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पर्व परिचय


दीपों का त्यौहार दिवाली


- आनंद शर्मा


रद ऋतु अपने आप में सर्वाधिक सुखद होती है। शरद ऋतु का पदार्पण श्री का पदार्पण है लक्ष्मी का पदार्पण है, सीता और राधारानी का पदार्पण है शरद का पदार्पण ही शारदा का पदार्पण है। श्री का यह पदार्पण न तिजोरयों में बंद होता है और न उल्लू की सवारी करता है, यह तो प्रकाश की एक धारा निरंतर जीव-जगत के बाहर-भीतर फैलाता रहता है। शरद ऋतु का पावन मास है—कार्तिक। पूरा कार्तिक ही पर्व-त्योहारों का महीना है कार्तिक-स्नान का अपने आप में बड़ा महत्व है नवरात्र और दशहरा यानी विजयादशमी के बाद दीपावली पर्व आता है दीपावली अकेला नहीं, पर्वों का समूह है, इसलिये लोग इसे पंच-महोत्सव, यानी पाँच दिन तक चलनेवाला महोत्सव भी कहते हैं।

दीपावली अँधेरे पर उजाले की विजय का पर्व है, तमस में ज्योति के पदार्पण का, बुराई पर अच्छाई की विजय का और दुर्गुणों पर सत्गुणों की विजय का पर्व है दीपावली। दीपावली के एक महीना पहले से घरों, दुकानों, कार्य-स्थलों की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई और रंग-रोगन करना शुरू हो जाता है कहा गया है कि जहाँ स्वच्छता है, वहाँ लक्ष्मी का वास है ''लक्ष्मी तंत्र'' ग्रंथ में उल्लेख आया है कि देवताओं के राजा इंद्र ने पूछा कि देवी लक्ष्मी, आपकी कृपा कैसे प्राप्त की जा सकती है? तो माता लक्ष्मी ने बताया कि देवेंद्र, जो मेरी प्राप्ति की इच्छा रखते हुए स्वच्छ तन, स्वच्छ मन तथा स्वच्छ वातावरण से युक्त परिवेश में मेरी पूजा-आराधना करता है, मैं उस सेवक पर ही प्रसन्न होती हूँ। निःसंदेह जो गृहस्थ सात्विक मन से, अपनेपन के साथ पूजा-अर्चना करता है, वह अपने जीवन की दरिद्रता को मिटा सकता है ''ब्रह्म पुराण'' में भी बताया गया है कि कार्तिक अमावस्या की अँधेरी रात्रि में लक्ष्मीजी स्वयं भूलोक में आती हैं और चहुँ ओर विचरण करती हैं। जो घर या स्थान अधिक स्वच्छ, शुभ, सात्विक एवं प्रकाशयुक्त होता है, वहाँ वे अपनी कृपा बरसाती हैं।

गंदे तथा अंधकार वाले घर में वे झाँकती भी नहीं हैं, अतः क्या शहर, क्या गाँव, हिंदू घरों में खूब सफाई कर दीपक की रोशनी से चहुँ ओर जगमग कर दिया जाता है सभी को अपने घर में लक्ष्मीजी को बुलाने की तीव्र आकांक्षा रहती है लक्ष्मीजी मात्र धन की स्वामिनी ही नहीं, वे ऐश्वर्य, सुख-शांति एवं समृद्धि देनेवाली भी हैं। सभी हिंदू परिवार उनके इंतजार में पलक-पांवड़े बिछाए रहते हैं। इस अवसर पर सफाई से एक दूसरा फायदा यह भी होता है कि बरसात के बाद कीड़े-मकोड़े काफी संख्या में बढ़ जाते हैं। घरों में टूट फूट, सीलन आदि से वातावरण अस्वास्थ्यकर हो जाता है। दीपावली के बहाने अच्छी साफ-सफाई कर घरों को प्रकाशित किया जाता है, जिससे वातावरण स्वास्थ्यप्रद हो जाता है एक ओर तो दीपक अंतर्मन को आलोकित करते हैं, दूसरी ओर दीपकों के प्रकाश में कीट पतंगे सब नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए दीपावली में दीपमालिका सजाई जाती है।

यह त्योहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुभ हो जाता है, इसे धनतेरस कहते हैं। इसी दिन को भगवान धन्वंतरि के प्रादुर्भाव के रूप में मनाया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के प्रणेता भगवान धन्वंतरि का उद्भव समुद्र-मंथन से इसी दिन हुआ था। धनतेरस को यमुना में स्नान तथा यम के नाम पर दीपदान किया जाता है तेल का दीपक जलाकर मुख्य-द्वार पर रखा जाता है, इससे परिवार को अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है, ऐसी मान्यता है इस दिन धातु के बरतन, आभूषण आदि खरीदना भी शुभ माना जाता है क्या गरीब क्या अमीर, सब हिंदू इस दिन कुछ-न-कुछ अवश्य खरीदते हैं। अगले दिन नरक चतुर्दशी होती है, इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं। इस दिन सायं को हिंदू परिवारों में कहीं पर चौदह तो कहीं पर एक दीया जलाया जाता है और रामसेवक हनुमान को तेल तथा सिंदूर चढ़ाना शुभ माना जाता है। यह उनको अत्यंत प्रिय है। द्वापर में इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था, ऐसा भी माना जाता है कालांतर में इस दिन महावीर जयंती भी मनाई जाने लगी और यह जैन संप्रदाय का भी पर्व बन गया।

अश्विन शुक्ल पक्ष की दसवीं को रावण पर विजय प्राप्त करने के ठीक बीसवें दिन भगवान राम के अयोध्या लौटने पर और उनके राज्याभिषेक के पावन अवसर पर अमावस्या को घर-घर में दीप जलाए गए। दीवाली के रूप में प्रतिवर्ष हमारे राम की वापसी होती है और हम दीपोत्सव मनाते हैं। दीपावली को ही आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यह घर में नवान्न आने का भी पर्व है अतः सायं को नवान्न के रूप में गुड़ से निर्मित विभिन्न खाद्य वस्तुएँ, खाँड़ के खिलौने, बताशे, मिष्ठान्न के साथ धान से बनी खील, लाई, चूड़ा आदि से गणेश और लक्ष्मी की पूजा बड़े भक्तिभाव से की जाती है घर-द्वार, कुआँ-बावड़ी, मंदिर-देवालय यहाँ तक कि कूड़ाघर में दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता है, हिंदू अपने नाते-रिश्तेदार, मित्रों एवं अड़ोस-पड़ोस में मिठाइयों तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। इससे आपसी प्रेम-सौहार्द की वृद्धि होती है।

बच्चों के लिए यह विशेष खुशी का पर्व है, जो हफ्ते से पहले ही पटाखे चलाना शुरू कर देते हैं। दीपावली वैसे तो सभी हिंदू परिवार बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं, पर प्रमुख भप से इसे वेश्यों का त्योहार कहा जाता है इस दिन व्यायापार की पुरानी बही बदलकर नई शुरू की जाती है। वे बही की पूजा करते हैं। इस अवसर पर श्री-श्री इतने हजार मिति, सुदी, बदी लिखकर गणेशजी केनाम से खाता खुलवाया जाता है गणेश के नाम लिखे -पयों में कोई का।ट-छां।ट या छेड़-छाड़ नहीं की जाती। इसके बाद शुभ-लाभ एवं रिद्धि-सिद्धि लिखे जाते थे। और शुभ के नीचे जो अर्जित किया, वह लिखा जाता था तथा लाभ के नीचे जो कमाया, वह लिखा जाता था। बही पर गणेषाय नमः, श्रीलक्ष्मी नमः तथा अन्य देवता उपदेवताओं के नाम लिखे जाते थे। इस दिन सायं को लक्ष्मीजी और गणेशजी की साथ-साथ पूजा के कारण जो भी रहे हों, परंतु यह बात सर्वविदित है कि आज भी लक्ष्मीजी का पूजन सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए तथा गणेशजी की पूजा उस समृद्धि एवं ऐश्वर्य को सात्विक एवं लोक-कल्याणकारी बनाए रखने के लिए ही की जाती है। धन-संपत्ति और समृद्धि अहंकार बढ़ानेवाली नहीं, परोपकारार्थ और जन-कल्याण के लिए होनी चाहिए। दीपावली पूजा का मंतव्य यही है हिंदू समाज में ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के सिंहासनस्थ होने पर अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाकर पूरी अयोध्या नगरी को रोशन-प्रकाशित किया तथा स्वादिष्ट व्यायंजन बनाकर खुशियां मनायीं अतः उसी खुशी में दीपावली की परंपरा आज तक चली आ रही है। दीपावली की रात्रि के बाद, यानी ब्रह्ममुहूर्त में दलिद्दर भगाने की प्रथा आज भी है घर के कोने-कोने में जाकर घर की बड़ी-बूढ़ी सूप पटकती या बजाती हैं और कुछ लोकगीत गुनगुनाते हुए घर से दरिद्रता को भगाती हैं।

दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, इसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए और इस सीख को जीवन में उतारना चाहिए। यदि हर व्यक्ति दीवाली के दिन यह व्रत ले कि उसके जीवन में सच्चाई और ईमानदारी का ही वास होगा तो हमारा देश दुनिया में सबसे आगे बढ़ सकता है। ठीक अगले दिन, यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर्व मनाया जाता है भगवानध कृष्ण ने इसी दिन दंभी इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोवर्धन और गाय की पूजा शुरू कराई थी। इसी दिन इंद्र के कोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उँगली पर धारण कर इंद्र का मान-मर्दन किया था। ब्रजवासी इस पर्व को बड़े हर्ष-उल्लास के साथ मनाते हैं। घर-घर में गोबर पे गोवर्धन बनाया जाता है सायं में खीर-पूरी और अनेक पकवान बनाकर पूरे परिवार के साथ गोवर्धन यानी गिरिराज भगवान की पूजा कर परिक्रमा की जाती है उत्तर भारत में मथुरापुरी के पास स्थित गिरिराज पर्वत (गोवर्धन) की परिक्रमा वर्ष भर चलती रहती है इसके अलावा व्यवसायी तथा हस्त-कलाकार और नाना पेशा करनेवाले इस दिन विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं और अपना कारोबार इस दिन बंद रखते हैं।

इसके अगले दिन तृतीया को भाई-बहन के आपसी प्रेम-सौहार्द का पर्व भैया दूज मनाया जाता है कहा जाता है कि सबसे पहले महालक्ष्मीजी ने राजा बलि को राखी बाँधकर उन्हें भाई बनाकर भगवान विष्णु को वहाँ से मुक्त कराया था। एक वरदान के कारण विष्णुजी राजा बलि के पहरेदार बन गए थे। अतः इस दिन बहने भाई को नारियल (गोला) और मिठाई के साथ तिलक करती हैं और उनकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। भाई भी कपड़ा, उपहार तथा नकद राशि देकर बहन का सम्मान करता है और बहन की सदा मदद करने का वचन देता है। इस दिन बहने अपने भाई के घर जाती हैं या भाई ही बहन के घर आ जाते हैं, तब बहन भाई का रोली-अक्षत से तिलक कर नारियल, मिष्ठान्न आदि भेंट करती है जो भाई दूर या परदेस में होते हैं तो बहनें उनके नाम से नारियल को तिलक कर रख लेती हैं और सुविधानुसार बाद में अपनी दोज भेंट करती हैं। भैया दूज के दिन बाजारों तथा बस, रेल आदि में खूब भीड़ रहती है वर्तमान में दीपावली के बहाने अपने धन-वैरूव की नुमाइश होने लगी है पर्यावरण को बरबाद करनेवाली दमघोंटू आतिशबाजी का चलन कब-कैसे शुरू हो गया, कहा नहीं जा सकता। हाँ, अपनी संपन्नता की धाक जमाने का यह भी एक जरिया बन गया है, जबकि दीपावली तो वातावरण को स्वास्थ्यकर बनाने का पर्व है।

लालची दुकानदार तथा मिलावटखोरों ने दीवाली की मिठाई को भी जहरीला बना दिया है दूध से बननेवाली मिठाइयों में सबसे ज्यादा मिलावट की जा रही है इस मौके पर मिाटाइयाँ खाना भी बीमारियों को आमंत्रण देना है कुछ लोग इस दिन जुआ खेलकर इस त्योहार की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं, यह पर्व तो व्यसनों तथा बुराइयों को दूर रूगाने का पर्व है दीपावली पर्व पर हम केवल दीपक जलाते हुए ही न रह जाएँ, बल्कि अपने-अपने आंतरिक जीवन तथा बाह्य जीवन में जो अज्ञान है, अभाव है, अरूचि है, असोच है, उसे अपनी पूरी ताकत लगाकर दूर करें या कर सकें तो दीपोत्सव मनाना सार्थक हो सकेगा।

१ अक्टूबर २०२५

 
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