जनवरी–फरवरी
का सुखद मौसम! कहीं घूमने जाना चाहते थे। क्यों न इस बार
जंगलों में घूमा जाए! दक्षिण अफ्रीका के जंगल, केनिया की सफ़ारी
दुनिया के हर कोने से पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। चलिए!
चलते हैं इस बार उसी सफ़र पर...
दक्षिण अफ्रीका में देखने लायक बहुत जगहें हैं। हमने अपने समय
और बाकी सुविधाओं के अनुसार केपटाउन, जोहानेसबर्ग और क्रूगर
नेशनल पार्क देखने का फ़ैसला किया। केपटाऊन दक्षिण अफ्रीका के
एक कोने में है इसलिए वहीं से शुरुआत करने की सोची। कुवैत से
काफ़ी लम्बा, सत्रह–अठारह घंटे का सफ़र करने के बाद केपटाऊन
पहुँचे लेकिन थके हुए। वहाँ दिन के करीब दो बजे थे, थोड़ा आराम
करने के बाद 'वॉटर फ्रंट' पर गए। ऐसी जगह जहाँ केपटाऊन का हर
इन्सान, चाहे वहाँ का वासी हो या फिर यात्री–सैलानी हो, अपनी
शाम रंगीन बनाने में हमेशा सफल होता है। समुद्र के किनारे
होटल, रेस्तरां की भरमार, कहीं कोई अफ्रीकी नृत्य करने में लगा
है, शॉपिंग मॉल में जाओ तो अलग ही नज़ारा, खूब चहलपहल,
दो घंटे कैसे बीते पता ही नहीं
चला। दूसरे दिन सुबह से हमारा असली सफ़र शुरू होनेवाला था।
सुबह आठ बजे केपटाउन के शहर का जायज़ा लेने निकले तो इस शहर की
गहराई का पता चला। यह शहर एक तरफ़ पर्वतों से घिरा है तो दूसरी
तरफ़ समुंदर से घिरा है। डच लोगों की संस्कृति अभी भी यहाँ नज़र
आती हैं। उनके पूर्वज या राजा महाराजाओं के मनपसंद गहरे रंगों
का सौंदर्य अभी भी इन्हें प्रिय हैं और इनको दुनिया से अलग
विशेष पहचान देता है। यहाँ ऐसे अलग–अलग इलाके पहाड़ियों में बसे
हुए मिलते हैं जहाँ डच संस्कृति के लोगों और मुस्लिम बस्ती की
पहचान उनके घर या उनके लिए बनाई गई मस्जिद से होती है।
ऊँचे–नीचे, चढ़ाई–ढलान भरे रास्तों से गुज़रते अब हमें
जाना था टेबल माऊंटेन। नाम से
थोड़ा अंदाज़ा हो ही जाता है कि माउंटेन टेबल जैसा होगा। सपाट
सतह का यह पहाड़ दूर से ही नज़रों में समा जाता है। ऊँचाई चढ़ने
का रोमांच चढ़कर जाने में है लेकिन समय की कमी के कारण रोप वे
का ही सहारा लेना ठीक लगा।
इस रोप वे की एक खासियत है, यह उपर चढ़ते–चढ़ते सब ओर आपको
घुमाता हुआ ले जाता है ताकि चारों ओर का दृश्य आप एक जगह खड़े
हो कर भी देख सकें। (अच्छा नज़ारा देखने की ख्वाहिश पूरी करने
के लिए खिड़की पकड़ने की ज़रूरत नहीं) पर किस्मत का साथ रहना
ज़रूरी है।
बादल
यहाँ आकर खूब बरसते हैं, साथ में बहती है तेज़ हवा। हवा की दिशा
और बहाव के साथ भागते हुए ये बादल कब आपका यहाँ आना रोक दें,
कहा नहीं जा सकता। पर बादल हम पर मेहरबान नज़र आते दिखाई दिये।
सुबह दस बजे पहुँचने पर पता चला कि माउंटेन पर जाने का रास्ता
खुला है। रोप वे से इसकी सपाट सतह पर पहुँचे, नीला समंदर, शहर
का नज़ारा और हरी हरी पहाड़ियाँ, आँखों में क्या समाया जाए,
समझमें नहीं आया। इस पर्वत के बारे में कहा जाता है कि इसकी
ऊपर की सतह लाइम स्टोन यानी चूने की बनी थी। बारिश और हवा इस
माऊंटेन की चोटी को इस
कदर बहा ले गई कि सतह सपाट हो गई। हम दो घण्टे घूमकर नीचे आए।
हर दिन, दोपहर में बारह बजे यहाँ की एक पहाड़ी पर रखी पुरानी
तोप से हवा में गोला दागा जाता है। कहते हैं, इसकी आवाज़ पूरे
केपटाउन शहर में सुनाई देती है। हमने भी सुनी। पुराने ज़माने
में जब कोई खाने पीने या जीवनावश्यक वस्तुओं से भरा मालवाही
जहाज़ केपटाउन शहर में प्रवेश करता था, आम जनता को सूचना देने
के लिए इस तोप का इस्तेमाल किया जाता था। अब उन्हीं दिनों की याद
में दिन में बारह बजे का समय नियत कर के तोप की आवाज़ की जाती
है ताकि लोग पुराने दिनों को सदा याद रखें।
दोपहर के दो बजे थे, समय हो रहा था रॉबिन आयलैंड पर जाने का।
चालीस मिनट का खुली बोट का यह सफ़र बड़ा रोमांचकारी है। दूर
पहाड़ों पर उतरे बादल, समुंदर में तेज़ रफ़्तार से चलती मोटर नौका
के चलते उड़ते फव्वारों से हम भीगते जा रहे थे। सुनसान और बाकी
दुनिया से जैसे इसका कोई नाता ही ना हो ऐसे रॉबिन आयलैंड पर
स्थित जेल में नेलसन मंडेला को रखा गया था। यहाँ उन्होंने अपने
जीवन के करीब अठारह साल बिताए थे। जेल को आज तक मैंने कभी देखा
नहीं था। आज यह मौका आया था। हर जगह गाइड ज़रूर होता है, यहाँ
भी था। रॉबर्ट नामक इस गाइड ने जब
बोलना शुरू किया तो हमारे साथ का
हर सदस्य हक्का–बक्का रह गया। रॉबर्ट वह आदमी था जिसने नेलसन
मंडेला के साथ वहाँ बीस साल उसी जेल में, उनके बगल के कमरे में
गुज़ारे थे। अपने देश की स्वतंत्रता की खातिर जेल में इतने साल
बिताए हुए रॉबर्ट हम सब पर्यटकों के दिलों में जैसे बस गया। अठारह–उन्नीस साल की उम्र में उसे जेल हुई, वहाँ रहते
इन कैदियों ने, जो पढ़ना चाहते थे, आगे पढ़ाई की और जेल की
कार्यपद्धति में सुधार किया।
आज जेल से तो छूटे हैं, आज़ाद ज़िन्दगी जी रहे हैं लेकिन हालत
गंभीर बनी हुई है। इतने सालों में परिस्थितियाँ बहुत बदल गईं,
उनकी पढ़ाई के अनुसार आज वे कहीं भी काम हासिल करने में
नाकामयाब हैं। रॉबर्ट के शब्दों में, "आज भी यह जेल ही हमारा
सर्वस्व है, यहाँ रहना हमारी मज़बूरी है।"
देखते ही खस्ताहाल दिखता रॉबर्ट सभी के मन पर अमिट छाप छोड़ गया
है। भूले नहीं भूलती मैं उस रॉबर्ट को! इस बात का अहसास भी
होता है कि नेल्सन मंडेला जैसे लोग तो दुनिया की नज़र में रहते
हैं लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में बराबर का हिस्सा लेने वाले
ऐसे कितने चेहरे हैं जो गुमनाम और मुसीबत भरी ज़िंदगी जीने पर
मजबूर हैं। एक मज़ेदार बात नज़र आई। जेल के हर कमरे के उस समय के
कैदी की आवाज़ वहाँ टेप कर के रखी हुई है। आप बटन दबा कर उसे
सुन सकते हैं। हम ऐसे ही जेल के एक कमरे (सेल) में पहुँचे तो
वहाँ श्री बिली नायर की फोटो लगी थी। मूल भारतीय होने के
साथ उन्होंने भी वहाँ
अपनी ज़िन्दगी के बीस साल बिताए थे।
रॉबर्ट और बिली नायर के बारे में सोचते रॉबिन आयलैंड से लौटे।
अनायास दिल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन कैदियों ने
आवाज़ दी जिन्हें अंडमान की जेलों में रखा गया था। क्या वीर
सावरकर का कमरा भी ऐसा ही होगा जहाँ उन्हें कैद किया गया था?
उस स्थल को देखने की इच्छा मन में उमड़ने लगी है।
केपटाउन में तीसरा दिन हरे भरे वृहदाकार पहाड़ों में और नीले
सागर के किनारे सफ़र का था। गाड़ी चलती ही जा रही है, पहाड़ और
सागर भी हमसफ़र बने चल रहे थे हमारे साथ–साथ। कभी कभी इतनी
ऊँचाई पर पहुँच जाते कि गहराई को देखने रुक जाते। दृश्य ऐसे
मनभावन कि आँखें थकती नहीं थीं देख–देख कर। इस लम्बे सफ़र का
अन्त हुआ अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिण छोर पर। यहाँ हिन्द
महासागर और अटलांटिक महासागर मिलते हैं। इस जगह को 'केप ऑफ गुड
होप' कहा जाता है। यहाँ से चले प्यारे पेंग्विन पक्षियों से
मिलने 'पेंग्विन आयलैंड' की ओर। ओ हो! कैसा झुंड हैं इनका
यहाँ। कहते हैं कि शुरू में एक पेंग्विन की जोड़ी तैरती हुई
यहाँ आ पहुँची। यहाँ रहने लगे तो अपने बर्फवाले देश में लौटना
शायद भूल गए। यहीं के मौसम को अपना लिया, यहीं की आदत–सी डाल
ली। करते करते अब यहाँ बड़ी संख्या में ये पक्षी मौजूद हैं। मूल
पेंग्विन से यहाँ के पक्षी ज़रा छोटे दिखते हैं लेकिन पेंग्विन
तो पेंग्विन हैं, रौबदार, डौलदार चाल है उनकी,
मस्ती से कभी पानी में तो कभी
रेत में आवाजाही शुरू रहती है। नज़र हटाने को दिल नहीं करता।
लौटते समय वनस्पति उद्यान में गए। इन बगीचों के आकर्षण से हम
अपने आप को बचा नहीं पाए। पहाड़ों के समीप बनाया हुआ यह बगीचा
मनमोहक और प्राकृतिक दृश्य में बेमिसाल है। सूरज ढलने लगा था,
पहाड़ी पर अँधेरा सा, सूरज की किरणें पहाड़ों से टकराकर गहरी
झाड़ियों से छनछन कर वहाँ की हरियाली पर चमक रही थीं। ऐसा
लुभावना दृश्य जिसे शब्दों में बयान करना बड़ा मुश्किल है। कहीं
धूप कहीं छाँह, स्वर्णिम, मनमोहक, कितना रमणीय! दुनिया भर के
पेड़ पौधों की हर किस्म यहाँ अपने उत्कृष्ट रूप में संजोई गई
है। मौसम के बदलाव में उन्हें बड़ी जतन से संभाला जाता है।
दिनभर के थके हारे एक बार फिर रात को वॉटरफ्रंट पर बैठ अफ्रीकी
भोजन और रेड वाइन का मज़ा लेने के बाद अगले दिन सुबह केपटाउन से
विदा ली।
जोहानेसबर्ग पहुँचने पर सीधे गोल्ड रीफ सिटी पहुँचना था। यह
शहर जोहानेसबर्ग से ज़रा दूर है। टैक्सी से चल रहे थे। हमारे
देश के और दक्षिण अफ्रिका के ग्रामीण भाग के दृश्यों में काफ़ी
समानता है। १९९४ साल से पहले जैसी स्थिति कृष्णवर्णियों की थी
उसमें काफ़ी बदलाव आया है ऐसा लगता नहीं। हमारा टैक्सी ड्राइवर
जो कृष्णवर्णी था, हमें बता रहा था
कि आज भी शिक्षा के अभाव में
निम्नस्तरीय काम करने पर वे लोग मजबूर हैं।
गोल्ड रीफ सिटी छोटी पर अपने आप में एक गाँव जैसी और परिपूर्ण
है। पुराने ज़माने की याद दिलाती घोड़ा गाड़ी, अजीब तरह की
मज़ाकिया लगती खिलौने जैसी कार का सफ़र, सब कुछ है यहाँ। 'फन
सिटी' में ढेर सारी लेकिन भयंकर राइड्स हैं जिन्हें देखकर आम
आदमी घबरा जाए पर इसमें बैठकर मज़े लेने वालों की संख्या कम
नहीं। जोहानेसबर्ग की यह जगह छुट्टियाँ बिताने वाले बच्चों और
पिकनिक का मज़ा लेने वालों में खूब लोकप्रिय है।
यहाँ पुरानी सोने की खदानें हैं। देखने गए तो लगा खदानों में
काम करने वाला मज़दूर कितनी परेशानी उठाता होगा। हमें जिस गहराई
तक ले जाया गया उससे छह गुना नीचे उस समय मज़दूर काम कर रहे थे।
काफ़ी मेहनत के बाद भी जब सोना मिलना मुश्किल हुआ तब यह खान बंद
कर दी गई। सोने की ईंट बनाने का तरीका देखकर भौंचक्के रह गए।
खदान से निकले हुए ढेर में से इतना सा सोना हाथ आता है। सच में
सोना कितना बहुमूल्य है! पिघला हुआ तपता सोना देख कर हैरान रह
जाते हैं। आठ किलो सोने की ईंट बनते यहाँ देखी जा सकती है।
मज़ाक में यह भी कहा जाता है वहाँ कि यदि दो उंगलियों में यह आठ
किलो की ईंट इसी समय उठा सकते हैं तो वह ईंट आपकी। 'लालच बुरी
बला', वहाँ मौजूद हर आदमी कोशिश किए बिना वहाँ से नहीं हिला।
शाम होते ही यहाँ से लोग कसीनो जाने लगे। अनुभव न होने के कारण
वहाँ हम गए पर पैसे दांव पर लगाने का हाल
हमारी समझ से परे था। भारतीय मूल
के लोग, हर उम्र के, जिनमें औरतें भी हैं, बड़ी सफ़ाई से कसीनो
में कंप्यूटर पर बोली लगाते नज़र आए। यहाँ सप्ताहांत
को शायद यह एक दिल बहलाने का ज़रिया है। चारों तरफ अफ्रीकन
सिक्कों की खनखनाहट सुनाई देती थी। कोई जीत रहा है, कोई हार
रहा है। यह हार जीत भी हम समझ नहीं सके। बिना कुछ गवाँए या
पाए, (बिना खेले ही) उलटे पाँव हम वापस चल दिये।
दक्षिण अफ्रीका जाकर क्रूगर नेशनल पार्क में घने जंगल का मज़ा
लिए बिना कैसे लौट सकते थे। जोहानेसबर्ग से अब हमें असली
अफ्रीका का मज़ा लेने जाना था, घनघोर जंगलों में। जोहानेसबर्ग
से हवाई जहाज़ बादलों से अठखेलियाँ करते पूरा घने जंगलों पर ही
सफ़र करता है। इतने घने जंगल कैसे होंगे सोचते सोचते नेलस्प्रुट
हवाई अड्डे पर हम उतरे। इतना छोटा सा हवाई अड्डा है कि हम
हवाईपट्टी पर ही उतरते हैं। एअरपोर्ट की इमारत बड़ी मजेदार
लगी। छत लकड़ी की तीलियों से बनी हुई थी। इस पूरे इलाके में
जिधर भी देखो, ऐसे ही घर बनाने का रिवाज़ दिखाई दिया।
यहाँ से हमें हमारी मंज़िल तय करने के लिये कार से तीन घंटे का
सफ़र करना था। वन्य जीवन से रू–बरू होने का समय नज़दीक आता जा
रहा था। हमें जाना था 'एलिफेंट प्लेनस'। बड़ा खूबसूरत था वह
सफ़र! रास्ते के दुतर्फा लगे पौधे कुछ अलग किस्म के लगे। पहाड़
के पहाड़ किराए पर सरकार से लेकर इन पौधों की खेती की जाती है
जिसका उपयोग कागज़ बनाने में किया जाता है। यह पौधा पच्चीस साल
की उम्र में काटकर कागज़ बनाने के काम आता है। जमीन तक काटने के
बाद इसमें पुनः नए अंकुर फूटते हैं। दूर दूर तक फैले पहाड़ इन
पौधों की हरियाली से ढँके थे। सड़क के दोनों ओर ऐसे ऊँचे ऊँचे
पौधे, सफ़र का मज़ा ही कुछ और था। जैसे ही जंगलों में घुसे,
अनायास नज़रें जंगली पशुओं को ढूंढ़ने लगी, पर पता चला कि जंगलों
में इतना आसान नहीं इन प्राणियों को खोजना, देखना। हम साढ़े तीन
सौ मील की लम्बाई में फैले
इस जंगल के एक छोटे से हिस्से
में घूमने वाले थे।
शाम को चार बज़े हम उन 'इलिफेंट प्लेनस' तक पहुँचे जिसके बारे
में और जानने के लिए हम बड़े उत्सुक थे। आठ लोगों के लिए
आरामदायक लेकिन खुली जीप और उसमें सवार कुछ पर्यटक हमारे
इंतज़ार में ही थे। हम उस जीप में जंगल की ओर चल पड़े। खुली जीप
और घने जंगल, घूमना रोमांचक हुआ जा रहा था। हिरन, जिराफ़ जैसे
पशु आम तौर पर घूमते नज़र आए। थोड़ी देर में ही शाम ढल गई और रात
होने लगी तब एक ओर ठण्ड, और दूसरी ओर सन्नाटे में रात के कीड़ों की किरकिर,
वातावरण को डरावना बनाने लगी। इतने में ड्राइवर को पता चला कि
कहीं शेर का झुंड जा रहा है, चलो! उसका पीछा करते हैं। (अलग
अलग जीप गाड़ियाँ अलग अलग दिशाओं में घूमती रहती हैं और एक
दूसरे के सहारे ही यह वन्यप्राणी ढूँढे जाते हैं)
उन जंगलों में कौन सा रास्ता, जंगल का कौन सा कोना, ये तो वहाँ
के गार्ड ही जानें।
सच में जब पाँच मिनट के बाद शेरों का झुंड सामने नज़र आया तो
शायद हम सभी आठ लोगों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी। रात में
हमारी तरफ़ देखती उनकी चमकती आँखें डरावनी लगीं। निगाहें ऐसी कि
अभी आकर नोंच डालने की सोच रही हों! जीप उनके इतनी नज़दीक जा कर
रुकी कि चाहे तो शेर एक छोटी सी छलांग में हमारे साथ जीप में आ
कर बैठ जाए! पांच–छः शेरों का यह झुंड आराम फ़रमा रहा था।
घबराते हुए लेकिन तसल्ली से और करीब से जब देखा तब लगा कि जंगल
का यह राजा इस जंगल का सही मायने में राजा है। उसे किसी बात की
पाबंदी नहीं, कहीं पिंजरे में बंद होने का डर नहीं। रात का
हमारा यह सफ़र दो-तीन घंटे चला। इसी बीच रास्ते में कभी
लकड़बग्घे, कभी खरगोश जीप का रास्ता काटते रहे। जब हिरन का झुंड
आता तो जीप की लाइट बंद कर दी जाती, कहते हैं इस लाइट की तेज
रोशनी से उनकी आँखों की रोशनी चली जाती है। एक बात है, इन
जंगलों में रहने वाले सभी प्राणियों का विशेष ध्यान रखा जाता
है। आज का सफ़र तो खत्म
हुआ लेकिन सुबह साढ़े चार बजे फिर चलना था।
सुबह की धुंध, ओस भरी घास, सर्द हवा, थोड़ी ठण्ड, बड़ा सुहाना
मौसम। हाथियों के झुंड ने मचाया हुआ मातम उखड़े हुए बड़े बड़े
पौधे बयान कर रहे थे। लेकिन यहाँ तो हर कोई अपने मन की कर सकता
है न! चार–पाँच हाथी और दो छोटे बच्चे मज़े में चलते जा रहे थे।
इस जंगल में, ज़्यादातर हाथी एक छोर से दूसरे छोर तक घूमते रहते
हैं। फरवरी के अन्त तक हाथियों को इस छोर पर आना था जहाँ हम
घूम रहे थे। थोड़े बहुत जो आ पहुँचे थे उनसे हमारी मुलाकात हुई।
जीप की बगल से गुज़रे हाथी की सूँड जीप में बैठे लोगों का
मुआयना कर रही थी।
थोड़ी दूरी पर चीता मज़े में चलता दिखाई दिया। जीप का रास्ता
लेकिन राज करता रहा यह चीता! वो जिस गति से जा रहा था उसी गति
से हमारी जीप उसके पीछे जा रही थी, ना उसे जल्दी ना ही हमें!
उसने हमारी आँखों के सामने एक खरगोश पर छलांग मारी लेकिन खरगोश
जान बचाने में कामयाब रहा। अब चीते की सवारी एकदम हमारी जीप की
बगल से ही गुज़र रही थी। इसलिए हमारा गाइड हमारी फिरकी लेने से
नहीं चूका, कहता है, "उसका शिकार तो खुद को बचाकर
भाग चला, अब
शायद हमारी बारी है!"
चलते चलते वह थोड़ी थोड़ी देर बाद एक–एक पौधे की ओर छलांग मारता।
गाइड ने बताया कि यह जाते जाते अपनी एक खास खुशबू से सीमा
आँकता जा रहा है ताकि उसकी सीमा में और कोई चीता न आ सके। इन
घने जंगलों में हर नर चीता अपनी अपनी सीमा में ही रहता है और
किसी ने हिमाकत की तो उसे उसका सिला भी मिलता है। गेंडा, शेर,
हाथी, चीता, हिरन, ज़ेब्रा, जिराफ़ आदि को खुले आम घूमते,
स्वच्छंद विचरते और उन सभी को हमारे कैमरे में कैद करते दिल
खुश हो गया। (प्राणी संग्रहालयों में कैद कर रखे प्राणियों को
देख मेरा मन हमेशा ही भर आया है) चार घंटे घूम कर लौटे। नाश्ता
हो जाने पर अब हमें पैदल इन जंगलों में घूमना था। इसे 'बुश
वॉक' कहा जाता है। निकलने से पहले ही हमारा डर निकालने के लिए
हमें बता दिया गया कि इतनी आसानी से शेर, चीता वगैरे हम पर
हमला नहीं करेंगे। कुडू नाम के हिरन बड़े ही फुर्तीले और चतुर
होते हैं। वह हमेशा झुंड में रहते हैं और उन्हें खतरे का अहसास
बड़ी जल्दी हो जाता है। झुंड का मुखिया एक आवाज़ निकाल कर पैरों
में मौजूद ग्रंथि से एक महक फैलाता है जिससे खतरे की आहट के
बारे में बाकी सभी सदस्यों को पता चलता है और सभी भाग जाते
हैं। करीब से देखने, उनको छूने को जी करता था लेकिन नहीं
देख पाए, हर जान अपनी जान
को बचाना जो चाहती है।
अफ्रीकन प्राकृतिक सौंदर्य, वन्य जीवन की झलक देख ही चुके थे।
अब सभ्यता, संस्कृति को जानने की बारी थी। रात को खुले आँगन
में, ठण्ड में जलती लकड़ियों की गरमाहट, थोड़ा पारंपारिक अफ्रीकन
संगीत और माहौल से मिलता–जुलता अफ्रीकी खाना। खाने के लज़ीज़
व्यंजन के साथ शराब के शौकीनों के लिए पूरा इंतज़ाम! सुन्दर बार
सजा हुआ, जो मर्जी–जितना मर्जी पीने का मज़ा उठा सकते थे।
बाहर से झोंपड़ीनुमा लेकिन अंदर से पांचसितारा हॉटेल सा सजा
कमरा, जंगल में रहते इतनी सुख–सुविधाएँ, (रोज की ज़रूरतमंद
चीज़ों को यहाँ तक लाने में होने वाली परेशानियाँ) पीछे बहती
नदी, घने जंगल में हरियाली, आराम फ़रमाने के लिए आरामकुर्सियाँ
जिन पर पाँव फैलाए घंटों बैठो तब भी मन नहीं भरे। तीन दिन यहाँ
जंगल में कैसे बीते पता ही नहीं चला। यहाँ के लोगों की आवभगत
से वहाँ से चलते समय दिल भर आया।
वापस लौटते समय हवाई जहाज़ में बैठकर, घने जंगलों में घूमने का,
सभी जानवरों को खुले आम घूमते देखने का, वो भी क्रूगर नैशनल
पार्क में, सपना साकार हुआ है यह यकीन करने के लिए मैंने हलके
से खुदको चिमटी भी ले ही ली। इन रोमांच भरे दस दिनों को हमने
पूरी तरह जिया। दक्षिण अफ्रीका के भ्रमण के लिए हमने सही मौसम
का चुनाव किया था इसलिए जितना कुछ सोचा था उससे कहीं ज़्यादा
पाया।
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