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उल्लास
और आदर्श का स्मरण पर्व
राम नवमी
-ज्योतिर्मयी
पंत
रामनवमी भारत का अति महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इसे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मदिन के रूप में हर
क्षेत्र में धूमधाम और उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाने वाला
यह पर्व नववर्ष का मंगलमय आरंभ लेकर आता है।
नव वर्ष
का प्रारंभ
चैत्र मास की प्रतिपदा को नव वर्ष का शुभारम्भ और
चैत्रीय नव रात्र आरम्भ होते हैं। जिसमे शक्ति पूजन,
कन्यापूजन संपन्न होते हैं किन्तु नवमी को राम का
जन्मदिन विशेष रूप से मनाया जाता है। राजपरिवार में
पुत्र जन्म की खुशी जनता के लिये भी खुशी की बात होती
है। जैसा कि तुलसी दास ने लिखा भी है-
भए प्रगट कृपाला
दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी
अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी। भूषन
बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी।।
अर्थात् दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी
कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले
उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई।
नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था,
चारों भुजाओं में अपने (खास) आयुध (धारण किए हुए) थे,
(दिव्य) आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे।
इस प्रकार शोभा
के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट
हुए। जिसने मात्र प्रकट होकर अपनी जनता को अपरिमित
आनंद से भर दिया हो और जीवन भर जिसने पुण्य की स्थापना
में लगा दिया हो, ऐसे श्रीराम जन्म का पर्व रामनवमी आज
भी सबको प्रसन्नता और आदर्श की ओर प्रेरित करता है।
अवतार का प्रकट होना
भारतीय जन मानस में रचे बसे राम एक अद्भुत और अलौकिक
अवतारी पुरुष माने जाते हैं। त्रेता युग में जब
अत्याचारी रावण से देव-मनुज गन्धर्व सभी आक्रांत हो
चुके तब उनकी प्रार्थनाओं के फलस्वरूप विष्णु ने मानव
रूप धारण कर इस धरा पर अवतार लिया। रावण अपनी तपस्या
से ब्रह्मा को प्रसन्न कर यह वरदान पा चुका था कि उसे
कोई भी सुर-असुर नहीं मार सकता। दूसरी ओर राजा दशरथ
निःसंतान होने से निराश थे। तब अपने गुरु वशिष्ठ और
श्रृंगी ऋषि की आज्ञानुसार उन्होंने पुत्रेष्टि-यज्ञ
किया जिसके फलस्वरूप उनकी तीनों रानियों ने चार
पुत्रों को जन्म दिया। दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या
ने चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मध्याह्न
के समय पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न युक्त बेला में
पुत्र को जन्म दिया। तुलसीदास ने कहा है--
नौमी तिथि मधुमास
पुनीता। । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति शीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।
अर्थात् पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी।
शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित् मुहूर्त था।
दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप थी। वह
पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। ऐसे समय
में आने वाले यह पर्व आज भी लोगों को हर्षित करता है।
राम का नामकरण
रामनवमी के समय बसंत ऋतु प्रकृति को सुसज्जित कर चुकी
होती है। सर्दियों के ठंडे दिन दूर हो चुके होते हैं।
पशु पक्षी और सब जन आनंद मगन होते हैं। नई फसल भी कटकर
बाजार में आ जाती है। जिसके कारण कृषक समुदाय के पास
धन की कमी नहीं होती । हर ओर उत्सव का वातावरण होती
है। ऐसे सुंदर और सुखद समय जन्म लेने के कारण
गुरु वशिष्ठ ने उनका नाम करण 'राम' इस प्रकार किया।
तुलसी दास जी कहते हैं-
जो आनंद सिन्धु सुखरासी, सीकर तें त्रलोक सुधासी
सो सुखधाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक विश्रामा।
अर्थात् जो आनंद के समुद्र और सुख के भंडार है, जिनके
एक बूँद से तीनों लोक सुखी हो जाते हैं, उनका नाम राम
है। वे सुख के धाम है और संपूर्ण लोकों को शांति देने
वाले है। तुलसी दास कहते है 'राम' शब्द सुख-शांति के
धाम का सूचक है। राम की प्राप्ति से ही सच्चे सुख और
शांति की प्राप्ति होती है।
अमीर
खुसरों के आराध्य राम
राम
विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। वे वैष्णव
संप्रदाय के आराध्य हैं। हमारे देश की सांस्कृतिक और
धार्मिक विरासत के ऐसे उज्जवल तत्व हैं जिनके नाम के
बिना यहाँ सब अधूरा है। समाज, धर्म, कर्तव्य तथा
राजधर्म की वे पराकाष्ठा हैं। जीवन के अंत समय भी उनके
नाम की सत्यता मुखरित होती है। राम का व्यक्तित्व ऐसा
है कि उन्हें जाति धर्म संप्रदाय अमीरी गरीबी सभी से
ऊपर उठकर सबके मन में अपने लिये स्थान बनाया। यही कारण
है कि लगभग हर धर्म और भाषा में उनके प्रति आस्था से
भरपूर उल्लास व आदर्श बिखेरने वाली रचनाएँ पाई जाती
हैं। अमीर ख़ुसरो ने कहा है ...
शोखी-ए-हिन्दू ब बीं,कुदिन बबुर्द अज़ खास ओ नाम।
राम-ए-नाम हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम।।
अर्थात् हर आम और खास ये जान ले कि राम हिंद के शोख और
शानदार शख्शियत हैं। राम मेरे मन में हैं। मै राम राम
बोलूँगा जब भी बोलूँगा।
जननायक सुखदायक राम
जन नायक राम ब्रह्म का मानव अवतार थे। उन्होंने
मानवोचित आचरण किया। मानवता का पालन किया तभी वे आदर्श
बनें। उत्तम
पुरुष कहलाये। मर्यादा उनके नाम का पर्याय बन गयी।
मर्यादा पुरुषोत्तम कहते ही राम कि छवि स्वतः मानसपटल
पर उतर जाती है क्योकि, और दूसरा उन के जैसा हुआ ही
नहीं।
राम का जीवन सदा परायों के लिए समर्पित रहा। बाल्यकाल
में शिक्षा ग्रहण कर ऋषि विश्वामित्र के साथ ऋषियों के
यज्ञादि कार्यों में में विघ्नकारी दानवों का विध्वंस
करने चले गए। उसके बाद जनक के यहाँ शिव धनुष तोड़ कर
सीता के साथ विवाह किया और एक पत्नी व्रत धारण किया।
माता कैकेयी के वरदानों को पूरा करने में दशरथ का साथ
दिया वर्ना 'रघुकुल रीति' दशरथ पूरी न कर पाते। सहर्ष
वन गमन किया, आदर्श आज्ञाकारी पुत्र और भाई की भूमिका
निभाई, आततायी दानवों का संहार किया, अपनी पत्नी सीता
के अपहरण का दुःख झेला और रावण को मार संसार को दुख
मुक्त किया। वनवास कि अवधि पूरी कर राज तिलक होनें के
बाद भी एक सामान्य प्रजा जन के द्वारा की गयी टिप्पणी
पर अपनी गर्भवती पत्नी को वनवास दे दिया ताकि राजधर्म
निभ सके। उन्होंने हमेशा प्रजा के लिए व्यक्तिगत सुख
और ऐश्वर्य का परित्याग किया। दीन- दुखियों, दलितों,
समाज में निम्न समझे जाने वाले लोगों को प्यार,
सहानुभूति और सम भाव से गले लगाया। शबरी के जूठे बेर
ग्रहण किये। केवट को गले लगाया। कितने युग बीत गए अभी
भी लोग `राम-राज्य`
की कल्पना से ही मुदित हो जाते हैं सुख –समृद्धि और
शांति का पर्याय है रामराज्य। लोक सेवा और लोक मंगल ही
राम का धर्म था उन्होंने कोई नया धर्म स्थापित नहीं
किया। लेकिन उनका संबंध भारत के सभी प्रमुख त्योहारों
से जुड़ा है राम नवमी जन्म से, दशहरा रावण पर विजय से
और दीपावली राम के अयोध्या लौटने से।
आध्यात्मिक सुख के प्रतीक
राम का आध्यात्मिक रूप भी अनादि काल से लोगो की
श्रद्धा, भक्ति और मुक्ति का विषय रहा है। राम अलौकिक
हैं। वे परमात्मा हैं। यहाँ दशरथ है हमारी दस
इन्द्रियों के रथ पर सवारी करने वाला राजा (पाँच
कर्मेन्द्रियाँ और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ युक्त देह)।
कौशल्या हैं सत और असत का विवेक कराने वाली वृत्ति।
राम रुपी आत्मा का अवतार सत्चित्त में ही होता है।
अनाशक्त विदेही जनक की पुत्री सीता शक्ति स्वरूपा राम
के साथ हों तभी धर्म का परिपालन हो सकता है।
यह भी कहा जाता है दशरथ की तीन पत्नियाँ तीन गुणों की
परिचायक हैं सत गुण, रजोगुण और तमोगुण। जब तक मनुष्य
तीनों गुणों में लिप्त रहेंगे तब तक राम रुपी आत्मा से
दूरी रहेगी... तभी दशरथ राम से दूर हुए और शांति
रूपिणी सीता जीवन से दूर हो गयी। कहने का तात्पर्य
हैकि राम चाहे जो भी हों वह हमारे मानस पटल पर किसी न
किसी रूप में सदा अमर रहे हैं और रहेंगे।
लोक आनंद का रूप
ऐसे जन मन प्रिय नयनाभिराम ईश्वर के जन्म दिन पर अगर
सभी प्रसन्नता पूर्वक जुट जाते हों तो क्या आश्चर्य?
यहाँ वसंत ऋतु का आगमन होते ही जन उल्लासित हो उठते
हैं फिर होली उत्सव के बाद नव वर्ष और राम नवमी का
उत्सव मनाने की तैयारी में जुट जाते है। सभी घरों
में,मंदिरों में विशेष पूजापाठ। भज-कीर्तन,
प्रवचन-अर्चना, भंडारा अदि की व्यवस्था की जाती है।
झाँकियाँ, जुलूस, भाषण, नृत्य संगीत नाट्य आदि
कार्यक्रम खूब होते हैं। लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार
पूजन, हवन, दान करते हैं। नवरात्र का अवसर होने से
कन्या-पूजन का भी विधान होता है। जगह-जगह मेलों का भी
आयोजन होता है। यह त्यौहार कश्मीर से कन्या कुमारी तक,
गुजरात से आसाम तक किसी न किसी रूप में सारे देश में
अत्यंत उल्लास के साथ मनाया जाता है और राम के आदर्शों
को याद किया जाता है। |