स्पेन में दीपावली का पर्व
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पूजा अनिल
हम समझते हैं कि किसी एक समय में हम सिर्फ एक ही जगह
पर उपस्थित होते हैं, और ऐसा सोचना गलत भी नहीं
क्योंकि जो दिख रहा है वही सत्य भी होता है, किन्तु
बहुधा सिर्फ यही सत्य नहीं होता है। कहने का अर्थ यह
कि एक ही समय में हम एक से अधिक जगहों पर उपस्थित हो
सकते हैं और अक्सर होते ही हैं।
उदाहरण के लिए देखिये, आप ऑफिस से निकलते हैं और
रास्ते में ही आपकी कार ट्रेफिक में अटक जाती है और
बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं। आपने अपने बच्चों से
शाम को जल्दी पहुँचने का वादा किया था। उनके साथ बाहर
घूमने का प्लान किया था। किन्तु शनिवार की शाम है,
ट्रेफिक खतम होने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में आप बेमन
से अपनी कार में उपस्थित हैं, अर्थात देह से तो कार
में हैं किन्तु मन मस्तिष्क से आप बच्चों और परिवार के
साथ हैं।
आप जल्दी से जल्दी घर पहुँचने का विचार कर रहे हैं
किन्तु मन से तो आप पहले ही वहाँ पहुँच चुके हैं। मैं
इसी स्थिति को हम अप्रवासी भारतीयों की मनःस्थिति से
जोड़कर देखती हूँ। निःसंदेह, हम अपने देश से हजारों
किलोमीटर दूर कहीं किसी अन्य देश में अपने जीवन की गति
से दौड रहे हैं किन्तु किसी भी पल अपने देश से दूर
नहीं हो पाते हैं। तन अपना कार्य बिना रूकावट कहीं भी
सम्पूर्ण तौर पर निभाता है किन्तु मन बार-बार भारत देश
की और लौट आता है और वहीँ रुका-रुका सा रहता है।
अर्थात एक ही समय में दो स्थानों पर उपस्थित रहते हैं
हम भी।
अपने देश से हमारे रोज के जीवन का यह लगाव तीज
त्योहारों पर और अधिक गहरा जाता है। एक तो अपनों से
दूरी का दुःख है ही, दूसरे पर्व को उसके समग्र रूप में
न मना पाने का अवसाद इस दुःख को और बढाता है। अपनी
जड़ों से मजबूती से जुड़े रहने की मंशा इस पीड़ा को कभी
कम होने भी नहीं देती। ऐसे में दिल को समझाने बुझाने
का सबसे सुन्दर अवसर भी हमें भारतीय पर्वों से ही
मिलता है। भारतीय पर्व और त्यौहार ही अप्रवासी पंछियों
के लिए सुकून का सन्देश लाते हैं।
पर्व तो परिवार को जोड़ने का मौका होते हैं। लेकिन
भौगोलिक परिस्थितियाँ और सरहदें इस तथ्य से अनजान हैं।
मुझे याद है जब मैं छोटी थी और दिवाली पर पन्द्रह
दिनों की स्कूल से छुट्टी मिलती थी तब माँ के साथ साथ
पिताजी भी तैयारियों में जुटे होते थे। लेकिन यहाँ
स्पेन में ऐसा नहीं है। जब भारत में दिवाली की साज
सज्जा चल रही होती है तब हम अप्रवासी अपनी रोजी रोटी
के लिए दौड़ रहे होते हैं। यहाँ के राष्ट्रीय कैलेंडर
में हमारे पर्वों के लिए कोई स्थान ही नहीं है। इस
परिस्थिति में दिन के किसी पल में अथवा सप्ताह के
आखिरी दिन में अपने त्योहारों को रस्मो रिवाज से
संपन्न करना भी हमारे लिए बेहद संतोषप्रद है।
भारत में जब दिवाली पूजन पर सब लोग नए वस्त्राभूषण पहन
कर एक दूसरे को गले लग कर बधाई दे रहे होते हैं तब
स्पेन की धरती के किसी कोने में बसे हम भारतीय ख्यालों
में अथवा फोन पर माँ के पैर छू आशीर्वाद ले रहे होते
हैं। दूसरी तरफ ऑफिस में काम कर रहे बाशिंदे अपने काम
जल्द से जल्द खत्म कर घर जाने की राह देख रहे होते हैं
कि समय से घर पहुँच कर और कुछ नहीं तो स्काइप पर माँ
पिताजी के दर्शन कर लें। कि समय की सुइयाँ भारत में
स्पेन से आगे दौड़ती हैं तो कहीं देर ना हो जाए! कहीं
दूर से आती गूँज की तरह भारतीय संस्कृति की आवाज़ में
हम माँ के हाथ से बना सीरा याद करते हैं, गुझिया याद
करते हैं, घर के बने व्यंजनों का स्वाद जब जीभ पर तैर
आता है तब माँ से व्यंजन बनाने की विधि पूछ उसी विधि
से अपनी संस्कृति को भोग लगाते हैं और अपने अपने घर
में एकाकी दीपावली मनाने का अवसाद इसी तरह भुलाने की
कोशिश करते हैं। किन्तु आप दीपावली का त्यौहार अकेले
मना ही नहीं सकते। ऐसे में अधिकतर हम अपने पड़ोसी को
भी उत्सव में शामिल होने को निमंत्रित करते हैं फिर
चाहे वह स्पेनिश ही क्यों न हो!
वैसे तो परिवार और रिश्तेदारों से भरे पूरे घर की जगह
एकाकी घर में पूजन विधि संपन्न करते हैं स्पेनवासी
भारतीय। फिर भी अपनी जड़ों से जुड़े रहने का सुख सभी
भारतीय चाहते हैं। इस उपक्रम में हम आप्रवासी वैसा ही
हिन्दुस्तानी व्यवहार भी करते हैं जैसे, भारत की तरह
ही घरों में झालर और दीपमाला सजाना, आरती तिलक करना,
वैसा ही बहीखाते और चोपड़े पूजना, वैसे ही मीठा खाना और
खिलाना, वैसा ही अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ
उपहारों का लेन देन इत्यादि।
विस्तृत पटल पर देखा जाए तो दीपावली भारतवंशियों की
अस्मिता का मंच भी है। भारतीय संस्कृति का पुरातन
इतिहास इस पर्व की पहचान है। हिंदु धर्म से जुड़े नैतिक
मूल्य और सदाचरण का सीधा सम्बन्ध भी दीपावली के आलोक
में समाहित है। इन्हीं मूल्यों के साथ स्पेन में
दीपावली का त्यौहार संयुक्त मंच पर भी आयोजित करने की
परंपरा है। जहाँ न सिर्फ भारतीय मूल के सभी व्यक्ति
भाग ले सकते हैं बल्कि स्पेनिश नागरिक एवं अन्य देशों
के नागरिक भी सम-भावना से आमंत्रित किये जाते हैं और
वे पूर्ण उत्साह से सम्मिलित भी होते हैं।
भारतीय समाज का एक सुगठित संगठन इस उत्सव के आयोजन के
लिए जिम्मेदारी लेते हुए विभिन्न देशों के दूतावासों
को निमंत्रण भेजकर उनके राजदूतों को निमंत्रित करता
है। इसी तरह विभिन्न पदों पर आसीन स्पेनिश मंत्रियों
को भी ससम्मान निमंत्रित किया जाता है। भारतीय परिधान
और भारतीय व्यंजनों के शौक़ीन विदेशी बहुतायत से दिख
जाते हैं इस आयोजन में। सबसे सुन्दर बात तो यह की वे
स्वयं भी भारतीय परिधान में ही उपस्थित होने का प्रयास
करते हैं। आमतौर पर यह उत्सव दिवाली के आसपास किसी एक
शनिवार शाम में आयोजित किया जाता है ताकि रविवार अवकाश
का लाभ ले अधिक से अधिक संख्या में लोग उपस्थित हो
सकें और देश से दूर होने का अहसास कुछ हद तक कम कर
सकें।
मद्रिद में आयोजन स्थल के लिए भारतीयों ने मिलकर एक
दुमंजिला भवन निर्माण करवाया है। इसी भवन के तलघर
स्थित बड़ी सी रसोई में भारतीय मूल के रसोइये विभिन्न
प्रकार के मीठे और नमकीन स्वादिष्ट व्यंजनों की सुगंध
से भूख जगा देते हैं। और अंत में इसी भवन के विशाल हॉल
में दिवाली की धूम भारतीय संगीत के सुर ताल के साथ
गूंज उठती है। बॉलीवुड की धुनों पर अगली सुबह तक
थिरकते कई कदम दीपावली की उमंग और उत्साह को जगाए रखते
हैं। इन समवेत क़दमों की आहट में दीपावली का जगमग का
पर्व भारत से दूर स्पेन में भी अपनी अस्मिता कायम रखने
में कामयाब होता है।
१ नवंबर २०२१ |