटक यहाँ देवी-देवताओं की छोटी प्रस्तर और काष्ठ मूर्तियाँ, चूड़ियाँ, हस्तशिल्प की चीजें सस्ते दामों में खरीद सकते हैं।

महाबलीपुरम् समुद्रतट पर बने होटल में पर्यटक ठहर सकते हैं हालाँकि ये होटल काफी मँहगे हैं पर यहाँ पर पर्यटक चाहे तो बस्ती में स्थित धर्मशाला, निजी मकानों में भी भाड़े पर रह सकते हैं।

 

 २ जून २०१४

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